आईये, बंद दरवाजों का शहर से एक मुलाकात कीजिये

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यूँ तो साल का सबसे खूबसूरत महिना होता है फरवरी, लेकिन जाने क्यों अजीब व्यस्तताओं और उलझनों में ये महिना बीता. पुस्तक मेला जो जनवरी के पहले हफ्ते में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित होता है, उसे भी खत्म हुए दो महीने बीत गए. कुछ किताबें उस मेले से खरीदी थी, लेकिन जब परिस्थितियां अजीब हों तो किताब पढ़ने में भी ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता. अभी पिछले दो-तीन दिनों से थोड़ी राहत है तो किताबों के प्रति रुख फिर से किया है और ऐसा लग रहा है मानो जेट की स्पीड से किताबें पढ़ रहा हूँ मैं.

कल मैंने एक किताब के बारे में एक पोस्ट लगाई थी, और आज एक दूसरी किताब के बारे में लिख रहा हूँ. काँच के शामियाने जैसी हिट नॉवेल की लेखिका रश्मि रविजा की पहली कहानी संग्रह “बंद दरवाज़ों का शहर” के बारे में.

फ्लैशबैक

रश्मि रविजा, जो कि मेरी बड़ी बहन रश्मि दीदी हैं, उनकी कहानियों का मैं शुरू से फैन रहा हूँ. पहले रश्मि दीदी की कहानियों को पढ़ने का एक ठिकाना होता था, उनका ब्लॉग “मन का पाखी”. मुझे याद है उन दिनों मैं बैंगलोर में था और बड़े बेसब्री से उनकी कहानियों का इंतजार करता था. एक सबसे अच्छी बात जो लगती थी रश्मि दी की कहानियों में, वो ये कि सेट-अप, किरदार सब जाने पहचाने लगते थे. लगता था ऐसा जैसे मैं पटना में बैठा हूँ और किसी से अपने आसपास की कहानियाँ सुन रहा हूँ. ऐसी फीलिंग बड़े जोर से तब और आती थी जब रश्मि दी पॉडकास्ट के माध्यम से अपनी कहानी अपनी आवाज़ में हमें सुनाती थीं.मैं बहुत पहले से रश्मि दी से कह रहा था कि इन कहानियों को किताब की शक्ल दी जाए. लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, भाई की बातें दीदियाँ कब सुनती हैं? वो भी हर बार मेरी बात अनसुना कर देती थी. खैर, मेरी और मेरे साथ साथ बाकी करीबी लोगों के बार बार कहने का असर अंत में हुआ तो सही, और उनकी पहली नॉवेल काँच के शामियाने हमारे पास आ गयी.

नॉवेल तो आते ही हिट हो गयी, और उसपर मैंने इसी ब्लॉग पर लिखा भी था पहले. तो उस नॉवेल की बातें आज नहीं, आज दिन है रश्मि दी की पहली कहानी संग्रह “बंद दरवाज़ों का शहर” की.

इस किताब के छपने से पहले इस किताब से मेरा जुड़ाव कुछ इस प्रकार से हुआ कि रश्मि दी ने मुझसे भी सलाह ली थी किताब के शीर्षक के बारे में, उन्होंने मुझे दो तीन नाम सुझाये थे, लेकिन ये शीर्षक “बंद दरवाज़ों का शहर” मेरे मन में फ्रीज़ होकर रह गया था. मैंने उन्हें बता दी थी अपनी राय, फिर जब किताब की सुचना उन्होंने दी तो जानकार ख़ुशी हुई कि किताब का नाम वही था जो मुझे पसंद आया था.

मैं बाकियों के बारे में तो नहीं जानता, लेकिन इस किताब की अधिकतर कहानियाँ मेरे लिए अनजान नहीं थी. किताब के आने से पहले ही मैं पढ़ चूका था इन कहानियों को, और यकीन मानिये इन्हें दोबारा पढ़ना बिलकुल भी अखरा नहीं लगा. बल्कि सच कहूँ तो मैं इनमें से कुछ कहानियाँ तो दोबारा नहीं, कई-कई बार पढ़ चूका हूँ. रश्मि दी की कहानियों में कथ्य और शिल्प दोनों ही जबरदस्त होते हैं. किरदार अपने आसपास के लगते हैं, हमारी जानी पहचानी भाषा में, शैली में वो बातें करते है. बहुत कुछ याद आता है इनकी कहानियों को पढ़ते हुए, मन किसी नोस्टालजिक जर्नी से भी गुजरता है.

इस पोस्ट में मैं बुक-रिव्यु जरूर लिख रहा हूँ, लेकिन एक प्रॉपर बुक रिव्यु कैसे लिखा जाता है, वो विधा मुझे नहीं आती तो मैं बस अपने तरीके से इस किताब की कहानियों से आपका तार्रुफ़ करवाता हूँ.

किताब की बारह कहानियाँ

बंद दरवाज़ों का शहर में बारह कहानियाँ हैं, शुरुआत करते हैं शीर्षक कहानी “बंद दरवाज़ों का शहर” से. सुनने में आपको कोई मिस्टरी या थ्रिलर टाइटल लग सकता है लेकिन ये एक बेहद जरूरी और गंभीर कहानी है. बल्कि आज कल महानगरों की जो संस्कृति हो गयी है, हजारों आकाश से बातें करती हाउसिंग सोसाइटी खड़ी हैं और उनमें हजारों घर हैं लेकिन सभी घर के दरवाज़े बंद रहते हैं. इस शीर्षक का भी यही अर्थ है, कि हमारे ये महानगर सिर्फ एक बंद दरवाज़ों का एक शहर है. हर फ्लैट का दरवाज़ा बंद है, लोग अपनी अपनी दुनिया में गुम हैं, अन्दर किसके फ्लैट में क्या हो रहा है किसी को पता नहीं. ऐसे ही माहौल में ये एक ऐसी हाउसवाइफ की कहानी है, जो सारा दिन घर में अकेली रहती है, कितना घुटन भरा उसका जीवन हो सकता है और उस घुटन से बाहर आने के लिए उसनें जो रास्ता इख्तियार किया, वो शायद किसी भी तरह गलत नहीं है लेकिन हमारा समाज उस रास्ते को शायद गलत कह सकता है. ये कहानी महानगरों में अकेले रह रहे एकल परिवारों का सच है. कहानी पढ़ते वक़्त कई प्रश्न आपके मन में उठते हैं और जिनका उत्तर पता नहीं हमारे पास है भी या नहीं.

इस किताब की पहली कहानी “चुभन, टूटते सपनों के किरचों की”, दो बहनों की कहानी है. एक बहन दिल से सोचती है और दूसरी व्यावहारिक है. बड़ी बहन जो कहानी की नायिका है, उसनें अपनी छोटी बहन के लिए कुछ सपने देखे हैं और उसके सपने के पूरे होने में ही उसकी ख़ुशी है. वो चाहती है पारिवारिक दबाव की वजह से जो उसनें नहीं किया उसकी छोटी बहन वो सब करे, लेकिन क्या छोटी बहन भी बड़ी बहन की तरह सोचती है? वो बेहद व्यावहारिक है और यहाँ तक कि रिश्तों को भी व्यवहारिकता के तराजू पर तौलती है. छोटी बहन आज की मॉडर्न लड़की है जिसके लिए लाइफ सिक्यूरिटी, सुविधाएँ और अच्छी लाइफस्टाइल भावनाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण है. तो क्या छोटी बहन के द्वारा लिए गए फैसले से बड़ी बहन खुश होती है या छोटी बहन के फैसले और उसकी बातों से बड़ी बहन के मन में कोई उथल पुथल मच जाती है? इन दोनों के रिश्तों की कशमश की कहानी है ये.

इसके बाद की कहानी एक लव स्टोरी है, मानस और शालिनी की कहानी जो “अनकहा सच” के शीर्षक से है. ये एक रेगुलर लव स्टोरी से इतर एक बेहद ही मासूम सी और शायद सच्चे प्रेम को दर्शाती एक अधूरी लव स्टोरी जो हमें ये बतलाती है कि प्यार का अर्थ सिर्फ पाना नहीं होता और बिना किसी को पाने चाह से, बिना कोई शर्त के उससे उम्र भर प्यार करना ही सच्चा प्रेम है. ये एक ऐसी कहानी है जो शायद आपके दिल के किसी कोने में बहुत समय के लिए फ्रीज़ होकर रह जाए.

मुझे रश्मि दी की कहानियों में एक बात बड़ी अच्छी लगती है, कि उनकी कहानियों में बहुत विविधताएँ होती हैं. जहाँ उनके कहानियों में कभी आपको गाँव की झलक दिखती है तो कभी छोटे शहर का परिदृश्य और कभी मेट्रो शहर की ज़िन्दगी और वहाँ का परिवेश, और अब कुछ बेहद कंविंसिंग. जैसे कि उनकी अगली कहानी जो एक मेट्रो शहर के फ्लेवर में है. “पराग तुम भी…” शीर्षक की ये कहानी आज के मॉडर्न कैरियर ओरिएंटड वर्किंग वीमेन की कहानी है और उसकी मानसिकता का बड़े ही खूबसूरती से विश्लेषण किया गया है. वीमेन इम्पाउअर्मन्ट के पक्षधर होने का दिखावा करते लोगों की सोच को उजागर करती हुई ये सम्सामियिक कहानी झकझोर देने वाली है.

अगली कहानी रश्मि दी की उनकी शुरूआती दौर की कहानी है, जब उन्होंने ब्लॉग के लिए कहानी लिखनी शुरू की थी, शायद तब की. कहानी का शीर्षक है “कशमकश”. उनकी बेहद कम कहानी है जो किसी लड़के के पर्सपेक्टिव से लिखी गयी है. ये कहानी मेरे लिए रश्मि दी की उन कहानियों में से है जो मुझे अब तक याद है. इसकी एक पर्सनल वजह भी है कि मैं इस कहानी से बहुत रिलेट करने लगा था. ये कहानी एक बेरोजगार लड़के की है. बेरोज़गारी किसी को भी कैसे आत्मविश्वासहीन बना देती है, उसकी कहानी है. अंत इसका बेहद ही हिला देना वाला है, शायद आप ये कहानी पढ़ने के बाद बहुत देर तक उस लड़के से जुड़े रहे, शायद इसका अंत आपके मन को अंदर तक भिगो जाएगा. एक बेरोजगार युवक के मन:स्थिति का बहुत ही सहज वर्णन किया गया है इस कहानी में.

सचिन और तन्वी की भी एक कहानी है इसमें, जो “खामोश इल्तिजा” के नाम से है. बड़ी प्यारी सी भावुक और संवेदनशील कहानी है ये जो आपके मन को छू जायेगी. तन्वी एक डिवोर्सी है लेकिन सचिन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और वो उसे फिर भी चाहता है. तन्वी के संघर्ष की कहानी है ये, लेकिन इस कहानी का अंत ऐसा है जो आपके चेहरे पर एक मुस्कान ले आती है.

किताब की एक और बड़ी प्यारी सी कहानी “पहचान तो थी, पर पहचाना नहीं..” दो सहेलियों की अंजू और नमिता की कहानी है, जो वर्षों बाद यूँ ही मिल जाते हैं. दो अलग अलग परिवेश में रह रही दो सहेलियों की कहानी है, जिसका एक शब्द में कहूँ तो निचोड़ ये है कि “द ग्रास इज ऑलवेज ग्रीनर ऑन द अदर साइड”. अंजू को अपनी ज़िन्दगी से बड़ी तकलीफें हैं, लेकिन जब वो वर्षों बाद नमिता से मिलती है तो उसके रहन सहन और उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ होते हुए भी कुछ कमी को देखकर उसको अपनी ही ज़िन्दगी भली सी और अच्छी सी लगने लगती है. मुझे याद तो नहीं आता लेकिन शायद ये कहानी भी मैं पहले पढ़ चुका हूँ, या हो सकता है ये मेरा भ्रम हो. उन दिनों रश्मि दीदी की कहानियों को पढ़ना एक आदत थी.

किताब की एक और कहानी “होंठों से आंखों तक का सफर” एक विधवा के जीवन की करुण कहानी है जिसका सार इतना सा है कि बहुत सारे गम और संघर्ष के बाद मिलने वाली खुशी का एहसास ही कुछ खास होता है. ये एक बेहद ख़ास कहानी है, जिसे पढ़ते हुए शायद आपको लगेगा कि इसका अंत दुखद हो सकता है, लेकिन कहानी के अंत तक आते आते आपके होटों पर मुस्कान आ जायेगी. एक औरत के तपस्या और त्याग की कहानी है ये.

“दुःख सबके मश्तरक, पर हौसले जुदा” एक और स्पेशल कहानी है, जिसका शीर्षक मुझे बड़ा प्यारा लगा था. और कहानी के अंत में कहा गया शेर “दुःख सबके मश्तरक हैं, पर हौसले जुदा/कोई बिखर गया तो कोई मुस्कुरा दिया” इस कहानी का सार है. ये विपरीत परिस्थिति में संयम से सोच समझ कर फैसला लेने वाली लड़की लक्ष्मी के संघर्ष की कहानी है.

इस किताब में एक और गंभीर और जरूरी कहानी है “दुष्चक्र” के नाम से. ये साहिल की कहानी है जो बुरे सांगत में फंस जाता है और ड्रग्स के दलदल में दब जाता है. ये कहानी बेहद जरूरी कहानी है और उन पेरेंट्स के लिए एक चेतावनी भी है जो अपने बच्चों के आने वाले कल की योजना बनाते समय उनकी राय लेना भूल जाते हैं. अपने घर, माता पिता से दूर रह कर कैसे साहिल नशे के दलदल में फंस जाता है, और क्या आखिर में वो इस दलदल से निकल पायेगा? इन्हीं सब सवालों को लिए है ये कहानी दुष्चक्र.

“अनजानी राह” के नाम से एक कहानी है अनिमेष और अंकिता की, जो मुझे बेहद जानी पहचानी सी और अपनी सी लगी. ख़ास कर के अनिमेष का किरदार बहुत जाना पहचाना लगा. एक बेहद प्यारी सी लव स्टोरी इसे कहना सही होगा जो अंत तक आते-आते आपके चेहरे पर एक मुस्कान ले ही आएगी.बदलता वक़्त इस किताब की आखिरी कहानी है, जो बेहद मार्मिक कहानी है. रत्नेश शर्मा नाम के एक शिक्षक की कहानी है जो अपना छोटा सा स्कूल चलाते हैं, लेकिन बदलते वक्त और तेज़ी से फैलते आधुनिक और अंग्रेजी शिक्षा को परोसते स्कूल की वजह से उनके स्कूल में बच्चे पढ़ने आना बंद कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका बेटा भी उनके पढाई के तरीकों में और शिक्षा पद्दति में कमियां निकालने लगता है. लेकिन वो कहते हैं न कि एक अच्छे और आदर्श शिक्षक को उनका सच्चा विद्यार्थी कभी नहीं भूलता, कुछ कुछ ऐसा ही अंत है इस कहानी का भी. मुझे जाने क्यों इस कहानी में एक कमी नज़र आई, कि कहानी कुछ जल्दी खत्म हो गयी. थोड़ी कहानी और बढ़नी चाहिए थी. इस कहानी को पढ़ने के बाद हो सकता है आपको ऋषि कपूर की एक फिल्म “दो दूनी चार” का क्लाइमेक्स भी याद आ जाए. चेहरे पर एक मुस्कराहट जरूर आ जायेगी इस कहानी के अंत में.

रश्मि रविजा के कहानियों में ख़ास क्या है?

मुझे रश्मि दी कहानियों में सबसे मजबूत उनके किरदार लगते हैं. जाने कैसे रच लेती हैं वो ऐसे किरदारों को. देखा जाए तो उनकी हर कहानियों के किरदार एक दुसरे से एकदम अलग हैं और बिलकुल आपके आसपास के लोग जैसे लगते हैं वो. शायद यही वजह है कि इन किरदारों की कहानियाँ पढ़ते वक़्त लगता है कि ये हमारे आसपास की कहानी है. अपने शहर के परिवेश और मानसिकता को जबरदस्त तरीके से अपनी कहानियों में उतारती हैं दीदी.

इस किताब की कहानियाँ बहुत समय तक आपको अपने गिरफ्त में रख सकती हैं. कहानियों का प्रवाह ऐसा है कि आप सिर्फ एक कहानी पढ़ कर किताब रख नहीं सकते, पूरी किताब खत्म कर देते हैं एक ही सीटिंग में. एक और जबरदस्त बात ये है कि इनकी कहानियों में और ख़ास कर के इस किताब में गज़ब की डिटेलिंग है. मतलब इस किस्म का डिटेलिंग आम तौर पर अब कहानियों में नज़र नहीं आता.

लास्ट वर्ड्स

मेरे ख्याल से अगर आपको सामाजिक, व्यग्तिगत और गंभीर मुद्दों पर कहानियाँ पसंद आती हैं, तो ये किताब और इसकी कहानियाँ आपके लिए है.

इस किताब की कीमत सवा दो सौ रुपये है और आप इस किताब को अमेज़न के जरिये मँगवा सकते हैं.
Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. जब इतनी अच्छी तरह से किताब के बारे में लिख लेते हो तब तो ये कहना ही छोड़ दो कि प्रॉपर बुक रिव्यु नहीं है ये…।
    खैर ! ये सब बातें फिर कभी, अभी रश्मि जी और तुमको बहुत बधाई…।

  2. मोटूरि सत्यनारायणआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 24वीं पुण्यतिथि – मोटूरि सत्यनारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।

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