20 फरवरी की वो रात थी। मोना को लेकर हम हॉस्पिटल पहुँचे। सबके चेहरे पर उत्सुकता, खुशी, नर्वसनेस का मिला-जुला भाव था। घर के नए सदस्य के स्वागत के लिए सब तैयार थे। हमें लगा, हमारा यह नन्हा राजकुमार रात में ही हमें हेलो बोलेगा, लेकिन इसने ठान ली थी कि सुबह-सवेरे, सूरज चाचू जब अपनी आँख खोलेंगे, हम भी उसी वक्त आँख खोलेंगे।
रात करीब एक बजे मैं हॉस्पिटल से वापस घर आ गया था। बाकी के सभी लोग हॉस्पिटल में ही रुके थे। अगली सुबह, यानी 21 तारीख को ठीक चार बजे पापा हॉस्पिटल से घर आए। पापा अभी ठीक से बैठे भी नहीं थे कि हॉस्पिटल से फोन आया—जल्दी आइए, अब इस नन्हे राजकुमार से और इंतजार नहीं हो रहा। वह सुबह साढ़े छह बजे का वक्त था जब हमारे घर का नया सदस्य, हमारा नन्हा राजकुमार, हमारा हीरो “अवि” आया था इस दुनिया में। मेरा भांजा, मेरी बहन मोना का बेटा।
उस दिन जाना था कि मामा बनने की खुशी क्या होती है। उस दिन पापा के चेहरे पर नाना बनने की खुशी देखी। माँ को नानी बनने पर कितनी खुश देखा। मोना और अंशुमान जी को देखा—पिता और माँ बनने पर कितने खुश थे। 21 तारीख की सुबह हम सब कितने खुश थे, यह शब्दों में मैं बता नहीं सकता। हम सबके लिए यह सबसे बड़ी खुशी थी।
अपने भांजे को पहली बार गोद में लेने का सुख अद्वितीय था… इतनी खुशी मुझे पहले कब हुई थी, यह याद नहीं।
हमारे लिए हमारा यह नन्हा फ़रिश्ता बहुत सारी खुशियाँ लेकर आया है। हमारे इस हीरो के आने के बाद दिन कैसे निकलता था, पता भी नहीं चलता। घर के सभी सदस्य इसके पीछे लगे रहते। हमारा बचपन फिर से लौट आया था। पापा, माँ, मोना और घर के सभी लोग इसे प्यार से पुचकारने लगे, इसके साथ खेलने लगे… सब बच्चे बन जाते इसके साथ। माँ से तो कई ऐसे शब्द सुनने को मिले जिन्हें पहले कभी नहीं सुना था। वह बाबू को प्यार से “बुत्तु” कहती… “बुत बुत्त बुत्तु… बुत्तु बुत्तु बुत्तु…”। ऐसे-ऐसे जाने कितने शब्द माँ से सुनने को मिलने लगे थे।
माँ जब बाबू से बात करती, ऐसा लगता जैसे माँ बाबू की ही भाषा में उससे बात कर रही है, और बाबू भी जैसे पहले ही दिन से माँ (यानी अपनी नानी) को पहचानने लगा था। वह माँ की बात पर हँसता, किलकारी मारता। मुझे कभी-कभी शक भी होता कि माँ जो भी कह रही है, यह लड़का उन सब बातों को समझ रहा है। बाबू इतने गौर से माँ को देखते रहता जब माँ उससे बात करती, ऐसा लगता था कि जैसे बाबू भी माँ से बात कर रहा है।
पापा और माँ इससे ऐसे ही बात करते हैं, और यह भी इसी तरह ध्यान से दोनों की हर बात सुनता है, और सुनकर मुस्कुराता है।
हमारा यह हीरो हम सबका बचपन वापस ले आया है। इसे गोद में रखकर जब भी इससे बातें करता और यह मेरा चेहरा देखकर मुस्कुराता, उस समय बाकी सभी तकलीफ और कष्ट याद नहीं आते थे। उस समय लगता कि इस नन्हे फ़रिश्ते को अपनी गोद में हँसता-मुस्कुराता देखना ही संसार का सबसे बड़ा सुख है।
तस्वीरें खिंचवाने का इसे खूब शौक है। अब तक जाने कितनी तस्वीरें इसकी खिंच गई हैं… और हर तस्वीर यह पूरे पोज में, एक्सप्रेशन के साथ खिंचवाता है। थोड़ा जिद्दी भी है, और बहुत शैतानी भी करने लगा है अभी से ही।
यह देखिए, कैसे इत्मिनान के साथ पोज देकर फोटो खिंचवा रहा है।
पटना से आने के बाद मैं बाबू को बेतरह मिस कर रहा हूँ। मोना से अब बात होती है तो मोना का हालचाल बाद में लेता हूँ, सवाल पहला अब यह होता है, “बताओ बाबू क्या कर रहा है?” नए ज़माने की नई टेक्नोलॉजी का कमाल कहिए कि अब दूर रहना भी उतना अखरता नहीं है। बाबू से अब लगभग हर रोज़ स्काइप पर बात होती है। इस लड़के को भी स्काइप पर बात करने की अब आदत लगते जा रही है। अपने पापा से और मामा से यह अक्सर बात करने लगा है स्काइप पर। स्काइप पर बात करने की आदत इसे ऐसी लग गई है कि अब स्क्रीन से इसकी नज़र नहीं हटती। इसे भी लगता होगा कि मेरे साथ कोई बात कर रहा है। इधर से इसे बुलाता हूँ, पुचकारता हूँ तो यह खूब मुस्कुराता है, किलकारी मारता है। उस वक्त जब इसे स्काइप पर देखता हूँ, तो इसे सबसे ज्यादा मिस करता हूँ। उस वक्त लगता है बस हाथ बढ़ाकर इसे गोद में उठा लूँ।
नए ज़माने का बच्चा है मेरा भांजा। देखिए स्काइप पर बातें करते हुए यह कैसे एक्सप्रेशन देता है।
अब तो बस 13 तारीख का इंतजार है, जब मैं अपने भांजे से मिलूँगा। यह दिल्ली आ रहा है, और कुछ देर के लिए यह मेरे साथ रहेगा। मैं तो बस दिन गिन रहा हूँ कि कब अपने भांजे को फिर से गोद में ले सकूँगा, खेल सकूँगा इसके साथ… और इस बार इसके साथ खूब तस्वीरें भी खिंचवानी हैं!! 🙂
इसकी माँ यानी मेरी छुटकी बहन मोना ने इसका नाम “अवि” रखा है। चलो, मामा और भांजे के नाम में कुछ समानता तो है… मामा “अभि,” भांजा “अवि।” वैसे नाम के अलावा एक और बात से हम दोनों मामा-भांजे जुड़े हैं। 21 तारीख को माँ ने इसे मेरी छठी वाली कमीज पहनाई थी।
जो भी हो, अब तो इसके शरारत के किस्से इस ब्लॉग पर भी खूब आने वाले हैं। इस पोस्ट को यहाँ आने में दो महीने की देरी हो गई है, इसके लिए भांजे से माफी माँग लेता हूँ!! 🙂
तुम्हे और क्या दूँ मैं दिल के सिवाए…तुमको हमारी उम्र लग जाए…:) <3
इस नन्हे-से खिलौने…प्यारे से राजकुमार के लिए इससे ज्यादा यहाँ और क्या कहें…???
हम्म….. तो आप पटना आनेवाले हो….. याद रखेगे……. हे हे ….
मामा बनने की खुशी क्या होती है यह हम भी ख़ूब जानते हैं!! और महसूस करते हैं.. पहले भी बोलिये चुके हैं, आज फिर बोलते हैं. ई जो मामा होता है ना इसलिये एतना खुश होता है कि इसमें मा मा होता है.. दू गो माँ!! हमको तो छोटा बच्चा बहुत अच्छा लगता है, बस गोदी में लेने से डरते हैं..!!
अवि बाबू का शब्दचित्र और छाया चित्र दुनो कमाल है!! एक्स्प्रेसन का मास्टर है बाबू!! हमारे सिनेमा में बाल कलाकार का कमी था.. ई अवि बाबू पूरा करेंगे बुझाता है!!
बहुत प्यारा!! मोना और अवि दुनो को आशीष!! अंशुमान बाबू को बोलो गुसियाने का बात नहीं है, उनको भी!! 🙂
एगो बात अभी अचानक दिमाग में आया!! हम पैदा हुये हैं 12 फरवरी को और अवि बाबू 21 फरवरी को.. फरवरी के महीना में आर्टिस्ट लोग पैदा होता है, अपने फ़ील्ड में बेजोड़ (हम अपना तारीफ नहीं कर रहे हैं).. इसलिये एक्स्प्रेशन का मास्टर होगा ई लइका!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन विश्व हास्य दिवस – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
बच्चे घर का पूरा माहौल ही बदल देते है….. 🙂 पूरे परिवार को बधाई
बच्चे घर का पूरा माहौल ही बदल देते है….. 🙂 पूरे परिवार को बधाई
बधाई ।
बधाई आपके पूरे परिवार को। अवि को बहुत ढेर सारे आशीष।
सलिल भैया की बात सच हो । नन्हे राजकुमार को ढेर सारा प्यार और आशीष । और उसे इतना प्यार करने वाले मामा को ढेर सारी बधाइयाँ ।
वाह अभी से ही बाबू अवि की मुद्रा तो देखो एकदम चिंतक जैसा है . होगा क्यों नहीं ? उसका मामा भी तो किसी बड़े चिंतक से कम तो नहीं है . बहुत ख़ुशी हो रही है तुम्हारी ख़ुशी से मिलकर.. बधाइयाँ…
Many many congratulations 🙂
Bahut pyara hai avi, nazar na lage kissi ki… bacho ke ghar main aane se raunak bhad jate hai ghar ki… aur khushi toh behaad hoti hai…
abhi toh shuvaat hai, dheere dheere jab avi bade honge toh unse door nhi reh payege aap 🙂
अभि मामा का अवि भांजा बहुत प्यारा…खूब सारा प्यार दुलार और आशीर्वाद … नन्हें मुन्नों की खुशबू से सारा घर महक उठता है…
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_14.html