यार बैंगलोर, कैसे बताऊँ तुम्हें मैं किस तरह मिस कर रहा हूँ। एक तुम्ही तो थे जो मेरी तन्हाइयों में मेरे साथ रहे। मेरे हर दुःख को तुमने झेला, मेरे हर सुख में तुम दिल खोल के हँसे। आजकल तो मैं तुम्हें हर रात सपनों में देखने लगा हूँ। अब कल रात की ही बात ले लो.. मैं देखने लगा कि सुबह चाय पीने राघवेन्द्र की दुकान पे मैं गया हुआ हूँ.. दीपू दुकान पे था, और मैं फिर मुफ्त की चाय पी के आ गया। दीपू कितना अच्छा आदमी है, बेचारे को पैसे लेने याद ही नहीं रहते.. हम पे हमेशा वो उपकार करते रहते हैं, और हम फ्री की चाय, पेस्ट्री, पफ खाते रहते हैं। दीपूज में मुफ्त की चाय पीने के बाद मैं कामत गया और वहाँ से हाफ प्लेट पोहा और दो कचौड़ी पार्सल करवा के रूम लेता आया। रूम में निशांत पहले से बैठा हुआ है और लैपटॉप पे “ए पत्थर कौन मार रहा है बे” चल रहा है (ऑल द बेस्ट फिल्म)।
सोचो तो ज़रा आजकल मैं तुम्हें इस तरह याद करने लगा हूँ, तुम्हारी कमी कुछ ऐसे महसूस हो रही है कि सपनों में भी मैं तुम्हें ही देखता हूँ। लोग तो अक्सर सपनों में अपनी प्रेमिका से मिलते हैं, लेकिन मैं सपनों में भी तुम्हारी खूबसूरत गलियों और सड़कों पे घूमता रहता हूँ। बेल रोड और मलेश्वरम की सड़कों पे घंटों पैदल घूमना बड़ा याद आता है, और सड़कों पे जहाँ दिल किया, वहीं चाय पी ली.. पता है तुम्हें, यहाँ चाय पीने के लिए भी साफ़-सुधरी दुकान खोजनी पड़ती है, और उधर तो साफ़-सुधरी छोटी चाय की दुकान कितनी आसानी से हर नुक्कड़ पे मिल जाया करती है, वहाँ तो हर दस कदम पे एक बेकरी है, जहाँ बहुत अच्छी चाय मिलती है लेकिन यहाँ बेकरी ढूँढनी पड़ती है… पता है तुम्हें इधर नॉर्थ में हर जगह ‘पफ’ को ‘पैटीज’ बोलते हैं, लेकिन जो बात तुम्हारे एग, चिकन और वेज पफ में है वो तो यहाँ खोजने से भी नहीं मिलती। तुम बड़े कमीने हो यार, तुम्हारे वजह से मुझे कितनी चीज़ों की आदत लग गई है.. बताओ तो, क्या जरूरत थी मुझे इस तरह अपना हैबिचुअल बनाने की?
यु नो.. यहाँ दिल्ली में कुछ भी तुम जैसा नहीं है.. कोई ऐसी दुकान नहीं जो एकदम चकमक करती हो लेकिन फिर भी जहाँ सस्ते में बहुत अच्छा खाना मिल जाए। ये तुमसे महंगा शहर है। इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भले तुमसे आगे हो, लेकिन बहुत सी और अच्छी बातों में ये तुम्हारी बराबरी कभी कर ही नहीं सकता। पता है तुम्हें, कल शाम जब मैं मेट्रो से घर वापस आ रहा था तो अचानक दिल करने लगा “शाही दरबार” का चिकन एग लीवर रोल और कैसीनो का ग्रिल्ड चिकन खाने का। दिल एकदम से उदास सा हो गया। एग रोल की एक अच्छी दुकान दिखी तो वहाँ चला गया एग रोल खाने को… बड़ा महंगा दुकान था यार.. मुझे लगा दुकान देखने में तो अच्छी लग रही है तो रोल भी अच्छा ही होगा यहाँ का, लेकिन जैसे ही रोल मुँह में लिया तो बस एक ही ख्याल आया, दो थप्पड़ मारूँ उस दुकानदार को और कहूँ कि जाओ, जाकर सीख के आओ शाही दरबार से कि कैसे चिकन एग लीवर रोल बनाते हैं। कभी कभी सोचता हूँ कि लोगों में कितना कन्फ्यूजन है। बहुत से लोगों से सुन चुका हूँ कि खाने-पीने के मामले में नॉर्थ इंडिया से अच्छी कोई जगह नहीं.. अरे ये वही लोग कहते हैं जिनकी मुलाकात तुमसे और हैदराबाद से अब तक नहीं हुई। तुम दोनों तो अकेले ही पूरे नॉर्थ पे भारी पड़ोगे यार।
जानते हो, जब भी मैं यहाँ कोई ए.सी बसों को देखता हूँ तो वहाँ की वोल्वो बसें बेतरह याद आती हैं। नब्बे रुपये का पास लेकर हर वीकेंड घूमना बड़ा याद आता है। पता है, जिस दिन मैं तुम्हें छोड़कर आ रहा था, उससे एक दिन पहले की एक छोटी सी बात है.. मैं मेजेस्टीक से वापस बेल रोड आ रहा था। शाम 4:45 वाला 276 वोल्वो में मैं बैठा। इस बस के कंडक्टर से मेरी बातचीत कभी नहीं हुई, नहीं मैं उसका नाम जानता हूँ लेकिन शक्ल से हम एक दूसरे को पहचानते हैं। कभी कभी तो जब मुझे अपने रेगुलर स्टॉप के आगे कहीं जाना होता था तो मेरा स्टॉप आते ही वो पूछता था, “सर आज आपको आगे जाना है क्या?”.. मेजेस्टीक से बेल रोड का किराया है पच्चीस रुपया। मैंने पचास रुपया दिया। उसके पास खुदरा नहीं था तो उसने कहा कि बाद में वो मुझे पैसे वापस करेगा.. मैंने आराम से अपनी जगह पे बैठ गया। मुझे अपने स्टॉप से एक स्टॉप पहले उतरना था। मुझे याद भी नहीं रहा कि मुझे उससे पच्चीस रुपये लेने हैं। मैं स्टॉप पे उतर गया, वो पीछे से सर.. सर.. कह कर मुझे आवाज़ दे रहा था… मैंने मुड़ के देखा तो वो हाथों में पच्चीस रुपये लिए खड़ा था। मैंने मुस्कुरा के उसे शुक्रिया कहा। उसने जवाब में मेरे से हाथ मिलाया और मुझे ऑल द बेस्ट कह कर, एक थम्प्स अप का इशारा किया। मुझे उस समय एक बेतुका सा भ्रम हुआ कि “क्या उसे पता है कि मैं कल जा रहा हूँ, वो थम्प्स अप का इशारा कहीं इसलिए तो नहीं था?”।
यार एक बात तुम्हें बताऊँ तो तुम बहुत हंसोगे भी.. पता है पिछले इतवार को मैं दोपहर में सोया हुआ था। जब नींद खुली तो शाम हो चुकी थी.. मैं तैयार होकर बाहर निकल गया, ये सोच कर कि थोड़ी देर बेल रोड घूम आऊँ। जब गेट के पास पहुँचा तो महसूस हुआ कि मैं तो दिल्ली में हूँ.. और तुम बहुत दूर.. मैं उदास हो गया और वापस लौट आया। उस शाम रह रह कर कोरमंगला, बेल रोड, मलेश्वरम, इंदिरा नगर, कोरपोरेसन का चेहरा आँखों के सामने घूम रहा था। क्यों हर शहर तुम जैसे खूबसूरत और अच्छे नहीं होते?
प्यार ऐसे ही बेवजह होता है अभी…मुझे भी दिल्ली ऐसे ही याद आती है और बैंगलोर का कुछ भी कभी भी अच्छा नहीं लगता.
चाहे यहाँ कुछ भी मिल जाए कभी अपनापन नहीं लगता…शहर भी लोगों की तरह होते हैं…कुछ से पहली नज़र का प्यार हो जाता है…कुछ साथ रहते हुए अच्छे लगने लगते हैं और कुछ ताउम्र साथ रहने के बाद भी दिल में जगह नहीं बना पाते.
तुम जैसे बैंगलोर मिस करते हो मैं वैसे ही दिल्ली मिस करती हूँ…अजीब है न…तुम दिल्ली में हो और मैं बैंगलोर में.
यादें पीछा ही नहीं छोडती … क्या किया जाए …
क्या हुआ आपको हमारी दिल्ली अभी तक पसन्द नहीं आयी? समय के साथ आ जायेगी।
@Puja,
हाँ ये भी अजीब ही है..आप वहाँ बैंगलोर में हैं और मैं दिल्ली में हूँ 🙂
कभी बैंगलोर जाना नहीं हुआ …. अब तो लगता है इस खास शहर में जाना ही चाहिए…… खैर हर शहर की अपनी खासियत है अब दिल्ली में रम जाइये……
Haan…kuchh jagahen kuchh prasang ham behad miss karte hain….kuchh logon ko bhee…lagta hai kaleja ek hissa koyee katke le gaya!
Bangalore must be missing you too!
यादें यादें यादें … कमबख्त वहीं ले जाना चाहती हैं जहां इंसान नहीं है …
दिल्ली भी धीरे धीरे बस जायगा मन में …
कुछ दिन दिल्ली को दीजिए, और देखिए. यहाँ भी बहुत सी अच्छी चीजें मिलेंगीं.
रहते रहते नेगेटिव्स भी भाने लगते हैं! 🙂
अभिषेक जी ,दिलको छू लेने वाली पोस्ट । आप क्यों चले आए बैंगलोर से ।
अबे बियाह करो बियाह ….केतना मगज मारी कर रहे हो ..बियाह करो पार्थ .. का दिल्ली का मंगलौर .. आ कि और स्थान कनो और ..सबहिं जग एक समान प्रतीत होगा वीर अर्जुन ।
कोलकाता नाम का जो ज़ख्म हमरे दिल पे लगा हुआ है आज तुम उसको कुरेद दिए हो वत्स!! टअच्छे लोग, अच्छा और सस्ता खाना, फुल ऑफ लाइफ शहर!! मेट्रो, ट्राम और बसें!! बस सब यादों का हिस्सा है.. सुनहरी यादें..
बहुत शिद्दत से लिखे हो वत्स!! शहर न हो महबूबा हो जैसे!!
गिरिजा जी,
कुछ व्यग्तिगत कारण थे, जिस वजह से मुझे इधर आना पड़ा!
@ अभिषेक, @ पूजा
दिल्लीवाला बंगलोर के लिये रो रहा है और बंगलोरवाली दिल्ली के लिये। डा माल्या साहब हैं कि एयरलाइन बन्द करने पर तुले हैं। बस चले तो उनसे दो प्लेन खरीद कर आप दोनों को भेंट कर दूँ कि जब याद आये तो उड़ आईये, रोकर शहर की ह्यूमिडिटी न बढ़ाईये।
ऐ लो कोई बैंगलोर भी मिस कर सकता है, यह तो सोचकर ही हमारे बाल खड़े हो गये हैं। आखिर इस बैंगलोर में है क्या, हम तो यही ढूँढ़ रहे हैं कि तुम क्यों इसे मिस कर रहे हो, हमें तो एक शाम बिताने की जगह नहीं मिलती।
हाँ हम अपना शहर और पिछला शहर मुंबई बहुत मिस करते हैं, मिस करने के लिये बहुत कुछ है, मुंबई का।
@प्रवीण जी से अनुरोध है कि एक गिफ़्ट हमें भी दिया जाये 🙂
प्रवीण भैया..
नेकी और पूछ पूछ..
अरे जल्दी से गिफ्ट कर दीजिए प्लेन..फिर तो जब मर्जी तब आपके घर चाय के लिए आ धमकूँगा 🙂
विवके भैया,
प्रवीण भैया को ऐसे पब्लिकली गिफ्ट की घोषणा नहीं करनी चाहिए थी…कितने लोग अपने उन्हें एक एक प्लेन गिफ्ट करने को कहेंगे..:P
behaad khoobsurat post. main toh abhi se Mumbai ki barrish ka intezaar kkar rhe hu!
गरजपाल की चिट्ठी न पढे हो अब तक तो आज पढ लेना। वैसे बैंगलोर जैसा शहर (और वैसे लोग) हिन्दुस्तान में तो है नहीं, यह बात सोलह आने सच है।
Abhi ji aapke Banglore ka to pata nahi Lekin Delhi hme bhi bht pyara lagta hai.darasal baat Delhi ya banglore ki nahi hai, baat hai yaadon ki.