कुछ पुरानी यादों के नशे में – एक बार फिर

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इस दफ़े जब मैं पटना आ रहा था तो रास्ते में ही मुझे यह ख़बर मिली कि मेरी बड़ी मौसी भी पटना आई हुई हैं। उनके पटना आने की ख़बर मुझे पहले नहीं थी। मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि मौसी पटना आ रही हैं। मैंने सोचा, चलो इस बार पटना आना थोड़ा सफल हुआ लगता है.. बचपन के चार दोस्त एक अरसे के बाद पटना में मिल रहे हैं और अब मौसी भी पटना पहुँच गई हैं। बचपन में हम दोनों भाई-बहन ज्यादातर अपनी दोनों मौसियों के ही पास रहे, तो ऐसे में बड़ी मौसी और छोटी मौसी से ज्यादा लगाव होना लाजमी है.. तो इसलिए जब मुझे पता चला कि बड़ी मौसी पटना आ रही हैं, तो ज्यादा ख़ुशी हुई। बड़ी मौसी (सुधा मौसी) से पिछले कुछ समय में जब भी मुलाकात हुई, तो हमेशा कोई न कोई खास मौके ही, जैसे पिछले डेढ़ दो सालों में सुधा मौसी से मुलाकात बस दो दफ़े ही अच्छे से हुई है। एक मेरी बहन की सगाई पे तो दूसरी बार बहन की शादी में। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि इत्मीनान से मौसी से बैठकर बात किए अच्छे खासे दिन हो गए थे।

कल दिन में नानी के घर पे ही सब लोग इकट्ठे हुए। यह मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि मेरे बचपन की लगभग सभी यादें नानी घर से जुड़ी हुई हैं। कल शाम भी जब मौसी, मौसा और मामी के साथ बैठा हुआ था तो कई पुरानी यादों का पिटारा खुलते गया। कुछ ऐसी जगहें होती हैं, जो कई पुरानी बातों की याद दिलाती हैं। मेरे लिए ऐसी काफी जगहें हैं, जहाँ जब भी जाता हूँ, तन्हाई में कभी समय गुजारता हूँ तो पुरानी बातें, यादें एक फिल्म सी मेरे ज़हन में चलने लगती हैं। नानी घर का जो बरामदा और छत है, ये दो ऐसी जगहें हैं जहाँ अक्सर मुझे पुरानी बातें अनायास याद आ जाती हैं.. और इस बार तो मौसी ने सब बचपन की बातें याद दिलानी शुरू कर दी।

90s kid old nostalgic photos

सुधा मौसी शादी से पहले शिक्षिका थीं, और पास के ही मोडर्न स्कूल में वो पढ़ाती थीं। मेरा पहला स्कूल भी मोडर्न स्कूल ही था, जहाँ मुझे नर्सरी में दाखिला दिलवाया गया था। मैं इस बात से अनजान था, कि मेरे स्कूल आने जाने के क्रम में ही मौसी को उस स्कूल में पढ़ाने का प्रस्ताव मिला था। सुधा मौसी ने उस स्कूल में लंबे अरसे तक बच्चों को पढ़ाया। मुझे उन दिनों की बातें याद हैं जब मौसी बच्चों के एंसर शीट घर लाती थीं, चेक करने। उस समय मैं एंसर शीट देख बड़ा उत्साहित सा हो जाता था और अक्सर मौसी के जोड़े हुए नंबरों को फिर से जोड़ने लगता था। शायद तीसरी कक्षा में रहा हूँगा उस वक्त, याद नहीं। कहते हैं न कि अगर अच्छे टीचर्स मिले तो बच्चों को उन टीचर्स के नाम, शक्ल याद रह जाते हैं। ऐसा ही एक वाकया है। मैं इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, छठे सेमेस्टर की बात है, एक दिन अपने रूम में बैठे-बैठे एल्बम में पुरानी तस्वीरों को देख रहा था। मेरा एक मित्र सौरभ भी साथ में बैठा मेरे साथ तस्वीरें देख रहा था। एल्बम की एक तस्वीर में सुधा मौसी हम दोनों भाई-बहनों को गोद में लिए हुई हैं। वो तस्वीर देखते ही हमारे मित्र सौरभ बाबू कहने लगे – “अरे, ये तो सुधा मिस हैं.. आप कैसे जानते हैं इनको?”। मैंने कहा – “अरे ये तो मेरी मौसी है, मेरी बड़ी मौसी”। फिर सौरभ बाबू अपने चीर परिचित अंदाज में एकदम एक्साइटेड होके कहने लगे..”अरे वाह! सुधा मिस हीं तो हमको पढ़ाती थीं पहले”। फिर सौरभ ने बताया कि उन्होंने भी मोडर्न स्कूल से ही शुरुआत की पढ़ाई की। मैंने कहा उनसे, कि जब मिलूँगा सुधा मौसी से तो आपके बारे में पूछ के देखूंगा। फिर जब छुट्टियों में घर आया और उस समय सुधा मौसी से मुलाकात हुई तो सोचा कि देखता हूँ मौसी को अपने पुराने छात्रों के नाम याद हैं या नहीं। कमाल की बात ये है, कि मौसी को जब बताया सौरभ के बारे में तो वो भी तुरंत पहचान गईं, और तो और उन्हें सौरभ की बहनों के भी नाम याद थे, जो उसी स्कूल में पढ़ने आती थीं। खैर, इन सब बातों में एक बात मेरे काम की पता चली, कि सौरभ बाबू बचपन से ही बहुत शरारती थे। 🙂

कल मौसी ने एक पते की बात भी कन्फर्म कर दी, कि मैं बचपन में बड़ा डरपोक किस्म का बच्चा था। मौसी कहती हैं कि, जब भी शाम में उनके साथ बाज़ार जाता और शाम गहराने लगती, अंधेरा होना शुरू हो जाता तो मैं मौसी को तंग करने लगता, उनसे चिपक जाता… कहता कि “अब बहुत हो गया, वापस चलो… हमको डर लग रहा है :P”। यही बात एक दफ़े छोटी मौसी भी बता रही थी, लेकिन उस वक्त मुझे लगा वो यूंही कह रही हैं ये बातें। मेरे स्कूल जाने के भी बड़े चटपटे किस्से रहे हैं, मैं स्कूल जाने से हद भागता था, और माँ-पापा-नानी-मौसी-मामा सब मुझे तरह-तरह के लालच दे के स्कूल ले जाया करते थे। कभी पिकनिक ले जाने का बहाना बनाते तो कभी कुछ और तरह से फुसला के मुझे स्कूल ले जाते थे। अब सोचता हूँ कि मैं बचपन में कितना बुद्धू था कि सब की फुसलाहट भरी बातों में आ जाया करता था और स्कूल चला जाया करता था। लगता है कि बचपन में सभी बच्चे ऐसे ही सीधे-सादे होते हैं, इसलिए तो परिवार वाले उन्हें कितनी आसानी से बेवकूफ बना जाया करते हैं। बचपन में मेरे सभी बच्चे कोई न कोई शरारत करते ही हैं, लेकिन पता नहीं क्यों मेरे दो नासमझ मित्रों को ये लगता है कि मैं बचपन में काफी शरारती रहा हूँगा। तो उन्हें ये बता दूँ कि अभी तक जितने भी अपने बचपन के किस्से मैंने सुने हैं, जितनी भी बातें मौसियों ने और मामाओं ने बताई हैं मुझे, उनमें इस बात का बिलकुल भी प्रमाण नहीं मिलता कि मैं शरारती बच्चा था, बल्कि बेहद शरीफ और शांत बच्चा था मैं.. ये बात सिर्फ उन दो लोगों को टारगेट कर के लिखी जा रही है, जिनके मन में ये ग़लतफ़हमी थी।

बातों के सिलसिले में कुछ पुरानी बातें भी उठी, कि कैसे एक दफ़े जब पटना में भूकंप की अफवाह फैली थी, तो सब लोग आधी रात को घर से बाहर सड़कों पे निकल आए थे, और जब एक दफ़े घर में बिजली के मेन स्विच में एकाएक शॉर्ट सर्किट की वजह से आग पकड़ गई तो कैसे मेरी छोटी मौसी (जो अभी दिल्ली में रह रही हैं), तुरंत पीछे वाले गेट से दीवार फांद के बाहर से ‘बालू’ लेती आ गई। जब तक सब लोग बाहर मेन गेट खोलते, तब तक छोटी मौसी बालू भी लेती आई थी, जिसके वजह से आग पे काबू पाया जा सका। उस रात जहाँ तक मुझे याद है वी.सी.पी पे कोई फिल्म चल रही थी। शायद ‘चांदनी’.. याद नहीं है सही से। उन्हीं दिनों एक बार जोर-शोर से एक चोर की अफवाहें फैली थीं, जिसके वजह से पूरे मोहल्ले के लोग कुछ खास सतर्कता से रहने लगे। और हर दिन कोई न कोई ये बात उठा ही देता था कि उसने चोर को देखा है।

ऐसी पता नहीं कितनी ही बातें हैं, जो कभी-कभी याद आ ही जाती हैं, या कभी परिवार वालों के बीच रहता हूँ तो ये बातें रिपीट होती रहती हैं। अब जब तक पटना में हूँ, शायद पुरानी बातों को ब्लॉग पे लिखता चलूँ, एक और पोस्ट इस पोस्ट के साथ लिख चुका हूँ, जिसमें मेरे एक पुराने दोस्त (टेप रिकॉर्डर) का ज़िक्र है। करता हूँ कभी समय निकाल के उसे पोस्ट।

  1. अरे वाह! पता है मेरी भी तीन मौसियाँ थीं, पर उनमें से मैं सिर्फ़ एक से मिली हूँ. वो मुम्बई में रहती हैं. अम्मा की चार बहनों में एक वे ही जीवित हैं. लेकिन मैं अपने ननिहाल अपने जीवन में सिर्फ़ दो बार गयी हूँ. हमलोग तो अपने बाबा के यहाँ ही जाते थे और वो भी चार-पाँच साल में एक बार.
    तुम्हारी लिखी बातें अपनी सी लगती हैं. और चिंता की कोई बात नहीं है बचपन में मैं भी बहुत सीधी थी 🙂

  2. कितने प्यार से सिलसिलेवार यादों को समेटते हो…
    हम भी साथ बह जाते हैं….एक चलचित्र सा पैरेलल भी कुछ चलने लगता है….ये सब पढ़ते हुए.

  3. "मेरे बचपन की लगभग सभी यादें नानी घर से जुड़ी हुई है." मेरे बचपन की यादें भी ननिहाल से जुड़ी है..आधा अधूरा सा लिखा है…मेरा यादों का पिटारा भी खुल गया….यही यादें तो अपनी धरोहर है..

  4. शाम होते ही मेरे घर में लगता है यादों का डेरा…
    शाम और मौसी नानी के साथ..किस्से तो पुराने याद आयेंगे ही….

  5. अभिषेक जी, बहुत अच्छा लगा आपके संस्मरण को पढकर. आगे भी लिखते रहिये, आपको पढ़ना अच्छा लगता है. जी प्रणाम!

  6. @स्तुति,
    आसपास कोई डॉक्टर है तो तुरत दिखलाओ बिना देरी किये…इमरजेंसी केस है तुम्हारा 😛

  7. हा हा हा हा हा ….अजय भईया गलतियो से देख लिए न ता कहेंगे की ई दुन्नो यहाँ भी चालू…

    "जी प्रणाम" 😀 :D:D:D:D:D:D:DD:D:D

  8. वत्स आज तो राही मासूम याद आ रहे हैं:
    यादें बादलों की तरह हल्की फुल्की नहीं होतीं कि आहिस्ता से गुजार जाएँ.. यादें एक पूरा ज़माना होती हैं और ज़माना कभी हल्का नहीं होता..

  9. नानी के घर से जुडी मेरी भी अनगिनत यादें हैं…तो एक बार फिर हमेशा की तरह अपने साथ बड़ी सहजता और खूबसूरती से तुम अपनी यादों की दुनिया में सैर करा लाए…|
    कैसे लिख लेते हो इतना अच्छा…???

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