वो बचपन से ही डरता था। बेवजह ही एक डर उसके अंदर समाई हुई थी। लेकिन वो अपने इस डर के बारे में किसी से कुछ नहीं कहता। स्कूल जाने में, नए दोस्त बनाने में, किसी नई जगह जाने में, सफर पर जाने में वो बेवजह ही डरता रहता। उसे सबसे ज्यादा डर लगता था अंधेरे से और सुनसान रास्तों से। स्कूल में एक दफा जब उसने अपने दोस्तों से अपने डर के बारे में कहा तो सब ने उसका मजाक बना दिया और उसे अपने ग्रुप से डरपोक कह कर अलग कर दिया। घर में जब वो एक बार कहना चाहा कि उसे अंधेरे से किस कदर डर लगता है तो सबने उसकी बातों को हल्की बात समझ टाल दिया। बचपन में राह चलते जब कोई तेज रफ्तार की गाड़ी अचानक पास से गुजर जाती तो वो बेहद डर जाता लेकिन फिर भी अपने साथ चल रहे किसी भी बड़े का हाथ नहीं पकड़ता या उनसे चिपकता नहीं, उसे डर था कि उसके साथ चल रहे बड़े उसका कहीं मजाक न बना दें।
जैसे जैसे वो बड़ा हुआ उसका डर कम होता गया, लेकिन खत्म नहीं हुआ। बड़े होने के बाद उसका डर की वजह बदल गई, लेकिन डरता वो अब भी है। बड़े होने पर सबसे पहला डर जो उसका खत्म हुआ वो था अंधेरे से। अंधेरे में अब वो डरता नहीं, बल्कि कंफर्टेबल महसूस करता है। लेकिन अंधेरी सुनसान सड़कों पर चलना आज भी उसे अच्छा नहीं लगता। सुनसान सड़कों पर उसे हमेशा लगता है कि उसके ठीक पीछे कोई प्रेतात्मा चल रही है जो किसी भी वक्त उसपर हमला कर सकती है। जब वो लड़का पढ़ाई के लिए कॉलेज गया तो एक दिन बातों बातों में उसने अपने दोस्तों को ये बता दिया कि वो भूत-प्रेत के विषय से थोड़ा डरता है। उसके सहपाठी उसकी मदद करने और उसके डर को मिटाने के बजाय उसे डराने के नए नए नुस्खे खोजने और उसपर आजमाने भी लगते। वो ये समझ ही नहीं पाता कि आखिर उसके दोस्त ऐसा क्यों कर रहे हैं। उसने बहुत कोशिश की अपने दोस्तों को ये समझाने की, कि वो उसे ना डराएं, उसे सच में डर लगता है। लेकिन उसके दोस्त उसकी किसी बात पर ध्यान नहीं देते। लड़का समझ गया था कि अब इस डर को उसे खुद ही मिटाना होगा, वरना उसके दोस्त ऐसे ही उसे परेशान करते रहेंगे।
लड़का बहुत हद तक अपने डर पर काबू पाने में कामयाब भी हो गया था लेकिन एक दिन के वाकये ने उसे फिर से बेहद डरा दिया। छुट्टियों में वो अपने गांव रहने आया था। गर्मियों के दिन थे और एक रात वो अपने घर के आंगन में सो रहा था। अचानक किसी आवाज़ से उसकी आंख खुली। वो खटिये पर लेटा हुआ था कि उसे आंगन के दूसरे कोने पर, कुएं के पास कुछ हलचल सी महसूस हुई। उसने जब उधर देखा तो उसे लगा कि वहां कोई अजीब सा शक्ल का आदमी बैठा हुआ है जो उसे पुकार रहा है। उसने पहले से सुन रखा था कुएं की कहानियों के बारे में और कुएं के पास जो दीवार गिर गई थी उसके अफवाहों के बारे में…वो घर में अकेला था और वो इतना डर गया कि आंगन से भागते हुए घर के बाहर आ गया। गांव में उसके घर के ठीक बगल में उसके चाचा रहते थे, जो कि अक्सर दरवाजे पर ही खाट डाल के सोते थे। वो चुपचाप उनके बगल में जाकर बैठ गया और पूरी रात वहीं बैठा रहा। उसने ये भी जानने की कोशिश नहीं की, कि आंगन में उसने सच में किसी को देखा था या सिर्फ उसका वहम था, उसके उन डरावने सपनों का असर जो वो उन दिनों अक्सर देखा करता था।
लड़का उस रात की बात को आजतक भूल नहीं पाया। जब वो नौकरी करने किसी दूसरे शहर में गया तो एक रात फिर वैसा ही वाकया हुआ। लड़का अपने घर में सोया हुआ था कि अचानक उसे लगा किसी ने दरवाजे खटखटाया है। वो नींद में ही दरवाजे के पास आया, दरवाजे खोला लेकिन बाहर कोई भी नहीं था। जैसे ही वो दरवाजा बंद कर के अपने बिस्तर पर जाने वाला था कि उसे लगा किसी ने उसे आवाज़ दी है…वो डर सा गया, पीछे मुड़ा तो कोई नहीं था…दरवाजा बंद था…उसने हिम्मत कर के दरवाजे को फिर से खोला, लेकिन कोई भी नहीं था…वो वापस अपने बिस्तर पर आ गया, और जैसे ही समय देखने के लिए उसने अपना मोबाइल उठाया तो उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई…सुबह के 3.28 हो रहे थे…उसे एकाएक याद आया कि उस रात भी जब वो अपने गांव में था, तो ठीक इसी समय उसकी नींद खुली थी।
उसे फिर नींद नहीं आई। उसके घर में उसके अलावा और कोई नहीं था, आसपास भी कोई दोस्त नहीं..घर में रहने के सिवा उसके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। एक डेढ़ घंटे बाद जब सुबह हुई तो उसे कुछ राहत मिली। वो अपने काम पर निकल गया, और दिन भर काम की व्यस्तता में वो लगभग ये बात भूल चुका था…लेकिन अगले रात फिर से उसे लगा कि किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया है। वो फिर उठा और फिर से उसने दरवाजा खोला…कोई नहीं था…वक्त देखा तो सुबह के 3.30 हो रहे थे…वो अब बेहद डर गया था…सुबह होते ही वो अपने एक दोस्त के घर चला गया…और उससे गुजारिश की वो कुछ दिन उसके साथ आकर रहे..कारण उसने अपने दोस्त को नहीं बताया। अगले दिन उसका दोस्त उसके साथ रहने आ गया..लेकिन अगले दिन फिर से उसकी नींद ठीक उसी वक्त पर खुल गई। इस बार ना तो उसे कोई आहट सुनाई दी, ना किसी की आवाज़ या ना दरवाजे की खटखटाहट…फिर भी वो बेहद डर गया था…लेकिन उसे तसल्ली थी कि उसके साथ उसका दोस्त है।
कुछ दिनों बाद उसका दोस्त वापस चला गया, और वो फिर से डरने लगा..हर सुबह ठीक 3.28 से लेकर 3.38 के बीच या तो किसी आहट से या ऐसे भी उसकी नींद टूट जाया करती थी। वो रात के किसी भी वक्त भी क्यों न सोए, लेकिन 3.28 से 3.38 के बीच उसकी नींद का टूटना फिक्स्ड था। उसने अब अपने डर को भगाने के कुछ उपाय सोच रखे थे..पहला तो ये कि उसने अपना घर बदल लिया..लेकिन इससे भी कोई खास फर्क पड़ा नहीं…उसकी नींद नए घर में भी ठीक उसी वक्त पर टूट जाया करती थी। दूसरा ये कि उसने हर संभव कोशिश की इस विषय के बारे में ना सोचे..उसे आश्चर्य तब होता, जब वो त्योहारों में अपने घर जाता (या अपने उस शहर से बाहर जहां वो नौकरी कर रहा था) तो उसकी नींद कभी भी नहीं टूटती थी..और वो पूरे रात इत्मीनान से सोता था…
फिर धीरे धीरे वक्त बीतते गया, और समय के साथ साथ 3.28 से 3.38 के बीच उसकी नींद टूटने की आदत कम होती गई…पहले जो वो लगभग हर रात जागा करता था, अब वो बात नहीं रही…अब वो इत्मीनान से सोता है। आज भी कभी कभी उसकी नींद ठीक उसी वक्त टूट जाती है,..लेकिन अब वो इस बात को लेकर बहुत कंफर्टेबल हो गया है…अब वो डरता नहीं..लेकिन चौंक जरूर जाता है..अब जब कभी उसकी नींद टूटती है तो मोबाइल पर समय देखता है, अगर 3.28 से 3.38 के बीच का कुछ समय होता है, तो वो डरता नहीं बल्कि कानों में आइपॉड लगा कर सो जाता है। ऐसा लेकिन अब कम ही होता है कि उसकी नींद सुबह के उस वक्त टूटे। लड़के को अपनी बहुत सी आदतें बड़ी विचित्र और रहस्यमयी सी लगती हैं जिनमें से एक ये भी है…सुबह के साढ़े तीन बजे उसकी नींद का टूटना!
Hota hai….aisabhee hota hai.
wo ladka kahi aap to nahi??
जीवन मे कुछ बातें या यह कहो कुछ अनुभव कब आदत बन जाये पता नहीं चलता !
कुछ न कुछ ऐसा सभी के साथ होता है…..
आदतें तो आदतें है…समय कहा देखती है…और समय देखने की आदत… उम्दा
achi kahani hai 🙂
कई बातें ऐसी होती जिसे मन से निकाल देने पर भी वे अवचेतन मन में सुरक्षित हो जाता है जो बार-बार आकर आदत में शामिल हो जाता है ..यदि वो प्यारा है तो कोई बात नही यदि बुरा हो तो उस पर समय रहते अंकुश लगाने का प्रयत्न करना चाहिए.. चलो अब लड़का अपने डर को जीत तो रहा है..
ब्रम्हमुहूर्त में नींद टूटना तो शुभसंकेत है, उठकर कुछ लिखने बैठ जाना चाहिये..
लड़के ने वैसे सुन रखा था की ब्रम्हमुहूर्त में कुछ भी अनिष्ट नहीं होता और लड़के को ये पता था की ब्रम्हमुहूर्त सुबह चार बजे से होता है…तो लड़के को बस बीस-तीस मिनट ही काटने होते थे 😉 😉
तुम्हारी ये लड़का – लड़की वाली कहानिया बहुत प्यारी हैं..और कुछ लिखो फिर एक उपन्यास बन जायेगा :)"वो लड़का और एक लड़की :):).
"वो लड़का और एक लड़की"…..अच्छा शीर्षक है उपन्यास का 😉
अच्छी कहानी है। मगर एंड में मज़ा नहीं आया 🙂 कोई तो कारण भी बताना था डर का आखिर हर बात के पीछे कोई न कोई वजह तो ज़रूर होती है।
अरे मैं तो पहले लाईन में ही लिख दिया था की लड़का बेवजह डरता है.. 🙂 🙂
ऐसा ही एक भय मेरे साथ चल रहा है …बेवजह नहीं कह सकती
बहुत ही सच्चा व आत्मीय सा अनुभव । बचपन कभी-कभी बडे अजीब से सन्नाटे से गुजरता है और उसकी छाप जीवन भर के लिये अमिट हो जाती है । सहज लेखन में निष्कर्ष निकाला नही जाता वह खुद ब खुद निकलता है । आप छोटी से छोटी बात को बडी बारीकी से देखते व लिखते हैं । पढ कर लगता है कि कुछ पढा ।
डर तो सबके अंदर कोई ना कोई होता है..और उस पर काबू भी उन्हें खुद ही पाना होता है.
एक पचास के करीब शख्स ने अपना डर बाँटा था कि परिवार में ..दोस्तों में ऑफिस में किसी को आजतक नहीं बताया है कि उन्हें बादल के गरजने से बहुत डर लगता है..अब भी..:):)
एक समय नींद टूटने की वजह ये भी हो सकती है कि नींद का चक्र पूरा हो जाता है…उतने घंटे की नींद पूरी हो जाने पर नींद उसी वक़्त टूटती है…और मन का डर किसी की आकृति भी दिखा देता…..किसी की आहट भी सुना देता.
पर अच्छी बात है कि वो लड़का अब उस से उबर गया है.
ये तो मिस्टीरियस पोस्ट हो गयी… 🙂
उस लड़के से मिलो कभी कहीं तो पूछना…अब तो नहीं जागता न…???
एक बार फिर…काबिले-तारीफ़ पोस्ट…:)