अलविदा बैंगलोर!

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बैंगलोर डायरी: १

जब ये पोस्ट यहाँ शेड्यूल पब्लिश्ड होगी, तब मैं अपना ये शहर छोड़कर एक दूसरे शहर में पहुँच चुका होऊँगा या फिर पहुँचने वाला होऊँगा। मेरा ये शहर बैंगलोर, जहाँ मैं अभी हूँ और आज की सुबह यहाँ की आखिरी सुबह है (वैसे एक महीने बाद फिर से यहाँ आऊँगा, लेकिन वो सिर्फ एक गेस्ट की हैसियत से), और संभवतः ये पोस्ट यहाँ से लिखी जा रही मेरी आखिरी पोस्ट है।

ऐसा कुछ नहीं था कि बैंगलोर से मुझे पहली नज़र में प्यार हो गया था। बल्कि मैं ये कहूँगा कि शुरुआत में मुझे बैंगलोर से हद नफरत थी। मेरे लिए ‘लव एट फर्स्ट साइट’ वाला शहर था हैदराबाद। शुरू-शुरू में बैंगलोर से मेरी खूब लड़ाई होती थी। मैंने बहुत कोसा भी इसे…काफी भला-बुरा कहा भी। लेकिन धीरे-धीरे कब यही नफरत प्यार में तब्दील हो गई, मैं समझ ही नहीं सका। ये मेरे लिए वो शहर था जिसने मुझे अपने अकेलेपन से लड़ना सिखाया। जहाँ बहुत से नए, पारिवारिक और मजबूत रिश्ते बने तो वहीं कुछ रिश्तों के टूटने का दर्द भी मैंने सहा। कह सकते हैं कि जीवन की बहुत-सी जरूरी और महत्वपूर्ण बातों को मैंने यहाँ सीखा है। यही वो शहर था जहाँ मेरी पहली नौकरी लगी थी और यही वो शहर था जहाँ की कितनी ही उदास शामों में मेरी डायरी के पन्ने भरते चले गए (जो कभी-कभी इस ब्लॉग पे भी दिखाई दे जाते हैं)।

आज से ठीक दस साल पहले जब मैं बैंगलोर सबसे पहली बार आया था (मई २००२, सी.ई.टी. एग्जाम देने) तो उस वक्त मुझे क्या मालूम था कि इस शहर से मुझे इस कदर लगाव हो जाएगा कि इसे छोड़कर जाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हालाँकि मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई बैंगलोर से नहीं की…बल्कि कर्नाटक के ही बासवकल्याण नाम के एक जगह से की थी। इंजीनियरिंग का अंतिम दिन जिस कदर इमोशनल था, कल शाम से कुछ-कुछ उसी तरह का मैं महसूस कर रहा हूँ। कहना गलत नहीं होगा कि उस दिन कुछ दोस्तों की आँखें नम थीं, और मेरी भी। मैं बासवकल्याण से बैंगलोर आ गया, लेकिन मुझे माहौल यहाँ भी ठीक वैसा ही मिला जैसा कि बासवकल्याण में मिला था। दोनों शहर कर्नाटक में ही थे और दोनों जगह के लोग भी लगभग एक जैसे ही थे। रहने-सहने का ढंग, खान-पान सभी कुछ वैसा ही था…मुझे बासवकल्याण के माहौल में जिस तरह का एक कम्फर्ट-ज़ोन मिला था, ठीक वैसा ही कम्फर्ट-ज़ोन मुझे बैंगलोर में भी मिला, और शायद उससे कहीं ज्यादा बेहतर भी।

ये कहना गलत नहीं होगा कि मैंने अपने ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण साल कर्नाटक में बिताए। डिग्रियाँ भी यहीं लीं मैंने और बहुत कुछ सीखा भी। बैंगलोर के भी पिछले कुछ साल बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। बैंगलोर, या ये कहें कि दक्षिण भारत की खूबियों में से एक है यहाँ की बहुत-सी चीज़ों का सिस्टमेटिक तरह से होना, जिसकी मुझे आदत हो चुकी है और जो आपको उत्तर भारत में शायद देखने को नहीं मिलेगा। एक मजेदार बात जो मैंने यहाँ ऑब्ज़र्व की है, वो ये कि यहाँ के लोग चाय बहुत पीते हैं, और आपको हर गली-नुक्कड़ पे चाय के बहुत ही अच्छे दुकान मिल जाएँगे, एकदम साफ-सुथरे और अच्छे। कुछ लोगों को जानकर थोड़ी हैरानी भी हो कि यहाँ स्टेशनरी, किराना और पान की दुकानों पर भी चाय मिल जाती है। छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हैं जहाँ आपको सस्ते दामों में लगभग हर कुछ खाने को मिल जाता है और इन छोटे होटलों की सफाई भी बड़ी अच्छी होती है। ये एक ऐसी बात है जो मुझे उत्तर भारत में देखने को कम ही मिलती है। यहाँ के कुछ छोटे-छोटे रेस्टोरेंट की सफाई और साज-सज्जा भी कुछ इस तरह रहती है कि ये यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि वहाँ कम दामों में कुछ मिल भी सकता है। लोग भी यहाँ ज्यादा उलझे हुए नहीं होते और अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हैं। अधिकतर लोग यहाँ एक-दूसरे को ‘सर’ कहकर संबोधित करते हैं, जो कि यहाँ के लिए बहुत ही आम बात है। दूसरे लोग आपसे बहुत ही इज़्ज़त से बात करते हैं (अपवाद तो वैसे होते ही हैं)।

मैं हमेशा बैंगलोर या तो पैदल या फिर बस से घूमता रहा हूँ…और शायद यही एक वजह भी है कि हर इलाके की छोटी-बड़ी खासियत मुझे मालूम चल गई थी। यहाँ वोल्वो बसें चलती हैं, जिसकी फ्रीक्वेंसी भी बहुत है। किसी-किसी रूट पे तो हर पाँच मिनट पे एक वोल्वो बस है। मैं अक्सर एक दिन का ‘बस-पास’ लेकर घूमने निकल पड़ता था। इसी क्रम में कितने ऐसे लोगों से मिला जो कि उत्तर भारत से यहाँ रोजी-रोटी की तलाश में आए हैं।

किसी भी शहर का आदी हो जाना बहुत ही बुरा होता है और खासकर के बैंगलोर का आदी हो जाना। सच कहूँ तो मुझे इस शहर की आदत हो चुकी थी। बैंगलोर से जुड़ी इतनी बातें हैं, जिसे एक पोस्ट में समेटना बिलकुल नामुमकिन है।

फ़िलहाल एक बुलेटेड लिस्ट की तरह उन बातों को सामने रख रहा हूँ जिसे मैं बुरी तरह से मिस करने वाला हूँ:

  • यहाँ की हल्की बारिशों में भीगना।
  • शांति-नगर बस स्टॉप पे घंटों बैठना।
  • फोरम, सिग्मा और मंत्री मॉल के फ़ूड कोर्ट में घंटों बैठना, कभी-कभी सुबह से शाम तक।
  • यहाँ के पार्क में शाम में टहलना।
  • वोल्वो बसें।
  • खूबसूरत कातिलाना मौसम।
  • बीईएल रोड, जहाँ मैं रहता था और जहाँ सड़कों पर घंटों शाम को मैं घूमता था।
  • मल्लेश्वरम (1st क्रॉस से 18th क्रॉस)।
  • मेजेस्टिक बस स्टैंड।
  • शाही-दरबार के मस्त चिकन-एग रोल (बेस्ट इन बैंगलोर)।
  • रेलिश और कैसीनो रेस्टोरेंट।
  • स्नैक्स पॉइंट।
  • रिलायंस डिजिटल, कनिंघम रोड।
  • यू.बी. सिटी।
  • कब्बन पार्क और कर्नाटक स्टेट लाइब्रेरी का कंपाउंड।
  • लुंबिनी गार्डन।
  • बीईएल रोड के मैक-डी में बैठना।

अभी ये पोस्ट लिखने का समय सुबह के साढ़े पाँच बज रहे हैं और रवि जी मुझे सी-ऑफ करने चेन्नई से यहाँ आने वाले हैं। बस कुछ ही देर में उनका मैसेज आएगा कि ‘आइये सर, चाय पीने।’ मैं हर शनिवार सुबह उनके इस मैसेज को भी मिस करने वाला हूँ।

क्या-क्या लिखूँ, बहुत-सी बातें हैं जो फिर कभी लिखूँगा।

फ़िलहाल, अलविदा बैंगलोर।
सी यू सून।
लव यू!

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. हमें तो ऐसे कई हादसों से गुज़रना पड़ा है.. अब तो शहरों से मोहब्बत करने की तबियत ही नहीं होती.. मगर शहर कब छोड़ते हैं.. तुमहारी चाची हर शहर को ए वक्त घर में "खुद से" झाडू लगाते हुए बहुत रोती हैं..
    चलो जहां का आबोदाना लिखा हो वहाँ ही मिलता है!!

  2. बदलाव अगर अच्छे के लिए हो तो.. बदलाव अच्छे हैं!!

  3. bahut accha tajurba raha tumhara bangalore men ab dilli………
    mujhe yakin hai tum iss shahar ke tajurbaat ko jald hi bayan karoge apne blog par mere dost….

  4. तुम्हारी बातें पढकर तो मुझे लग रहा है कि देल्ही में रहना तुम्हारे लिए आसान नहीं होने वाला :).फिर भी वो इंसान ही क्या जो बदलावों से डर जाये.सो ऑल द वैरी बेस्ट टू यू.

  5. Beautifully written!

    Reading your post made me remember jamshedpur, my hometown… and then
    varanasi, where I lived for almost seven years…
    Memories cruelly cling to us and bidding adieu is always so tearful!!!

    May you soon begin to love the capital as well!!!
    All the best:)

  6. जब बहुत सा समय हम किसी के साथ गुज़ार लेते हैं तो हमको हर उस चीज़ से प्यार हो ही जाता है फिर चाहे वो इंसान हो या कोई बेजान चीज़ या फिर कोई शहर ही क्यूँ ना हो और आपके इस अनुभव से मैं खुद कई बार गुज़र चुकी हूँ इसलिए बहुत ही अच्छी तरह समझ सकती हूँ आपकी भावनाओं को …मगर रही बात दिल्ली की तो मैं शिखा जी की बात से ज़रा भी सहमत नहीं हूँ 🙂 दिल्ली दिल वालों की नगरी है। और एक बार यदि आपका दिल लग गया तो फिर बात ही क्या इसलिए चिंता ना करें दिल्ली आपको और आप दिल्ली को बहुत जल्द अपना लेंगे यह मेरा दावा है। हा बाकी रही बात बेंगलौर की तो जब अपनों का साथ छूटता है तो दर्द तो होना ही है सो होगा भी…. ऑल द बेस्ट…:)

  7. यह तो गलत है, आप बिना बताये धीरे से सरक लिये..

  8. Wow..!such a heart touching post Abhi ji. i can totally understand how u must be feeling! Hope you have a bright new, good place to move in. More adventures to undertake and more food to eat! 🙂

  9. बैंगलोर, बैंगलोर … क्या कहूँ, मैं तो कभी किसी नगर से जुड़ा ही नहीं, फिर भी अगर किसी नगर की आत्मकथा लिखूंगा तो शायद वह बैंगलोर ही होगा।

  10. जीवन में ऐसे कई हादसे …(शायद ये उचित शब्द नहीं) खैर … ऐसे कई लम्हे आते हैं जब वर्तमान इतिहास में कैद हो जाता है और लम्हों में याद आता है … पहली नज़र में प्यार … ये कई बार बस कहानी सी लगती है … हाँ होते होते प्यार हो जाता है जैसे की आपको बेंगलोर से …
    अच्छा लगा आपको पढ़ना …

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