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कैसे देखूं मेरी आँखों के पास हो तुम
तुमको महसूस ही करता हूँ कि एहसास हो तुम
महके रहते हो मेरे जिस्म में, देखूँ कैसे?
कोई उम्मीद हो जैसे कोई विश्वास हो तुम
तुमको छूने से घनी छाँव का मस्स मिलता है
और होठों से कटे चाँद का रस मिलता है
ढूँढ़ते रहने से मिलता नहीं कोई तुमसा
तुमसा मिल जाए तो किस्मत से ही बस मिलता है
महके रहते हो मेरे जिस्म में, देखूँ कैसे?
गूंजती रहती हो तुम साँसों में खुशबू की तरह
और आँखों से हंसी चेहरा पढ़ा करते हैं
हमने आँखों से तो अब सुनने की आदत कर ली
और होठों से तेरी साँस गिना करते हैं
महके रहते हो मेरे जिस्म में, देखूँ कैसे?
कोई उम्मीद हो जैसे कोई विश्वास हो तुम
कैसे देखूँ मेरी आँखों के पास हो तुम
तुमको महसूस ही करता हूँ कि एहसास हो तुम
दूसरा गाना है `दुश्मन दोस्त’ फिल्म से जिसे लता मंगेशकर ने गाया है.
मोहब्बत के इशारों में..अकेले में..हजारों में..
तेरी कसम कहाँ कहाँ तुझे ढूँढा
मिलन की तमन्ना लिए, नज़र यूँ भटकती रही
जुदाई की दीवार से, वफ़ा सर पटकती रही
जवानी की पुकारों में, अकेले में हजारों में
तेरी कसम कहाँ कहाँ तुझे ढूँढा
तेरा नाम लेता है दिल, जहाँ से गुज़रती हूँ मैं
तुझे क्यों सदाए न दूँ? तुझे प्यार करती हूँ मैं…
निगाहों में नज़रों में, अकेले में हजारों में..
तेरी कसम कहाँ कहाँ तुझे ढूँढा.
तीसरा गाना कुमार सानु और अनुराधा पौडवाल की आवाज़ में गाना फिल्म “आजा मेरी जान” से है. ये एक बांगला गाने से इंस्पायर्ड है. ओरिजनल गीत में भी संगीत पंचम दा ने ही दिया है.
जानूँ न मैं कब कहाँ ज़िन्दगी की शाम ढले
वही है पल अनमोल तू जो संग चले
जानेजहाँ, तारों भरे नीले आसमान तले
वही है पल अनमोल, तू जो संग चले
जिस दिन से तू मेरे जीवन में आया
उस दिन से जीवन में नशा सा छाया
अंखियों से चूमे, मस्ती में झूमे
बाहें डाले गले , तू जो संग चले
जानेजहाँ, तारों भरे नीले आसमान तले
वही है पल अनमोल, तू जो संग चले
मैं तुझमे तू मुझमे ऐसे समा जाए
हमको जुदा कर न सके, काली घटायें
बढ़ता ही जाए प्यार हमारा दुनिया देख जले
तू जो संग चले…
जानूँ न मैं कब कहाँ ज़िन्दगी की शाम ढले
वही है पल अनमोल तू जो संग चले
जानेजहाँ, तारों भरे नीले आसमान तले
वही है पल अनमोल, तू जो संग चले
और गुलज़ार साहब का लिखा `मुसाफिर’ फिल्म से ये गाना, किशोर कुमार की आवाज़ में…
बहुत रात हुई
मैं थक गया हूँ,…मुझे सोने दो
चाँद से कह दो उतर जाए, बहुत बात हुई…
मैं थक गया हूँ,…मुझे सोने दो
ज़िन्दगी के सभी रास्ते सर्द हैं
अजनबी रात के अजनबी दर्द हैं…
याद से कह दो गुज़र जाए
बहुत बात हुई…
मैं थक गया हूँ,…मुझे सोने दो
बहुत रात हुई…
आशियाँ के लिए चार तिनके भी थे
आसरे रात के और दिन के भी थे
ढूँढ़ते थे जिसे वो ज़रा सी ज़मीन
आसमान के तले खो गयी कहीं…
धूप से कह दो उतर जाए, बहुत बात हुई
मैं थक गया हूँ,…मुझे सोने दो
बहुत रात हुई…
याद आता नहीं अब कोई नाम से
सब घरों के दिए बुझ गए शाम से
वक़्त से कह दो गुज़र जाए, बहुत बात हुई
मैं थक गया हूँ,…मुझे सोने दो
बहुत रात हुई…
और `मुसाफिर’ फिल्म का ही ये गाना
आप से इतनी सी गुज़ारिश है
आइये भीग लें कि बारिश है
हमने कब आपसे कहा मिलिये
आइये भीग लें कि बारिश है
हमने कब आपसे कहा मिलिये
सिर्फ मौसम की ये सिफ़ारिश है
चाँद है या कटा हुआ नाख़ून
कायनात आपकी निगारिश है
आइये भींग ले कि बारिश है
`जीवन साथी’ फिल्म का ये गाना “फूलों के देश में बहार लेकर आई”, आवाज़ किशोर कुमार की है.
फूलो के देश में बहार लेके आई
मेरी दुनिया में पुकार लेके आई
उल्फत में यादों में तेरी, सब कुछ भुलाए हुए
बैठा हूँ रास्ते में तेरे, आँखें बिछाए हुए
दिन रात का, मुलाकात का, इंतजार लेके आई..
फूलो के देश में बहार लेके आई
मेरी दुनिया में पुकार लेके आई
एक तेरे आने से देखा मौसम बदलने लगा
लगता है तेरी नज़र से जादू सा चलने लगा
ये नज़ारे बेक़रार थे, तू करार लेके आई..
फूलो के देश में बहार लेके आई
मेरी दुनिया में पुकार लेके आई
पंचम दा और गुलज़ार साहब का एक और कोम्बिनेसन..फिल्म देवदास से.
कुहु-कुहु-कुहु-कुहु कोयलिया..कोयलिया…
बुलाये रे अमवा तले..अमवा तले
काली कलुठी मुई सावन की प्यासी…
गुलज़ार साहब का लिखा ये गीत, आशा-किशोर की आवाज़ में, फिल्म का नाम मुझे पता नहीं.
फूलों की जुबां खूबसूरत हो गयी
देखो दास्ताँ खूबसूरत हो गयी
तुम्हारी बाहों की डोलियों से बहारें बरसी तो ये फिजा
और खूबसूरत हो गयी
आकाश कोरा है
और चाँद कंवारा है
तारों के होठों पे नाम तुम्हारा है
तुम्हारे नाम से जुड़ा है नाम तो
बस नाम ये दास्ताँ
खूबसूरत हो गयी
फूलों की जुबां खूबसूरत हो गयी
देखो दास्ताँ खूबसूरत हो गयी
और आशा जी की आवाज़ में ये गाना, `रेशमा-ओ-रेशमा’ फिल्म से है.
ले चल कहीं मुझको ऐ मेरे तन्हाई
डूबी हुई गम में है ज़िन्दगी मेरी..
अनजाने रास्ते हैं, साथी कोई नहीं
लगता है डर ये मुझको खो जाऊँ न कहीं
मुझे कहाँ लायी ऐ बेबसी मेरी
अपने भी जो थे मेरे बेगाने हो गए
सपने सुहाने मेरे आँखों से खो गए
रूठी ज़माने में सारी खुशियाँ मेरी
ले कल कहीं मुझको ऐ मेरे तन्हाई
डूबी हुई गम में है ज़िन्दगी मेरी..
लाजवाब कलेक्शन।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन डबल ट्रबल – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
लाजवाब है बेटा!!
एक घटना सुनी थी मैंने या शायद पढी थी.. कितना सच – कितना झूठ पता नहीं.. लेकिन सच इसलिये मानने को जी चाहता है कि घटना का सम्बन्ध सुभाष घाई से है. उन्होंने अपनी एक फ़िल्म (रामलखन ) के सारे गाने पंचम दा से कम्पोज़ करवा लिये थे जो उन्होंने बड़ी मेहनत से तैयार किये थे. पंचम दा के ख़राब दिन चल रहे थे. और अंत में सुभाष घाई ने लक्ष्मी-प्यारे से संगीत दिलवाया. पंचम दा इस आघात को झेल नहीं पाए और बाद में चल बसे!!
मैं तो हमेशा से उनका फैन रहा हूँ और मुझे लगता है कि ऐसे कलाकार कभी नहीं मरते!! और तुमने तो उनको ज़िन्दा कर दिया.
हर गीत और उसका हर शब्द …….. वाह! क्या चयन है ….. स्नेहाशीष 🙂