घड़ी तो नहीं रही, पर वो समय भी नहीं रहा लेकिन हम तो वही हैं..

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इतवार की सुबह है, पता नहीं कहाँ से अचानक पुरानी बातें याद आ रही हैं. सुबह की शुरुआत रफ़ी साहब के उसी गाने से हो रही है जिससे वर्षों पहले कभी सन्डे की शुरुआत हुआ करती थी. कितने लोगों ने ये ध्यान दिया होगा पता नहीं…लेकिन मैंने दिया था, या हो सकता है ये मेरा वहम हो…लेकिन पहले अक्सर सन्डे की सुबह की रंगोली में रफ़ी साहब का गाया और शशि कपूर-आशा पारेख पर फिल्माया कन्यादान फिल्म का गाना “लिखे जो ख़त तुझे..” जरूर आता था.  इतवार की सुबह रंगोली देखने के बाद ही कोई काम होता था, और मैंने ये बात गौर की, कि हर रंगोली में ये एक गाना कांस्टेंट रहता ही था. जब कभी इस गाने को कहीं से भी सुन लेता हूँ, बचपन का इतवार याद आ जाता है.

खैर, आज मूड जो नास्टैल्जीआया हुआ है उसका वजह ये गाना है तो लेकिन इसकी शुरुआत कल ही हुई थी. हमारे दो प्रिय चाचाओं ने जाने कहाँ कहाँ की बातें याद दिला दी…बात शुरू तो हुई थी अनुराग चाचा ने जब क्रिसमस गिफ्ट की एक तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट की थी, और फिर सलिल चाचा ने एक सवाल यूहीं पूछ दिया था, कि “तस्वीर में ये घड़ी कौन सी है… “ और उसके बाद तो जैसे यादों का कारवां चल निकला. दोनों चाचाओं ने ये नहीं सोचा होगा कि एक साधारण से सवाल से इतनी यादें निकल आएँगी, और ये तो बिलकुल भी नहीं सोचा होगा  कि उनका बदमाश भतीजा उस बातचीत को इधर अपने ब्लॉग पर ले आएगा.

इसी तस्वीर में वो घड़ी है जिसके बारे में सलिल चाचा ने सवाल किया था..  “ये रिस्ट वॉच कौन सी है??”
अनुराग चाचा ने जवाब दिया, बड़ा नपा तुला सा…छोटा जवाब.. “प्युगो”..चाचा का ये नपा तुला जवाब स्वाभविक था, उन्हें इस समय तक कहाँ मालुम था इस छोटे से सवाल के आगे भी बात बढ़ेगी…
सलिल चाचा ने फिर बात आगे बढ़ाई  “मेरे पास ऐसी ही वॉच है, लेकिन मैं घड़ी नहीं लगाता. मेरे बड़े साले जो Seattle में हैं, वो लाये थे मेरे लिए!! Relic है वो!!” यहाँ साफ़ झलक रहा था कि चाचा को कुछ बातें याद आने लगीं हैं लेकिन फिर भी जवाब बेहद संतुलित दे रहे हैं. यहाँ पर ये बताना भी जरूरी है कि मेरी घड़ियों के बारे में कितनी कम जानकारी है. मुझे नहीं पता था प्युगो की कार और बाइक के अलावा घड़ी भी आती है, और Relic? ये कौन सा ब्रांड है..जरूर बड़ा कोई ब्रांड होगा. सोच रहा हूँ कितना कम मालूम है मुझे. खैर..
अनुराग चाचा ने सलिल चचा की बात का फिर एक छोटा सा जवाब दिया… “सलिल वर्मा जी, खूबसूरत है, लेकिन कुछ बड़ी है।”. उनको इस वक़्त तक कोई आईडिया नहीं था कि आगे बात किस तरफ जाने वाली है…
सलिल चाचा ने फिर बात आगे बढ़ाई.. उनके मन में वैसे तो बहुत सी बात थी. कहा उन्होंने  “मैं दाहिने हाथ में घड़ी बांधता था, लेकिन दाहिने हाथ में कड़ा पहनना शुरू किया तो घड़ी छूट गयी!! और मैं चमड़े के स्ट्रैप वाली घड़ी नहीं पहनता था. मुझे मेटल स्ट्रैप वाली घड़ी जो कलाई पर कसी न हो, पसंद थी!”
अब शायद अनुराग चाचा को भी आईडिया हो गया था कि बात किधर जा रही है. उनसे रहा नही गया अब…बस्स फिर क्या था..  लिखा उन्होंने जवाब में और देखिये कितनी पुरानी यादें बस उनके एक जवाब से निकल आई… “जी। घड़ी तो मैं भी न के बराबर ही बांधता हूँ। छात्र जीवन में पिताजी की आटोमेटिक घड़ियाँ पुरानी होने पर ले लेता था। हाई स्कूल पास करने पर HMT विजय मिली थी, अब याद नहीं कहाँ है। बीएससी के दिनों में चाँदनी चौक से 25 रुपये की किसिम किसिम की डिजिटल घड़ियाँ खूब पहनीं। नौकरी के समय आलविन ट्रेंडी के सस्ते और सटीक मॉडल आ रहे थे सो प्रोबेशन के दिनों में वे पहने। उसके बाद जिस दिन याद रहे और जो हाथ लग जाये वह पहन लेता हूँ। कई बार पहनने के बाद दिखता है कि IST/EST, समर टाइम या तारीख, महीना आदि गलत है लेकिन आजकल के तकनीकी युग में उतना भर सही करने के लिए भी शायद एक मैनुअल पढ़ना पड़े सो खाली हाथ ही भले।”.  
HMT और आलविन की बातें होने लगी यहाँ….ह्म्म्म…! ये दोनों ब्रांड किसी को भी पुराने ज़माने में खींच ले जाने के लिए काफी हैं. और ऊपर से अनुराग चाचा की ये छोटी छोटी यादें. सलिल चचा भी कहाँ चुप रहने वाले थे.. उन्होंने ने भी एक मजेदार किस्सा शेयर कर दिया…

“देखिये बात बात में घड़ियों पर एक पोस्ट बन गयी!!
मैं ऑफिस पहुँचकर घड़ी उलटे हाथ में डाल लेता था और काम खत्म करने के बाद घड़ी सीधे हाथ में! कोलकाता में मेरे AGM साब को मैंने कहा था एक बार कि जब मैं अपने पेन का कवर लगा लिया (बिना कवर के पेन से काम करता हूँ आज भी) और घड़ी दाहिने हाथ में आ गयी तो फिर मैं कोई काम नहीं कर सकता!
तब से कभी भी शाम को देर से उन्हें कुछ काम देना होता तो वो इंटरकॉम पे पूछते, “वर्माजी!

Whether you have put on the watch in right hand?”
“No sir!”
“Whether you have put the cover of your pen?”
“Please tell me sir!”
“Come to my cabin, I need to discuss an urgent proposal with you!”
.
घड़ी तो नहीं रही, पर वो समय भी नहीं रहा अनुराग जी!!” 

चाचा ने कहा घडी तो नहीं रही, पर वो समय भी नहीं रहा. लेकिन चाचा, वो समय भले न हो..आप और हम तो वही हैं न, बस फिर क्या बात है. अनुराग चाचा ने भी यही बात चाचा से कही –
“सलिल वर्मा जी, क्या बात है। वे यादें अभी भी हैं, तब से अधिक मधुर हैं। पेन की बात पर याद आया कि डिजिटल घड़ी वाले चीनी पेन भी कुछ समय तक प्रयोग किए थे।”
यहाँ सलिल चाचा ने सोचा बात यहीं खत्म हो गयी… उन्होंने सबको क्रिसमस की शुभकामनाएँ दी और सोचा कि चालों, थोड़ा नोस्टाल्जिया गए इन छोटी सी यादों से अच्छा हुआ अब चाय वाय पीया जाए. लेकिन नहीं.. किस्सा अभी और बाकी था…
अभी तो अभि के आने की बारी थी…उनके भतीजे के..
उसने भी अपनी छोटी सी एक याद शेयर की यहाँ…अब ये ब्लॉग उसी भतीजे का है, और ये टाइपिंग भी वही कर रहा तो अपनी उस बात में जो वहां अनुराग चाचा के वाल पर की गयी थी, उसमें थोड़ा और जोड़ भी दे रहा वो..
“मेरे नाना की एक HMT की घड़ी थी, उसे मैं पहनता था..पापा या मामा ठीक करवा के लाये थे. याद नहीं दोनों में से किसने ठीक करवाया था घड़ी. बहुत लम्बे समय तक वो घड़ी पहनी फिर पापा ने एक नयी घड़ी दिलवाई. उस समय मैक्सिमा की नयी और सस्ती घड़ियाँ आई थीं. साल 1996 में लॉन्च हुई थी मक्सिमा.” अब चाचा लोग तो अस्सी के दशक की बातें कर रहे हैं जब अलविन घड़ियाँ छाई हुई थीं, लेकिन मैं तो उस समय छोटा था, घड़ी पहनने की उम्र नहीं थी तो मैं नब्बे के दशक की बातें करने लगा. हालांकि अनुराग चाचा से ये कहा भी कि हमनें वो सस्ती डिजिटल घड़ियाँ भी खूब पहनी है, अनुराग चचा के समय से लेकर मेरे समय तक भी उन घड़ियों का क्रेज था. पटना में स्टेशन रोड के किनारे लगाए रहते थे ठेले जहाँ से हम मोलभाव कर के खरीदा करते थे सस्ती डिजिटल घड़ियाँ, फिर बाद में इंजीनियरिंग में गए तो भी हैदराबाद के अमीरपेट और एबिड्स मार्किट से भी सस्ती घड़ियाँ खरीदी है. अपने बचपन की भी बात याद आई थी जब हम खिलौने वाली घड़ियाँ खूब पहनते थे. दशहरा के मेले में कुछ ही चीज़ें ऐसी होती थी जिनको लेने के लिए हम उत्साहित होते थे, उनमें से ये घड़ियाँ भी थी. उस वक़्त कितने खुश हुआ करते थे वही खिलौने वाली घड़ियाँ पहन कर.

इस समय तक दोनों चाचा से कह दिया था मैंने, कि आपकी इन बातों पर नज़र है मेरी, कहीं कॉपीराईट का कोई मामला तो नहीं इन बातों पर, हो भी तो “Who Cares..” आप दोनों का लिखा हुआ पर मेरा हक तो है ही….

अनुराग चाचा और सलिल चाचा भी मेरी इस बात से सहमत हुए. होना ही था सहमत उन्हें…
अनुराग चाचा ने कहा
” सही जा रहे हो भतीजे। God bless you! खूब लिखो! खिलौने वाली घड़ी की सही याद दिलाई। आलविन ट्रेंडी ने उस रंगीन प्लास्टिक को ही साकार किया था। उस समय शायद 200 रुपये की थी। टाइटन से कहीं सस्ती थीं और कई गुना रिलायबल।”
कसम से..अनुराग चाचा अब एकदम मूड में आ चुके थे. आलविन टेंडी!!!! आलविन ट्रेंडी की बातें याद दिला कर तो आपने गज़ब कर दिया. हाँ मेरे बचपन के दिनों की बातें हैं वो, लेकिन ये कौन भूल सकता है कि ऐ.आर.रहमान को शायद पहला ब्रेक तभी मिला था जब उनको आलविन ट्रेंडी के लिए एक जिंगल तैयार करने को कहा गया था. मुझे भी याद आई अचानक कि आलविन की तो फ्रिज भी आती थी..अनुराग चाचा ने फिर से उसमें जोड़ दिया…
” हाँ, फ्रिज तो था ही हैदराबाद आलविन का स्कूटर भी था। सार्वजनिक उपक्रमों का वह युग भी हमारे देखते-देखते समाप्त हो गया। लेकिन सच है कि इस वार्ता ने दिन तो बना दिया।”
कसम से…दिन तो बनना ही था, ऐसी ऐसी बातों का जिक्र जो हो रहा था. अब तक मैं भी पूरे तौर से नोस्टालजिक हो गया था..और यकीन मानिए चाचा के इस जवाब से नास्टैल्जीआया का पारा ऐसा चढ़ा की मैं गूगल पर आलविन ब्रांड की भूली भाली पुरानी तस्वीरें खोजने लगा.देख लीजिये आप भी, किनारे में लगी हुई है तस्वीरें..
सलिल चचा जो बीच में गायब हो गए थे…संभवतः वो उन पुरानी यादों के गलियों में चले गए होंगे या चाची के हाथों की चाय पी रहे होंगे..उन्होंने वापस आते ही एक और यादों का एटम बम छोड़ा..
“हमारे पुराने घर में तीन बड़े कमरे थे. एक पूर्वारा, दूसरा पछियारा और तीसरा बिचला घर! बिचला घर से आँगन और ओसारे पर जाने का रास्ता जाता था! बिचला घर की पूर्वारी दीवार पर एक बड़ी सी दीवार घड़ी थी जो अंग्रेजों के ज़माने में नीलामी में खरीदी थी दादा जी ने! 
मैंने एक पोस्ट लिखी थी अपने ब्लॉग पर, जिसमें स्व. हरी मेहता साहब का ज़िक्र किया था जो भारतीय विदेश सेवा में थे और मुझे (उनसे उम्र में आधे से भी कम) दोस्त मानते थे. उन्हें बंधन पसंद नहीं था. इसलिए ख़ास मौकों पर मजबूरी में टाई लगाते थे. जूते बिना फीते वाले, शर्ट बटन वाले बिना बनियान के.  उन्होंने कभी घड़ी नहीं बांधी जीवन में और कभी विवाह नहीं किया! बहुत सेंसिटिव नाटककार थे वो!”
मेरे कॉपीराईट के जिक्र को भी उन्होंने बाद में देखा होगा जिसपर उन्होंने कहा…
”  Abhishek बेटा! मैंने तो कभी कॉपीराइट में भरोसा ही नहीं किया. तुम तो जानते हो कितनी घड़ियाँ… आई मीन कितने शेर बिखेर दिए, कुछ सम्भाला नहीं. किसी को उसमें अपना अक्स दिख जाए या किसी को कोई पुरानी घड़ी याद आ जाए तो वो शेर उसके नाम, वो बात उसकी!”
चाचा की ये बातें एकदम सच है…मुझे अक्सर चचा ग़ालिब और चचा सलिल में एक कॉमन सी बात ये लगती है, दोनों ने अपनी कई नज्में कई ग़ज़लें यूहीं बर्बाद कर दी…लिख कर फेंक दिया या भूल गए. खैर, मैंने भी चचा के इस बात पर विवाह फिल्म का एक गाना गा दिया.. “मुझे हक है..” मतलब चचा की हर चीज़ों के लिए ये ऐप्लकबल है.
बातें तो यहाँ भी खत्म नहीं हुई, जैसा की मेरी आदत है, प्रियंका दीदी को भी बातों में शामिल कर लेता हूँ. तो उन्हें भी ये किस्सा बताया तो उसने भी अपनी एक छोटी सी याद शेयर की, अब वो शायद अनुराग चचा के फ्रेंड लिस्ट में नहीं है वरना वो बातें भी उधर का ही हिस्सा बनती, खैर मैं उसकी बातों को यहाँ का हिस्सा बना दे रहा हूँ…
“बिल्कुल नासमझ उम्र में तो माँ गुब्बारे वाले से रंग-बिरंगी घड़ी दिला के बहला लेती थी, और हम उसी को बड़ी शान से कलाई पर बाँधे जहाँ-तहाँ घूमा करते । किसी को देख कर सारी कोशिश अपनी घड़ी के गर्वयुक्त प्रदर्शन में लग जाती थी । कोई चुहल करने के इरादे से अगर टाइम पूछ लेता, तो भी हमारे गर्व में राई-रत्ती का भी फ़र्क नहीं पड़ता था ।  मैंने जितना जल्दी लिखना-पढ़ना सीखा था, उतनी जल्दी ही घड़ी में समय देखना भी सीख लिया था । शायद यही वजह है कि माँ ने मुझे पहनने के लिए असली घड़ी गुब्बारे वाली घड़ी की उम्र में ही दे दी थी । आज भी मुझे वो घड़ी बेहद अच्छी तरह याद है, काले पट्टे वाली, गोल्डन गोल डायल वाली…जिसमे मेरी पतली, नन्हीं कलाई के हिसाब से ढेर सारे छेद करवाए गए थे । कम्पनी से कोई लेना-देना था ही नहीं, क्यों कि कम्पनी या ब्रांड जैसी बातों की कोई अक़्ल भी नहीं थी तब…”
जब वो घड़ी मैं पहले दिन स्कूल पहन के गई तो अपने दोस्तों की जलन भरी नज़र को यह यक़ीन दिलाना मुश्किल हो रहा था कि वो असली है । रोब गाँठने के लिए टाइम भी बताया पर वहाँ किसको टाइम देखना आता ही था कि मेरी बात की सत्यता स्थापित होती । आखिरकार उसकी टिक टिक सुन कर और फिर यह जान कर कि वो मेरी मम्मी की घड़ी है, सबकी बोलती बन्द हुई ।
इन बातों का बुखार इतना तेज़ चढ़ा हुआ था कल कि मैंने बातों बातों में दोनों चचा से ये भी कह दिया था कि “चचा, सच में बड़े दिन बाद आज सन्डे मन गयी मेरी..” सन्डे? अरे बेवकूफ लड़के…कल शनिवार था..सन्डे नहीं…कुछ भी होश नहीं रहता तुम्हें जब पुरानी यादें याद करते हो..सन्डे आज है..आज!!
चलिए आज कह देता हूँ, कि सन्डे बन गयी मेरी…इस पोस्ट को लिख कर,
.
और सन्डे तो वैसे भी बनना ही था…आज एक और चचा का जन्मदिन जो है….मेरे और दोनों चाचा के भी चचा…ग़ालिब चचा का जन्मदिन…आपको जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो चचा..
ज़िन्दगी अपनी जो इस शक्ल से गुजरी “ग़ालिब”
हम भी क्या याद करेंगे कि खुदा रखते थे
Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. उड़ी बाबा…तो ये बात थी…�� मज़ा आ गया ये सब पढ़ के…सन्डे तो मेरा भी बन गया आज…।

  2. सिमटी हुई ये घड़ियाँ, फिर से न बिखर जाएँ…!!
    मुझे पता था कि वो सब तुम्ही समेट सकते हो! बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है तुमने उन बातों को!जीते रहो!
    कलाई पर बँधी घड़ी समय बता तो सकती है, लेकिन समय को बदल नहीं सकती!!

  3. घड़ी की बातें हमें भी बीती घड़ियों की याद दिला गयीं….
    मुझे पहली घड़ी आठवीं के बाद मिली थी…कम से कम 70 परसेंट मार्क्स लाने की शर्त थी पापा की….
    HMT की शॉप पर गए तो वहां बहुत कम घड़ियाँ थीं,मुझे golden चाहिए थी…शॉप में मेनेजर बंगाली थे..उन्होंने मेरा नाम पूछा…फिर एक सिल्वर गोल्डन कॉम्बिनेशन की घड़ी जबरन बेच मारी…घड़ी का मॉडल अनुराग था…
    he said ओनुराग ओनुलता…..you must take this 🙁
    जानते हो उसके बाद पूरी golden watch मुझे शादी के वक्त याने कोई दस साल बाद मिली,वो भी मेरी दोस्त ने तोहफ़े में दी….
    तुम्हारी ब्लॉग पोस्ट में चुम्बक होता है अभी…..खींचती है अपनी ओर…

    जियो प्यारे भाई…
    अनु

  4. HMT ANURAG LADIES MECHANICAL VERY RARE VINTAGE WATCH
    अभी देखा कि हमारी उस घड़ी पर किसी ऑनलाइन स्टोर के विचार ये हैं 🙂

  5. आखिर सगे भाई निकले न… हमें भी चमड़े के पट्टे वाली घड़ी पसन्द न ही. हम भी मैटल के पट्टे वाली घड़ी पहनते थे जो थोड़ा ढीली रहे. और लगभग पांच साल पहले, जब से हाथ में मोटा रक्षा सूत्र बांधने का शौक चर्राया, तब से घड़ी पहनना छूट गया 🙂

  6. जानते हो अभि, मुझे बी.एस.सी. फ़र्स्ट ईयर में असली वाली घड़ी मिली थी, काले पट्टे की गोल्डन डायल वाली "टाइम-स्टार" की घड़ी. आज भी मेरे पास सुरक्षित रखी है, यहां दिखाने का ऑप्शन नहीं है वरना दिखाती फ़टाक देना 🙂 खूब प्यारी पोस्ट है.

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