यह पोस्ट मेरी उन यादों के लिए है जो मेरे दिल के बेहद करीब हैं। पोस्ट पढ़ने से पहले कृपया इन पंक्तियों पर एक नजर डालें:
“हम भी कभी आबाद थे,
वो दिन कुछ ख़ास थे…
हर नज़र मेहरबान थी,
ऐसे कहाँ अनजान थी॥”
यह बात पिछले साल आज ही के दिन की है। मैं मामी के घर पर था और अपनी बहन सोना से पुराने स्कूल के दिनों की बातें कर रहा था। सोना मुझसे छोटी है, तो मैं उसे अपने स्कूल की कहानियां सुना रहा था। ये कहानियां कुछ खास नहीं थीं, बस मेरे दिल के करीब थीं। मैंने उसे अपने खूबसूरत पलों के किस्से सुनाए, और वो इन्हें सुनकर खुश थी। मैं भी अपनी पुरानी यादों को ताजा करके बहुत खुश हो रहा था।
पुराने दोस्तों की बातें, शरारतों की बातें, पहले प्यार के किस्से, किसी खास का जिक्र—हम बातों में इतने मशगूल हो गए कि कब रात का एक बज गया, पता ही नहीं चला। मेरी बहन सोने चली गई, लेकिन मैं देर तक जागता रहा। ज़हन में वही पुराने किस्से घूमते रहे। लगभग पूरी रात उन्हीं यादों में जागता रहा।
वो दिन ही कुछ ऐसे थे, वो पल बेहद खास थे…
तब हर कोई हमारे करीब था, दिल से बहुत नज़दीक। अब तो सभी अपनी-अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हो गए हैं कि खुद के लिए भी वक्त नहीं निकाल पाते।
उन सुनहरी यादों को समर्पित मैंने एक छोटी-सी कविता लिखी थी। मैं कवि नहीं हूँ, तो कृपया कविता में हुई गलतियों को नजरअंदाज करें:
वे दिन याद आते हैं,
जब हम हँसते थे, मुस्कुराते थे,
खेलते थे, गुनगुनाते थे।
परिंदों की तरह इधर-उधर फिरते थे,
दुनियादारी की उलझनों से
अनजान थे।
वो मेरे स्कूल के दिन,
और कोचिंग क्लासेज की
अनगिनत यादें
अक्सर शाम में
मुझसे मिलने आती हैं।
मुझे उनसे बातें करना अच्छा लगता है,
उन यादों के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है।
शाम की वो मस्ती,
चंदू की दुकान की चाय-पकौड़ियाँ हो
या गोविन्द भाई की चाओमिन,
ब्लू मून के टिक्के-कबाब हो या
सैंडविच की पेस्ट्री,
पाँच रुपये वाली वो फाउंटेन पेप्सी,
जिसे पी-पीकर
टल्ली होने की एक्टिंग करना
या संतुष्टि में लौंगलता खाने का चैलेंज जीतना।
हर शाम की एक अजब बात थी।
दोस्तों के संग भटकना हो,
या बस लक्ष्मी कॉम्प्लेक्स में
चक्कर काटते रहना।
स्कूल जाने के बजाय
फिल्में देखने जाना हो,
लड़कियों से बातें कर खुश होना
या उन्हें पटाने के तरीके ढूँढकर
उनके पीछे-पीछे घूमना।
हर पल में कितना कुछ था।
बेफिक्र थे हम, आज़ाद थे।
खुशहाल थे, आबाद थे।
एक लड़की से मुझे प्यार हुआ था,
नया-नया अहसास हुआ था।
उसकी यादों में दिनभर डूबा रहता था दिल।
अपने प्यार के इज़हार के लिए
रोज़ नए तरीके ढूँढता था।
और उसके सामने आते ही
सब कुछ भूल जाना
या नज़रें झुका उल्टे पाँव लौट जाना।
रातभर उसके ख्यालों में जागना
या पूरी शाम उसे याद कर
उलटी-सीधी तुकबंदी की कविताएँ लिखना।
वो मीठी बेताबी,
पहले प्यार का वो प्यारा अहसास,
आज भी मेरे साथ है।
वो दिलनशीं, वो माहेरू,
मेरा सनम, मेरी जान है।
जाड़े का वो मौसम,
और मेरा वो पुराना क्वार्टर,
जहाँ धूप आती थी बेशुमार।
घंटों बैठे रहना जाड़ों की उस धूप में,
कोर्स की किताबों में छुपाकर
कॉमिक्स, कहानियों और शायरी की किताबें पढ़ना।
या कॉपी के आखिरी पन्ने पर
किसी खास के लिए खत लिखना।
घर के बड़े लॉन में
क्रिकेट-बैडमिंटन खेलना
या फिर वहीं टेबल-कुर्सी पर
कैरमबोर्ड और लूडो खेलना।
मोहल्ले के लड़कों को चैलेंज देना,
“दम है तो आउट करके दिखाओ!”
या पूरी शाम बगीचे में बैठकर
दोस्तों से दुनिया-जहान की
गप्पें करना।
घर के बगीचे में
सुबह-शाम पेड़ों-पौधों में पानी देना
या कभी तन्हाई में
उन फूलों से बातें करना।
ज़िंदगी जैसे फूलों-सी रंगीन थी।
वो घर बड़ा मेहरबान था,
खुशियों का एक संसार जैसा।
वो घर भी मुझे अक्सर याद आता है।
परीक्षाएँ खत्म होने पर
नानी के घर जाना,
और वहाँ जाकर शाम में
डी.के. की दुकान के समोसे-जलेबियाँ खाना।
नानी से मज़ेदार कहानियाँ सुनना,
या मोहल्ले के भैया-दीदियों के साथ
पूरी शाम बातें करना।
कभी घर से पैसे मिलने पर
भागकर दुकान जाना,
और नई फिल्मों के कैसेट खरीद लाना।
या ब्लैंक कैसेट में गाने रिकॉर्ड करवाना,
फिर घर आकर
उत्साह से उन्हें सुनना,
एक बार, दो बार, तीन बार… रिपीट मोड में।
वो मेरी साइकिल,
साइकिल से हर जगह जाना।
हर इतवार उसे
नहला-धुलाकर दुल्हन-सा सजाना,
और फिर शाम में
बड़े शान से सड़कों पर चलाना।
वैसी मस्ती जो अब गाड़ी में नहीं होती।
जब साइकिल पर चलते थे,
तो हवाओं से बातें करते थे।
अपनी वो साइकिल, वो जानेमन,
अब तन्हाई में याद आती है।
मेरा पुराना कोडक कैमरा,
न जाने कितने लम्हे उसमें कैद किए होंगे।
डिजिटल फोटो में अब
मोबाइल कैमरों में वो बात नहीं
जो रील वाले कैमरे में होती थी।
हर फोटो की अहमियत थी।
रील खत्म होने पर
उसे डेवलप कराने की बेचैनी।
अब के डिजिटल कैमरे में वो बात कहाँ।
मेरी पहली जीत,
पुरस्कार में मिला वो टेप-रिकॉर्डर।
जो जाने कब कैसे
मेरा सबसे अच्छा दोस्त बन गया।
हर पल मेरे साथ रहा वो,
दुख-सुख के नगमे सुनाता हुआ।
जान से भी प्यारा था वो।
वो टेप-रिकॉर्डर, मेरा वो दोस्त,
आज भी बहुत याद आता है।
ऐसी ही अनगिनत यादें,
जाने कितनी बातें
आज याद आ रही हैं।
यादों का तूफ़ान
दिल में उठा रही हैं।
वो पल, मेरे सुनहरे दिन,
अगर फिर से लौट आएँ
तो एक बार फिर
हम जी लें वो
बेफिक्र, बिंदास, और बेतकल्लुफ-सी ज़िंदगी।
एक बार फिर चले जाएँ
अपने बचपन के दिनों में।
जब हम हँसते थे, मुस्कुराते थे,
खेलते थे, गुनगुनाते थे।
सच,
हर पल में ज़िंदगी समाई हुई-सी लगती थी।
i realy dont kno wot 2 write..!
hadd se zyadaa achaa hai ye post.. n i realy mean it..!
i wz cmpletly lost wen i wz reading it..!
bhaiya.. may b it wz d bestest part of ur lyf.. but i feel.. ki u shud b happie.. coz u can create such moments again.. its not dat easy.. but its not impossible also..
i wz feeling.. my days wud b lost someday…n i dont want dat..
dats y i wz sad reading dis post..
i guess.. it wz d best tym of ur lyf.. but not d only best tym.. smthings will b back again..! 🙂
bht hi achha …. aur sampooran saaransh diya hai aapne apne bachpan ka … iss gadhyaansh k maadhyam se …. !
main bhi kahin naa kahin apne bachpan ko isse juda hua mehsoos kar raha hun ….! 🙂
yaar tune to mujhe bhi purane dino ki yaad dila di..
aur ye video mere bhi faves mein aata hai..!! 🙂
so very nice ..
completely luvd it 🙂
bahut se purani baatein yaad aayi apni….thanks 🙂
Hmmm ! Really heart touching poem ! Kisi ko bhi apna bachpan yaad dila skti hai ! I must say dis is one of ur bestest evr creation ! Really kya bolu…..totally speechless … !
Not an easy task to summarize such moments but itzz not so tough 4 u.. ! U really rox bro 🙂
haan 1 thing 1 wanna say ki wo last mei video ni chali 😀 maine 4-5 baar try kiya….so plzz zara dekhna 😀 😀 hehee….baki in ol ye really apki lyf k sabse sunhare pal the….sabse sunhare…. 🙂
waahhh main bhi bhari bhari wrdss likhne lag gya 😀 batao ab 😛
wow.. fantastic yarr…
i was completely in old memories when i ws reading the post……..
very very good..
wow.. fantastic yarr…
i was completely in old memories when i ws reading the post……..
very very good..
asum kavita aur sach bataoun to mujhe apne school k din yaad aa gaye jab main tution padhne jata tha aur wahi sub karta tha jo aapne iss kavita me likha hai…sach me dil ko chu jati hai ye kavita …. likhte rahiye..hamri subhkamnaye hamesha aapke saath hai…..
hello abhishek ji
i truly liked ur poem..
very very good…luvd it 🙂
keep writing
aapki jitni tareef karu kam hai 🙂 its really toooo toooo toooo good … awesome poem but mujhe poem se upar ka description jyaada acchha laga 🙂
really mujhe words nahi mil rahe inki tareef karne ke liye …
in all poem & detail both were awesome 🙂
This comment has been removed by the author.
i mean ds is great stuff man…
truly very gud…..
i olwyz cherish my good old dyz….
itz so heartwarming………..
so so so very gud
bhai …i m not on a place 2 comment on these thngs…but u kne bro u hv so much 2 give 2 others…hope ppl like me can tk point 1% also 4rm u….ds site is amazing…truly….
its lovely sir !!!!!!!!!!!!
thanks for sharing this on facebook
बहुत खूबसूरती से यादो को पिरोया है।
यादें यादें और बस यादें… इन यादों में जीना अच्छा लगता है…
कुछ कहें क्या…??? पर इतना अच्छा लिखा है कि शब्द नहीं मिल रहे तारीफ के लिए…|
Yrr tum hame rula hi diya ye purani yade de kar hame sochane keliye majboor kar diya . Kuch bhi kabita mast hai
Yrr tum hame rula hi diya ye purani yade de kar hame sochane keliye majboor kar diya . Kuch bhi kabita mast hai