गाने के बनने की कहानी, गुलज़ार साहब की ज़ुबानी – दूसरा भाग

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अचानक से आज बैंगलोर की एक खूबसूरत शाम याद आ गई। अपने बेहद करीबी दोस्त के साथ गरुड़ा मॉल के सी.सी.डी में बैठा हुआ था। बड़ी ही खूबसूरत बातें हो रही थीं, गुलज़ार हैंगोवर भी चढ़ा हुआ था मुझ पर। उन्हीं खूबसूरत बातों के बीच मैं कभी-कभी गुलज़ार साहब की कोई नज़्म या त्रिवेणी ठोक देता था, जिससे मेरा वो मित्र बहुत खुश हो जाता। हर नज़्म पर उसकी एक्साइटमेंट लेवल पहले से ज्यादा लगती मुझे। देर शाम तक हम वहाँ बैठे रहे। फिर जब हम वापस घर आए तो पूरी रात बातों का सिलसिला चलता रहा। सुबह पांच बजे हमें चाय की तलब हुई, बाहर हल्की बारिश हो रही थी। हम निकलने ही वाले थे कि उस मित्र ने मुझसे एक शेर या कोई नज़्म की फरमाइश की। मैं उसे कोई शेर सुनाने के बजाय, लैपटॉप पे एक नज़्म सुना दिया, खुद गुलज़ार साहब की ही कायनाती आवाज़ में। मेरा वो मित्र उसे सुनकर कुछ देर के लिए उसी अवस्था में बिना कुछ कहे स्तब्ध जैसा बैठा हुआ था। कुछ सेकंड बाद उसने बस यही कहा, “यार, कत्ल कर गई ये नज़्म तो, एक बार ज़रा फिर से चलाना तो इसे।” वो नज़्म थी “याद है पंचम”, जो गुलज़ार साहब ने पंचम दा के लिए लिखी थी। इस नज़्म में एक अजीब कशिश है और सुबह की हल्की ठंड में, जब हल्की-हल्की बारिश हो रही हो और चारों तरफ़ ख़ामोशी हो, तो ऐसे में ये नज़्म कहर ढाती है।

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याद है बारिशों का दिन पंचम…

एक-दो साल पहले मैंने एक किताब पढ़ी थी, जिसके कुछ नोट्स मैंने ड्राफ्ट में सेव कर लिए थे। उस किताब का नाम था ‘100 Lyrics: Gulzar’। इस किताब में गुलज़ार साहब के चुने हुए 100 बेहतरीन गानों का संकलन है। बहुत से गानों के पीछे की भी कहानी इसमें कही गई है। इसी किताब पर मैंने पिछले साल एक पोस्ट लगाई थी, “मेकिंग ऑफ अ सॉन्ग”। उस किताब के कुछ और नोट्स ड्राफ्ट में ही पड़े हुए थे, तो मैंने सोचा कि उसे भी पोस्ट कर ही दूं। बहुत से गानों के पीछे की कहानी अंग्रेज़ी में लिखी हुई है, जिसे मैंने यहाँ हिंदी में लिखने की कोशिश की है। किताब मेरे पास है नहीं, तो इसलिए इन नोट्स को फिर से जांच नहीं सकता… हो सकता है कि ड्राफ्ट में सेव करने के वक्त कुछ गलतियाँ भी हुई हों। खैर, अभी तो आप इन गानों के मजे लीजिए और इनके पीछे की कहानी को जानिए…


बहुत से आधे बुझे हुए दिन

मेरे लिए नो स्मोकिंग एक अलग तरह का अनुभव था। सबसे पहले तो जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो मैं कहानी समझ ही नहीं पाया। लेकिन कहानी में कुछ ऐसा था जिससे मुझे यह काफी अट्रैक्टिव लगी। यह एक वैसे सपने की तरह था जिसे ना तो हम सही-सही समझ सकते हैं और ना ही उसका कोई अर्थ निकाल सकते हैं। लेकिन फिर भी कुछ था इसमें, कुछ खास। अनुराग कश्यप के दिमाग में बहुत अनोखे और अजीब ख्याल थे, जिसे उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से स्क्रीन पे दिखाया है। कुछ ऐसे भी ख्याल थे, जिसे वो स्क्रीन पे दिखाने में कामयाब नहीं हो पाए।

फिल्म के सिचुएशन के मुताबिक़ मैंने गाने को अलग ढंग से लिखा। अनुराग मुझे वो सीक्वेंस देते जहाँ उन्हें गाने चाहिए थे और मैं उसी मुताबिक़ गाने लिखता। नो स्मोकिंग पर काम करना मेरे लिए एक बिल्कुल अलग तरह का अनुभव रहा। दुर्भाग्यवश, गाने के बोल संगीत और ऑर्केस्ट्रा के तेज़ आवाज़ के नीचे दबकर रह गए।

बहुत से आधे बुझे हुए दिन पड़े हैं इसमें
बहुत सी आधी जली हुई रातें गिर पड़ी हैं।

आ चल डूब के देखें

यह गाना एक नॉन-फिल्म एल्बम के लिए था। एक बार मैं दो प्रेमियों के साथ सफर कर रहा था, जो एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे। वो सनसेट पर मिले थे और वो उनके मिलने का पॉइंट बन गया था। वो कुछ दुनिया से अलग करना चाहते थे… कुछ ऐसा जिसे आज तक किसी ने नहीं किया हो। उन्होंने मुझसे राय ली। मैंने कहा:

एक…दो…चाँद से कूदो।

इस एल्बम में काम करना मेरे लिए फिल्म-सिचुएशन से बाहर निकलने का एक मौका था। लेकिन फिल्म-सिचुएशन न रहते हुए भी गानों में एक कहानी है, जो कि एक ऐब्स्ट्रैक्ट ख्याल सा है।

आ चल डूब के देखें
एक…दो…चाँद से कूदें
आँखों की कश्ती में
रात बिताई जाए
झीलों के पानी पे नींद बिछाई जाए
चलो न डूबें।


जाने दो मुझे जाने दो

‘दिल पड़ोसी है’ को फिरोजशाह मेहता रोड पर स्थित एच.एम.वी. के एक स्टूडियो में रिकॉर्ड किया गया था। एल्बम की रिकॉर्डिंग रात में होती थी, ताकि ट्रैफिक का शोर सुनाई न दे और गाने को अच्छे से रिकॉर्ड किया जा सके। आज के नए-नए तकनीक के इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट उन दिनों नहीं होते थे। लेकिन पंचम ने अपने म्यूजिक के जरिये जादू कर दिया, जिसे आजकल के रीमिक्स बर्बाद कर रहे हैं। म्यूजिक रूम में जब हमारा काम पूरा हो जाता, तो पंचम कहता, “चल, अब फ़ालतू काम तेरे घर पे करेंगे।” फिर मैं, पंचम और आशा जी मेरे घर आ जाते, बाकी का काम करने।

हम चाहते थे कि कुछ ऐसा बनाएं जो फिल्म-सिचुएशन से बिलकुल अलग हो। उनमें से कुछ सिचुएशन जिस पर गाने बने हैं, वो विवाहेतर संबंध पर आधारित थे।

रात क्रिसमस की थी
ना तेरे बस की थी
ना मेरे बस की थी।

एक गाने में एक सिचुएशन है, जहाँ एक औरत का पति उसे खूब पीटता है। वो उसे फिर भी प्यार करती है लेकिन उससे अलग होना भी चाहती है। वो बस इतना ही कह पाती है:

जाने दो मुझे, जाने दो।
रंजिशें या गिले, वफ़ा के सिले
जो गए, जाने दो।


सोना विच मढ़के

मादरी जबान का आराम बड़ा कमाल होता है। आदमी नंगे पांव ही घर आँगन में घूमता रहता है। हर दिन इतवार का दिन लगता है। तैयार होकर नहीं बैठना पड़ता। पंजाबी में ये गाना लिखते हुए बिल्कुल ऐसा ही महसूस हुआ। लफ़्ज़ों की तलाश नहीं करनी पड़ी। मुझे खुद खबर नहीं थी कि मेरे अंदर इस कदर पंजाबी बसी हुई है। जब लिखने बैठा, तो अपने आप ही ढोलक की थाप सुनाई देने लगी। और फिर भूपी (भूपेंद्र), जिसके अंग-अंग में पंजाबी का लहजा बसा हुआ है, उसने कमाल गाया।

हम दोनों ने बंगालन से शादी की है। मुझ पर तो फिर भी कुछ असर हुआ, वो तो बिल्कुल चिकना घड़ा है। पूरा पंजाबी।

सोने विच मढ़के
मंतर पढ़ा के
लभ के तवीत ल्यावे नी
फड़-फड़ गले च पावे नी
ते नाले पावे जफ्फियां
पक्खियां वे पक्खियां।


धूम थेके उठ लो जे

वो बंगाली जबान हो, मिठाई, शायरी हो, या…! मैंने बंगाली लड़की से शादी की है। मेरे गुरु टैगोर हैं। दूसरे गुरु बिमल राय, जिनकी वजह से मैं फिल्मों में दाखिल हुआ। उनकी फिल्म बंदनी में पहला गाना लिखकर- ‘मोरा गोरा अंग लई ले।’

बंगाली बोलना बहुत अच्छा लगता है। ‘लव लैटर्स’ लिख-लिख कर पढ़ने-लिखने की प्रैक्टिस की थी। कविताएँ भी लिखीं, पर पहली बार किसी ने बंगाली फिल्म के लिए गाने लिखने के लिए कहा। कुल तीन गाने थे। दो संजीदा से गाने तो मैंने लिख लिए, लेकिन तीसरा धौला-धप्पा जैसा नहीं लिख पाया। वो सपन चक्रवर्ती ने लिखा। तब लगा कि काश बंगाली भी मेरी मादरी ज़बान होती तो क्या मज़ा आता।


ये लम्हा जी लेने दो

इस गाने का क्रेडिट मैं मेघना को देता हूँ। वो डायरेक्टर थी फिल्म की और फिल्म का टाइटल ‘फिलहाल’ मुझे शायरी में अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने गाने को कई तरह से लिखा। सिचुएशन भी बहुत साफ़ नहीं लग रही थी। लेकिन ये गाना उसके ज़ेहन में था, जो वो बयान नहीं कर पा रही थी। आखिरकार उसने पूरी तफ़सील अपने ख्यालों की अंग्रेज़ी में मुझे दे दी। तर्ज वो पहले ही तय कर चुकी थी अनु मलिक के साथ। मैंने लिख तो दिया, लेकिन पूरी तसल्ली नहीं हुई। तसल्ली तब जाकर हुई, जब वो गाना चल निकला।

ऐ ज़िंदगी, ये लम्हा जी लेने दे।
पहले से लिखा कुछ भी नहीं।
रोज़ नया कुछ लिखती है तू।
जो भी लिखा है, दिल से जिया है।
ये लम्हा, फिलहाल जी लेने दे।

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. अहा, अक्षरों में अध्यायों का आनन्द…

  2. फिल्मों के लिए लिखा उनका..पहला गीत.. "मोरा रंग लईले…मोहे शाम रंग दई दे.." के मेकिंग का जिक्र नहीं था…वो कहानी भी बहुत रोचक है..

  3. हाँ दीदी सही में वो कहानी बहुत रोचक है लेकिन उसका जिक्र किताब में था और मैं उसे नोट करना भूल गया,किताब मेरे पास नहीं है और मुझे सही सही पूरी कहानी याद भी नहीं, इसलिए उसे लिखा नहीं…इसी कड़ी के पिछले पोस्ट में सलिल चचा ने भी कहा था की -'मोरा गोरा रंग लई ले' की कहानी बड़ी रोचक थी, उसे भी लिखना चाहिए तुम्हे.

  4. कमाल है वत्स!!
    नोट्स परफेक्ट!! गुलज़ार साहब के ये वाकये भी किस्से कहानियों की तरह लगते हैं जो कोइ बुज़ुर्ग सामने बैठा अपने बच्चों को सुना रहा हो..! बहुत खूबसूरती से संजोया है तुमने!!

  5. नज़्म की भूमिका के साथ गुलजार …गज़ब ढा रहे हैं.

  6. ये किताब जाने कितनी बार खरीदते खरीदते रुक गयी हूँ… सिर्फ़ ये सोचकर कि इसमें तो बस गुलज़ार साब के लिखे फ़िल्मी गानों के लिरिक्स होंगे… वो तो आधे से ज़्यादा वैसे ही याद हैं… क्या पता था गानों के साथ उनसे जुड़े इतने दिलचस्प किस्से भी होंगे… खैर उनमें से कुछ किस्सों को हम सब तक पहुँचाने का शुक्रिया अभी जी 🙂

    अभी हाल ही में गुलज़ार साब पर एक प्रोग्राम आया था न्यूज़ २४ चैनल पर जिसमे उनके बारे में ५० अनसुनी कहानियाँ सुनायी गयी थीं… काफी दिलचस्प कहानियाँ थीं.. कुछ एक याद रह गयी हैं.. शेयर करुँगी कभी ब्लॉग पर.. वैसे तो गुलज़ार के दीवानों ने देख ही लिया होगा वो प्रोग्राम.. फिर भी 🙂

  7. वाह अभी जी मज़ा आ गाया आपकी यह संगीत मयी पोस्ट पढ़कर क्या मुझे यह सारे सॉन्ग by mail send कर सकते हैं ?

  8. ऋचा जी,
    मैंने वो शायद नहीं देखा, आप लगाइए जल्दी अपने ब्लॉग पर, जितनी बातें याद रह गयीं आपको, कम से कम वो तो हम भी जान सकेंगे न!

  9. गुलज़ार के ज़िक्र से ही मन गुलज़ार हो उठता है। बढ़िया आलेख

  10. गीतों के परदे के पीछे की कहानियाँ दिलचस्प हैं..हमसे साझा करके अच्छा किया . गुलजार तो बस गुलजार ही हैं और सबको करते भी हैं..

  11. ब्लॉग में जगह जगह आपका नाम देखती…
    जाने क्यूँ इस ब्लॉग पर आज ही आना हुआ…

    अब जाने का मन नहीं….

    बहुत बढ़िया..
    गुलज़ार…कवितायें…किस्से…जगजीत..
    वाह!!
    शुक्रिया.

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