कुछ लम्हे गुलज़ार साहब के साथ – झूम के फिर उट्ठे हैं बादल

तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे
हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!
कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!
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सुबह सुबह जब उठा तो दिन कुछ अलग सा दिख रहा था, शायद कुछ बातें याद आ रही थी या कुछ और..पता नहीं,पास के चाय दुकान पे चाय पी के वापस आया तो दिल किया गुलज़ार साहब के नज़्मों को एक बार और सुन लूँ..मैं तो ठहरा गुलज़ार साहब का जबरदस्त फैन, पता नहीं कब से उनका फैन बना लेकिन याद है मुझे,बचपन में मेरे मामा के पास मैंने एक कैसेट देखी थी, गुलज़ार साहब के कुछ गानों की..शायद उसी वक्त से गुलज़ार साहब के तरफ खिंचाव बढ़ा. अभी तो ऐसी हालत है की उनके जो भी गाने/नज़म/त्रिवेणियाँ मिलती हैं, उनकी आवाज़ में या फिर किसी की भी आवाज़ में, झट से डाउनलोड कर लेता हूँ.सुबह सुबह उनकी आवाज़ में उन्ही का लिखा नज़्म सुन दिन शुरू करने से बेहतर और क्या हो सकता है..

फिर  एक बार भींगते हैं गुलज़ार के गज़लों,त्रिवेणियों और नज्मों की बारिश में, आईये एक साथ सुने उन्हें..

 बस्ता फ़ेंक के लोची भागा, रोशनआरा बाग़ की जानिब
चिल्लाता , चल गुड्डी चल
पक्के जामुन टपकेंगे

आँगन की रस्सी से माँ ने कपड़े खोले
और तंदूर पे लाके टीन की चादर डाली

सारे दिन के सूखे पापड़
लच्छी ने लिपटा ई चादर
‘बच गई रब्बा’ किया कराया धुल जाना था’

ख़ैरु ने अपने खेतों की सूखी मिट्टी
झुर्रियों वाले हाथ में ले कर
भीगी-भीगी आँखों से फिर ऊपर देखा

झूम के फिर उट्ठे हैं बादल
टूट के फिर मेंह बरसेगा

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बस एक ही सुर में, एक ही लय में
सुबह से देख-देख कैसे बरस रहा
है उदास पानी
फुहार के मलमली दुपट्टे से
उड़ रहे हैं
तमाम मौसम टपक रहा है

पलक-पलक रिस रही है ये
कायनात सारी
हर एक शय भीग-भीग कर
कैसी बोझल सी हो गयी है

दिमाग की गीली-गीली सोचों से
भीगी-भीगी उदास यादें
टपक रही हैं

थके-थके से बदन में
बस धीरे-धीरे साँसों का
गरम दूबन चल रहा है

इससे  दिल नहीं भरा तो ये लीजिए, सुनिए यही दो नज़्म इधर,



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मैं कुछ-कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको
तेरा चेहरा भी धुँधलाने लगा है अब तख़य्युल में
बदलने लग गया है अब वह सुबह शाम का मामूल
जिसमें तुझसे मिलने का भी एक मामूल शामिल था

तेरे खत आते रहते थे
तो मुझको याद रहते थे
तेरी आवाज़ के सुर भी
तेरी आवाज़, को काग़ज़ पे रखके
मैंने चाहा था कि पिन कर लूँ
कि जैसे तितलियों के पर लगा लेता है कोई अपनी एलबम में

तेरा बे को दबा कर बात करना
वॉव पर होठों का छल्ला गोल होकर घूम जाता था
बहुत दिन हो गए देखा नहीं ना खत मिला कोई
बहुत दिन हो, गए सच्ची
तेरी आवाज़ की बौछार में भीगा नहीं हूँ मैं

 

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. उम्दा पोस्ट ……….आभार आपका गुलज़ार साहब की नज्मो से रूबरू करवाने के लिए !

  2. वाह दिन तो क्या खूबसूरत बना दिया तुमने 🙂 बहुत अच्छा लगा गुलज़ार साहब की नज्मों से रूबरू होना !

  3. हम त कभी पूजा पाठ नहीं करते हैं..न कोनो दीन धरम में बिस्वास रखते हैं…गुलज़ार साहब का नज़्म हमरे लिए प्रार्थना से कम नहीं है…कुछ नज़्म उनके जईसा लिखने का कोसिस किए… कुछ फेसबुक पर भी डाले… लेकिन जो मज़ा उनको पढने अऊर जोर जोर से पढने का है, ऊ बेमिसाल है.
    अच्छा लगा तुमरे पोस्ट को पढ सुनकर!!

  4. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    charchamanch.blogspot.com

  5. बहुत सुन्दर रचनायें सुनवायीं आपने गुलजार साहब की।

  6. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

  7. भीग ही गये गुलज़ार साब की नज़्मों और आवाज़ की बारिश में 🙂
    बारिश पर गुलज़ार साब ने रेनकोट फिल्म के लिये एक नज़्म लिखी जो हमें बेहद पसंद है… चलिए आपसे भी शेयर कर लेते हैं… वैसे शायद पढ़ी हो आपने पहले भी 🙂

    किसी मौसम का झोंका था
    जो इस दीवार पर लटकी तस्वीर तिरछी कर गया है

    गये सावन में ये दीवारे यूँ सीली नहीं थी
    ना जाने क्यूँ इस दफ़ा इन में सीलन आ गयी है
    दरारें पड़ गयी हैं
    और सीलन इस तरह बहती है जैसे
    ख़ुश्क रुखसारों पर गीले आँसू चलते हैं

    ये बारिश गुनगुनाती थी इन्ही छत की मुंडेरों पर
    ये घर की खिड़कियों पर उंगलियों से लिख जाती थी संदेसे
    बिलखती रहती है अब बंद रोशनदानों के पीछे

    दोपहरें ऐसी लगती हैं
    बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं
    ना कोई खेलने वाला है बाज़ी, ना कोई चाल चलता है
    ना दिन होता है अब ना रात होती है
    सभी कुछ रुक गया है

    वो क्या मौसम का झोंका था
    जो इस दीवार पे लटकी तस्वीर तिरछी कर गया है…

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