पिछले महीने एक किताब खरीदी – “सरदार भगत सिंह-पत्र और दस्तावेज”. इस किताब में भगत सिंह के द्वारा लिखे गए पत्रों का संकलन है और उनके कुछ दस्तावेज भी मौजूद हैं.भगत सिंह के पत्रों से उनके बारे में बहुत सी ऐसी बातें जानने को मिली जो मैंने किसी भी इतिहास के किताब में शायद कभी नहीं पढ़ा .इसलिए सोचा की इस किताब के कुछ अंश ब्लॉग पे पोस्ट करूँ.हो सकता है की आपके पास ये किताब हो और आपने पढ़ी भी हो.मैं इस किताब के कुछ अंश खास कर के अपने कुछ दोस्तों के लिए पोस्ट कर रहा हूँ, जिन्हें भगत सिंह के बारे में पढ़ना/जानना अच्छा लगता है.
इन्कलाब जिन्दाबाद क्या है? ये हममे से कितने लोग अच्छे से जानते हैं?अधिकतर तो बिना इसका असली अर्थ समझे इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाए फिरते हैं..मौका चाहे कुछ भी हो….भगतसिंह ने अपने एक पत्र में इस इन्कलाब जिन्दाबाद का जिक्र करते हुए ये बताया है की आखिर ये ‘इन्कलाब जिन्दाबाद क्या है?.
‘मोडर्न रीव्यू’ के संपादक श्री रामानन्द चट्टोपाध्याय ने अपनी एक संपादकीय टिप्पणी में भगतसिंह के नारे ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ को खून-खराबे और अराजकता का प्रतिक बताया था.भगत सिंह ने २३ दिसंबर १९२९ को अपनी और साथी बटुकेश्वर दत्त की तरफ से चट्टोपाध्याय को ये पत्र लिखा”
इन्कलाब जिन्दाबाद क्या है?
श्री संपादक जी,
‘मोडर्न रीव्यू’
आपने अपने सम्मानित पत्र के दिसंबर,१९२९ के अंक में एक टिप्पणी ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के शीर्षक से लिखी है और इस नारे को निरर्थक ठहराने की चेष्टा की है.आप सरीखे परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी संपादक की रचना में दोष निकलना तथा उसका प्रतिवाद करना,जिसे प्रत्येक भारतीय सम्मान की दृष्टि से देखता है, हमारे लिए एक बड़ी धृष्टता होगी.तो भी इस प्रश्न का उत्तर देना हम अपना कर्त्तव्य समझते हैं की इस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है.
ये आवश्यक है, क्यूंकि इस देश में इस समय इस नारे को सब लोगों तक पहुचाने का काम हमारे जिम्मे में आया है.इस नारे की रचना हमने नहीं की.यही नारा रुस के क्रांतिकारी आंदोलन में प्रयोग किया गया था.प्रसिद्ध समाजवादी लेखक अप्टन सिंक्लेअर ने अपने उपन्यासों ‘बोस्टन’ और ‘आईल’ में यही नारा कुछ अराजकतावादी क्रन्तिकारी पत्रों के मुख से प्रयोग कराया है.इसका अर्थ क्या है?इसका यह अर्थ कदापि नहीं है की सशत्र संघर्ष सदैव जारी रहे और कोई भी व्यवस्था अप्ल समय के लिए भी स्थायी न रह सके, दसूरे शब्दों में देश और समाज में अराजकता फैली रहे.
दीर्घकाल से प्रयोग में आने के कारण इस नारे को एक ऐसी विशेष भावना पाप्त हो चूकी है, जो संभव है की भाषा के नियमों एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध न हो पाए, परन्तु इसके साथ ही इस नारे से उन विचारों को पृथक नहीं किया जा सकता, जो इसके साथ जुड़े हुए हैं.ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीकृत अर्थ के घोतक हैं, जो एक सीमा तक उनमे उत्पन्न हो गए हैं तथा एक सीमा तक उनमे निहित हैं.
उदाहरण के लिए हम यतीन्द्रनाथ जिन्दाबाद का नारा लगाते हैं.इससे हमारा तात्पर्य यह होता है की उनके जीवन के महान आदर्शों तथा उस अथक उत्साह को सदा-सदा के लिए बनाये रखें, जिसने इस महानतम बलिदानी को उस आदर्श के लिए अकथनीय कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी.यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है की हम भी अपने आदर्शों के लिए ऐसे ही अचूक उत्साह को अपनाएँ.यही वह भावना है, जिसकी हम प्रसंशा करते हैं.इसी प्रकार हमें ‘इन्कलाब’ शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए.इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगों के हितों के आधार पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न विशेषताएं जोड़ी जाती हैं.क्रांतिकारियों की दृष्टि में यह एक पवित्र वाक्य है.हमने इस बात को ट्रिब्यूनल के सम्मुख अपने वक्तव्य में स्पष्ट करने का प्रयास किया है.
इस वक्तव्य में हमने कहा है की क्रान्ति(इन्कलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप में सशत्र आंदोलन नहीं होता.बम और पिस्तोल कभी कभी क्रान्ति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते हैं.इसमें भी संदेह नहीं है की कुछ आन्दोलनों में बम एवं पिस्तौल एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध होते हैं, परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रान्ति के पर्यायवाची नहीं हो जाते.विद्रोह को क्रान्ति नहीं कहा जा सकता, यधपि यह हो सकता है की विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रान्ति हो.
इस वाक्य में क्रान्ति शब्द का अर्थ ‘प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांक्षा है’.लोग साधारणतया जीवन की परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार मात्र से कांपने लगते हैं.यही एक अकर्मण्यता की भावना है, जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जागृत करने की आवश्यकता है.दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है की अकर्मण्यता का वातावरण का निर्माण हो जाता है और रुढिवादी शक्तियां मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं.ये परिस्थितियां मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती हैं.
क्रान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए.जिससे की रुढिवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौर में बाधा डालने के लिए संगठित न हो सके.यह आवश्यक है की पुरानी व्यवस्था सदैव रहे वह नयी व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे की एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके.यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रखकर हम ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ का नारा ऊँचा करते हैं.
अभि बाबु … इस पोस्ट के लिए कोटि कोटि धन्यवाद ! इस से ज्यादा कुछ नहीं कह सकता …
इंक़लाब जिंदाबाद !
बहुत बढ़िया अभिषेक!! अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार!
सार्थक और संग्रहणीय पोस्ट है यह…… बहुत अच्छा लगा पढ़कर
संग्रहणीय पत्र। आभार पढ़वाने का।
बहुत खूब..ऎसी पोस्ट का इन्तजार रहता हे…
सार्थक और संग्रहणीय पोस्ट|आभार पढ़वाने का।
शहीदों को याद रखना जरूरी है ….शुभकामनायें !
शहीदो को शत शत नमन!
बहुत सटीक एवं सार्थक प्रस्तुति … ।
शहीदों को हमेशा याद करना चाहिए
प्रस्तुति के लिए आभार!