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कुछ लम्हे गुलज़ार साहब के साथ – झूम के फिर उट्ठे हैं बादल

तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में! कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो! सुबह सुबह जब उठा...

गुलज़ारिश टच – आइये कुछ लम्हे गुलज़ार साहब के साथ बिताएं

क्या पता कब कहाँ मारेगी बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ मौत का क्या है, एक बार मारेगी गुलज़ार की कुछ ग़ज़लें कुछ नगमें,उनकी कायनाती आवाज़...

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