क्या पता कब कहाँ मारेगी
बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी
गुलज़ार की कुछ ग़ज़लें कुछ नगमें,उनकी कायनाती आवाज़ में उनके कुछ नज़्म, कुछ त्रिवेनियाँ पेश हैं…
रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था –
चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर
सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना
सुबह का अखबार हाथ में लिए, बैठे हैं हम …गुलज़ार साहब फरमाते हैं ..
भीगा-भीगा सा क्यों है अख़बार
अपने हॉकर को कल से चेंज करो
“पांच सौ गाँव बह गए इस साल”
जैसा की अपने मित्र पंकज उपाध्याय के ब्लॉग पे पढ़ा था एक बार…”गुलज़ार को चाहने वाले कहते हैं कि गुलज़ारियत एक धर्म है।”
तो मैंने भी सोचा की क्यों न कुछ बात गुलज़ार साहब की ही की जाए, पोस्ट के जरिये आपसे…
गुलज़ार साहब कहते हैं – त्रिवेणी बह निकली –
शुरू शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी – त्रिवेणी नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है – सरस्वती जो गुप्त है नज़र नहीं आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है ।
आओ हम सब पहन ले आईने,
सारे देखेगे अपना ही चेहरा।
सबको सारे हसी लगेगे यहा॥
गुलज़ार साहब और पंचम दा की दोस्ती बहुत मशहूर थी…पंचम दा के गुजर जाने की तकलीफ बहुत हुई थी गुलज़ार साहब को..उनको याद करते हुए कहते हैं गुलज़ार –
याद है बारिशों का दिन, पंचम
याद है जब पहाड़ी के नीचे वादी में
धुंध से झांककर निकलती हुई
रेल की पटरियां गुज़रती थीं
धुंध में ऐसे लग रहे थे हम
जैसे दो पौधे पास बैठे हों
हम बहुत देर तक वहां बैठे
उस मुसाफिर का जिक्र करते रहे
जिसको आना था पिछली शब, लेकिन
उसकी आमद का वक्त टलता रहा
देर तक पटरियों पर बैठे हुए
रेल का इंतज़ार करते रहे
रेल आई ना उसका वक्त हुआ
और तुम, यूं ही दो क़दम चलकर
धुंध पर पांव रखके चल भी दिए
मैं अकेला हूं धुंध में ‘पंचम’ ।।
एक और नज़्म सुनिए गुलज़ार साहब की ही कायनाती आवाज़ में..
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़त्म हुआ
फिर से बांध के और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिरह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो इक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिरहें
साफ़ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
गुलज़ार साहब की एक और नज़्म इस विडियो में देखिये, मुझे ये काफी पसंद है….
आज तो दिन गुलजार कर दिया आपने 🙂 बहुत बहुत शुक्रिया.
Wah! Maza aa gaya! Gulzaar mere pasandeeda shayaron me se ek hain!
waaah bahut achhi lagi sab ki sab..
last vala video iz awsum 🙂 bahut achha hai 🙂 🙂 !!
बारिश मे भिगो गये दोस्त.. पन्चम वाला गाना मेल कर दो तो बस मजा आ जाय..
अभि बचवा..आज त अभिभूत कर दिए… गुरुदेव से मिलवाकर… आज हम कुछ नहीं कहेंगे…सब कुछ हम दिल में बैठा कर रखे हैं… आज तुमरे दुआरे भी उन्हीं का दर्सन हो गया!!
वाह अभिषेक जी ! दिल एकदम गुलज़ार हो गया !! और हाँ हो सके तो वो गाना मुझे भी भेज दें मेरे ई-मेल पे
शुक्रिया !!
रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था –
चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर
सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना
awesome..aur gulzar sir k aawaz mein to jaadu hai hin….aasmani rang vala gaana maine khub suna hai..
हम तो गुलज़ार के फैन शुरू से हैं अभिषेक..आज उनकी ग़ज़लें सुन के दिल खुश हो गया.बहुत शुक्रिया 🙂 🙂
शुक्रिया..!
गुलज़ार साहब के नाम पर हमारा ठिठकना बनता भी है..
शुक्रिया जी… इतना काफी तो नहीं… पर और क्या कहूं…
बहुत शुक्रिया.
sahi me ye post gulzarish hai.. nice!
गुलज़ार साब की महफ़िल में इतनी देर से पहुँचे पर वो कहते हैं ना की देर आये दुरुस्त आये… और ख़ुश हैं की आये तो सही… अच्छा लगता है गुलज़ार साब को चाहने वालों से मिलना 🙂 … पंकज ने सही कहा है गुल्ज़ारियत वाकई एक धर्म है… और ये बात हम जैसे लोग ही समझ सकते हैं जो उस धर्म का पूरी शिद्दत से पालन करते हैं… अच्छा कलेक्शन करा आपने उनकी त्रिवेनियों और नज़्मों का… बारिशों के इस मौसम में गुलज़ार साब की आवाज़ की बारिश… मज़ा आ गया सच्ची… लीजिये अपने कलेक्शन से कुछ और ऐड कर देते हैं यहाँ –
बारिश आती है तो पानी को भी लग जाते हैं पांव ,
दरो -दीवार से टकरा कर गुजरता है गली से
और उछलता है छपाकों में ,
किसी मैच में जीते हुए लड़को की तरह !
जीत कर आते हैं जब मैच गली के लड़के
जूते पहने हुए कैनवस के ,
उछलते हुए गेंदों की तरह ,
दरो -दीवार से टकरा के गुजरते हैं
वो पानी के छपाकों की तरह !
— गुलज़ार
@ऋचा जी,
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ये नज़्म हमें पढवाने के लिए 🙂