रात, नींद और नयी सुबह

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देर रात तक जागे रहने के बाद नींद नहीं आती…बचपन में किसी से सुना था कि एक समय होता है जब हमें सबसे ज्यादा नींद आती है, अगर उस पहर आप सोये नहीं तो पूरी रात जागे रहेंगे. 

कोई परिचित थे, उन्होंने कहा था कि उन्हें एक से डेढ़ बजे सबसे ज्यादा नींद आती है लेकिन अगर वो इस समय तक सोये नहीं तो पूरी रात जागते रहते हैं. उनके मुताबिक हर किसी का ऐसा समय होता है. किसी के लिए ग्यारह बजे का समय तो किसी के लिए बारह तो किसी के लिए डेढ़ बजे का समय. मुझे नहीं मालूम कि उनकी ये बातें बनी बनाई है या कुछ तार्किक भी. लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसा मेरे साथ भी होता है. मेरे लिए शायद दो बजे का वो वक़्त है जिसके गुज़र जाने के बाद पूरी रात जागते रहता हूँ. 

एक फिल्म थी अलिया भट्ट और शाहिद कपूर की – “शानदार”. फिल्म वैसे तो ख़ास अच्छी नहीं थी और थोड़ी झेलने किस्म वाली भी थी लेकिन इसकी एक दो बातें याद रह गयीं. वो कहते हैं न कि बुरी से बुरी फिल्म में भी आप चार पांच अच्छे सीन्स खोज लेते हैं. कुछ वैसे ही. 

अलिया भट्ट इसमें एक ऐसी लड़की का किरदार निभा रही है जिसे इन्साम्नीआ है, यानी उसे रात में नींद नहीं आती और कभी नहीं सोती. उसने रात के समय को इस्तेमाल किया और किताबें, पढ़ने लिखने और अपने पसंदीदा काम करने में बिताया. वो कहती है कि रात मेरे लिए बेस्ट टाइम होता है, जो भी मुझे पसंद मैं करती हूँ रात में. 

जब फिल्म देखा तो लगा कि ये तो मेरी ही कहानी है. उन दिनों मैं भी नहीं सो पाता था आराम से और अक्सर सोते हुए सुबह के चार से पांच बज ही जाते थे. कितने सारे काम मैंने रात में निपटाए हैं. कितनी किताबें पढ़ी, दुनिया भर की फिल्मे देखी और कितने संगीत सुने. 

किसी बड़े आन्ट्रप्रनुर ने एक बार कहा था कि हम अपने ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा समय सोने में व्यर्थ कर देते हैं. हमें पांच से छः घंटे से ज्यादा नहीं सोना चाहिए. वो देर तक सोते न रहे इसलिए लो-थ्रेड काउंट का बेडशीट इस्तेमाल करते थे. 

मैं भी ये सोचता था कि कितना समय हम सोने में व्यर्थ कर देते हैं और हम उस समय को प्रोडक्टिव रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं. बहुत सालों तक ऐसा किया भी मैंने लेकिन एक समय के बाद आप बहुत कुछ चाह कर भी नहीं कर सकते. पारिवारिक कारण इसमें सबसे अहम् होते हैं. 

लेकिन फिर भी कोई रात ऐसी हो जाती है जब आपको नींद नहीं आती. आप कुछ भी सोचते नहीं हैं, न परेशान रहते हैं लेकिन फिर भी सो नहीं पाते. इधर कुछ दिनों से मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा है. कुछ साल पहले की बात होती तो नींद न आने पर मैं कुछ भी कर सकता था, फ़िल्में, किताबें और म्यूजिक. लेकिन अब जैसे तय नहीं कर पाता हूँ कि करूँ क्या?

हाँ एक आदत बरक़रार है. पहले के दिनों में भी रात में अगर नहीं सोता था तो सुबह सूरज उगने से पहले ही वाक पर निकल जाता था और सूरज को उगते हुए देखना बड़ा अच्छा लगता था. अब भी मुझे सूर्योदय सबसे ज्यादा आकर्षित करती है. उम्मीद जगाती है न कि ये एक नया दिन है और हमें पिछले दिन की परेशानियों और नाकामयाबियों को भुला कर एक नयी शुरुआत करनी चाहिए. 

जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी
–  साहिर लुधियानवी

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