समित बाबू और शेखर बाबू ने हैदराबाद वाली पोस्ट की खूब तारीफ की। दोनों को हैदराबाद में बिताए अपने दिन याद आ गए… दोनों की प्रतिक्रिया एक सी ही थी – “यार तुम्हारा पोस्ट पढ़ते पढ़ते लगा कि फिर से हम हैदराबाद पहुँच गए हैं”। समित ने कहा कि हैदराबाद के ऊपर एक और पोस्ट आनी ही चाहिए, जिसमें कुछ और बातों का जिक्र हो। वैसे तो हैदराबाद की इतनी बातें हैं, इतनी यादें हैं कि उसके लिए एक सीरीज शुरू करनी पड़ेगी… सीरीज तो शुरू अभी नहीं कर रहा, लेकिन हैदराबाद के ऊपर ही ये दूसरी पोस्ट लिख रहा हूँ।
पटना के अलावा हैदराबाद एकमात्र ऐसा शहर है जो हमारे दिल से जुड़ा हुआ है। हम दोस्तों को तो बस हैदराबाद के बारे में बात करने का बहाना चाहिए… और फिर शुरू हो जाता है पुरानी यादों का सिलसिला। हैदराबाद में बिताए एक-एक दिन की बातें, सड़कों पे यूं ही बेमतलब भटकना, हुसैन सागर के पास खड़ा रहना और नेता बाबू (हमारे मित्र तन्मय सौरभ) का कारनामा देखते रहना (अकरम, समित याद है न तुम्हें? :P)… हमें पटना जाने के लिए हैदराबाद से ही ट्रेन पकड़नी होती थी तो इसलिए हम यहाँ जाने के एक-दो दिन पहले ही पहुँच जाते थे। मैं जब भी हैदराबाद पहुँचता तो ऐसा लगता जैसे मैं पटना की सड़कों पे घूम रहा हूँ। एक अपनापन सा लगता मुझे हैदराबाद से… शायद इसलिए भी हैदराबाद से ज्यादा मैं जुड़ा हुआ हूँ… हैदराबाद में हम दो ही जगह रुकते थे… या तो सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के सामने वाले होटलों में या फिर दोस्त मंगलम के घर पे। सिकंदराबाद स्टेशन के सामने तो वैसे बहुत से रेस्टोरेंट और होटल्स हैं लेकिन उनमें से खास होटल्स भी हैं, जहाँ हम जाना पसंद करते हैं। उन दो होटलों के अलावा भी कुछ और बातें हैदराबाद की देखिए इस पोस्ट में।
अल्फ़ा होटल, सिकंदराबाद
अल्फ़ा होटल शायद हैदराबाद के बड़े होटलों में गिना जाए (सिटिंग कैपेसिटी के अनुसार)। सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के सामने ही है यह अल्फ़ा होटल। अल्फ़ा होटल के तीन सेक्शन हैं – एक ए.सी. सेक्शन, एक सिंपल डाइनिंग सेक्शन और एक टेकअवे सेक्शन, जहाँ से लोग खाना पार्सल ले सकते हैं और चाहें तो खड़े होकर खा सकते हैं। स्नैक्स, चाय, जूस, बेकरी के आइटम के लिए भी अल्फ़ा होटल जाना जाता है। हम सभी दोस्तों का शायद सबसे पसंदीदा होटल। हम जब भी हैदराबाद आते थे तो स्टेशन के पास ही किसी होटल में रुकते थे। तो रात का खाना ज्यादातर अल्फ़ा में ही खाते थे। ट्रेन के लिए रात का डिनर (जो की हमेशा बिरयानी ही होता) भी यहीं से पार्सल लेते थे… सबसे अच्छी बात इस होटल की जो है वो ये कि आपको बेहद ही अफोर्डेबल रेट में बेहतरीन क्वालिटी का खाना मिलता है और क्वांटिटी तो पूछिए ही मत। तंदूरी रोटी का साइज देख के ही आपका सर चकराने लगेगा… आमतौर पे हर आइटम चाहे पनीर हो या चिकन या कुछ और, आपको ७०-१०० रुपये में एक प्लेट मिल जाएगी… और क्वांटिटी इतनी रहती है कि आप अकेले शायद ही खत्म कर पाएं। एक दफे की बात है… मैं और मेरी बहन पटना जा रहे थे। दोपहर चार बजे की ट्रेन थी, तो हम लंच के लिए अल्फ़ा होटल में ही गए। ये जानते हुए कि क्वांटिटी यहाँ बहुत रहती है, मैंने कम ही खाना ऑर्डर किया था… लेकिन फिर भी लंच इतना हो गया कि हमें नूडल्स, जो हमने जरा भी नहीं खाया था, पैक करवा के ले जाना पड़ा…
खाना तो अल्फ़ा होटल का हम सबको पसंद आता था ही लेकिन खाने के साथ-साथ कुछ खट्टे-मीठे अनुभव भी रहे हैं यहाँ के… हमारे मित्र नेता बाबू (तन्मय सौरभ) जो कि अनजान व्यक्तियों से मित्रता करने में एक महारथी से कम नहीं, इस होटल के एक वेटर को भी उन्होंने अपना दोस्त बना लिया था… बात शुरू तब हुई जब मैंने कहा नेता बाबू से, कि ये वेटर शायद बिहार का है… बोली वैसी ही लग रही है। फिर क्या था नेता बाबू अपने चिर परिचित अंदाज़ में उससे बात करने लगे, गांव-घर की बातें, हैदराबाद में कैसे गुजर होता है उसकी बातें… जल्दी हो फोन नंबर की भी अदला-बदली भी हो गई… मैं और अकरम हैरान से थे कि ये किसी से भी कितनी आसानी से दोस्ती कर लेता है :)। कभी-कभी माहौल बिगड़ भी जाता था। अब रेस्टोरेंट में जब बीस-बाईस लड़के खाने एक साथ आएंगे तो माहौल थोड़ा बिगड़ेगा ही न… कितनी ही बार वेटर या फिर रेस्टोरेंट के मैनेजर से लड़के उलझ जाते थे… कई ऐसे वाकये हुए हैं जो उस समय बेहद इम्बैरसिंग लगते थे लेकिन अब सोचता हूँ तो हंसी आती है।
स्वाति रेस्टोरेंट एंड टिफिन सेंटर, सिकंदराबाद
यह एक छोटा सा होटल है, फिर भी काफी अच्छा बना हुआ है। सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के ठीक सामने है यह होटल। हम जब पहली बार हैदराबाद घूमने आए थे, तो इसी होटल में ब्रेकफास्ट के लिए आए थे। शायद जितने भी दोस्त हमारे साथ रहे हैं, सब इस होटल में आ जरूर चुके हैं। ठीक दाम में अच्छा नाश्ता या फिर लंच आपको मिल जाएगा यहाँ। यहाँ का “मलाईकोफ्ता” मुझे सबसे ज्यादा पसंद था। एक प्लेट मलाई कोफ्ता उस समय 30 रुपये में मिलता था। दाम तो वैसे अब भी ज्यादा नहीं बढ़ा, पिछले साल गया था तो 30 से बढ़कर दाम बस 40 ही हुआ था। अब भी जब जाता हूँ हैदराबाद, तो ट्रेन से ही जाता हूँ और हमेशा सुबह का नाश्ता मैं यहीं करता हूँ।
पार्क लेन, सिकंदराबाद
हम तीसरे सेमेस्टर में थे और हमें कंप्यूटर खरीदना था। कंप्यूटर खरीदने के लिए हमें हैदराबाद आना पड़ता था। हमारे एक दोस्त मंगलम, जो हैदराबाद में ही रहता था, ने पहले ही बता दिया था कि पार्क लेन में एक चिनॉय ट्रेड सेंटर है, जहाँ कंप्यूटर का बहुत बड़ा बाजार है। शायद हैदराबाद में सबसे बड़ा कंप्यूटर का बाजार। हमने कंप्यूटर वहीं से खरीदा था। चिनॉय ट्रेड सेंटर में आपको कई तरह के सॉफ्टवेयर, ब्लैंक सीडी, गेम्स, वीडियो सॉन्ग्स, एमपी3, बेहद कम दामों में मिल जाएंगे। उन दिनों मुझे इन चीज़ों का बहुत शौक था। मैं जब भी हैदराबाद जाता तो चिनॉय ट्रेड सेंटर जरूर जाता। वहां एक दुकान से मेरी अच्छी जान पहचान और दोस्ती हो गई। पांचवे सेमेस्टर में जब दो-तीन और मित्रों को कंप्यूटर लेने की जरूरत पड़ी, तो वे मुझे ही ले गए हैदराबाद। दुकानवाले से मेरी जान पहचान के कारण डिस्काउंट भी अच्छा-खासा मिल जाता था। अनिमेष जी को भी जब कंप्यूटर खरीदना था, तो वे मुझे ही साथ ले गए। डिस्काउंट तो मिला ही, दुकानवाले ने चाय, कोल्ड ड्रिंक्स भी पिलाई हमें। अनिमेष थोड़े चकित थे कि दुकानवाला इतनी खातिरदारी क्यों कर रहा है हमारी। 🙂 कहने लगे, “अभिषेक भाई, आपका तो ‘टाइट’ जान पहचान है हैदराबाद में।” 🙂 हालत ऐसी हो गई थी कि मेरे कुछ जूनियर्स को जब कंप्यूटर लेना होता था, तो वे मेरे से उसी दुकान का एड्रेस लेते और मेरा रेफरेंस देते। दुकानवाला भी “बीदर कॉलेज वाले अभिषेक” के नाम से मुझे पहचान जाता। पिछले साल मार्च में उस दुकान में फिर से गया था। मुझे लगा कि वह मुझे भूल गया होगा, लेकिन उसने पहचान लिया। हाँ, नाम मेरा वह शायद भूल चुका था, लेकिन शक्ल से उसने पहचान लिया। उस दुकान का नाम है “ग्लोबल कंप्यूटरस”।
सालारजंग संग्रहालय
चार साल हम हैदराबाद आते-जाते रहे, लगभग हर जगह हम घूम चुके थे, लेकिन कुछ ऐसी जगहें थीं जहाँ हम गए ही नहीं थे। ऐसी ही एक जगह का नाम – सालारजंग संग्रहालय। लड़कों को संग्रहालय जैसी जगहें काफी बोरिंग लगती हैं, इसलिए कभी हमने वहां जाने का प्लान ही नहीं बनाया था। चारमिनार जाने के रास्ते में ही सालारजंग संग्रहालय आता है। मैं जब भी जाता, चारमिनार हमेशा सालारजंग संग्रहालय जाने की बात सोचता, लेकिन कभी जा न सका। पिछले साल जब मैं दीवाली पे पटना जा रहा था, तो हैदराबाद होकर ही जाना हुआ। हैदराबाद सुबह पाँच बजे ही मैं पहुँच गया था और ट्रेन थी रात के दस बजे। दिन भर का समय था, तो सोचा कहीं घूम लूँ। बिरला मंदिर गया, और फिर वहां से चारमिनार चला गया। कुछ देर यूँ ही आसपास घूमा और फिर यकायक दिमाग में ख्याल आया कि इतने सालों से हैदराबाद आता रहा हूँ, लेकिन सालारजंग एक बार भी नहीं गया। फिर क्या था, तुरंत चारमिनार से ही सालारजंग के लिए ऑटो ले लिया और पहुँच गया सालारजंग संग्रहालय। संग्रहालय की भव्यता देख मैं सोचने लगा कि कितना बड़ा बेवकूफ हूँ मैं कि अभी तक यहाँ नहीं आया था। सालारजंग संग्रहालय एशिया का सबसे बड़ा संग्रहालय है और यहाँ विश्व का सबसे बड़ा ऐन्टीक कलेक्शन रखा हुआ है। यहाँ के ऐन्टीक कलेक्शन को देखने के लिए दुनिया भर के लोग और रिसर्चर आते हैं। यहाँ कई वर्षों पुरानी और बेशकीमती कलाकृतियों का संग्रह उपलब्ध है। चालीस गैलरी हैं इस संग्रहालय में, जहाँ तरह-तरह की नायाब चीज़ें रखी हुई हैं। हर गैलरी काफी बड़ी है और कुछ कलाकृतियों को देख तो आप हैरत में पड़ जाएंगे, कई कलाकृतियाँ तो 17वीं शताब्दी की हैं। बताया जाता है कि यहाँ पे कुल 1 मिलियन अलग-अलग तरह की वस्तुएं और चीज़ें रखी हुई हैं। किसी-किसी विशेष दिन सालारजंग संग्रहालय में फ्री के गाइड भी उपलब्ध रहते हैं। जिस दिन मैं गया था, उस दिन भी फ्री के गाइड उपलब्ध थे, तो बहुत सी बातें पता चलीं वहां रखी चीज़ों के बारे में। नवाबों के समय की बहुत सी चीज़ें, जेवर, गहने रखे हुए हैं यहाँ। हर कुछ इतना खूबसूरत दिख रहा था कि दिल किया फोटो ले लूँ, लेकिन वहाँ फोटोग्राफी की सख्त मनाही है।
कराची बेकरी
अगर हैदराबाद बिरयानी के लिए मशहूर है, तो यहाँ बेकरी आइटम भी ए-वन क्लास की मिलती है। शायद सबसे अच्छी बेकरी मिलती है यहाँ। वैसे तो पूरे साउथ इंडिया में बेकरी का खूब प्रचलन है, नॉर्थ में तो साउथ के मुकाबले बेकरी का कुछ भी प्रचलन नहीं। हैदराबाद की “कराची बेकरी” पूरे भारत में मशहूर है। इसके बारे में भी मुझे अपने दोस्त मंगलम से ही पता चला था। हैदराबाद के कोटी इलाके में ये कराची बेकरी है और बहुत से बड़े-बड़े शादियों और फंक्शन्स में यहाँ से केक, पेस्ट्री, स्नैक्स, बिस्कुट और बाकी बेकरी की चीज़ें जाती हैं। कराची बेकरी में पहली बार मैं मंगलम के साथ ही गया था। यहाँ के चॉकलेट केक और बिस्कुट कमाल के होते हैं। शायद मैंने इतना अच्छा बेकरी का आइटम पहले कहीं नहीं खाया था। मंगलम के घर के पास में ही एक और बेकरी की दुकान है। मंगलम ने मुझे बताया कि यहाँ भी केक और बहुत से सामान कराची बेकरी से ही आते हैं। बस कराची बेकरी का नाम सुनकर ही मैंने वहां से ड्राई केक, मफिन और और भी कुछ आइटम पैक करा के घर ले गया था। केक और बाकी चीज़ें घरवालों को भी काफी पसंद आई थीं।
अमीरपेट से ऑटो लेना
हैदराबाद का अमीरपेट इलाका काफी फेमस है.. कहा जा सकता है की अमीरपेट हैदराबाद का शॉपिंग हब जैसा है.. हर किस्म के कपड़े आपको यहाँ मिल जाएंगे… महंगे से महंगे और सस्ते से सस्ते। हम जब भी बसकल्याण से हैदराबाद आते तो अमीरपेट स्टॉप पे ही उतरते थे। अक्सर हम रात में ही सफर करते। बारह एक बजे वाली बस लेते जो की हैदराबाद तीन चार बजे तक पहुंचा देती। अमीरपेट से सिकंदराबाद हम ऑटो से जाते थे। रात को एक झुंड में अमीरपेट के सड़कों पे चलने में एक अलग ही मजा था.. थोड़ा आवारगी का भी अहसास होता था। कभी कभी लड़के नौटंकी भी करने लगते थे.. सड़कों पे गाना गाते हुए चलना या फिर ऑटो वाले को परेशान करना। एक बार की बात है, हमें अमीरपेट से सिकंदराबाद के लिए ऑटो लेना था। हमारे नेता बाबू, अनिमेष भाई और बाकी मित्रों ने एक शर्त रखी की हम उसी ऑटो में जाएंगे जिसमे बाजा (स्टीरेओ) होगा.. बिना बाजा के ऑटो में नहीं जाएंगे। हममें से कुछ ने समझाने की कोशिश की कि रात के दो बज रहे हैं, सीधे सीधे जो ऑटो मिलता है, उसमें चलो.. लेकिन हमारे नेता बाबू कहाँ मानने वाले थे। वो अड़े हुए थे की उसी ऑटो से जाएंगे जिसमे बाजा होगा.. आधे घंटे के बाद आखिरकार एक ऑटो मिला जिसमे बाजा भी था, और हम पूरे रास्ते बाजा सुनते हुए सिकंदराबाद पहुंचे 🙂
समित बाबू और हैदराबाद हमारे प्रिय मित्र मिस्टर समित बाबू को भी हैदराबाद शहर बहुत अच्छा लगता है.. समित का फेवरिट जगह है प्रसाद मॉल। वो मुझे कहता “यार पूरे हैदराबाद में सबसे अच्छा जगह यही है… हम तो यहाँ सुबह से रात तक बैठे रह सकते हैं… कितना बढ़िया जगह है ये”.. समित बाबू का प्रसाद के प्रति ये लगाव ऐसे ही नहीं था.. बात थी की उस समय हैदराबाद में सिर्फ और सिर्फ प्रसाद ही एकमात्र मल्टीप्लेक्स था, तो सारी हाई-फाई लड़कियां प्रसाद में आराम से दिख जाती थी… और लड़कियों को लेकर समित बाबू कितने भावुक हैं ये तो हम सब दोस्त अच्छे से जानते ही हैं :).. सुंदर लड़कियों को देख लड़कों का दिल तो धड़कता ही है, लेकिन समित बाबू का दिल थोड़ा ज्यादा जोर से धड़कता है। इसलिए भी समित बाबू को प्रसाद मल्टीप्लेक्स कुछ ज्यादा पसंद था। समित का एक बहुत बुरा अनुभव भी रहा है हैदराबाद में। हम घर जा रहे थे.. शाम चार बजे की ट्रेन थी और हम हैदराबाद बारह बजे के आसपास पहुँच गए थे। अब समय हाथ में था, तो हमने सोचा की एक बार बिरला मंदिर में दर्शन कर लें। हम तीनो (मैं, समित और अकरम) ऑटो से पहुंचे बिरला मंदिर, हम सबने अपना सामान क्लोकरूम में नहीं रखा था, बल्कि साथ ही लेते आए थे.. समित बाबू ऑटो वाले को पैसा देने में व्यस्त थे, और हम दोनों अपने अपने बैग को ऑटो से निकालने में। हम लोगों के पास एक ही बैग था और समित बाबू के पास दो बैग। जब हम मंदिर पहुंचे तो अचानक अकरम ने ध्यान दिया की समित एक ही बैग पकड़े हुए है.. उसने दूसरे बैग के बारे में समित से पूछा.. हमारे समित बाबू ये सोच रहे थे की उनका दूसरा बैग अकरम ले कर पीछे से आ रहा है.. और अकरम ये सोच रहा था की समित तो अपना सामान निकाल चुका है ऑटो से.. हम जल्दी जल्दी वापस उसी जगह फिर से आएं जहाँ ऑटो से उतरे थे… लेकिन ऑटो वाले का कोई पता नहीं चला.. एक अच्छी बात ये रही की कोई खास जरूरी सामान उस बैग में नहीं था.. कपड़े ही थे केवल.. लेकिन फिर भी वो पूरा दिन हमारा बर्बाद ही हो गया था।
ओसमानिया यूनिवर्सिटी
ओसमानिया यूनिवर्सिटी कैम्पस का एक भाग पिछले साल मार्च की बात है.. एक बैक की परीक्षा के लिए हैदराबाद जाना हुआ। मेरा दोस्त मुराद हैदराबाद में उस समय ओसमानिया यूनिवर्सिटी से एम.बी.ए कर रहा था। तो उसी के घर रुकना हुआ। उसका घर ओसमानिया यूनिवर्सिटी के कैम्पस में ही आता है। कम से कम सात-आठ किलोमीटर में ओसमानिया यूनिवर्सिटी फैला हुआ है। मैं इससे पहले कभी यहाँ नहीं आया था। लेकिन ओसमानिया यूनिवर्सिटी के कैम्पस की खूबसूरती देख मैं सोचने लगा की काश मैं भी यहीं पढ़ा होता। शाम के वक्त नजारा कुछ और ही होता है यहाँ का.. लड़के लड़कियां झुंड बना कर बैठे रहते हैं.. चाय वाला चाय बेचते रहता है.. मूंगफली, चना वाला भी इधर उधर घूमते रहता है.. लोग भी शाम बिताने यहाँ आते हैं.. छोटे बच्चे भी दिख जाते हैं, कैम्पस के पार्क में खेलते हुए। जगह जगह लड़के और लड़कियां बैडमिंटन खेलते भी दिख जाते थे। जिस दिन हम पहुंचे थे हैदराबाद, उस दिन पूरी शाम हमने यहीं बिताई थी.. और फिर रात में निकल गए बावर्ची, बिरयानी खाने :).
हमें ये कैम्पस इतना पसंद आया की सुबह भी हम टहलते हुए इसी कैम्पस में फिर से आ गए.. हैदराबाद में तो सुबह भी कुछ जल्दी हो जाती है.. गर्मी के दिनों में साढ़े पांच-छः बजे धूप सी निकल आती है। दूसरी सुबह हम कैम्पस में इधर से उधर घूमते रहे.. सुबह के पांच बजे ही कैम्पस पहुँच गए थे और नौ बजे तक इधर ही रहे।
bro alfa resturent mein khaana kisne nahi khaya hoga…u missed d biryani of alfa resturant..achhi hoti hai yaar 🙂
n haan golconda fort pe likhna chahiye….nahi to ek kaam karo…fir se jaao ek baar fir se ghoom aao….tab likhna…main to kai baar jaa chuka hun;….
hussain saagar waali photo faadu hai boss…
but bro tumne kaha tha ki koi aur post tumne kal likha tha???mila nahi mujhe?
उसके लिए यहाँ जाओ भाई – कुछ सपने कभी सच नहीं होते
ये मेरे दूसरे ब्लॉग पे है.. 🙂
अवि जी,
आपके साथ हैदराबाद घूमने का आनंद आ गया!
अच्छा संस्मरण है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
खूब हैदराबाद घुमा रहे हो..अच्छा है .शुक्रिया है बड़ा वाला.
Sach! Doston ke saath bitaye gaye lamhon ka maza kuchh aurhee hota hai!
हैदराबाद को आपकी नज़रों से देखना बहुत लाजवाग्ब रहा … सब फोटो कमाल के हैं … विस्तृत जानकारी …
कितनी तन्मयता से लिखते हो…इतने डिटेल्स याद रहते हैं??…दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी याददाश्त की…यात्रा वृत्तांत लिखने में तो आप सबको पीछे छोड़ने वाले हैं.
क्या खूब घुमा रहे हो..हैदराबाद….मजा आ रहा है…
आप ट्रैवेल गाइड भी लिखिये, सच में बहुत चलेगी।
अभिषेक से राजू गाइड!! कमाल कर दिया!!
हैदराबाद घुमाने के लिए बहुत आभार अभिषेक जी। बहुत दिनों से तमन्ना थी देखने थी। उस्मानिया यूनिवर्सिटी बहुत भव्य लगी।
मैं सन्डे को ही इसे पोस्ट करने वाला था…लेकिन अपने लिखे से पता नहीं क्यों संतुष्ट नहीं था मैं…मैंने दो तीन बार पढ़ा..कुछ अच्छा नहीं लग रहा था…
अब आप लोग की तारीफ़ देख लग रहा है की शायद अच्छा लिख ही दिया हो.. 🙂
अभि जीऐतना सुन्दर विस्तार से और तस्वीरों के साथ विवरण बहुत अच्छा लगा। अगर आओ हैदराबाद की इतनी तारीफ करेंगे तो हमे हैदराबाद देखने आना पडेगा। देख लीजिये आपको ही कष्ट देंगे अपना तो कोई और है नही वहाँ। शुभकामनायें।
वैसे तो मैं रहता हूँ बैंगलोर में…लेकिन आप जब भी हैदराबाद आएँगी तो बस एक बार कह दीजियेगा…हम पहुँच जायेंगे हैदराबाद..
मैंने तो पहले ही कह दिया है की हैदराबाद घूमने का हमें तो बस बहाना चाहिए 🙂
अभी जी बढ़िया है . मुफ्त मेँ सैर कराते रहिये पब्लिक को। अच्छा संस्मरण.
aarre waah, yeh toh part one se bhi zada accha likha hai aapne, ab toh bahut zada mann kar rha hai jaane ka hyderabad!
aapne bahut mehnat ki hai iss post ko likhne main..! dikh rha hai post padh ke.
great work :)) and nice pics all of them!
खूब घुमा रहे हो हैदराबाद..ठीक भी है..मैं भी तो घूम ले रही हूँ यहीं बैठे बैठे..
तस्वीरें अच्छी लगी!!
अच्छा आलेख ,मग़र अब हालात बदल चुके है जहाँ आप बैठे थे अब वहां पुलिस बैठती है यह समय समय की बात है
Pretty Interesting post. Couldn't be written any better. Reading this post reminds me of my old room mate! He always kept talking about this. I will forward this post to him. Pretty sure he will have a good read. Thanks for sharing!
वैसे नामपल्ली के सामने समय बिताना हमें खूब भाया था लेकिन अभी जीपुल रेड्डी के कागज टाइप की किसी मिठाई की याद सब पर भारी पड़ रही है.
हैदराबाद घुमाने के लिए बहुत आभार
कितना कुछ सुने हैं तुमसे, कितना सुनना बाकी है…। फिर भी, मलाई कोफ़्ता से कितना कुछ याद आ गया हमको…:)