डोसा खाने का भी एक अलग अनुभव – न्यू नार्मल के तहत

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nikky and me

वैसे तो मार्च के बाद बाहर निकलना लोगों का बंद ही हो गया है. सब की तरह हम भी घर में बंद थे. अभी कुछ दिन पहले दिल्ली आना हुआ तो यहाँ दो तीन दिन काम के सिलसिले में बाहर निकलना पड़ा था. एक दिन कनौट प्लेस भी जाना हुआ. निक्की का अचानक से मन कर गया कि कहीं बाहर कुछ खाया जाए. 

अंतिम बार हम फरवरी में बाहर खाए थे और बाहर कुछ खाने की तलब भी ज्यादा थी. सब सोच विचार कर के कनौट प्लेस के सर्वाना भवन में डोसा खाने का प्लान बना. मन में तो थोड़ी हिचक थी कि जाने बाहर खाना कैसा होगा. 

बड़े गौर से रेस्टुरेंट पर एक नज़र दौड़ाई और सबसे सुरक्षित जगह जो साफ़ भी थी उसे चुना हमने. रेस्टुरेंट वालों ने अच्छा व्यवस्था कर रखा था. टेबल कुर्सियों को अच्छे से सैनीटाइज भी किया जा रहा था और होटल के कर्मचारी भी अच्छे से प्रोटोकॉल तहत काम कर रहे थे. 

nikky and dosa

कुछ देर का इंतजार कर के जब डोसा आया, तब भी मन में कुछ शंकाएं थीं. जाहिर है कि पहले जैसे कम्फ़र्टेबल तो हम नहीं थे फिर भी डोसा खाना शुरू किया. पहला निवाला जब ले लिया, फिर तो इंतजार नहीं हुआ और झटपट हमनें अपना लंच खत्म कर लिया.  

अच्छा सा अनुभव था, कुछ अलग सा अनुभव था इस काल में डोसा खाना. हमें रेस्टुरेंट में एक चीज़ से काफी आश्चर्य हुआ, कि काफी बुजुर्ग लोग भी आराम से बाहर खा पी रहे हैं और हमसे कहीं ज्यादा कम्फ़र्टेबल तरीके से. अब यह कितना सही है कितना गलत ये तो नहीं कह सकते लेकिन मेरे ख्याल से अभी भी सबको सावधानी की जरूरत है. 

हमनें तो एक बार खा लिया रेसुतुरेंट में, लेकिन उसके बाद बाहर खाने की ईच्छा फिर नहीं हुई. हुई भी एक दो बार तो हमनें उसे दबा दिया. 

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