मीना जी चली गईं..कहती थीं –
राह देखा करेगा सदियों तक,
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा
…और जाते हुए सचमुच सारे जहान को तन्हा कर गईं; एक दौर का दौर अपने साथ लेकर चली गईं.लगता है, दुआ में थी. दुआ खत्म हुई, आमीन कहा, उठीं, और चली गईं. जब तक ज़िन्दा थीं, सरापा दिल की तरह ज़िन्दा रहीं. दर्द चुनती रहीं, बटोरती रहीं और दिल में समोती रहीं..
समन्दर की तरह गहरा था दिल. वह छलक गया, मर गया और बन्द हो गया, लगता यही कि दर्द लावारिस हो गए, यतीम हो गए, उन्हें अपनानेवाला कोई नहीं रहा.
सच पूछिए, तो बहुत बड़ी जिंदगी जी है मीना जी ने.हाँ, वह जिंदगी लंबी नहीं थी.लम्हों और पलों में मिली, लम्हों और पलों में जी.कभी कभीं कोई उदास लम्हा मिला, तो उससे भागीं नहीं, उससे मुक्ति पाने के लिए खुद को बहलाने की कोशिश नहीं की, बल्कि उस पल को उसी तरह गले लगाकर रोई, खूब रोई, और इस तरह निखर गईं जैसे कोई फूल शबनम से धुलकर निखर जाता है.और मीना जी जब हंसी, तो यों खिलखिलाकर हंसी की लगा, दिन निकाल आया है..एक और लम्हा, एक और दिन.कभी एक रात, कभी एक हफ्ता, कभी महीना, लेकिन बरसों जीने को तो कोई टुकड़ा नहीं मिला.और मिलता, तो शायद खुद ही थक जातीं जिंदगी से.उनके लिए तो हर दिन एक आगाज़ था.
- ये गुलज़ार साहब ने मीना कुमारी जी के लिए कहा है.गुलज़ार साहब का मीना कुमारी जी से बहुत ही गहरा रिश्ता था.वो मीना जी के लिए कहते हैं कि उन्हें लम्हे पकड़ने की महारथ हासिल थी और फिर उन्ही लम्हों को वो अपनी डायरी में नोट कर लिया करती थी.मीना कुमारी अपनी रचनाएं, अपनी सारी डायरी गुलज़ार साहब को सौंप कर चली गईं.गुलज़ार साहब ने मीना जी की उन्ही रचनाओं को एक किताब का रूप दे दिया था.उस किताब को मैंने कुछ साल पहले खरीदा था..और तब से आजतक न जाने कितनी ही बार मीना जी की नज्मों को पढ़ चूका हूँ, आधे से ज्यादा नज़्म तो ऐसे ही याद हैं.सच में मीना जी की नज्मों में उनका दर्द झलकता है…शायद इसलिए मीना जी कहती थी…
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी..
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली..
मीना जी एक बेहद तनहा इंसान थीं और शायद इसलिए उन्होंने अपनी नज़्म “चाँद तनहा है, आसमां तनहा” में अपने दिल का सारा हाल बयाँ कर दिया था…
चाँद तन्हा है, आसमान तन्हा …
दर्द मिला है कहाँ कहाँ तन्हा …
बुझ गयी आस, चुप गया तारा…
थरथराता रहा धुआं तन्हा…
जिंदगी क्या इसी को कहते हैं?
जिस्म तन्हा और जान तन्हा…
हमसफ़र अगर कोई मिले भी कहीं,
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हा…
जलती-बुझती-सी रौशनी के परे…
सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा…
राह देखा करेगी सदियों तक,
छोड़ जायेंगे ये जहाँ तन्हा
मीना कुमारी का आज जन्मदिन है, तो इसलिए सोचा की उनकी कुछ बेहतरीन नज्में और शायरी उन्ही की आवाज़ में आपको सुनाते चलूँ..
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा
ज़र्रे-ज़र्रे पे जड़े होंगे कुँवारे सजदे,
एक-एक बुत को ख़ुदा उस ने बनाया होगा
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी,
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर,
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा
ख़ून के छींटे कहीं पोंछ न लें रेह्रों से,
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा
पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है
पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की, सदक़े की सहर होती है
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है, न अब आस्तीं तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में, चुभें काँच के ख़्वाब
रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है
ग़म ही दुश्मन है मेरा, ग़म ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती ख़ुशबू
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है
दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है.
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे
प्यार सोचा था, प्यार ढूंढ़ा था
ठंडी-ठंडी-सी हसरतें ढूंढ़ी
सोंधी-सोंधी-सी, रूह की मिट्टी
तपते, नोकीले, नंगे रस्तों पर
नंगे पैरों ने दौड़कर, थमकर,
धूप में सेंकीं छांव की चोटें
छांव में देखे धूप के छाले
अपने अन्दर महक रहा था प्यार–
ख़ुद से बाहर तलाश करते थे
सुबह से शाम तलक
सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख़्याल आता है
ज़िन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं?
प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की ता’बीर न पूछ
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता’बीर न पूछ
अदायत होती जाती है, इबादत होती जाती है
अदायत होती जाती है, इबादत होती जाती है
मेरे मरने की देखो सबको आदत होती जाती है
खुद ही को तेज नाखूनों से हाय नोचते हैं अब
हमें अल्लाह खुद से कैसी उल्फत होती जाती है
किसी का दिल न टूटे और कोई आवाज़ न चटखे
मेरी यह बेकसी यारब, क़यामत होती जाती है
तेरे क़दमों की आहट को है दिल यह ढूँढता हरदम
हर एक आवाज़ पे इक थरथराहट होती जाती है
यह कैसी यास है रोने की भी और मुस्कुराने की
यह कैसा दर्द है की झनझनाहट होती जाती है
गुलज़ार साहब ने मीना कुमारी जी के लिए एक नज़्म लिखी थी और जब मीना जी ने वो नज़्म सुनी तो वो हँस पड़ी.कहने लगीं – ‘जानते हो न, वे तागे क्या हैं? उन्हें प्यार कहते हैं.मुझे तो प्यार से प्यार है.प्यार के एहसास से प्यार है, प्यार के नाम से प्यार है.इतना प्यार कोई अपने तन से लिपटाकर मर सके तो और क्या चाहिए?’
वो नज़्म गुलज़ार साहब की थी –
शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे
लम्हा-लम्हा खोल रही है
पत्ता-पत्ता बीन रही है
एक-एक सांस बजाकर सुनती है सौदायन
एक-एक सांस को खोल के, अपने तन
पर लिपटाती जाती है
अपने ही तांगों की क़ैदी
रेशम की यह शायर इक दिन
अपने ही तागों में घुटकर मर जाएगी।
मीना कुमारी जी की नज़मों की एक कड़ी मैंने अपने दूसरे ब्लॉग “एहसास प्यार का” पर “मीना कुमारी की शायरी” के नाम से लगाई है जिसमे अब तक चार कड़ी मैं पोस्ट कर चूका हूँ.आप अगर चाहे तो मीना जी की कुछ नज्में आप वहाँ भी पढ़ सकते हैं.
गुलज़ार साहब के अलावा ये दूसरी ऐसी शख्सियत हैं जो मुझे तुमसे जोड़ती हैं.. बरसों देखा है मैंने आकाशवाणी में कई महिला कलाकार मीना कुमारी की नक़ल किया करती थीं, यही नहीं उन्हें कोई गलती से भी कह देता कि आप तो बिलकुल मीना कुमारी हैं रेडियो की, तो वो फूली नहीं समातीं..
मेरे लिए वो क्या थीं क्या कहूँ.. गीता दत्त की आवाज़ और मीना जी की अदाकारी.. इसके बाद कोई नशा असर नहीं करता मुझपर!!
अल्लाह आपको जन्नत बख्शे, मीना जी!! आमीन!
उनके मन की वेदना उनकी लिखी पंक्तियों में भी उतर आती थी …. उम्दा पोस्ट
जितना गहरा अभिनय, उतनी ही गहरी अभिव्यक्ति..
मीना जी जिनका…उठना,बैठना,देखना,बोलना,गाना….हर अदा!!…सिर्फ़ एक अहसास….
मीना कुमारी जी को शत शत नमन !
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सभी को रक्षाबंधन के इस पावन अवसर पर बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाये | आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, एक आध्यात्मिक बंधन :- रक्षाबंधन – ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
मीना कुमारी जी के जन्मदिन पर बेहतरीन प्रस्तुति …. हर नज़्म उनकी दर्द के समंदर से निकली लगती है …..
Beautiful lines, beautiful post and very beautiful meena ji!
अगर मैं कहूं, ये दुनिया मीना कुमारी जैसी भावुक ह्रदया के लिए नहीं थी, तो कुछ गलत न होगा. मुआफ करना मीनाजी, हम बहुत ही औसत दर्जे के नाशुक्रे हैं तभी आप जैसी ज़हीन अदाकारा को हमने यूँ ही बेवक्त खो दिया.
आपके भी आईडल और रुचियाँ -क्या कहने -फिलहाल इस बेजोड़ अदाकारा को विनम्र श्रद्धांजलि !
मीना कुमारी जी के जन्मदिन पर बेहतरीन प्रस्तुति
मैं मीना जी को उनकी नज़्मों के लिए बेहद पसंद करता था। अभिनय तो था ही जानदार। राजकुमार जी के साथ उनका अभिनय। नदी, नाव और यह गीत…अजीब दास्तां है ये…कभी नहीं भूलेगा।
उनकी नज्म..
उतनी ही प्यारी है माजी की तारीखियाँ
जितनी कि मुस्तकबिल-ए-नारसा की चमक
ज़माना है माजी
जमाना है मुस्तकबिल
और हाल एक वाहमा है
मैने जिस लम्हें को छूना चाहा
फिसलकर
वह खुद बन गया एक माजी।
………………
..आपने मीना जी की याद दिला दी। आपको धन्यवाद।
beautifully expressed!!
टुकड़े टुकड़े दिन बीता और धज्जी धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था उतनी ही सौगात मिली ….
और चली गईं मीना कुमारी ऐसी लाजवाब सौगातें दे के … कितने ही शेर याद आ गए उनके …
सबसे पहले तो देर से आने के लिए माफी :)20 aug को ही वापस आई हूँ इंडिया से और अभी फिर ट्रास्फर होना है जाने कहाँ इसलिए ब्लॉगिंग कम ही हो रही है आज कल न कुछ लिख पा रही हूँ न सभी दोस्तों को पढ़ पा रही हूँ इसलिए बहुत देर से आना हुआ आज आपकी इस पोस्ट पर मगर सच कहूँ तो वाह क्या बात है मज़ा आगया आज आपकी इस पोस्ट पर आकर बहुत खूब थैंक्स for sharing this post Abhi….:)
मीनाजी ..तो एक फॅमिली मेम्बर की तरह थी …..मम्मी पापा से बहुत लगाव था उन्हें….जितना उनके बारे में पढ़ती हूँ ..अच्छा लगता है
vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_18.html
behtareen prastuti…
मै खुद ये मानता हूँ के गुलजार साहब उतने प्रतिभावान नहीं है जितना उनको माना जाता है, लेकिन मीनाजी के अंदाज़ की बात कुछ और है| गुलजार ने अपने नाम पे कियी कई शायरी लगती है मीनाजी की है,जो उन्होंने अपने डायरी में लिखी और बाद वो सारी डायरी गुलजार को दे दियी| आंधी का एक गीत तुम आ गए हो नूर आ गया है| उसमे लिखी है एक लाइन 'दिन डूबा नहीं रात डूबी नहीं जाने कैसा है सफ़र, ख्वाबोके दिए आखोमे लिए' लगता नहीं ये गीत गुलजार का है| जिसने मीनाजी की शायरी पढ़ी है वो आसानी से समझ जाएगा के ये गीत उन्हीका लिखा हुवा है तभी इतनी कलात्मकता इतनी गहेरी सोच उसमे नजर आती है|