अमृतसर यात्रा – २ – वाघा बॉर्डर

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जलियाँवाले
बाग से निकलने के बाद हमने लंच किया और फिर वाघा बॉर्डर की तरफ निकल पड़े। वहाँ से निकलने के बाद भी मैं पूरी तरह से उन यादों से बाहर नहीं आ पाया था और रह रह कर उसी जघन्य हत्याकांड की तस्वीरें मेरे दिमाग में घूम रही थीं जिसे मैंने देखा नहीं था..बस जिसके बारे में सुना था और जिसे जलियाँवाला बाग में आकर महसूस किया था। मैं इन्हीं उलझे ख्यालों के बीच गाड़ी के फ्रंट सीट पे बैठा पूरे अमृतसर शहर को देख रहा था। अमृतसर शहर जाने क्यों मुझे उन शहरों सा लगा जो पहली ही मुलाकात में ही आपसे एक रिश्ता सा बना लेते हैं। अमृतसर में अब तक दो महत्वपूर्ण जगहें मैं घूम चुका था – जलियाँवाला बाग और स्वर्ण मंदिर और तीसरी जगह (वाघा बॉर्डर) की ओर बढ़ रहा था।

परेड करते जवान
ग्रैंड ट्रंक रोड जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान को जोड़ती है, उसी सड़क पर वाघा बॉर्डर का निर्माण किया गया था। हर शाम यहाँ पाकिस्तान और हिंदुस्तान के सैनिकों की तरफ से आक्रामक तरीके से परेड किए जाते हैं। इस परेड को बीटिंग रिट्रीट कहा जाता है और इसे देखने हर शाम यहाँ दूर दूर से लोग आते हैं जिनमें बहुत से विदेशी टूरिस्ट भी शामिल होते हैं। वाघा बॉर्डर में परेड शुरू होने से पहले लोग साथ-साथ नाच गा कर एक सांस्कृतिक समारोह जैसा माहौल बनाते हैं। 1959 से लेकर आज तक हर शाम बॉर्डर पर यह बीटिंग रिट्रीट का समारोह बदस्तूर जारी है, और यह समारोह देखने के बाद मुझे तो ये लगा कि सभी भारतीयों को कम से कम एक बार तो ऐसे समारोह का हिस्सा बनना ही चाहिए।

जब हमने अमृतसर जाने का कार्यक्रम बनाया था तो पता नहीं किस वजह से मैं वाघा बॉर्डर को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहा था। शायद मेरे दिमाग में ये ग़लतफ़हमी थी कि वाघा बॉर्डर अमृतसर शहर से दूर है और स्वर्ण मंदिर जाने के बाद वहाँ जाने का समय ही न मिले…हालांकि ये ग़लतफ़हमी अमृतसर जाने के एक रात पहले ही दूर हो गई जब शिखा दीदी ने चैट पर बातचीत के दौरान कहा कि वाघा बॉर्डर जरूर से घूम आना। तब मुझे लगा कि शायद वाघा बॉर्डर स्वर्ण मंदिर से नज़दीक ही हो और मैंने गूगल मैप का सहारा लिया तो पाया कि स्वर्ण मंदिर से वाघा बॉर्डर की दूरी मात्र तीस किलोमीटर की है। जालंधर गया तो पापा ने भी यही बताया और कहा कि स्वर्ण मंदिर घूमने के बाद भी हमारे पास वाघा बॉर्डर जाने के लिए पर्याप्त वक्त होगा।

माँ-पापा..भारत के आखिरी होटल में


स्वर्ण मंदिर से वाघा बॉर्डर जाने में लगभग आधे-एक घंटे का वक्त लगा। वाघा बॉर्डर से करीब सात-आठ किलोमीटर पहले हम एक होटल में कॉफी और चाय पीने के लिए रुके। हमारे पास समय बहुत था और शाम होने में भी वक्त था, तो हमने सोचा कि कुछ देर होटल में रुका जाए। गाड़ी से उतरते ही हमारी नज़र होटल के बोर्ड पर गई। होटल का नाम था “बल्ले बल्ले ढाबा” और बोर्ड पर ढाबे के नाम के ठीक नीचे लिखा था “India’s Last Hotel”। मतलब हम ग्रैंड ट्रंक रोड पर भारत के आखिरी होटल के सामने खड़े थे। इस बात से एकाएक हम सब काफी एक्साइटेड से हो गए। एक तो वैसे ही होटल से कुछ दूर पहले जब एक साइनबोर्ड पर देखा था कि “लाहौर 35 किलोमीटर दूर”, तब अचानक लगा कि हम पाकिस्तान के कितने करीब आ पहुंचे हैं और अब इस होटल के नाम के नीचे ये लिखा देख “India’s Last Hotel”, हमारा खुश होना स्वाभाविक था। हालांकि उस होटल की कॉफी तो एक अच्छे कॉफी होने से कोसो दूर थी लेकिन इस ख्याल से कि हम भारत के आखिरी होटल में कॉफी पी रहे हैं, कॉफी में एक अलग ही स्वाद आ गया था। कम से कम हम लोगों से ये तो कह ही सकते हैं कि हमने भारत के आखिरी होटल में कॉफी पी है।

लोगों का हुजूम
करीब आधे-एक घंटे वहाँ बैठने के बाद हम वाघा बॉर्डर की तरफ चले। वाघा बॉर्डर से एक-दो किलोमीटर पहले ही हमें अटारी रेलवे स्टेशन दिखा, जिसे देखकर “समझौता एक्सप्रेस” की याद आ गई। जब हम वाघा बॉर्डर के करीब पहुंचे तो देखा कि लोग एक लंबी कतार लगाए चिलचिलाती धूप में खड़े होकर गेट के खुलने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि हमें लोगों की उस लंबी कतार में खड़ा होना नहीं पड़ा लेकिन मुझे इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि यहाँ इतने लोगों की भीड़ मिलेगी। गेट खुलते ही लोग दौड़ पड़े। बाहर के मुख्य द्वार से सीमा रेखा की दूरी लगभग एक किलोमीटर से कुछ ही कम होगी और इस एक किलोमीटर की दूरी में जगह-जगह सुरक्षा बैरिकेड लगे हुए थे..लोग इतने बेसब्र थे और इस कदर एक दूसरे को धक्का दे रहे थे कि हमें यह एक किलोमीटर से भी कम की दूरी को तय करने में लगभग एक घंटे का वक्त लग गया।

हमें भी कुछ अनचाहे कारणों से थोड़ी परेशानी हुई, और अंदर प्रवेश करने में थोड़ा विलंब हुआ जिसकी वजह से कुछ देर के लिए मन भी थोड़ा उदास हो गया था, लेकिन एक बार जैसे ही हमने अंदर प्रवेश किया तो पाया कि पूरा माहौल ही बदला हुआ सा था। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि अंदर का माहौल इतना खूबसूरत होगा। अंदर जश्न का माहौल बना हुआ था। देशभक्ति गीत बजाए जा रहे थे और लोग पूरे जोश और उमंग में नाच रहे थे। मुझे तो एक पल लगा कि मैं किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में चला आया हूँ। विदेशी टूरिस्ट भी सबके रंग में रंगे नाच रहे थे। देश के कई रंग एक साथ वहाँ देखने को मिले..और यकीन कीजिए वो नज़ारा इतना सुखद था जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। मुझे तब लगा कि वहाँ देशभक्ति गीतों के बीच, लोगों के नाच-गानों के बीच जश्न का एक हिस्सा बने और हिंदुस्तान -पाकिस्तान के सीमा रेखा पर खड़ा हुए जो एक भारतीय होने का जज्बा आता है, उसे मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था।

लोगों का जश्न जब खत्म हुआ तो बी.एस.एफ के जवानों का बीटिंग रिट्रीट समारोह शुरू हुआ। बी.एस.एफ के जवान अपनी ड्रिल और परेड पूरी करते हुए अटेंसन में जाकर बॉर्डर पर बने बड़े से लोहे के गेट के सामने खड़े हो जाते हैं। और फिर कुछ और ड्रिल करते हुए जैसे ही सूर्यास्त होता है वैसे ही दोनों तरफ के गेट खोल दिए जाते हैं और दोनों देशों के राष्ट्रध्वज को सम्मान के साथ उतार लिया जाता है। उसके बाद दोनों देश के जवान एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं, हाथ मिलाने वक्त दोनों देशों के सैनिकों के चेहरे पर गुस्से और रूखेपन का मिला-जुला भाव दिखाई देता है।

यकीन मानिए इस समारोह को देखने का अपना अलग ही आनंद है। हर दिन किए जाने वाले इस रिट्रीट को बी.एस.एफ के जवान जिस जोश के साथ अंजाम देते हैं वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है। दोनों देशों से काफी दर्शक इस समारोह का हिस्सा बनते हैं और परेड देखने इकठ्ठा होते हैं, लेकिन जहाँ एक तरफ भारतीय दर्शक हर कोने में खड़े, पेड़ पर चढ़ कर जुगाड़ से समारोह को देखते मिले वहीं पाकिस्तानी दर्शक दीर्घा बिल्कुल सुनसान दिख रही थी। बहुत ही कम लोग पाकिस्तान के दर्शक दीर्घा में बैठे दिखे, हालांकि फिर भी उनका शोर और जोश कम नहीं था। समारोह के शुरुआत में ही लोगों से आग्रह किया जाता है कि वो अनुचित नारों का प्रयोग न करें..लेकिन इसके साथ साथ ही इस बात की भी प्रतिस्पर्धा रहती है कि किस खेमे से नारों की ज्यादा आवाज़ आती है। सेना के एक ऑफिसर लोगों को जोर जोर से नारे लगाने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे थे और इशारों से दर्शकों से यह भी कह रहे थे कि “देखो, उस तरफ पाकिस्तान से नारों की जोरदार आवाज़ आ रही है और अपनी आवाज़ उनसे कमज़ोर नहीं बल्कि उनसे भी ज्यादा जोरदार होनी चाहिए।” वो ऑफिसर दर्शकों को लगातार जोरदार नारे लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे और दर्शक भी “हिंदुस्तान जिंदाबाद” और “भारत माँ की जय” के जोरदार नारे लगाकर माहौल में देशभक्ति का एक अलग ही रंग भर रहे थे।

ये शाम वाघा बॉर्डर पर मेरे लिए एक यादगार शाम बन गई थी। ऐसा कुछ मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मुझे सामने पाकिस्तान दिख रहा था जो कि एक अलग देश है, लेकिन फिर भी मुझे एक पल भी नहीं लगा कि वो कोई दूसरा देश है। एक अलग ही अहसास होता है बॉर्डर पर जाने का और मैं निश्चित तौर पे कह सकता हूँ कि जो लोग बॉर्डर पर एक बार भी गए हैं, उन्हें जरूर वो अहसास हुआ होगा जो वहाँ जाने पर मुझे हुआ था। लोगों की भीड़ की वजह से और एक ऑफिसर के रूखेपन की वजह से कुछ समय के लिए जरूर रंग में भंग पड़ गया था, लेकिन ये एक ऐसा अनुभव था जिसे मैं हमेशा याद रखूँगा।

Meri Baatein
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  1. मेरा भी एक सपना है यहाँ जाने का … देखते है कब पूरा हो पता है … 🙂

    पंचम दा को शत शत नमन !

  2. अरे वाह!!! खूब मज़े किए आपने अपनी इस यात्रा में में, खैर मैं कभी गयी तो नहीं कभी भारत और किसी दूसरे देश के बौडर पर मगर आपने अपनी जिस भावना का ज़िक्र किया है कि आपको जो कुछ भी महसूस हुआ वहाँ खड़े होकर एक हिन्दुस्तानी होने के नाते, वो सब में बहुत अच्छे से समझ ज़रूर सकती हूँ। आपकी यह पोस्ट और पिछली पोस्ट दोनों ने मेरी अमृतसर जाने कि चाह बढ़ा दी है। 🙂

  3. तस्वीरें और भी बहुत कुक बयाँ करेंगी :…

    कौन सी कुक बे ..खाना बनने के लिए कुक रखे हो । ऊ शाही खानसामा आ मास्टर शैफ़्फ़ जो भेजे थे हम चुन के वे कहां हैं आजकल पार्थ 🙂 🙂

    बकिया" बार्डर " हिट रहा है सिलेमा पहिले भी ..आज भी 🙂

  4. हमें भी जाना है मत्था टेकने, और यार तुमने जोश की इत्ती सारी बातें बताईं, कोई आवाज या वीडियो रिकार्ड करके भी डालनी थी, तो बात ही अलग होती ।

  5. @विवेक भैया, विडियो एक है, वह अपलोड नहीं हो पा रहा है, सुबह तक फिर से कोशिश कर के अपलोड करता हूँ!

  6. अपनी आँखों से भी देखने का मन यह सब….. जय हिंद

  7. आपने तो देखने का माहौल ही बना दिया है यहाँ पर भी..

  8. Xplain ni ho skta waha ka experience…kuch cheezein sirf mehsoos hi ki ja skti hai ! 🙂 juzz amazing.!

    hmm apne sahi likha….dono desho k jawan gusse mei hte hai retreat ceremony pe…but usually tym pe yahi log saath saath rehte hai….saath maze krte hai…even festivalzz saath manate hai…waha rehne wale pakistani rangers aur BSF k logo k liye koi border line ni hti ! 🙂 🙂

  9. arree kyaa baat kr re ho….nii ap zada jaante ho.! ye actually kahi se pata chala tha…ki border pe diwali k diye pakistani rangerzz jalate hai aur eid pe mithayi bsf wale baattee hai ! 🙂 🙂

    ye bhi suna tha ki kabhi vollyball khelte tym border lyn net ka kaam bhi krti hai ! 😛 😀

    ye sab ye bsf k bande ne bataya tha jiski waha posting hui thi ek baar…hehe 🙂

    bhaiyaa kabhi dobara plan bane toh mjhe bhi batana..!! 🙂

  10. अपने यादगार यात्रा वृतांत को यूँ लिखकर हमें भी यादगार शब्दयात्रा करा गए आप…
    देखें कब जाना होता है वहाँ!

  11. देखने का मन तो बहुत है .. पर अभी आपके वृतांत और चित्रों से काम चलाता हूँ …
    हां … एक बात से बहुत खुशी मिली …. अपने भारतीय सिपाही की टांग पाकिस्तानी सिपाही से ज्यादा ऊंची है …बस अपनी तो रकम वसूल हो गयी ..

  12. Bht accha laga yeh post padke..! Ek baar toh har hindutani ko wagah border janna he chaheye!! AApne yeh nhi btaya ki wahah khane main kya kya try kiy aapne?

  13. बहुत ही खूब मैं भी जब पहली बार गया वहा तो मुझे भी ऐसा ही कुछ लगा जो आपका अनुभव कह रहा है जी धन्यवाद

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