गाने के बनने की कहानी, गुलज़ार साहब की ज़ुबानी

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पिछले साल एक किताब पढ़ी थी.100 Lyrics : Gulzar.इस किताब में गुलज़ार साहब के चुने हुए १०० बेहतरीन गानों का संकलन है, और साथ में ही कुछ कुछ गानों के बारे में गुलज़ार साहब ने कुछ कहा भी है, की वो कैसे बने.कुछ महीनो पहले जब एक मित्र का बैंगलोर आना हुआ तब उसके पास ये किताब थी.मैंने उसी वक्त किताब के कुछ पन्नों को ड्राफ्ट में सेव कर लिया था.आज प्रस्तुत कर रहा हूँ.

गुलज़ार साहब – 

मुसाफिर हूँ यारों 

पंचम के साथ ये पहला गाना था मेरा.राजकमल स्टूडियो में किसी पिक्चर का बैक ग्राउंड म्यूजिक चल रहा था.स्टूडियो जाते हुए उसने मुझे घर से साथ ले लिया.सिचुएअसन मैं पहले ही उसे बता चूका था.गाड़ी में जाते जाते उसने कहा- “मुझे अभी तक कुछ सूझ नहीं रहा.कोई मुखडा दे, मैं उस पर धुन बना लूँगा.दो चार उड़ते उड़ते मुखड़े ख्याल आये.स्टूडियो पहुँचने पर मैंने ये लाईने उसे लिखवा दी.

मुसाफिर हूँ यारो, न घर न ठिकाना
मुझे बस चलते जाना है बस चलते जाना

लाईन नोट कर के उसने मेरा पैकअप कर दिया – “तू जा.मुझे अभी काम है.” ये उसका रवैया हमेशा रहता था.उसी रात करीब बारह बजे मेरे घर पे दस्तक हुई और उसने मुझे जगा के पूछा:क्या सो रहा था? चल नीचे गाड़ी में.नीचे गाड़ी में, उसने कैसेट लगाया और धुन सुनाई.वाकई कमाल की तर्ज थी.बम्बई के सड़कों पे वो गाड़ी चलता रहा और मुखड़ा गाता रहा.धीरे धीरे धुन आगे बढ़ने लगी.मैं आगे की लाईने बनाता गया और वो गाता गया.बम्बई की सड़कों पर मुसाफिर की तरह घूमते घूमते सुबह चार बजे तक हमने गाना पूरा कर लिया….

ये साये हैं, ये दुनिया है

ये गाना एक फिल्म ऐक्ट्रेस का गाना है.फिल्म में वो एक्ट्रेस है और दिन रात की रोशनियों तले थक गयी है.सब कुछ माँगा माँगा उधार लिया लगता है.यहाँ तक जिंदगी भी उधार की लगने लगी है.ये लिखते हुए मीना जी बहुत याद आईं.वो अक्सर एक शेर सुनाया करती थी –

एक धड़का सा लगा रहता है खो जाने का डर
जीस्त हमसाये से माँगा हुआ जेवर तो नहीं

शायर का नाम न उन्होंने बताया..न मुझे मिला.

सिली सिली हवा छू गयी

‘लिबास’ एक अलग तरह की पोषक थी.थियेटर बैकग्राउंड पे एक कहानी थी.’चाबी’ के नाम से मेरे पहले मजमुए में छपी थी.थियेटर के कैरेक्टर्स में एक अजीब तरह की फुर्ती होती है.उसके मुड भी लिबास की तरह बदलते रहते हैं.लिबास की ही तरह दिन पहनते हैं और उतार देते हैं.कुछ ऐसी ही कैफिअत इस गाने में है.

ऐ अजनबी

रहमान बिलकुल एक बोनस की तरह मिला है.
पंचम और उसके बाद विशाल के साथ करते हुए एक तहलीज बन गयी थी मेरे काम की और शायरी की.उसमे बड़ा कम्फर्टबल लग रहा था की ‘दिल से’ की आवाज़ आई.उससे पहले एक गाना रहमान के साथ शिवेंद्र डूंगरुपुर के लिए लिख चूका था.लेकिन वो फिल्म बंद हो गयी थी.’दिल से’ में एक नए अंदाज़ में लिखने का मौका मिला.मणि रत्नम और रहमान की सूफियाना पसंद की वजह भी उसमे शामिल थी,उसके अलावा रहमान के कम्पोजिसन में गाने की एक नयी फॉर्म नज़र आई.उसमे रिवायती मुखड़ा भी नहीं था, और वो तरतीब की मुखड़ा, मुखड़े के बाद अंतरा और अंतरे के बाद एक कोरस लाईन, और फिर मुखड़ा.ये तरतीब कहीं नहीं थी.रहमान ने गाने को एक आज़ाद कि नज़्म कि शक्ल दी.मेरे लिए दहलीज के बाहर कदम रखने का मौका मिला.

ना ले के जाओ 

मैंने मौत पे बहुत सी कवितायें लिखी हैं.मौत ऐसी चीज़ है जिसका अनुभव आप अपने जिंदगी में नहीं कर सकते.मैंने इसे दूसरे लोगों के माध्यम से समझने/अनुभव करने की कोशिश की है.फिल्म आनंद के लिए भी एक कविता लिखी थी मैंने.

“मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझ को.”

लेकिन ये गाना मेरे पसंदीदा गीतों में से है.इसे मैंने तब लिखा था जब मेरे एक दोस्त की मृत्यु हुई थी.

ये भी पढ़ें – गाने के बनने की कहानी, गुलज़ार साहब की ज़ुबानी – दूसरा भाग

बीते न बिताई रैना 

ये गाना मेरे लिए बहुत खास है.ये मेरी दूसरी फिल्म थी और पंचम के साथ पहली.जब मैंने गाना पूरा कर के जीतेंद्र(चूंकि वह इस फिल्म के प्रड्यूसर भी थे) को सुनाया, तब वो इस गाने से ज्यादा पप्रभावित नज़र नहीं आये.उनके दिल में कुछ शंका हो रही थी गाने को लेकर.लंच ब्रेक में वो अमिताभ बच्चन के पास गए, और उन्हें ये गाना सुनाया.शायद उस समय अमिताभ कुछ बुरे दौर से गुजर रहे थे.वो इस गाने को सुनते सुनते काफी भावुक हो गए और उनके आँखों में आँसू आ गए.तब जा कर जीतेंद्र निश्चिंत हुए गाने को लेकर और मुस्कराहट वापस आई उनके चेहरे पे.लता जी को इस गाने के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला था.

मेरा कुछ सामान 

इस गाने से जुडी बात तो अब तक बहुत लोकप्रिय हो चूकी है, शायद गाने से भी ज्यादा.जब मैंने यह गाना पंचम को सुनाया तो उसने सोचा की ये कोई सीन है, और उसने पोएटिक डाइअलॉग समझ तारीफ़ भी की.मैंने कहा – “ये कोई सीन नहीं, ये गाना है.”
उसने गुस्से में कहा – “यार तुम किसी दिन टाइम्स ऑफ इण्डिया का कोई कोलम लाकर दोगे और कहोगे इसकी भी धुन बना दो..हद होती है कोई बात की”.ये कहते हुए उसने वही कागज़ मेरे तरफ सरका दिया.
आशा जी मुस्कुराने लगी.वो भी वहां मौजूद थी.कुछ देर बाद आशा जी धीमे स्वर में कुछ गुनगुनाने लगी.काफी खूबसूरत धुन थी वो.जब पंचम ने पूछा की क्या गुनगुना रही हो?तब आशा जी ने गाने के अंतिम फ्रेज सुनाये – मुझे लौटा दो..पंचम ने उस कागज को फिर से उठाया और कुछ एक दो नोट्स जोड़ के लाईन पूरी की – “मेरा वो सामान मुझे लौटा दो”. 
वो इस गाने की धुन बनाने में डूब गया और उसी दिन, उसी सिटिंग में हमने इस गाने को पूरा किया.

कजरारे कजरारे 

कभी कभी,सुबह सुबह बाथरूम में गुनगुनाई हुई लाईन पुरे दिन के लिए गले में अटक जाती है.म्यूजिक डाइरेक्टर शंकर महादेवन के साथ ऐसा ही कुछ हुआ.धुन बनाते बनाते ये कच्ची पक्की लाईन उसके गले में अटक गयी – “कजरारे कजरारे नैनो वाले…”.उसके बाद ये डाइरेक्टर शाद के गले में फंस गयी.जब तक मुझ तक आई तो लाईन ऐसे पक चूकी थी, दोनों पीछे पड़ गए – “कुछ भी लिखिए, ये लाईन न बदलिए”.

हालांकि कच्चे पक्के मीटर गाते हुए अजीब लाईन गा जाता है शंकर.’टूटे न,मेरी टूटे न अंगराई’ के जगह उसने गाया था ‘चल तू चल, मैं जूता पहन के आई’.मैं उससे कुछ पहले ही विशाल के साथ एक गाने में लिख चूका था “ओ कजरारे नैनो वाले”.दलेर मेहँदी ने गया था.मेरी ये सफाई कोई काम न आई और वो लाईन यही रही.

सिचुएसन एक ढाबे की जहाँ ट्रकों के पीछे ऐसे शेर लिखे रहते हैं -‘जालिम नज़र हटाले….नज़र मिले जो चौक पर‘.वैगरह..और एक स्ट्रीट सिंगर गाने वाली थी.बाद में सिचुएसन में तब्दीली आई और गेस्ट आर्टिस्ट शामिल हुई ऐश्वर्य राय.बाकी तवारीख है.ये गाना शादियों में बैंड बजने वालों के लिए नेशनल अन्थम बन चूका है.शंकर,शाद ये माने न माने..ये गाना सौ-फीसदी ऐश्वर्या के वजह से हिट हुआ है.

और चलते चलते गुलज़ार साहब की एक नज़्म –

लम्हों पर बैठी नज्मों को 
तितली जाल में बंद कर लेना 
फिर काट के पर उन नज्मों की 
एल्बम में ‘पिन’ करते रहना 
ज़ुल्म नहीं तो और क्या है?
 
लम्हे कागज़ पर गिर के मिमियाये जाते हैं 
नज्मों के रंग रह जाते हैं पोरों पर. 
 
Meri Baatein
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  1. अभी कुछ दिन पहले की बात है…शाम को टीवी पर गुलज़ार साहब से मृणाल पांडे की गुफ्तगू प्रसारित हो रही थी (शायद पांचवीं बार).. आज की लगभग तमाम बातें उन्होंने उस दिन कहीं.. बहुत अच्छा लगा तुम्हारा यह प्रस्तुतीकरण.. इस किताब में सबसे मजेदार ज़िक्र मोरा गोरा रंग लई ले (गुलज़ार साब का पहला गाना) का है!! मज़ा आ गया!

  2. सारे के सारे मेरे मन के निकट के गाने हैं, इतनी सुन्दर जानकारी दे आपने मन जीत लिया।

  3. ऐसी पोस्टो पर क्या कहा जाए … एक ही शब्द … सब पर फिट बैठता है … चाहे गुलज़ार साहब हो … चाहे उनकी नज्में हो … चाहे पंचमदा हो … चाहें उनके गीत हो … चाहें तुम हो … चाहे तुम्हारी यह पोस्ट हो … और वो शब्द है …
    अफरीन … अफरीन !!

  4. क्या बात है……सुन्दर गाने और उनके बनने की कहानी…
    संग्रहनीय पोस्ट
    बस एक वाह!!!!

  5. आह आज तो शाम बना दी तुमने.
    बहुत बहुत शुक्रिया.

  6. @चचा जी,
    अरे हाँ, मुझे याद आया अब.मैं भूल गया उसका जिक्र करना.

  7. मेरे लिए एकदम नयी और रोचक जानकारी है……ये सारे गाने मुझे पसंद हैं

  8. गुलज़ार साहब की बातें और उनके गाने, वाह, आनंद ही आनंद।

  9. अच्छा तो आप भी गुलजार के चाहने वालों में से है, उनके गानों का जादू ही ऐसा है कि बचना नामुमकिन है

  10. जबरदस्त गाने … गुलज़ार साहब के … किस्से साथ हों तो गाना अपना सा लगता है …

  11. जाट देवता की राम-राम,
    इसी तरह लगे रहो, हम देखते रहेंगे।

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