मैं शायद काफी जल्दी में था और बेहद उत्साहित था। एक तो मैं हैदराबाद दो साल बाद जा रहा था और ऊपर से मेरा बेहद करीबी दोस्त जिससे मैं तीन साल बाद मिलने वाला था, वह मुझे स्टेशन रिसीव करने आने वाला था। मैंने ट्रेन की खिड़की से ही अपने दोस्त को देख लिया था, वह बाहर प्लेटफॉर्म पर खड़ा था। ट्रेन में काफी भीड़ थी और ट्रेन हैदराबाद स्टेशन पर पंद्रह-बीस मिनट रुकने भी वाली थी, लेकिन फिर भी उतरने वाले यात्री इतनी जल्दी में थे कि एक-दूसरे को धक्का देकर ट्रेन से निकलने की कोशिश करने लगें। मैं भी शायद उसी जल्दबाजी में ट्रेन से उतर गया। अपने दोस्त से मुलाकात की और फिर उसी प्लेटफॉर्म पर हम चाय पीने लगे। तभी एकाएक मुझे ख्याल आया कि अपनी बर्थ पर तकिये के नीचे मैंने अपनी एक डायरी और एक किताब रखी थी, जिसे मैं लेना भूल गया…मैं वापस ट्रेन की तरफ भागा, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, ट्रेन खुल चुकी थी और मैं वहीं प्लेटफॉर्म पर खड़ा ट्रेन को जाते हुए देखता रहा। हैदराबाद आने का मेरा सारा उत्साह एकदम ठंडा पड़ गया था और मैं हताश होकर वहीं प्लेटफॉर्म के एक बेंच पर बैठ गया। मेरा दोस्त यह समझ नहीं पा रहा था कि एक डायरी के पीछे छुट जाने से मैं इतना दुखी क्यों हो गया। उसे क्या पता था कि उस डायरी में मेरे कितने पुराने दिन और कितने सपने कैद थे…उस डायरी की अहमियत मेरे लिए क्या थी, यह सिर्फ मैं जानता था।
वो ब्लैक कलर की डायरी जिसे मैं ट्रेन के एक बर्थ पर छोड़ आया था, बाहर से देखने पर बिलकुल साधारण सी दिखती थी। दूसरे व्यक्ति के लिए यह अंदाजा लगाना भी मुश्किल था कि उस साधारण सी दिखने वाली डायरी के अंदर मैंने क्या-क्या खजाने छुपा कर रखे थे। पता नहीं क्यों उस डायरी की तुलना मैं हमेशा अपने उस मित्र से कर बैठता था, जो कि देखने पर दुनिया से निराश और हारा हुआ आदमी दिखाई देता था, लेकिन जिसके अंदर ज्ञान का सागर भरा हुआ था। उस काले रंग की डायरी को मैंने अपने जन्मदिन पर खरीदा था। उस साल जन्मदिन के दिन सुबह से ही मुझे घर की बहुत याद आ रही थी। मैं अकेला अपने कमरे में बैठा पुराने दिनों को याद कर रहा था…जब करीबी रिश्तेदार मेरे जन्मदिन पर मुझे तोहफे देते थे, और उन तोहफों में सबसे कॉमन तोहफा होता था ‘पेन-सेट’, जो अधिकतर लोग मेरे लिए लाते थे। मेरे दो-तीन दोस्त जो हर साल मेरे जन्मदिन पर मेरे घर आते थे, वह भी अक्सर मेरे लिए ‘पेन-सेट’ ही लेकर आते थे। मुझे उस अपने कमरे में बैठे-बैठे अपने जन्मदिन के ऐसे ही पुराने किस्से याद आ रहे थे। मुझे ख्याल आया कि बहुत से साल हो गए, मुझे किसी ने तोहफे में कलम नहीं दिया…कलम क्या, लगभग चार-पांच साल से तो मुझे जन्मदिन पर किसी से भी कोई तोहफा तक नहीं मिला। मैंने तय किया कि शाम को ही किसी अच्छे से बुकस्टोर में जाकर एक अच्छी कलम खुद को गिफ्ट करूंगा।
शाम को मैं अपने मनपसंद मॉल में चला गया, इस उम्मीद से कि वहां एक बड़ी सी बुकस्टोर है, जहां से अच्छे-अच्छे कलम मैं खरीद सकता हूं। मैंने एक अच्छा कलम खरीदी भी, जो थोड़ा महंगा भी था। कलम खरीदने के बाद मैं यूं ही उस स्टोर का चक्कर लगा रहा था कि तभी मेरी नज़र डायरी के स्टॉल की तरफ गई। मैंने देखा कि बड़े आकर्षक-आकर्षक डायरी वहां रखे हुए थे। यूं तो मुझे हर साल किसी न किसी से डायरी मिल ही जाया करती है, इसलिए कभी डायरी खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ी, लेकिन उस दिन डायरी के स्टॉल में तरह-तरह के डायरी को देखकर मुझे डायरी खरीदने की इच्छा होने लगी…लेकिन मुझे जो भी डायरी पसंद आ रही थी, सभी की कीमत ज्यादा थी। सभी डायरियों में एक पर्पल रंग की डायरी मुझे बड़ी अच्छी लग रही थी, जिसे बार-बार मैं अपने हाथ में उठा कर उसकी कीमत देखकर उसे वापस उसकी जगह पर रख देता था। मैंने फैसला कर लिया था कि यहां से अब निकल चलने में ही भलाई है, क्योंकि अगर बेवजह ही मैं अपने पसंद के हाथों मजबूर होकर कोई महंगी डायरी खरीद ली तो शाम में दोस्तों को पार्टी देने में पैसे थोड़े कम पड़ जाएंगे। मैं वहां से निकलने ही वाला था कि मेरी नज़र एक काले रंग की डायरी पर गई, जो कि पर्पल रंग की डायरी के स्टॉल में सबसे नीचे दबाकर रखी हुई थी (या शायद मॉल वालों ने जानबूझकर दबाकर नीचे रख दिया हो क्योंकि उसकी कीमत काफी कम थी)। सच कहूं तो उस समय मुझे वह ब्लैक वाली डायरी ज्यादा पसंद भी नहीं आई थी, लेकिन उसकी कीमत इतनी कम थी और डायरी खरीदने की मेरी इच्छा इतनी तीव्र थी कि मैंने उसे फौरन खरीद लिया।
वह डायरी बड़े दिनों तक मेरे पास यूं ही पड़ी रही, मेरे बाकी डायरी और नोटबुक के नीचे दबकर…फिर पहली जनवरी का दिन आया। मैं बाहर घूमने निकल रहा था। मैं अपने बैग में कुछ किताबें रख रहा था कि तभी ख्याल आया कि मेरी डायरी, जिसमें मैं अक्सर लिखता हूं, वह बिलकुल भर चुकी है और मेरे पास कोई दूसरी डायरी भी नहीं है। तभी मुझे उस ब्लैक कलर की डायरी का ख्याल आया, मैंने उसे ढूंढना शुरू किया। वह मुझे मेरे एक शेल्फ पर बाकी किताबें, मैग्जिन और नोटबुक के नीचे दबी हुई मिली, ठीक वैसे ही जैसे मॉल में वह पर्पल रंग की डायरी के नीचे दबकर थी…या शायद उससे भी बुरी हालत में। वह डायरी दिखने में काफी पुरानी लगने लगी थी, और उस समय मुझे खुद पर गुस्सा और उस डायरी पर बड़ी दया आने लगी। मैंने उसे निकाला, उसपर लगी धूल साफ की और उसे अपने बैग में रख लिया।
मैं शहर के अपने सबसे पसंदीदा स्पॉट सैंकी-टैंक पर चला आया था। मैं वहां लगी एक लकड़ी के बेंच पर बैठ गया और बहुत देर तक पार्क में बच्चों को खेलता हुआ देखता रहा। बहुत से लोग अपने पूरे परिवार के साथ वहां पिकनिक मनाने आए हुए थे। मैंने बैग से अपनी डायरी निकाली कुछ लिखने के लिए, लेकिन कुछ समय तक मैं यूं ही हाथ में खाली डायरी लिए बैठा रहा, क्या लिखूं यह मैं तय नहीं कर पा रहा था। मुझे दो दिन पहले अपने मित्र से हुई लंबी बातचीत याद आने लगी, जिसमें मैंने अपने मित्र को बहुत सी ऐसी बातें बताई थीं जिन्हें मैंने आजतक किसी से नहीं कहा, मैं वही सब बातें और अपने मित्र से हुई पांच घंटे की लंबी बातचीत डायरी में लिखने लगा। मैं शायद बहुत देर तक लिखता रहा हूं, क्योंकि जब मैंने लिखना बंद किया तब शाम हो गई थी और बहुत से परिवार वापस अपने घरों को लौट गए थे। डायरी के लगभग बीस-तीस पन्ने भी भर चुके थे। उस शाम वहां से वापस आते वक्त मैं बड़ा खुश था, जिसकी वजह शायद मेरी डायरी थी, जिसे मैंने अपने जन्मदिन पर बड़े प्यार से खरीदा था और जिसे मैं लगभग भूल ही चुका था। उसी डायरी में मैंने बड़ी खूबसूरत बातें लिखीं थीं, शायद इसी वजह से मैं बहुत खुश और संतुष्ट था।
उस दिन के बाद से तो उस डायरी से बेहद अच्छी दोस्ती हो गई। वह जनवरी के दिन थे और सर्दी पूरी तरह से गई नहीं थी। मैं शाम को जब भी निकलता, उस डायरी को अपने जैकेट की पॉकेट में रख लेता। यूं तो हर रोज़ उसमें लिखना संभव नहीं हो पाता था, लेकिन जब कोई खास पुरानी बात पीछा नहीं छोड़ती थी, तो मैं उसे अपनी डायरी में लिख लेता था…इससे मुझे राहत मिलती थी। सोते वक्त भी उस डायरी को मैं हमेशा अपने सिरहाने रखता था, और जब भी कोई अच्छे से सपने से जागता, तो सबसे पहले उस सपने को अपनी डायरी में दर्ज कर लेता था।
आज जब उस डायरी के बारे में सोचता हूं, तो लगता है कि मेरी ज़िन्दगी के बहुत सारे पल, बहुत से सपने उस डायरी में कैद हैं। पता नहीं उस डायरी का क्या हुआ होगा। क्या वह किसी कचरे के डिब्बे में चली गई होगी या किसी के हाथ लग गई होगी। अगर वह डायरी किसी के हाथ लगी होगी तो वह व्यक्ति, जिसके हाथ वह डायरी आई होगी, वह मेरे बारे में अबतक बहुत सी बातें जान गया होगा…वह शायद मुझे राह चलते पहचान भी सकता है, डायरी में लगी मेरी तस्वीर देखकर और शायद डायरी में लिखी मेरी बातें पढ़कर वह मुझे कोई सरफिरा आदमी समझे या फिर यह भी संभव है कि वह डायरी पढ़ने के बाद मुझे मेरे अपनों से बेहतर समझ सकेगा।
डायरी जिसके भी हाथ लगेगी वह आपको अन्दर तक जान जायेगा।
चलो अब नये साल पर एक नई डायरी खरीदो मेरी ओर से और लिखना शुरू करो आगे की कहानी …मैं तुम्हें अच्छी तरह से समझती हूँ…मिलने पर हिसाब चुकता कर लेंगे …:-)हैप्पी न्यू ईअर…(प्रलय से भी बच गये हम !!!..)
Dairy ka kisee any ke haath lag jana bada takleef deh hota hai.Naye saal kee aaplogon ko abhee se mubarakbaad!
khoi hui cheezein aksar apko us lamha milti hai jab aap unhe paane ki umeed chhod dete hai
ह्म्म्म ..हम बिना डायरी पढ़े ही जानते हैं तुम्हें :).
जिसका चेहरा उसके दिल की डायरी हो उसे डायरी नहीं लिखना चाहिए.. लोग सब जान जाते हैं!! कुछ भी छिपा नहीं!!
Aap jiss taarah se likhte hai, main samajh sakte hu ki vo dairy aapke liye kitni valuable hoge!
Aaj aapke blog par bahut dino baad aye hai..! bht si yaadien taza ho gye…! Aaj kal aap facebook par nhi dikhte?
🙂 प्रवीण जी कि बात से सहमत हूँ वैसे मैं भी यही खाऊँगी जो सब कह रहे हैं मैं आपको बहुत करीब से तो नहीं जानती मगर हाँ जितना जानती हूँ उतना भी काफी है आपको समझने के लिए 🙂
मार्क ट्वेन – आपके साथ वह भी मेरे पसंदीदा लेखक हैं 🙂 – ने कभी कहा था की वे सफर में कुछ रोमांचक पढ़ना चाहते हैं इसलिए अपनी डायरियाँ साथ लेकर चलते हैं – इस घटना पर उनकी बात यूं ही याद आ गई।
डायरी भी गद्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा ही नही दर्पण होती है मन का । एलबम होती है सुन्दर तस्वीरों की और संग्रह होता है खट्टी-मीठी कडवी व कसैली यादों की । डायरी खोने का अफसोस व्यर्थ नही होता था ।मेरे पिताजी की डायरियों से इतना तक पता चल जाता था कि अमुक वर्ष के कौनसे दिन तेज आँधी आई या उन्हें किस कारण झूठ बोलना पड गया था । मुझे भी दुख है कि उनकी एक-दो ही डायरियाँ उपलब्ध हैं । तब सोचा ही नही कि यह एक अनमोल खजाना है यादों का ।
अच्छी डायरी लिखी है। इसी डायरी में ऐसे ही लिखते रहा करो नियमित। ये कहीं खोयेगी भी नहीं। 🙂
जब तक जिसका साथ लिखा हो… तब तक ही साथ रहता है, मन को दिलासा देने के लिए यही कह सकते हैं… और क्या! कई बार कुछ एक ऐसी ही चीज़ों के खो जाने पर, अपने मन को यूँ समझाया है!
सबसे पहले तो डायरी में ये नोट कर लो आज कि हमसे बहुत डांट पड़ने वाली है तुम्हे…अपनी पोस्ट्स ढूँढ कर पढने की मेहनत हमसे करवाने के लिए…:)
और दूसरे…डायरी जाने का दुःख तो हमेशा रहेगा, पर मन की डायरी तो पास है न…सो वरी नॉट…नयी डायरी में लिख डालो फिर से नयी पुरानी यादें…|
🙂