अपनी खिड़की से और ध्रुव गाथा : दो खूबसूरत किताब

दृढ संकल्प हटा सकता है गिरिवर को भी,
धारा रेत बना देती है पत्थर को भी.
पिछले महीने ही गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की दो किताबें डाक द्वारा प्राप्त हुईं.पहली किताब “ध्रुव गाथा” और दूसरी किताब “अपनी खिड़की से”.गिरिजा जी मेरी प्रिय ब्लॉगर में से हैं, उनकी कहानियां,कवितायें और संस्मरण उनके ब्लॉग पर अक्सर पढ़ते रहता हूँ, और ये बताने की जरूरत नहीं की वो कितनी अनुभवी और सशक्त लेखिका हैं.जब से उनकी दोनों किताबों के बारे में जानकारी मिली तभी से दोनों किताब पढ़ने की ईच्छा थी.पिछले महीने उनकी किताबें प्राप्त हुईं, लेकिन वो कुछ समय तक शेल्फ पर युहीं पड़ी रही…एक दिन समय निकाल कर मैं उनकी दोनों किताबें पढ़ने बैठा..बड़ा ही अच्छा और मीठा सा अनुभव रहा दोनों किताबों का…दोनों ही किताबें बाल-मन को ध्यान में रखकर लिखी गयी हैं और शायद यही कारण है की किताबें स्वतः ही दिल को छू जाती हैं.
गिरिजा जी की पहली किताब है “अपनी खिड़की से” जो सत्रह बाल कहानियों का एक संकलन है.इनमे से कुछ कहानियां कुछ पत्रिकाओं(जैसे चकमक)में छप भी चुकी हैं, लेकिन कहानियों का ये उनका पहला संकलन है.सभी पंद्रह कहानियां बड़े आसानी से आपको अपने बचपन के दिन, बचपन के दोस्त और शरारतों की याद दिला जाते हैं.हर कहानियों का जो मर्म है, उसमे छुपा जो सन्देश है वो बच्चों के लिए तो जरूरी है ही, लेकिन साथ ही साथ बड़ों को भी बहुत कुछ सिखा जाता है.आजकल के भागदौड़ और तनावपूर्ण ज़िन्दगी में ऐसी कोमल और अच्छी कहानियाँ जो हमें हँसाती हैं भी हैं और गुदगुदाती भी, बहुत ही कम पढने को मिलती है.”अपनी खिड़की से”, “आँगन में नीम”, “कोयल बोली”, “सुराख़ वाला गुब्बारा” और “बादल कहाँ गया” जैसी मजेदार कहानियां बच्चों को अवश्य रोचक लगेंगी, और साथ ही साथ इन कहानियों में छुपा सन्देश बच्चों को बहुत कुछ सीखाएगा भी.
गिरिजा जी की दूसरी किताब है “ध्रुव गाथा”, जो की एक काव्य खंड है.यह काव्य खंड बालक ध्रुव के जीवन पर आधारित है.गिरिजा जी की दोनों किताबें बेहतरीन हैं, इसमें कोई संदेह नहीं..लेकिन मैं “ध्रुव-गाथा” से ज्यादा प्रभावित हुआ..शायद इसलिए की हम बचपन से ही हम बालक ध्रुव के किस्से सुनते आये हैं और कहीं न कहीं ध्रुव की कथाओं से प्रभावित या प्रेरित भी होते आ रहे हैं..ध्रुव के मन में उठते विचारों को, उनके भावों को और उनके मन के अन्दर उठते प्रश्नों को बहुत ही सरलता से गिरिजा जी ने काव्य का रूप दिया है…ध्रुव ही नहीं बल्कि किताब में हमारे संस्कृति का,प्रकृति का, और नारी का बेहद खूबसूरत चित्रण भी किया है..एक नज़र इसपर डालिय और देखिये हमारी संस्कृति का कितना सजीव चित्रण किया गया है काव्य के माध्यम से :

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जहाँ द्वेष प्रतिशोध, बैर चिंताएं विस्मृत
प्राणिमात्र का हित ही था ऋषियों का अभिमत
मानवता मुस्काती थी प्राची के रवि सी
छन्द प्रेम करुणा के रचती कोमल कवि सी.

वहीँ उन्होंने मन के अन्दर की ज्योति को जलाए रखने की बात भी बेहद सरलता से कही है :

वैभव आज दीप्त हो, कल तम घिर आएगा
तब अन्दर का दीपक ही पथ दिखलायेगा
अन्तर की मुस्कान नहीं धन से मिलती है
जीवन कलिका पीड़ा सहकर ही खिलती है

ध्रुव-गाथा में इस तरह की कितने ही प्रेरणादायक और सुन्दर बात गिरिजा जी ने काव्य के माध्यम से कही हैं. ध्रुव-गाथा किताब में ध्रुव का हर संवाद चाहे वो अपने पिता से हो, या माँ से या भगवान् की खोज में भटकते हुए रास्ते में मिले नारद मुनि से..हर संवाद पर मन मुग्ध हो जाता है..एक ये उदाहरण देखिये जब ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठे हुए हैं और अपने पिता से ये कह रहे हैं :

सुख-दुःख सहकर भी माँ मुझको खुश रखती है
पता नहीं किसकी, क्यों राह अभी तकती है
गोद आपके कितनी अच्छी, कितनी प्यारी
लेकिन माँ की बात निराली प्यारी-प्यारी
आप यहाँ हैं लीन सुखों में, वहाँ विपिन में
वनवासी ऋषि मुनियों के शुचि-आराधन में.

उधर अपनी अपनी सौतेली माता के व्यहार पर क्रोधित ध्रुव को उनकी माँ जो कहकर समझाती हैं, उस संवाद की सुन्दरता देखिये :

वैसे भी प्रतिशोध जलाता खुद को पहले
नफरत की आंधी उजाडती खुद को पहले

जब ध्रुव एक रात भगवान् की खोज में निकल पड़ते हैं और सफ़र के शुरुआत में जब उन्हें कुछ कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो उनके मन में जो ख्याल आता है उसे भी कितनी सुन्दरता से गिरिजा जी ने काव्य का रूप दिया है :

माँ कहती है कण कण में रहते हैं इश्वर
तो फिर रात, अँधेरे से मुझको कैसा डर
बाधाओं का ज्ञान न हो, साहस ही मन में
और अटल विश्वास, कहाँ फिर भय, कानन में
एक ही लक्ष्य हो, एक लगन हो कुछ पाने की
नहीं जरूरत होती उसे डगमगाने की

ध्रुव गाथा एक ऐसी किताब है, जिसका साहित्यिक स्तर बहुत ऊँचा है.इस तरह की किताबें आजकल पढ़ी ही नहीं जाती.यह किताब पुरानी शैली में लिखी गयी है और यही इसकी खूबसूरती भी है…शायद इसलिए इस किताब को पढ़ते हुए मुझे दिनकर जी की रश्मि रथी बराबर याद आती रही.ध्रुव गाथा जैसी किताब पर कुछ भी लिखना या कहना मेरे बस की बात नहीं, फिर भी किताब पढ़कर जो कुछ दिल के अन्दर ख्याल आया उसे मैंने यहाँ लिख दिया है.इसमें लिखी बातों को किताब की समीक्षा समझने की भूल न करें..अगर आप इस किताब की विस्तृत और सटीक समीक्षा पढना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें.सच कहूँ तो जो भी बातें मैं किताब के बारे में सोच सकता था या जो कुछ भी पढने के बाद मैंने अनुभव किया वो सब बातें सलिल चचा ने पहले ही अपने ब्लॉग में लिख दी हैं, और शायद इससे बेहतर कोई दूसरी समीक्षा नहीं हो सकती.

“अपनी खिड़की से” और “ध्रुव गाथा” दोनों ही ग्वालियर किताबघर और रेलवे-स्टेशन पर उपलब्ध है.”अपनी खिड़की से” किताब आप चाहे तो इस लिंक से भी खरीद सकते हैं या फिर सीधे प्रकाशक को संपर्क करें.

अपनी खिड़की से 
प्रकाशक : प्रगतिशील प्रकाशन/16, अंसारी रोड,शान्तिमोहन हाउस/दरयागंज, नई दिल्ली
मूल्य : 150/-

ध्रुव गाथा
प्रकाशक : जे.एम.डी पब्लिकेशन/एल-51,न्यू महावीर नगर, नई दिल्ली.
फोन :09312978228
मूल्य : 150/-

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. आपकी समीक्षा ने पढ़ने की ललक बढ़ा दी है। सर्वजन का भला सदा ही मानवता को प्रथम कार्य रहा है।

  2. गिरिजा जी को उनके ब्लॉग पर पढ़ा है पर ये दोनों किताबें नहीं पढ़ीं. अब पढ़ने का मन है.

  3. इस लाजवाब समीक्षा ने पढ़ने की जिज्ञासा बाधा दि है …

  4. किताबों का पढ़ना छूट रहा है। इन्हें पढ़ने का मन है..देखें, कब संभव हो पाता है!

  5. अभिषेक ,आपको किताबें भेजना सार्थक रहा ।मैं तो इन पुस्तकों को अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास नही कर पाई हूँ पर भाई सलिल जी और आपके द्वारा जो कुछ इन किताबों के विषय में लिखा है वह मुझे आश्वस्त करता है । यदि यह सच है कि पठनीय सामग्री कम मिलती है तो यह उससे भी बडा सच है कि इतने ध्यान-मनन के साथ कम ही लोग पढते हैं । और बेशक यह रचनाकार की एक उपलब्धि है ।

  6. बहुत उम्दा समीक्षा ….. पढने का मन तो बन ही रहा है



  7. ♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
    ♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
    ♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥



    बहुत बहुत बधाई अभिषेक जी आपको
    और
    आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी को !

    एक कवि होने के कारण समीक्षा पढ़ने के बाद ध्रुव गाथा पढ़ने की इच्छा हो रही है …
    जितने काव्य अंश यहां प्रस्तुत हुए हैं , उनसे इस खंड काव्य की भव्यता का परिचय मिलता है …

    नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
    राजेन्द्र स्वर्णकार
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  8. आपके ब्लाग पर आना सुखद अनुभव रहा, आप बड़े इन्नोसेंट लेखक हैं टैडी वाले पोस्ट से इसकी पुष्टि होती है।

  9. गिरिजा जी के ब्लॉग पर कुछ पोस्टें पढ़ी हैं। उनकी किताबों की समीक्षायें पढ़कर और पढ़ने का मन हो आया। अच्छा लिखा किताबों के बारे में। चाचाजी तो लिखते ही रहते हैं लेकिन भतीजे के लिखने की बात ही कुछ और है। बहुत खूब!

  10. जब समीक्षा इतनी अच्छी है तो किताब कितनी अच्छी होगी, कहने की ज़रुरत नहीं…|
    इस क्षेत्र में भी हाथ आजमाओ…:)

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