कोरोना काल में फ्लाइट से जाना मतलब जंग पर निकलना

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nikky and me

किसे पता था ये दिन भी देखना पड़ेगा.. आज दिल्ली के लिए वापसी हो रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे फ्लाइट पर नहीं जाना है, मानो हम जंग पर निकल रहे हों. 

फ्लाइट जिस दिन था, उसके एक सप्ताह पहले तक ये इनफार्मेशन कलेक्ट कर रहे थे कि क्या क्या नए नियम हैं फ्लाइट से. लॉकडाउन के बाद जिसने भी फ्लाइट से सफ़र किया उन सब से संपर्क कर के ये पता करने की कोशिश कर रहे थे कि कैसे कैसे नए नियम के साथ एयरट्रेवल करना है.

मुझे वे दिन भी याद आये जब पहली दफा फ्लाइट पर चढ़ा था. मेरी बहन पहले फ्लाइट से सफ़र कर चुकी थी और उससे हर बारीक़ से बारीक़ चीज़ मैं पूछ रहा था कि कैसे जाना होता है फ्लाइट से. इस बार कुछ वैसी ही फीलिंग आ रही थी. 

जो डर था वो एयरपोर्ट पर की गयी व्यवस्थाओं को देखकर कुछ हद तक कम हो गया. लेकिन जैसे ही जहाज में बोर्डिंग का अनाउंसमेंट हुआ लगा लोग खुले सांड जैसे बन गए हों. हर एक व्यक्ति जल्दबाजी में धक्का धुक्की करने लगा. उधर अनाउंसमेंट हो रही थी कि कृपया दूरी बनाये रखे लेकिन उसे सुनने का वक्त किसके पास था. 

जबकि फ्लाइट में हर का सीट तय रहता है, यहाँ लोकल बस वाली बात तो है नहीं कि लोग विंडो सीट लूटने के लिए बेक़रार रहते हैं. लेकिन फिर भी लगा ऐसे जैसे हम फ्लाइट से नहीं लोकल बस या ट्रेन से सफ़र कर रहे हों. 

फ्लाइट लैंडिंग के वक़्त भी ऐसा ही नज़ारा देखा. लोग ऐसे जल्दबाजी में फ्लाइट से उतरने को बेक़रार थे जैसे फ्लाइट उनके उतरने से पहले ही फिर टेकऑफ ले लेगी. 

खैर, खैरियत से हम दिल्ली पहुँच गए हैं और अब कुछ दिन घर में ही सेल्फ आइसोलेट रहना है और उसके बाद भी घर में ही रह कर काम करना है. 

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