भगतसिंह के पत्र – हमारे इतिहास के धरोहर

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अपने ब्लॉग पर मैंने पहले भी भगतसिंह के कुछ पत्र लगाये हैं, आज फिर से उनके लिखे तीन पत्र अपने ब्लॉग पर लगा रहा हूँ. एक जो उन्होंने अपने पिताजी को लिखी थी, जिनमें उनका गुस्सा झलकता है और बाकी दो जो उन्होंने अपने दोनों भाई के नाम पत्र लिखा था. 

लाहौर षड्यंत्र केस में, जिसमें भगत सिंह को फांसी की सजा मिली, अभियुक्तों ने उन पर लगाये अभियोगों के सम्बन्ध में कोई सफाई नहीं दी और अदालत के प्रति पूरी तरह अवज्ञा का भाव रखा. भगत सिंह के पिता सरदार किशनसिंह ने अदालत में एक प्रार्थना पत्र दिया कि भगतसिंह को सांडर्स वध के मामले में निर्दोष सिद्ध करने के लिए कई अकाट्य प्रमाण हैं इसलिए भगतसिंह को सफाई पेश करने का अवसर दिया जाए. इस पर भगतसिंह ने अपने पिता को यह पत्र लिखा. 

पूज्य पिताजी,

मुझे यह जानकार आश्चर्य हुआ कि आपने स्पेशल ट्रिब्यूनल को मेरे बचाव के लिए एक प्रार्थना पत्र भेजा है. यह समाचार मेरे लिए इतना दुखदायी था कि मैं इसे शान्त रहकर सहन नहीं कर सकता. इस समाचार ने मेरे हृदय की सारी शान्ति समाप्त कर दी. मेरी समझ में नहीं आता कि वर्तमान स्थिति में आप इस विषय पर किस प्रकार ऐसा प्रार्थना-पत्र दे सकते हैं?

आपका बेटा होने के नाते मैं आपकी पैतृक भावनाओं एवं इच्छाओं का पूरा सम्मान करता हूँ, परन्तु इसके साथ ही मैं समझता हूँ कि आपको मेरे साथ परामर्श किये बिना मेरे विषय में कोई प्रार्थना पत्र देने का अधिकार न था.

आप जानते  हैं कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आपसे सर्वथा भिन्न हैं. मैं आपकी सहमति या असहमति का विचार किये बिना ही सदैव स्वतंत्रपूर्वक कार्य करता रहा हूँ. मुझे विश्वास है कि आपको यह बात स्मरण होगी कि आप आरंभ से ही मुझे यह बात मना लेने के लिए प्रत्यन करते रहे हैं कि मैं अपना मुकदमा समझदारी से लडूं एवं अपना बचाव ठीक रूप से उपस्थित करूं. यह बात भी आपकी जानकारी में है कि मैं सदैव इसका विरोध करता रहा हूँ. मैंने कभी अपने बचाव के लिए स्पष्टीकरण देने की इच्छा प्रकट नहीं की.

आप जानते हैं कि इस मुक़दमे में हम एक निश्चित नीति  पर चल रहे हैं. मेरा प्रत्येक कार्य उस  नीति  से, मेरे सिद्दांतों से एवं हमारे कार्यक्रम में सामंजस्य रखते हुए होना चाहिए. आज परिस्थिति सर्वथा भिन्न हैं, परन्तु यदि परिस्थिति इसके अतिरिक्त कुछ और होती तो भी मैं अंतिम व्यक्ति होता जो अपना बचाव उपस्थित करता.इस सारे मुक़दमे में मेरे सामने एक ही विचार था और वह यह कि यह जानते हुए भी कि हमारे विरुद्ध भयानक अपराध लगाये गए हैं, हम उस ओर से पूर्णतया अवहेलना की वृति बनाये रखें. मेरा यह दृष्टिकोण रहा है कि समस्त राजनैतिक कार्यकर्ताओं को ऐसी दशा में अदालत की अवहेलना और उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोर दण्ड दिया जाए, वह उन्हें हंसते हंसते सहन करना चाहिए. इस पूरे मुकदमें के बीच हमारी  नीति  इसी सिद्दांत पर आधारित रही है. हम ऐसा करने में सफल हुए हैं या नहीं, यह निर्णय करना मेरा कार्य नहीं है. हाँ, हम स्वार्थपरता को छोड़कर अपना काम करते रहे हैं.

वायसराय ने लाहौर षड्यंत्र केस आर्डिनेंस जारी करते हुए उसके साथ जो बयान जारी किया था, उसमें उन्होंने कहा था कि इस षड्यंत्र के अपराधी शान्ति, सुव्यवस्था एवं कानून को समाप्त करने का प्रत्यन कर रहे हैं. इससे जो वातावरण उत्पन्न हुआ, उसने हमें यह अवसर दिया कि हम जनता के समक्ष यह बात उपस्थित करें कि वह यह देखे कि शान्ति सुव्यवस्था और कानून समाप्त करने का प्रयास हम कर रहे हैं या हमारे विरोधी. इस बात पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं.

संभवतया आप भी उन लोगों में से एक हैं, जो इस बात में हमसे विरूद्ध मत रखते हैं, परन्तु इसका यह आशय नहीं कि आप मेरी ओर से ऐसे प्रयत्न  बिना मेरे साथ परामर्श किये करते रहें. मेरा जीवन इतना मूल्यवान नहीं है, जितना आप समझते हैं. कम से कम मेरे लिए इस जीवन का इतना महत्त्व नहीं है कि इसे सिद्दांतों की अमूल्य निधि बलिदान करके बचाया जाये. मेरे और साथी भी हैं, जिनके अभियोग इतने ही भारी हैं, जितना कि यह मेरा अभियोग. हमने एक सम्मिलित  नीति  अपनाई है और हम एक दूसरे के साथ कंधा मिलकर अंतिम क्षण तक खड़े रहेंगे. हमें इस बात की चिंता नहीं है कि हमें व्यक्तिगत रूप में इस निश्चय का कितना मूल्य चुकाना पड़ता है.

पिताजी ! मैं बड़ी चिंता अनुभव कर रहा हूँ. मुझे डर है कि आप पर दोष लगाते हुए या इससे भी अधिक आपके इस कार्य की निन्दा करता हुए मैं कहीं सभ्यता की परिधि को न लांघ जाऊं तथा मेरे शब्द अधिक कठोर न हो जायें. फिर भी मैं स्पष्ट शब्दों में इतनी बातें अवश्य कहूँगा कि यदि दूसरा व्यक्ति मेरे प्रति इस प्रकार का बर्ताव करता, तो मैं उसे देशद्रोही से कुछ कम न समझता, परन्तु आपके लिए मैं यह बात नहीं कह सकता.

बस, इतना ही कहूंगा कि यह एक कमजोरी थी, यह एक ऐसा समय था जब हम सब की परीक्षा हो रही थी. मैं जानता हूँ कि आपने अपना समस्त जीवन भारत की स्वतंत्रता के लिए न्योछावर कर दिया है, परन्तु इस महत्वपूर्ण घड़ी में आपने ऐसी दुर्बलता क्यों दिखाई, मैं यह बात समझ नहीं पाया.

अंत में मैं आपको और अपने दूसरे मित्रों एवं मेरे मुकदमे में सहानुभूति रखने वाले सभी व्यक्तियों को यह बता देना चाहता हूँ कि मैं आपके इस कार्य को अच्छी दृष्टि से नहीं देखता. मैं आज किसी मूल्य पर अपना बचाव उपस्थित करने के पक्ष में नहीं हूँ. यदि न्यायलय हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकरण इत्यादि के बारे
में उपस्थित की गई प्रार्थना स्वीकार कर लेता, तो भी मैं कोई स्पष्टीकरण उपस्थित न करता. (भूख हड़ताल के दिनों में मैंने अदालत को जो प्रार्थना पत्र दिया था और उन दिनों में मैंने जो भेंट दी थी, उसका अर्थ गलत समझा गया और समाचार पत्रों में यह प्रकाशित कर दिया गया कि मैं अपना स्पष्टीकरण देना चाहता हूँ. इसके विपरीत मैं तो किसी भी अवसर पर बचाव उपस्थित करने के लिए सहमत नहीं था) आज भी मेरे विचार वही हैं, जो पहले थे. बोस्टर्ल जेल में बन्दी मेरे साथी इस बात को मेरी ओर से पार्टी के साथ विद्रोह एवं विश्वासघात  समझते होंगे. मुझे उनके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर भी नहीं मिल सकेगा.

मैं चाहता हूँ कि इस सम्बन्ध में जो कठिनाइयाँ उत्पन्न हो गईं हैं, उनके विषय में लोगों को वास्तविकता का ज्ञान हो जाये. अतः मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि अप शीघ्र ही यह पत्र प्रकाशित करा दें.

फांसी की सजा सुनने के बाद मुलतान जेल में बंदी अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के नाम नवम्बर,1930 का भगतसिंह का पत्र 

प्यारे भाई,
मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है. इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत से अपराधी हैं. ये लोग यही प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जाएं, परन्तु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूँ, जो बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर झूलने का सौभाग्य प्राप्त होगा.

मैं ख़ुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को यह दिखा दूंगा कि क्रान्तिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से बलिदान दे सकते हैं.

मुझे फांसी का दंड मिला है, किन्तु तुम्हें आजीवन करावास  का दंड मिला है. तुम जीवित रहोगे और तुम्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखाना है कि क्रान्तिकारी अपने आदर्शों के लिए केवल मर ही नहीं सकते बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुकाबला भी कर सकते हैं. मृत्यु सांसारिक कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन नहीं बल्कि जो क्रान्तिकारी  संयोगवश फांसी के फंदे से बच गए हैं उन्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखा देना चाहिए कि वे न केवल अपने आदर्शों के लिए फांसी पर चढ़ सकते हैं बल्कि जेलों के अंधकारपूर्ण छोटी कोठरियों में घुल-घुलकर निकृष्टतम दर्जे के अत्याचारों को सहन भी कर सकते हैं.

तुम्हारा भगत सिंह

3 मार्च 1931 को परिवार वालों के साथ भगतसिंह की आखिरी मुलाकात हुई.  मुलाकात के बाद उसी दिन उन्होंने अपने अनुज कुलवीरसिंह को यह अंतिम पत्र लिखा.

अजिज़म कुलबीर सिंह,

तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया. मुलाकात के वक़्त खत के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा. कुछ अल्फाज लिख दूं और बस- देखो मैंने किसी के लिए कुछ नहीं किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं. आजकल बिलकुल मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूँ. तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या होगा? गुज़ारा कैसे करोगे? यही सब सोचकर कांप जाता हूँ, मगर भाई, हौसला रखना, मुसीबत में भी कभी मत घबराना. इसके सिवा और क्या कह सकता हूँ. अमेरिका जा सकते तो बहुत अच्छा होता, मगर अब तो यह भी नामुमकिन मालूम होता है. आहिस्ता आहिस्ता मेहनत से पढ़ते जाना. अगर कोई काम सीख सको तो बेहतर होगा, मगर सब कुछ पिताजी के मशवरे से करना. जहाँ तक हो सके, मुहब्बत से सब लोग गुज़ारा करना. इसके सिवाय क्या कहूं?

जानता हूँ, आज तुम्हारे दिल के अन्दर गम का समुद्र ठाठे मार रहा है. भाई, तुम्हारी बात सोचकर मेरी आँखों में आंसू आ रहे हैं, मगर क्या किया जाए, हौसला करना. मेरे अज़ीज, मेरे बहुत बहुत प्यारे भाई, ज़िन्दगी बड़ी सख्त है और दुनिया बड़ी बे-मुरव्वत. सब लोग बड़े बेरहम हैजं. सिर्फ मुहब्बत और हौसले से ही गुज़ारा हो सकेगा. कुलतार की तालीम की फ़िक्र भी तुम ही करना. बड़ी शर्म आती है, और अफ़सोस के सिवाय मैं कर ही क्या सकता हूँ. अच्छा नमस्कार ! अज़ीज भाई अलविदा…रुखसत !

तुम्हारा खैर-अन्देश
भगतसिंह

उसी दिन अपने दूसरे अनुज कुलतारसिंह को अपना यह अंतिम पत्र लिखा. 

अज़ीज कुलतार
आज तुम्हारी आँखों में आंसू देखकर बहुत दुःख हुआ. आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आंसू मुझसे सहन नहीं होते.
बर्खुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना. हौसला रखना और क्या कहूँ ! –

उसे यह फ़िक्र है हरदम,  नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है?
दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमान हूँ, ए-अहले-महफ़िल,
चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।
मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली,
यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे रहे न रहे।
अच्छा रुखसत ! खुश रहो अहले-वतन हम तो सफ़र करते हैं!
हौसले से रहना ! नमस्ते !

तुम्हारा भाई, भगतसिंह

 

Meri Baatein
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Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. जिस दौर के ये ख़त हैं, उस दौर में न हम थे, न तुम…पर फिर भी देखो, कितनी शिद्दत से महसूस होते हैं ये अलफ़ाज़…दिल की गहराइयों तक…|
    बहुत कुछ कहना होता है, पर कभी कभी सही शब्द नहीं सूझते न…| बस, सिर्फ एक भावभीनी सी श्रद्धांजलि…शहीदे आज़म को, और उन जैसे तमाम आज़ादी के मतवालों को…|

  2. पहले पत्र में जो खास बात है वह यह कि उन्होंने देशहित के लिए व्यक्तिगत हित को पीछे छोड़ दिया . जब भी ऐसा होता है ,इतिहास बनता है .खास बात है वह जोश जो अत्याचारी फिरंगियों को निर्मूल करने के लिए था .आज भले ही प्राणोत्सर्ग की आवश्यकता नहीं है लेकिन देशहित के लिए स्वार्थ छोड़ने और अन्याय व अनाचार के कम से कम विरुद्ध रहने और हो सके तो करने का जोश तो रखा ही जा सकता है . यही है उनके प्रति सच्ची भावना . .

  3. पहले पत्र में जो खास बात है वह यह कि उन्होंने देशहित के लिए व्यक्तिगत हित को पीछे छोड़ दिया . जब भी ऐसा होता है ,इतिहास बनता है .खास बात है वह जोश जो अत्याचारी फिरंगियों को निर्मूल करने के लिए था .आज भले ही प्राणोत्सर्ग की आवश्यकता नहीं है लेकिन देशहित के लिए स्वार्थ छोड़ने और अन्याय व अनाचार के कम से कम विरुद्ध रहने और हो सके तो करने का जोश तो रखा ही जा सकता है . यही है उनके प्रति सच्ची भावना . .

  4. यार क्यूँ सेंट्टी करते हो… यह सब पढ़कर अफसोस भी बहुत होता है और गर्व भी बहुत होता है कि हम उस देश के वासी है जहां ऐसे लोगों ने जन्म लिया। जय हिन्द वंदे मातरम

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