मुझे डायरी लिखने की आदत है। डायरी डेली बेसिस पे तो नहीं लिखता, लेकिन अक्सर कुछ न कुछ उसमें लिखता रहता हूँ। मेरी डायरी सूटकेस में हमेशा सुरक्षित रहती है, किसी के हाथों में पड़ने का कोई खतरा नहीं रहता। बहुत बार मैं डायरी के कुछ पन्ने ब्लॉग में डाल देता हूँ, या कहें कि आमतौर पे बहुत सी पोस्ट मेरी डायरी से ही निकली होती हैं। अक्सर मैं डायरी के पन्नों को ब्लॉग में ड्राफ्ट के रूप में सेव कर के रख देता हूँ। बहुत ड्राफ्ट हो गए हैं, जो आधे-अधूरे हैं, उन्हें पता नहीं किस संकोच से पोस्ट नहीं कर पाया। कुछ वैसे ही आधे-अधूरे ड्राफ्ट्स आज पोस्ट कर रहा हूँ।
कभी-कभी यह सोच मुझे डरा लगता है कि इतने बड़े शहर में मैं अकेला हूँ। एक छोटा सा कमरा, एक टेबल, बेड, कुछ किताबें और लैपटॉप के अलावा और कुछ भी नहीं जिसके साथ कुछ समय बिता सकूँ। सबसे ज्यादा बोझिल यहाँ की शाम होती है। शाम में कभी-कभी मैं उदास हो जाता हूँ। आजकल थोड़ी परेशानियाँ और स्ट्रगल चल रही हैं, तो उदासी भी थोड़ी ज्यादा मात्रा में आ जाती है। लेकिन कभी-कभी एक यादगार शाम जैसी भी होती है। एक मित्र अक्सर चेन्नई से लगभग हर वीकेंड बैंगलोर आते हैं। उनका भी इंतजार रहता है। शायद फिलहाल वही एक ऐसे मित्र हैं मेरे जिनके सहारे कम से कम शनिवार का दिन बेहद अच्छा गुजरता है।
कभी-कभी मैं अपने मूडी नेचर से बहुत ज्यादा इरिटेट हो जाता हूँ। कितनी ही बार ऐसा हो चुका है कि मैं घर से कोई एक जरूरी काम के लिए निकलता हूँ और फिर आधे रास्ते से ही लौट कर कहीं और चला जाता हूँ। मेरे मूडी नेचर के एक-दो उदाहरण ऐसे हैं, जिन्हें सुन कुछ लोग आश्चर्य भी करें, लेकिन वो उदाहरण यहाँ देना शायद ठीक न हो। इस पोस्ट में जिस मूड स्विंग का जिक्र किया था, वह अब भी कायम है। हर दूसरे-तीसरे शाम अपने एक-दो बहुत अच्छे दोस्तों से फोन पे बात होती है और ये शामें मेरी बहुत अच्छी गुजरती हैं।
कभी-कभी यह सोच के बेहद आश्चर्य होता है कि कैसे लोग किसी को अचानक से भूल जाते हैं। कोई अपने उस दोस्त को कैसे भूल सकता है जो हर मुसीबतों भरे दिन में उसके साथ रहा। कोई यह कैसे भूल सकता है कि उसके इमोशनल ब्रेकडाउन के समय उसका एक दोस्त चार दिनों तक ऑफिस नहीं गया था। पैसे कम रहते हुए भी उसे अपने खर्चे पे फिल्म दिखाने ले गया। उसके साथ सारा दिन घूमता रहा, बस सिर्फ इसलिए कि उसका मन थोड़ा हल्का हो सके। हैरानी इस बात पे भी होती है कि मैंने कैसे उस रात उस दोस्त की बातों को सच मान लिया। कैसे मैंने यह यकीन किया कि वह मेरे बुरे दिनों में मेरे साथ खड़ा रहेगा? इस बात पे भी अक्सर मैं सोचता हूँ, आखिर वजह क्या रही होगी कि वह मुझे इग्नोर करने लगा? जहाँ तक याद करने की कोशिश करता हूँ, एक भी ऐसा वाकया याद नहीं आता कि उसके साथ मेरी बहस भी हुई हो। तो क्या बस इस वजह से वह मुझसे अलग हो गया कि उसे कुछ नए दोस्त मिल गए और वह इतने सालों का रिश्ता तोड़ दूर चला गया? पहले कभी यह ख्याल भी नहीं आया था कि अब राह चलते बस औपचारिक मुलाकात होगी उससे। कुछ दिनों पहले लगा कि शायद मुझे मेरा पुराना खोया हुआ दोस्त वापस मिल गया है। लेकिन यह भ्रम भी उस दिन टूटा जब उस सुबह उसके नए दोस्तों के बीच उसने कितनी आसानी से मुझे एकदम से अनदेखा कर दिया। कितनी ही बार ऐसा हो चुका है, इसकी गिनती भी भूल चुका हूँ मैं। लेकिन उस दिन के बाद मैं बस प्रार्थना करता हूँ कि राह चलते भी वह मेरे सामने न आए, पर फिर भी जब कभी पुराने दिनों की तस्वीर देखता हूँ, तो यही दुआ निकलती है कि समय वापस घूम जाए और मुझे वह पुराना दोस्त मिल जाए। सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस दोस्त की मैं इतनी इज्जत करता था, उससे अब चिढ़ होने लगेगी।
अभी भी यही लगता है कि उस एक दिन के बाद मेरी जिंदगी दो भागों में बंट गई। एक वह भाग जहाँ जिंदगी बिल्कुल एक सीधी लकीर सी चल रही थी, हर कुछ अच्छे के लिए हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि जो बातें बिगड़ चुकी थीं, वह भी धीरे-धीरे सुलझते जा रही थीं। कुछ ऐसी उम्मीदें जो दम तोड़ चुकी थीं, उनमें फिर से एक नई जान आ गई थी। 30 दिसंबर 2007 की शाम दोस्तों की अच्छी बैठकी लगी, थोड़ी हलकी पार्टी भी हुई, दो दिनों बाद एम.बी.ए के इम्तिहान थे। रात में जब सोने गया तो इस बात का हल्का सा भी अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह कुछ ऐसा होगा जिसका असर एक लंबे समय तक मेरे करियर और मेरी जिंदगी पे पड़ेगा।
31 दिसंबर 2007-सब गलत ही हुआ इस दिन… सुबह सात बजे से लेकर शाम के छह बजे तक केवल झटके ही लगे। उस शाम जब गुलबर्गा जाने के लिए बस में बैठा तो दिल में हमेशा एक यही बात आ रही थी कि कल से एम.बी.ए के एक्जाम शुरू हो रहे हैं और मैं गुलबर्गा /बसवकल्ल्याण/वी.टी.यु के चक्कर काटने जा रहा हूँ, वह भी कुछ अचानक आई दिक्कतों की वजह से, जिसमें मेरी गलती शायद नहीं थी। दोष मेरे एम.बी.ए कॉलेज का था, जिसे मेरे सर पे मढ़ दिया गया था। रात बड़ी बेचैनी से कटी। पूरी रात नींद भी नहीं आई। सुबह पांच बजे बस गुलबर्गा पहुंची। वहाँ सुबह का अखबार लिया तो सबसे पहले नजर गई तारीख पे – 1 जनवरी 2008। दिल में बस एक यही प्रश्न आया कि जब साल के पहले दिन की शुरुआत ऐसी हो तो पूरा साल कैसा बीतेगा?? माँ और नानी से सुबह बात हुई और फिर मैं और भी दुखी हो गया। वापस बैंगलोर पहुँचने तक मेरे लगभग सारे एक्जाम छूट चुके थे। मैं जबरदस्त हताश और निराश था… तब एक खास दोस्त ने बहुत हौसला दिया… यह कह कर कि सब ठीक हो जाएगा… मैंने भी दिल में यह विश्वास जगा लिया था कि सब जल्द ही ठीक हो जाएगा। लेकिन मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जुलाई में फाइनल एक्जाम के ठीक एक दिन पहले मेरी सेहत ऐसी बिगड़ेगी कि मैं परीक्षा भी न दे पाऊंगा। खराब किस्मत का इससे बेहतर डेफिनेशन और क्या होगा?
कभी-कभी ऐसा होता है कि मैं बेहद परेशान और दुखी रहता हूँ और लोग इस भ्रम में रहते हैं कि मैं अच्छे मूड में हूँ। जब 21 अक्टूबर 2008 को मेरा लैपटॉप चोरी हुआ था, तब भी कुछ लोग इस भ्रम में थे कि मैं लैपटॉप के चोरी होने से ज्यादा दुखी नहीं हूँ। जबकि सच्चाई तो यह है कि उस वक्त मैं बड़ा कन्फ्यूज सा था कि आखिर यह हो क्या रहा है इस साल। हर काम उल्टा हो रहा है, नई-नई मुसीबतें और परेशानियाँ सामने आ रही हैं, एक के बाद एक। जिस शाम मेरा लैपटॉप चोरी हुआ था, उस शाम मैं बहुत देर तक यकीन ही नहीं कर पाया कि मेरा लैपटॉप चोरी हो गया। देर रात तक यही लग रहा था कि शायद कोई दोस्त मजाक कर रहा हो और सुबह वापस मुझे लैपटॉप मिल जाएगा। जिस दिन लैपटॉप चोरी हुआ था, उसके ठीक चार दिन बाद दीवाली की छुट्टियों पे मुझे घर के लिए निकलना था। इन चार दिनों में हर पल मुझे यही लगता रहा कि मेरा लैपटॉप मुझे मिल जाएगा। जब भी रूम से बाहर जाता तो मुझे लगता कि शायद जिसने लैपटॉप चोरी किया है, उसके दिल में मेरे प्रति थोड़ा रहम जागे और मेरे रूम की खिड़की से मेरा लैपटॉप अंदर छोड़ जाए। जब रात में सोने जाता तो भी यही प्रार्थना करता मैं भगवान से कि कहीं से भी अगली सुबह मेरा लैपटॉप मुझे मिल जाए। मुझे कभी-कभी तो ऐसा लगने लगता कि जैसे अचानक कोई चमत्कार सा हो जाए और कैसे भी करके मेरा लैपटॉप मेरे सामने आ जाए। लैपटॉप के साथ-साथ मेरी कितनी कीमती चीज़ें भी चली गईं थीं, जो अब मुझे कभी मिल नहीं पाएंगी… किसी के भेजे सारे ई-मेल्स, पोएम, किसी के आवाज़ में रिकॉर्ड किए कुछ गाने और वीडियो, बहुत सी ऐसी तस्वीरें जो सिर्फ और सिर्फ मेरे पास थीं… और मेरी बेवकूफी भी ऐसी कि इन सबका मैंने कभी कोई बैकअप नहीं बनाया। लैपटॉप चोरी होने के बाद तो मैंने नया लैपटॉप खरीद लिया, लेकिन लंबे समय तक पता नहीं क्यों मुझे लगता रहा कि शायद कहीं से किसी तरह मेरा लैपटॉप मुझे वापस मिल जाए। उस लैपटॉप के साथ मेरी इतनी खूबसूरत यादें जुड़ी हुई थीं कि मैं उस लैपटॉप को कभी भुला नहीं पाया। अब भी मैं उस लैपटॉप को बहुत मिस करता हूँ।
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अभी जी 🙂 आपकी लास्ट वाली पोस्ट जिसमें आपने अपना लेप्टोप गुम होने की कहानी लिखी है, से मैं काफी हद तक सहमत हूँ, क्यूंकि यदि वस्तुओं की बात करें तो मैंने भी आपने जीवन में अपनी बेहद कीमती चीजों को खोया है। जिनसे मुझे बहुत लगाव था और अब उनको लेकर ऐसा डर बैठा है, मेरे मन में कि दुबारा उन चीजों की तरफ देखने पर भी,हिमत नहीं होती कि दुबारा खरीद लूँ। वजह पैसा नहीं है। डर है खुद कि लापरवाही का कि दुबारा न हो जाये।
Nekee kar kueme daal wale din hain….dost aise hee bhula diye jate hain!
bahut he pyarri se post hai!
iska title mujhe bht pasand aya, one of my favorite song!
मन का कहा लिख लिया कीजिये, हल्का सा लगता है।
bhai bahut dukhad bhari kahani hai aapki apni bhi kuch kam nahi hai par main unko lafz nahi de paaya. lagta hai dono men kaafi kuch common hai
par picture abhi baaki hai dost
apna bhi accha din jaroor aaega
rabitna jyaada naaraj nahi ho sakta kisi se
mera handycam abhi khoya to aisa hi laga mujhe…ki shayad kahin se mil jaaye, koi kahin se pahuncha de.
sasural mein pahla function tha aur uski dheron yaadein chali gayin uske saath. pahle ke bhi sare videos…
aaj bhi soch ke rona aa jaata hai…aisa hi ek phone ke sath bhi lagta hai jo chori hua tha…wakai pictures khone ka sabse jyada dukh hota hai.
हर पल, हर लम्हा, ऐसा लगता रहा कि वह पलट कर वापस आएगी.. आते ही कहेगी की मैं तो मजाक कर रही थी.. एक-एक दिन करते हुए महीनों गुजर गए, फिर साल-दर-साल भी गुजरते चले गए.. वो भी तो कुछ ऐसे ही गई थी, बिना बताये, बिना कुछ कहे.. जैसे चोरी हो गई हो.. दिल कहे की वो कभी भी वापस आ जायेगी.. अगली सुबह उठूँगा और लगेगा की कुछ हुआ ही ना था.. किसी सपने जैसा.. वो भी गुडमॉर्निंग उसी मानिंद कहेगी जैसे हर सुबह कहती थी.. जब कभी दिल बहकने लगे, दिमाग उसे ठिकाने लगा दे, यह याद दिला दे की वो जा चुकी है.. बिना कुछ कहे, बिना खुद सफाई दिए, बिना कोई सफाई दिए, बिना किसी सुनवाई के सजा सुना कर………..
"इस पोस्ट में जिस मूड स्विंग का जिक्र किया था वो अब भी कायम है"
अरे, तुम डायरी भी ऐसे ही लिखता है?? पक्का ब्लोगर का ही डायरी है.. 😀
@स्नेहा..
यह पोस्ट कुछ दिन पहले लिखा था, और टाइटल युहीं रैंडमली..
@पूजा जी
मेरा भी एक फोन चोरी हुआ था बहुत साल हो गए…नोकिया 3310..बहुत प्यारा था वो फोन भी मुझे..वैसे अगर मेरी मम्मी की बात कहूँ तो उनके अनुसार मैं चीज़ों को भुलाने में एक्सपर्ट हूँ 🙂
@प्रशांत..
क्या बात है रे..इतना सुन्दर टिप्पणी..एक फाइव स्टार तुम्हारे लिए:) 🙂
और वैसे मेरे डायरी में वो लाईन नहीं लिखा हुआ है..वो तो ऐसे ही स्टाईल मारने के लिए और उस ब्लॉग के प्रचार के लिए 😛
कई बार परिस्थितियाँ अजीब सी दुविधा पैदा कर ही देती हैं…..
कभी कभी ये बेतरतीब सी यादें भी बहुत अच्छी साथी बन जाती हैं!!
कहे परेशां हो बालक . ये आना जाना दुनिया का नियम है.
लिखना हमेशा अच्छा रहता है … अनेक प्रसंग जैसे किसी की डायरी पढ़ रहा हूँ … हकीकत जैसे …
किसी घटना या दुर्घटना के बाद की मनोदशा को बेहद महीने से शब्द दे दिया है . बिलकुल सहज रूप में जो एक अलग तरह का कोलाज़ बन गया है .अभि , जीवन में ये फेज़ बार -बार आता है पर इसके बाद का फेज़ बहुत प्यारा होता है.परेशान मत हो..
कभी कभी यादें भी बहुत साथी बन जाती हैं!!
डायरी के ऐसे ही कई पन्ने मेरे भी ड्राफ्ट में पड़े हैं…कुछ पोस्ट किए कुछ रह गए…लेकिन ऐसे छोटे छोटे फुटनोट जैसे भाव यादगार बन जाते हैं…ऐसे दोस्त जो छोड़ जाएँ उन्हें बरसाती मेंढक कहना सही रहेगा..उनके लिए क्यों उदास होना..क्या पता चलते चलते उनसे भी अच्छे दोस्त मिल जाएँ…जहाँ तक लैपटॉप गुम होने की बात है तो कोई भी प्यारी चीज़ गुम हो जाए तो भुलाए नहीं भूलती..
भूल जाओ उन्हें जो तुम्हे भुला दें…तुम्हारी यादों के एक प्रतिशत हिस्से पर भी उनका हक़ नहीं होना चाहिए…| हाँ, लैपटॉप को याद करते रहो, वो ज्यादा बेहतर है क्योंकि उसने शायद तुम्हारा ज्यादा साथ दिया…| वक़्त आ गया है बच्चा…हर दर्द के ठहर जाने का…देखो तो…:) 🙂 😀