कुछ ख़्वाब…कुछ ख्वाहिशें – समीक्षा कविताओं की

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जनवरी में अमित भैया (अमित श्रीवास्तव) -निवेदिता भाभी (निवेदिता श्रीवास्तव) की  किताब कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिशें      प्रकाशित होकर आई. इस किताब के  विमोचन में मुझे भी शामिल होने का  सौभाग्य मिला था. तब से ही इस किताब के  ऊपर लिखना चाह रहा था लेकिन एक  फेसबुक के पोस्ट के अलावा कुछ नहीं  लिख पाया. मेरी इस गुस्ताखी के लिए कोई  माफ़ी नहीं है और भैया-भाभी इसके लिए  मुझे जो भी सजा देना चाहे कबूल होगी.  वैसे तो किताब प्रकाशित करवाने के लिए  हम न जाने कितने समय से इन दोनों को  कहते आ रहे थे लेकिन ये दोनों बस बेवजह किताब की बात को टाल रहे थे. ये टालना वैसे कुछ था नहीं, बस इन दोनों की साज़िश थी हमें गुमराह करने की. गुपचुप ये दोनों अपनी नयी किताब की तैयारी में कब से जुटे थे हमें पता ही नहीं चला और साल के शुरुआत में ही हमें इन दोनों ने इस किताब के जरिये एक प्यारा सा सरप्राइज़ दिया.

 
“कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिशें” अमित भैया और निवेदिता भाभी की युगल कविता संग्रह है. जहाँ तक मुझे पता है हिंदी के क्षेत्र में ये एक अनोखा प्रयास है. पति-पत्नी की जोड़ी की कोई युगल कविता संग्रह इससे पहले आई है या नहीं ये नहीं कह सकता लेकिन जहाँ तक मैं जानता हूँ, शायद अब तक नहीं आई. इस किताब के पहले हिस्से में निवेदिता भाभी की 45 कोमल कवितायें हैं तो दूसरे हिस्से में अमित भैया की 42 खूबसूरत कवितायें. शुरुआत करते हैं निवेदिता भाभी की कविताओं से –
 
भाग १ – निवेदिता 
किताब की पहली कविता निवेदिता भाभी की है – अनकहे शब्द. ये
एक छोटी सी लेकिन बेहद प्यारी कविता है. शायद हम सब की मन की बात कहती है ये
कविता…
 
सोचती हूँ 
आज
उन शब्दों को
स्वर दे दूँ
जो यूँ ही
मौन हो
दम तोड़ गए
और
अजनबी से
दफ़न हो
सज रहे हैं
एक
शोख मजार सरीखे
एहसासों के दलदल में
भाभी की कविताओं की खासियत है कि ये कवितायें सरल शब्दों में कितनी गहरी बात कह जाती है, जैसा कि भाभी की ये कविता जिसका बड़ा ही मजेदार शीर्षक है “आइस क्रीम सी ज़िन्दगी”, लेकिन इस मजेदार शीर्षक के पीछे देखिये कितनी गहरी बात छुपी हुई है – ‘जिंदगी भी तो आइसक्रीम जैसी ही है न, पल पल पिघल रही है. अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि इसके मजे ले ले या इसे व्यर्थ जाने दे’ कविता में इसी भाव को कितनी खूबसूरती से पिरोया गया है.जीवन अपना
एक आइसक्रीम जैसा
इसको तो पिघलना है
चाहे इसके छोटे टुकड़े कर के
मुहँ में रख लें, या फिर
हाथ में थामकर देखते रहें
और व्यर्थ जाने देंइस किताब में भाभी की जहाँ दार्शनिक कवितायें हैं वहीं कुछ बेहद रूहानी सी कवितायें भी हैं इस किताब में जैसे एक कविता जो मुझे बेहद प्यारी लगी वो है ”तुम और मैं…”

तुम मेरा दक्षिण पंध बनो
मैं बनूँ पूर्व दिशा तुम्हारी
तुम पर हो अवसान मेरा
मैं बनूँ सूर्य किरण तुम्हारी
तुम तक जाकर श्वास थमे मेरी
इससे बड़ी अभिलाषा क्या मेरी..

माँ एक ऐसा विषय है जिसपर लिखी हर कविता दिल के बेहद करीब होती है, और हम बहुत आसानी से उससे रिलेट भी कर जाते हैं. माँ पर ही एक कविता भाभी ने भी लिखी है और इस कविता को पढ़ते ही पता चलता है कि ये कविता भाभी के दिल के कितने करीब होगी. माँ की गोद को याद करते लिखी गयी ये कविता “मैं सोना चाहती हूँ..” बेहद मर्मस्पर्शी है..

अरे, वो उजला साया तो है
माँ, बस तुम्हारे ही
दुलार बरसाते आँचल का साया
बहुत दिनों से जागी मेरी आँखें
अब तो बस थक गई हैं
सोना चाहती हैं
कभी न खुलने वाली नींद में
काश! कहीं मिल जाए
उन सुरीली लोरी की छाँव

भाभी की कविताओं में कुछ पंक्तियाँ आपको बड़े आसानी से अपनी ओर खींच लेती हैं जैसे “ख्यालों की उलझन” कविता में एक पंक्ति पर मैं जाने कितनी देर तक ठिठका सा रहा. कितनी बार पढ़ा इस खूबसूरत कविता को और इसकी इस पंक्ति को..हर बार दिल से बस ‘वाह’ निकला..

सफ़र फूलों का

बस इतना-सा ही है
उस शाख से
पूजा की डोली तक
और कभी
दुल्हन की डोली से
कदम बढ़ा
उस की अंतिम शय्या तकएक और कविता “ख्वाब” में भी देखिये एक छोटी सी लेकिन कितनी सुन्दर और सच्ची बात कहा है भाभी ने…
ख्वाब
हरदम सिर्फ
ख्वाब ही नहीं होते
ज़िन्दगी की
रेशा रेशा हकीकत भी होते हैंइन सभी कविताओं में एक खूबसूरत कविता ‘आज तुम्हारे जन्मदिन पर’ है. वैसे भी जन्मदिन की कवितायें कम पढ़ने को मिलती हैं. जिस तरह के भाव दुष्यंत की “एक आशीर्वाद” कविता को पढ़ते हुए आती है, कुछ उसी तरह के भाव इस कविता को भी पढ़ने के बाद मन में आये थे -हर ऊँचाई
चूमे कदम तुम्हारे
बस उन
ऊँचाइयों से
देख लेना
अपने अपनों को
और हाँ
दुनिया के सभी
जरूरतमंदों को भी
भाभी की एक और मासूम सी, रूहानी सी और बेहद ही कोमल सी कविता है “उसने कहा”. मुझे तो बड़ी प्यारी लगी ये कविता. –
उसने कहा
आँखें तुम्हारी
सीप-सी
और मैंने
मोती बरसा दिएउसने कहा
आँखें तुम्हारी
गोमुख सी
लब लगाए
और पावन हो गएएक और बेहद प्यारी रूमानी कविता जो मन भिगो जाती हैं वो है “सबसे अलग हो तुम”. देखिये तो, कितने सुन्दर तरीके से भाभी कहती हैं ‘सबसे अलग हो तुम’..
सबसे अलग हो तुम
जानते हो क्यों
सब देखते हैं
लबों पर थिरकती हँसी
स्वर में बोलते अट्टहास
पर तुम
तुम तो देख लेते हो
इन सबसे परे
मेरी आँखों में तैरती नमी…
अगर बात करूँ इस किताब में भाभी की लिखी सबसे बेहतरीन कविता की तो वो निसंदेह “सीता की अग्निपरीक्षा” है. किताब में ये भाभी की सबसे लम्बी कविता भी है. किताब के विमोचन के दौरान ये कविता स्वयं भाभी से सुनने का मौका मुझे प्राप्त हुआ था.ये  कविता इस समाज से सवाल करती है. रामायण को हुए युग बीत गए, लेकिन आज भी कहीं न कहीं सीता अग्नि परीक्षा से गुज़रती ही है. जब खुद सीता को समाज ने नहीं बख्शा तो एक आम नारी भला इस समाज से क्या अपेक्षा करेगी.,उसे कैसे समाज बक्शेगा? ये कविता एक गहरा प्रहार करती है हमारे समाज पर..
अग्निपरीक्षा क्यों दूँ मैं
जीवनसाथी से अलग
कहीं और रहना कारण है
शुचिता प्रभावित करने का
तो हाँ, ये पाप तो राम ने भी किया
तब भी अग्निपरीक्षा सिर्फ और सिर्फ सीता की!
तो हाँ, ये पाप तो राम ने भी किया
तब भी अग्निपरीक्षा सिर्फ और सिर्फ सीता की !…बहुत बार तुमने मुझको
कसौटी पर कसा
बहुत बार मुझको तुमने
अनायास ही त्याग दिया
आज मैं तुम्हारा परित्याग करती हूँ
जाओ फिर से मेरी स्वर्ण प्रतिमा बना साथ बिठाओ
मैं जनकपुर की धरती से उपजी
आज फिर धरती में ही समा जाती हूँ
माँगते रहो मुझसे अग्निपरीक्षा
मैं
हाँ, मैं तुम्हारे हृदय में दावानल दे जाती हूँ.

वैसे तो इस किताब में भाभी की सभी कवितायें बेहद खूबसूरत हैं लेकिन इन सब के अलावा कुछ और कवितायें जैसे “तुम्हारी परछाई”,”एक छोटी सी गुल्लक और कुछ चाहतें”,”वंचित या वंचना”, और “एक बरसात कुछ अलग सी” मुझे बेहद ख़ास लगी.

 
भाग २ – अमित 

किताब के दूसरे हिस्से में है अमित भैया की कवितायें. जहाँ भाभी की कविताओं में एक ठहराव है,  एक एकाकीपन है…किसी शांत झील सी बहती हुई कोमल सी कवितायें हैं वहीँ भैया की कवितायें एकदम मस्ती भरे अंदाज़ में लिखी मस्तमौला और बेहद रोमांटिक कवितायें हैं. पहली ही कविता से शमा बांध गया. पढ़िए आप भी

हर मुड़ा-तुड़ा कागज़ कचरा नहीं होता
आंसुओं संग बह जाए वह कजरा नहीं होता

मुड़े-टुडे कागज़ अक्सर होते हैं खत मोहब्बत के
लफ्ज़ जिसके हरेक जुगनू होते हैं “उन” नज़रों के

ऐसा ही टुकड़ा एक दबा रह जाता है अक्सर नीचे तकिये के
और कर देता है उस ओर मुझे ‘उनकी’ यादों के हाशिये के

एक “ईद” की कविता पर भी नज़र गयी, ये पढ़कर तो पहला रिएक्शन ये आया मेरा कि चलो एक खूबसूरसत कविता और मिली ईद के मौके पर चेपने के लिए, बड़ी सुन्दर सी कविता है, बेहद प्यारी..इस जिसकी होती
बस दीद से तुम्हारे
चाँद-चाँद कहता वो
ढूँढता सबमें तुमको
छलकते आँसुओं से करता
वजू पाँचों वक़्त वो सारे
दुआ में तुमको माँगे
तुम्हारी दुआ वो चाह..थोड़ा तुम मुड़ के देखो
थोड़ा वो भी जी भर रो ले
यूँ ही नज़रें मिला लो
कभी उसकी भी ईद हो ले

“ईद” की खुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि भैया की एक और कविता ने अपने गिरफ्त में ले लिया..कविता का शीर्षक है “कुछ ख्वाबों ख्वाहिशों को नाम नहीं दिए जाते”. बेहद प्यारी है ये कविता और गज़ब की रूमानियत है इसमें –

मोहब्बत मुझको वो करे न करें मर्जी उनकी
पर मेरी हिचकियों का हिसाब लेना जरूरी है

ख्वाब में है ख्वाहिश या ख्वाहिश उनके ख्वाब की
उनसे नज़र एक बार मिलाना भी तो जरूरी है

अकेले में वो ताबुस्सम लिए फिरते तो हैं होठों पे
इश्क हमी से है उनको तसदीक करना भी तो जरूरी है

भैया की कविताओं की बात करे तो ये कोटेशन का खज़ाना है. आपको जाने ऐसी कितनी ही पंक्तियाँ मिलेंगी जिन्हें आप जगह जगह कोट कर के किसी को इम्प्रेस कर सकते हैं….फिर चाहे वो ग्रीटिंग्स कार्ड हो या फेसबुक और ट्विटर के मेसेज, किसी ख़ास को समर्पित करने के लिए एकदम फिट बैठेगी इनकी कवितायें…वैलेंटाइन डे पर तो ख़ासतौर पर ये किताब बड़ी कारगर साबित होगी. यकीन न आये तो आप खुद देख लीजिये इन पंक्तियों को एक बार –

वो मुस्कुरा दे बस इतनी सी चाह है
अपने आँसुओं से बचने की कहाँ कोई राह है
वो पलकें उठा दें बस इतनी सी चाह है
खुली आँखों से सपने देखने की यही एक राह है
वो लब खोल दे, दो बोल बोल दें, बस इतनी सी चाह है
सन्नाटे के शोर से बचने की यही एक राह है
तुम तो एक फूल हो जिसमें खुशबु है बहुत
उस खुशबु से थोड़ा महकना चाहता हूँ
मरना ही सच है गर ज़िन्दगी का

झूलकर तेरी बाहों में मरना चाहता हूँ…

और झाँका तुमने जब
अँधेरों को रोशनी मिल गई
गुमशुदा बैठे थे तन्हा
लम्हों को ताजगी मिल गई

वैसे इस किताब में भैया की सबसे खूबसूरत कविता शायद “और गुनाह हो गया” है. कविता तो ख़ास है ही, लेकिन इस कविता को और ख़ास बनाती है ये बात कि खुद भैया के मुहँ से सुन चूका हूँ इसे मैं. वैसे मैंने गौर किया था कि भैया जब ये कविता हमें सुना रहे थे तो भैया की नज़रें भाभी पर ही जमी थी. आप तो फ़िलहाल बस ये कविता पढ़िए…एक नज़्म-सी तुम
गुनगुना गया मैं
और गुनाह हो गयापूरा चाँद सी तुम
बहक गया मैं
और गुनाह हो गयामासूम ताबुस्सम सी तुम
अश्क मैं पीता गया
और गुनाह हो गया

इसके रोमांटिसिज्म से बाहार निकलने का मौका नहीं मिलता और तभी हमें एक और बेहद रोमांटिक कविता सामने दिखती है –

अशआर यूँ तो सारे पढ़ लिए मैंने तेरे
अल्फाज़ एक दो कह दो तो बात बने है

दीदार जाने कब हो रब ही जाने जब हो
तस्सवूर में आके न जाओ तो बात बने है

बदमान था तो यूँ भी कुछ और हो कर देखूँ
कुछ नाम तुम भी कर दो तो बात बने है

भैया की कविताओं में एक गज़ब का मस्तमौलापन है…जैसे ये कविता देखिये…”वह काला तिल..” पूरी की पूरी कविता ही जानदार..शानदार है…कहना उनका, लिखते तो अच्छा हो
मैंने कहा, तुमने पढ़ा शायद
कमबख्त लिखा खुद सँवर गया.
..
खूबसूरत होना एक बात है
पर इत्ता खूबसूरत होना अलग बात है

गौर किया तो एक काला तिल
वहन भी गोर से गाल पर
गोया भँवरा हो
चाँदनी के फूल पर
..
टटोला मैंने
इस टिल पर दिल
तो बहुत मिटे होंगे
‘उहूँ’ कर बोले – मुझे क्या
अब मैं मान गया
खूबसूरत होना
और नकचढ़ा होना
दोनों एक ही बात हैहै न एकदम कॉलेज के जमाने की लिखी कविताओं सी ये. इसी तरह की एक और मस्तीभरी कविता का एक अंश पढ़िए “कुछ तो है..”
बालियाँ बोलती हैं
बिंदिया बहकती है
आवाज़ महकती है
कनखियाँ घूरती हैं
कुछ तो है…
इस किताब की शायद सबसे रूमानी कविता में से एक है “स्मृति की एक बूंद मेरे काँधों पे”, जो मुझे बहुत ख़ास लगी..उस रात
काजल लगी आँखों में
जो एक आँसू
टपका था तुम्हारा
मेरे काँधे पे
वक्त के साथ
आँसू तो सूख गया
पर काजल का वो एक कण
ठहरा हुआ है वहीं
अब भी मेरे काँधे पे
रोमांटिक कविता के अलावा भी अमित भैया की कुछ कविता जैसे फादर्स दे पर उनकी लिखी एक कविता और माँ के लिए उनकी लिखी कविता बेहद पसंद आई. इन सब के अलावा जहाँ “लालटेन सी ज़िन्दगी” एकदम अलग सी कविता लगी वहीँ “आलिंगन ज़िन्दगी का”, “पैदाइश लफ़्ज़ों की…”, “तिथियों से परे..”, और “अलिखित से लिखित” भी मुझे काफी पसंद आई.इस किताब में जहाँ पहली कविता निवेदिता भाभी की “अनकहे शब्द” थे तो वहीँ आखिरी कविता अमित भैया की “क्यों लिखूँ कविता” है..ये दोनों कविता अगर गौर कीजिये तो आपस में मिले जुले से लगते हैं. अमित भैया की कविता में एक कवि का दर्द है. बेइंतेहा दर्द से गुजरने के बाद कोई कवि एक कविता लिखता है, लेकिन इतना दर्द सहकर कविता लिखने का हासिल क्या है?कविता लिखना शायद
होता है कीमोथेरपी जैसा
दर्द और बहुत दर्द के बीच
झूलती ज़िन्दगी
पर हाँ, उम्र मिल जाती है
थोड़ी साँसों को और
साथ-ही-साथ
उस कैंसर को भी
..सब सोचता हूँ
निचोड़ता हूँ
निधारता हूँ
सीने में दर्द
बर्दाश्त करता हूँ
तब कविता
निकलती है
और खुद को
लिखती है
मेरे सफे पे
बहुत तकलीफ
होती है
तब बनती है कविता

इस किताब की सभी कवितायें बेहद ही शानदार हैं. गज़ब की मौलिकता है इनमें. भाभी के शब्दों में कहूँ तो ये किताब ‘एक पोटली है खुशियों की’. आज की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में भैया-भाभी की कवितायें दिल को सुकून देती है. भगवान से मेरी बस यही प्रार्थना है कि अमित भैया-निवेदिता भाभी के ये सारे ख्वाब, सारी ख्वाहिशें हमेशा पूरी हों और उनकी ये किताब जो पहले से ब्लॉकबस्टर साबित हो गयी है वो और सफलता की ऊँचाई चढ़ते जाएँ.

इस पोस्ट को पढ़ने के बाद और इन प्यारी कविताओं का आनंद लेने के बाद किताब मँगवाने का दिल तो किया होगा आपका. तो आपके लिए ये लिंक है अमेज़न का. –


“कुछ ख़्वाब…कुछ ख्वाहिशें” on Amazon.in 

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. वाह रे !!! ये तो हमसे भी अच्छा लिख गए तुम…। अब देखना, समीक्षा के लिए तुम्हारे पास किताबो की लाइन लगने वाली है 🙂

  2. वाह Abhishek , सुबह सुबह तुमने sunday खूबसूरत बना दिया । �� थैंक्स लिख कर या बोल कर पलड़ा बराबर नहीं करूंगा । पलड़ा छोटों की ओर ही झुका रहे तो मन खुश रहता है । ��

  3. Abhishek भैया ,ये पता नही था कि समीक्षा भी एक कविता सरीखी हो सकती है …. बहुत बहुत बहुत ही ज्यादा अच्छा लिख है …..
    और हाँ एक बात और … किताब छपवाने के लिये तुमने और प्रियंका ने धमकाया तो बहुत था पर हमने कुछ भी पहले से नहीं सोच रखा था … ये सब इतनी जल्दी सम्भव हो पाया एक और अनुज Mukesh की वजह से ….. मुकेश ने कविताओं के चुनाव से लेकर छपवाने तक काम मात्र एक महीने में ही कर दिया …..
    अब ये तो कह ही सकती हूँ कि उस उपरवाले ने बहुत अच्छे भाई दिए हैं मुझे 😊 ….. स्नेहाशीष !!!

  4. Abhishek भैया ,ये पता नही था कि समीक्षा भी एक कविता सरीखी हो सकती है …. बहुत बहुत बहुत ही ज्यादा अच्छा लिख है …..
    और हाँ एक बात और … किताब छपवाने के लिये तुमने और प्रियंका ने धमकाया तो बहुत था पर हमने कुछ भी पहले से नहीं सोच रखा था … ये सब इतनी जल्दी सम्भव हो पाया एक और अनुज Mukesh की वजह से ….. मुकेश ने कविताओं के चुनाव से लेकर छपवाने तक काम मात्र एक महीने में ही कर दिया …..
    अब ये तो कह ही सकती हूँ कि उस उपरवाले ने बहुत अच्छे भाई दिए हैं मुझे 😊 ….. स्नेहाशीष !!!

  5. खूब अच्छा लिखा अभिषेक आपने। बधाई तीनों को।

  6. खूब अच्छा लिखा अभिषेक आपने। बधाई तीनों को।

  7. बहुत बढ़िया समीक्षात्मक टिप्पणी …..

  8. इस खूबसूरत युगल की कविताओं से परिचय भी बहुत खूबसूरती से कराया है अभि. समीक्षा इतनी अच्छी कर लेते हो कि बस पढ़ते रहो और खोजाओ .दोनों की कविताएं काफी अच्छी लगीं .और जैसा कि तुमने कहा है निवेदिता जी की रचनाएं सरल सहज और सचमुच दिल के करीब हैं .

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