आज की ये ख़ास पोस्ट है, गुलज़ार साहब के जन्मदिन के मौके पर. सोचा तो था आज कुछ अपनी बात कहूँगा, कुछ गुलज़ार साहब के लिए लिखूंगा, लेकिन मौका ही नहीं मिला आज. फेसबुक पर एक ग्रुप है गुलज़ार साहब के फैन्स का ग्रुप (जी-मित्र के नाम से), वहीँ से आज सुबह एक बेहतरीन लिंक हाथ लगा था, १९८५ में गुलज़ार साहब ने विविध भारती के लिए जो जयमाला कार्यक्रम प्रस्तुत किया था, उसकी बीस मिनट की ये रिकॉर्डिंग. तो आज पूराने दिनों का मजा लीजिये, और सुनिए जयमाला, गुलज़ार साहब की आवाज़ में.
– जयमाला १-
देश के जवानों, जवान भाइयों, जवान साथियों, आपका ये कार्यक्रम उधार था मुझपर. आज मैं हाज़िर हूँ. चलिए शुरुआत करते हैं फिल्म खुशबु के नगमें से. आशाजी की आवाज़ और संगीत आर.डी.बर्मन का.
मेहंदी लगायेगी रे, काजल सजायेगी रे
दुल्हनिया मर जायेगी ( फिल्म : खुशबु)
आये कहाँ से..जाए कहाँ रे..
लहराए पानी में जैसे धुप छाँव रे (फिल्म : काबुलीवाला)
जवान दोस्तों, आप बहुत खुशकिस्मत हैं की आप हमेशा जवान ही कहलाते है. हमारी तरह आप बूढ़े नहीं होते. और मेरे जैसे शायर को तो लोग बचपन से ही बूढ़ा कहते हैं. हवाला देते हैं दूसरी सीता के नगमें का. संगीतकार भी वोही बूढ़ा जो शायद अपनी दाढ़ी के साथ ही पैदा हुआ था, श्रीमान आर.डी.बर्मन
अपनी सलीबें आप ही उठाये (फिल्म : दूसरी सीता)
भीगी हुयी अखियों ने लाख बुझाई रैना . (फिल्म : परिचय)
चाँद कटोरा लिये भिखारन रात (फिल्म : मेरे अपने)
हाथ से छूके इसे, रिश्तो का इल्जाम ना दो
सिर्फ एहसास हैं ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो ( फिल्म : ख़ामोशी)
कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज कदम राहें (फिल्म : आंधी)
– जयमाला २ –
फौजी भाइयों, आदाब! बहुत दिन बाद फिर आपकी महफ़िल में शामिल हो रहा हूँ. इससे पहले जब भी आपके पास आया तो कोई न कोई नयी तरकीब लेकर गानों की, जिसमें मैंने कई तरह के गाने आपको सुनाये, जैसे “रेल की पटरी” पर चलते हुए गाने सुनाये थे एक बार, वो तमाम गाने जिनमें रेल कि पटरी की आवाज़ भी सुनाई देती है और एक बार आम आदमी के मसलों पर गाने सुनाये जो लक्ष्मण के कार्टूनों जैसे लगते हैं. लेकिन मजाक के पीछे कहीं बहुत गहरे, बहुत संजीदे दर्द भरे हुए हैं इन गानों में. बच्चों के साथ गाये गाने भी आपको सुनाये. खेलते कूदते हुए गाने, लोरियां सुनाई आपको, और बहुत से दोस्तों की चिट्ठियाँ जब आयीं, चाहने वालों की चिट्ठियां आई, जिनमें शिकायतें भी, गिले भी, शिकवे भी थे. उनमें एक बात बहुत से दोस्तों ने कही कि हर बार आप कुछ मजाक करके हंस हंसाकर रेडियो से चले जाते हैं, जितनी बार आप आते हैं, हर बार हम आपसे कुछ संजीदा बातें सुनना चाहते हैं कि संजीदा सिचुएशन आप कैसे लिखते हैं, क्या लिखते हैं… और हाँ ये किसी ने नहीं पूछा की क्यों लिखते हैं. फौजी भाइयों आप तो वतन की सरहदों पर बैठे हैं. और मैं आपको बहलाते हुए, आपके परिवार वालों को भी बहलाने की कोशिश करता हूँ. हाँ उन सरहदों की बात कभी नहीं करता जो दिलों में पैदा हो जाते हैं. कभी जुड़ती हुई, कभी टूटती हुई, कभी बनती हुई, गुम होती हुई सरहदें…या सिर्फ हदें. इस तरह के रिश्ते सभी के ज़िन्दगी से गुज़रते हैं. वो ज़िन्दगी जिसे एक सुबह एक मोड़ पर देखा था. तो कहा था – हाथ मिला ए ज़िन्दगी, आँख मिलाकर बात कर !
रात बीत गयी दोस्तों, लेकिन खवाब नहीं टूटा. या कहिये कि टूटा तो उसकी किरचें कहीं सीने के अन्दर भी जी गयीं. वो ख्वाब जो सिर्फ एक ही ख्वाब था, वो रात जो सिर्फ एक ही रात थी, उम्र से लम्बी रात हो गयी, और वो रात जो ज़रा सी चिंगारी की तरह जल गया था सीने में, ज़िन्दगी भर के लिए सुलगता रह गया. ऐसी ही एक चिंगारी को देखिये तो एक शायर ने कैसे महसूस किया है, और शायर का नाम है आनंद बक्षी.
चिंगारी कोइ भड़के, तो सावन उसे बुझाये
सावन जो अगन लगाये , उसे कौन बुझाये
पतझड जो बाग़ उजाड़े, वो बाग़ बहार खिलाये
जो बाग़ बहार में उजड़े, उसे कौन खिलाये (फिल्म : अमर प्रेम)
ना साहब, ये चिंगारी नहीं बुझती. आग सुख जाए शोले खुश्क हो जाएँ, लेकिन ये चिंगारी तो सिर्फ उगती रहती है. आँख इसे सींचती ही रहती हैं, जाने कहाँ कहाँ से सावन चुन चुन के लाती हैं. कहाँ कहाँ से मेघा बटोरती हैं…
बड़ी देर से मेघा बरसा हो रामा
जली कितनी रतियाँ ( फिल्म : नमकीन)
लाख कसमें दीं, वास्ते दिए, जानेवाले कभी वापस आते हैं क्या? दिन भी कट जाती हैं, रात भी कट जाते हैं. सांस सांस कर के उम्र भी कट जायेगी…सहने वालों ने तो अब लब भी सिल लिए, कोई गिला नहीं कोई शिकवा नहीं.
तेरे बीना ज़िन्दगी से कोइ, शिकवा तो नहीं
शिकवा नहीं, शिकवा नहीं, शिकवा नहीं
तेरे बीना ज़िन्दगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं
ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं, ज़िन्दगी नहीं ( फिल्म : आँधी )
दर्द का तानाबाना बुनने वाले जुलाहे से एक बार किसी को पूछते सुना था –
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिरह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो एक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहें
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे
बड़ी वफ़ा से निभाई तुम ने, हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई ( फिल्म : थोड़ी सी बेवफाई)
आज की इस पोस्ट में बस इतना ही. अगले पोस्ट में भी एक और जयमाला कार्यक्रम सुनिए. तब तक इंतजार कीजिये
चेसिस की तारीख़ पूछ लो
कब की मैन्युफैक्चर है वो
वरना अकसर ठग लेते हैं गाड़ियां बेचने वाले!
मेरी चेसिस की तारीख़
अट्ठारह अगस्त उन्नीस सौ चौंतीस है!!
हैप्पी बर्थडे गुलज़ार साहब !
कितनी मेहनत से तुमने ये पोस्ट तैयार की है…हमको अच्छे से पता है…। गुलज़ार साहब से क्षमायाचना सहित कहूँगी…तुम्हारे जैसे चाहने वालों के दम पर ही कोई गुलज़ार इस तरह गुलज़ार साहब बनते हैं…।
बाकी तो वो हैं ही बेमिसाल…।
गुलज़ार जी की आवाज सुनना एकदम नया अनुभव लगा । हालांकि मैं उनसे एकलव्य भोपाल में मिल चुकी हूँ । उन्होंने बात भी की पर तब मेरा ध्यान शायद उनकी आवाज पर नही गया था । आवाज और उनके गीत के बोल दो अलग तरह का अनुभव देते हैं ।
गुलज़ार साहब की आवाज़ का जादू उनकी तमाम नज़्मों को रूह बख्शता है.. नज़्में ज़िन्दा हो जाती हैं और उनमें मँहकने लगती है ख़ुशबू रिश्तों की, मोहब्बत की और अदब की!
देखो आज जाकर मौक़ा मिला मुझे यह देखने का! वैसे उनको ये बता देना कि उनकी चेसिस की मैन्युफ़ैक्चरिंग डेट में तारीख़ तो है, लेकिन साल नहीं!! 🙂
दुर्लभ यादें !
गुलज़ार साहब संवेदना और शब्दों में मित्रता कराने वाले उत्कृष्ट गीतकार है।
उनके जन्म दिन पर उन्हें अनेक शुभकामनाएं।
बेहद सुखद …. पुरानी यादें ताज़ा हो गयी …. गुलज़ार साहब जैसे व्यक्तित्व किसी तारीख़ के मोहताज़ नहीं होते … अशेष शुभकामनाएं ….