जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गये

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सुबह कुछ काम से मैं बाहर निकला था। दो-तीन घंटे में काम खत्म कर वापस आया। जैसे ही फेसबुक खोला, पहला स्टेटस दिखा बबुषा जी का “कहाँ तुम चले गए ..”। मैं ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया, लेकिन जैसे ही दूसरे पोस्ट पे नज़र गई, मैं स्तब्ध रह गया। प्रशांत की पोस्ट दिखाई दी और उसमें ये स्तब्ध कर देने वाली खबर थी कि जगजीत सिंह अब नहीं रहे। ऐसा मेरे साथ नहीं होता है, पहली बार हुआ है कि कोई ऐसे इंसान के निधन पर मुझे सही मायने में दुःख पहुंचा है जिससे मैं कभी मिला नहीं, कभी बात नहीं की। मैंने ये खबर देखने के बाद कुछ देर के लिए तो प्रशांत का वो स्टेटस ही देखते रह गया। मैंने अपना प्रोफाइल खोला और सोचा कि मैं भी कुछ लिखूं। बहुत देर तक यूं ही बैठा रहा, मेरे लिए कुछ भी लिखना बहुत मुश्किल था। मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी भी आम न्यूज़ की तरह, एक सेलेब्रिटी और गायक के मरने पर अफ़सोस जताऊंगा। यह मुझे काफी आर्टिफिशियल लगने लगा। लेकिन दिमाग में कई बातें चल रही थी, और उस समय जो भी मेरे दिमाग में चल रहा था, मैंने लिख दिया।

कई बातें दिन भर आज याद आती रही। जगजीत सिंह के गज़लों से मेरी मुलाक़ात कैसे हुई ये भी अच्छे से याद है। मेरे मामा के पास एक कैसेट थी ‘समवन समवेयर’। मुझे हमेशा ये नाम बड़ा अजीब सा लगता था। यह कैसेट हमेशा रैक पे रखा रहता था, मैं देखता भी था… लेकिन मुझे हमेशा लगता था कि ये कोई इंग्लिश एल्बम या फिल्म का कैसेट होगा। एक दिन संयोगवश मैंने वो कैसेट उठाया, देखा जगजीत जी का एल्बम है। जगजीत जी के नाम से मैं वाकिफ था, लेकिन उनके गज़लों से अब तक मैं अनजान था। गज़लों के नाम पर मैंने बस पंकज उधास के ही एक दो गज़लें सुनी थीं। जब पहली बार वो कैसेट को मैंने सुना तो मुझे कुछ ज्यादा समझ में नहीं आया और उसे वापस उसी रैक पे रख दिया। हां, एक दो गाने पसंद आए भी थे लेकिन काफी स्लो लगे मुझे। उस समय मैं स्कूल में था और इतने स्लो गानों या गज़लों को सुनता भी नहीं था। फिर कई दिनों बाद या शायद एक दो साल बाद जब मैं दसवीं क्लास में था, तब उनका एक और एल्बम मेरे हाथ लगा “लव इज ब्लाइंड”। यह एल्बम में भी मेरे छोटे मामा के कलेक्शन से ही मुझे मिला था। इस एल्बम में दो ग़ज़लें (‘कभी खामोश बैठोगे’ और ‘चाक जिगर के’) मुझे बेहद पसंद आई थीं। ‘कभी खामोश बैठोगे’ को मैंने अपनी डायरी में लिख लिया था। और यह पहली कोई भी नज़्म, कविता, गज़ल या शायरी थी जिसे मैंने डायरी में लिखा था। धीरे-धीरे मुझे इस एल्बम से प्यार हो गया था। इसमें के सभी गज़लों को मैंने अपनी डायरी में लिख डाला था। उन दिनों मेरे पास जगजीत सिंह का मात्र एक यही एल्बम था। फिर याद आया कि उनका एक और एल्बम मामा के कलेक्शन में पड़ा होगा ‘समवन समवेयर’। उस एल्बम को भी सुना मैंने, और अपने आप पे क्रोध भी आया कि मैं इतने दिनों तक इससे दूर कैसे रहा।

ग्यारहवीं क्लास में मुझे जो भी पॉकेट मनी मिलते थे, उसे मैं कैसेट पे खर्च कर देता था। अधिकतर नए फिल्मों के कैसेट ही मैं खरीदता था या फिर मुकेश के (उन वक्त मुकेश के गानों के पीछे मैं हद दीवाना था)। उन दिनों सभी कैसेट खरीदना मुमकिन नहीं होता था, तो अक्सर मैं एक ब्लैंक कैसेट में गानों को रिकॉर्ड करवा लेता था। एक दिन जब एक ब्लैंक कैसेट लेकर एक दुकान में पहुंचा गाने रिकॉर्ड करवाने, तब राजू (दूकान मालिक का भाई, जो मेरे दोस्त का दोस्त था) ने मुझसे कहा कि जगजीत सिंह का एक नया एल्बम आया है, उसी को रिकॉर्ड कर के दूं? जगजीत सिंह के गज़ल उसे भी काफी पसंद थे और कुछ दिन पहले उससे मेरी इस संबंध में बात भी हो रही थी… लेकिन मैं कुछ दुविधा में था। राजू ने मुझसे कहा कि एक बार तुम सुन लो, उसके बाद बताना। उसने कैसेट लगाया और पहली गज़ल थी “सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दुआ से, एक रोज तुम्हे मांग कर देखेंगे खुदा से”। इस गज़ल ने दिल पे गज़ब का असर किया था, कह सकते हैं कि कुछ कुछ सिचुएशनल जैसी बात भी थी। मैंने बस वही पहली गज़ल सुन के कहा जल्दी पूरा कैसेट रिकॉर्ड कर के दो। कैसेट लेकर घर आया, जो पहला काम मैंने किया था वो ये कि इस गज़ल को भी अपनी डायरी में लिख डाला था। उस एल्बम का नाम था ए जर्नी-वॉल्यूम 2 (शायद)

फिर तो ऐसा हो गया कि जगजीत जी के गज़लों के कैसेट को रिकॉर्ड करवाना, खरीदना लगातार चालू रहा। कितने ही ग्रीटिंग्स कार्ड पर मैंने उनके गाए गज़लों के कुछ लाइने चिपकाई थीं, और लोग (कुछ) ये समझते थे कि वो शायरी मैंने की है। खैर, उन दिनों मुझे अच्छा लगता था और मैं किसी से कहता भी नहीं था कि वो सब शेर मैं गज़लों से उठाता हूं… खास कर के लड़कियों पे इन शायरी का बड़ा असर होता था, और जो भी लड़कियां उन दिनों मुझे जानती थीं, सब इसी भ्रम में रहती थीं कि वो सब शायरी मैंने लिखी हैं। मैं इस भ्रम को तोड़ना तो नहीं चाहता था, लेकिन एक दिन राज सबके सामने खोलने के सिवा और दूसरा चारा नहीं था। राज खुलने पर उनकी नज़रों में मेरी इज्जत कम नहीं हुई, बल्कि सब मेरे बारे में एक और भ्रम पालने लगी थी – “अभिषेक इतना बड़ा बड़ा भारी-भड़कम चीज़ सब पढ़ता है, इससे तो बात करने में भी सोचना पड़ेगा”।

वैसे उन दिनों मैं भी अलग तरह के भ्रम में था। मुझे लगता था कि जो भी गज़ल जगजीत सिंह या पंकज उधास गाते हैं, सभी उन्ही के लिखे भी होते हैं। मेरे दोस्त सुदीप के बड़े भाई “संदीप भैया” ने मेरा ये भ्रम दूर किया। उन्होंने मुझे बताया कि बड़े-बड़े शायरों के लिखे शेर और नज़्म ये लोग गाते हैं। इनसे मुझे एक और महत्वपूर्ण बात पता चली कि ‘समवन समवेयर’ एल्बम के निकलने के पहले ही जगजीत सिंह के बेटे का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया था और जगजीत सिंह ने यह एल्बम अपने बेटे को समर्पित किया था। इसके बाद चित्रा सिंह ने गज़लों से सन्यास ले लिया। संदीप भैया को भी शायरी का अच्छा खासा शौक था, उन्होंने जब मेरा भ्रम दूर किया तो उससे एक फायदा हुआ… मुझे शायरों के नाम भी पता चलने लगे। एक दिन अपना बाज़ार (गांधी मैदान, पटना) में मैं किताब खरीदने गया। वहां पुरानी किताबों में मेरी नज़र गई निदा फाजली की एक शायरी की किताब पर। एकाएक याद आया कि मैंने जगजीत सिंह के किसी एल्बम में निदा फाजली का नाम भी देखा था। झट से वो किताब मैंने उसी वक्त खरीद ली… आज भी याद है जब एक दोस्त का देश से बाहर जाना हुआ था, तब मैंने तीन-चार पन्नों पर सिर्फ और सिर्फ जगजीत सिंह के गज़ल और निदा फाजली के कुछ शेर लिखकर उसे जाने से एक दिन पहले दिया था।

मेरी डायरी जिसमें मैंने जगजीत सिंह के गज़ल लिखे हुए थे, वो मेरे इंजीनियरिंग के दिनों में मेरे कई साथी के काम आई। सभी को उनमें से कुछ न कुछ मिल ही जाता था अपनी महबूबा को लिखने के लिए। मेरी डायरी की भी बहुत मांग थी उन दिनों, खास कर उन लड़कों में जो लड़कियों में थोड़ी दिलचस्पी दिखाते थे। एक दिन कुछ यूं हुआ कि एक साथी ने मुझसे एक दिन के लिए डायरी मांगी, मैंने भी दे दी… लेकिन फिर उस डायरी में लिखे शायरी और गज़लों का मजाक उड़ने लगा… ये मुझे गंवारा नहीं हुआ और उससे मेरी अच्छी खासी तीखी बहस भी हो गई। दसवीं के बाद से मेरी डायरी में सिर्फ और सिर्फ गुलज़ार साहब के नज़्म, जगजीत जी और पंकज उधास के गाए गज़ल ही लिखे होते थे। और धीरे-धीरे इन तीनों के लिए मेरे दिल में बेपनाह इज्जत होने लगी थी… इनके गज़लों को कोई ऐसे ही भला बुरा कहता रहे मेरे सामने और मैं चुप रहूं, ये मुमकिन नहीं था। बाद में उस साथी को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने मुझसे माफ़ी भी मांगी।

जगजीत जी से जुड़ी और भी कितनी ही ऐसी बातें हैं जो मुझे याद आ रही हैं, लेकिन आज के दिन बस इतना ही। बाकी कुछ भी अगर कभी दिल किया तब लिखूंगा।

  1. जगजीत सिंह के गायन में एक पूरी पीढी की भावनायें अभिव्यक्त हुई हैं – श्रद्धांजलि!

  2. बचपन में कहीं पढ़ी एक बात आज भी याद रह गई…mortal man, immortal melody
    जगजीत सिंह जैसे सुर-साधकों पर ये बात कितनी सटीक बैठती है न…? उनके जाने के 5 साल बाद भी क्या किसी के दिल से उनकी पुरकशिश आवाज़ का जादू गया है ?

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