किस्सा एक बेचैन रात, खुशनुमा सुबह और एक दोस्त के साथ का…

- Advertisement -

उस रात ठीक से नींद नहीं आ रही थी. जाने क्या बात थी. पूरी शाम और फिर रात भर मन में बहुत कुछ चलते रहा था. चार ब्लैक कॉफ़ी मैं पी चूका था और पांचवीं बनाने जा रहा था तब घड़ी देखा तो ठीक तीन बजे थे. अभी कॉफ़ी बनी ही थी कि मोबाइल की घंटी बजने लगी. घंटी सुन कर मैं एकाएक चौंक सा गया. इस वक़्त किसने फोन किया है? शैतान ने? 

तीन बजे का समय ब्रम्हमुहरत तो होता ही है लेकिन लोगों से सुनता हूँ कि इसी वक़्त शैतान भी सबसे ज्यादा ताकतवर होता है. 

लेकिन राहत की बात थी कि कॉल शैतान का नहीं, मेरे दोस्त का था. मोबाइल के स्क्रीन पर उसका नंबर देखते ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान उभर आई थी. 

मेरा ये मित्र उन दिनों हैदराबाद में रहता था, और अक्सर छुट्टियों में बैंगलोर आते रहता था. फोन उठाते ही उसने उधर से कहा, ‘चाय पीनी हो तो दस मिनट में स्टेट बैंक के पास आ जाओ, मैं पहुँच रहा हूँ’, और इतना कह कर उसनें फोन काट दिया. 

फोन तो उसने काट दिया था लेकिन फिर भी मैं पूरी बात समझ गया. वीकेंड की छुट्टी मिली होगी तो सोचा होगा उसने कि दो दिन के लिए बैंगलोर घुम आया जाए. बैंगलोर में अक्सर उसका स्टे मेरे घर में ही होता था. उसकी ये आदत थी कि वो घर आने के पहले मुझे चाय दुकान पर बुलाता ही था. मन भर चाय पी लेने के बाद ही वो मेरे साथ घर आता, तैयार होकर हम फिर घुमने निकल जाते. 

इस बार भी मामला कुछ ऐसा ही था. बस स्टैंड से सीधा वो चाय दूकान आएगा. उसे ये बात मालूम थी कि बैंक के पास वाली चाय दूकान सुबह तीन बजे खुल जाती है. तो इसलिए उसने बुलाया था. 

वो बैंक मेरे घर से बस पाँच मिनट पैदल की दूरी पर था. मैं उसके वहां पहुचने से पहले ही पहुँच चूका था. 

बैंगलोर में जून के महीने में भी अगर आप सुबह इस वक़्त बाहर निकले तो हलकी सर्दी का एहसास होता ही है. हवा खूब अच्छी चल रही थी और ऐसे में दोस्त के साथ बैंक की सीढ़ियों पर बैठे चाय पीना अच्छा लग रहा था. 

भगवान जाने उसे कैसे इस बात का एहसास हो गया था कि मैं किसी किसी उलझन या परेशानी में हूँ.दूसरी चाय मेरी खत्म भी नहीं हुई थी कि वो सीढ़ियों से उठ खड़ा हुआ. मेरे हाथ से बाइक की चाबी छीन ली उसनें और कहा, ‘छोड़ चाय को, बैठ पीछे मैं चलाता हूँ बाइक…’ कह कर वो बाइक स्टार्ट करने लगा. 

मुझे लगा था वो घर की तरफ बाइक मोड़ेगा. लेकिन उसनें उलटे दिशा में बाइक मोड़ दी… ‘अबे कहां ले जा रहा है…’ कह कर मैंने गरियाना चाहा तो उसनें वापस गरियाते हुए मुझे चुप करा दिया. 

जेपी पार्क के रास्ते उसनें बाइक मोड़ दी थी.. यह पार्क उन दिनों हमारे शहर में नया बना था. मैंने वापस पूछा उससे.. ‘बे पार्क खुला होगा इस टाइम?’ 
‘खुला नहीं होगा तो खुलवा लेंगे…’, उसनें  बेपरवाही से कहा और मुझे फिर से चुप करवा दिया. 

पार्क के गेट के पास ही गार्ड कुर्सी पर बैठा था. पूछने पर मालूम चला कि साढ़े चार के बाद ही पार्क खुलेगा. हम इंतज़ार में वहीँ बैठ गए. गेट के पास एक चाय की दूकान और खुली दिख गयी. बस फिर क्या था.. एक-एक कप चाय हमनें वहाँ भी पी ली. 

जाने उस गार्ड को हमपर दया आ गयी या क्या हुआ..उसनें समय से पहले ही पार्क का गेट खोल दिया…

उस सुबह हम सुबह चार बजे से लेकर सात बजे तक पार्क में टहलते रहे थे… एक दो जगह बहुत देर तक बैठे भी… और जाने क्या क्या बातें करते रहे थे. अब याद करूँ तू साफ़ साफ़ एकदम याद नहीं आता कि तीन घंटों में हमनें क्या बातें की.. हाँ बस ये याद है कि हम घूम रहे थे…बातें कर रहे थे…हँस रहे थे..बेतहाशा हँस रहे थे.. एक दुसरे को जबरदस्त रूप से गरिया रहे थे..और अजीबोगरीब बे-सरपैर के प्लानिंग कर रहे थे. 

मुझे शायद अच्छा लग रहा था कि उस सुबह दोस्त ने मेरे मूड को भांप कर मेरे साथ कोई सीरियस डिस्कशन नहीं किया, या फिर कोई सान्तवना देने की कोशिश नहीं की. शायद उस सुबह मैं कोई  डिस्कशन या लॉजिकल बात करना या सुनना चाह ही नहीं रहा था. कभी कभी होता है न कि आप गंभीर बातों से बचना चाहते हैं और बस हंसी मजाक या फिर उलजलूल वाली बातें ही रास आती हैं. बस ये ही बातें आपको संभाल सकती हैं और उदासी और फ्रस्ट्रेशन से आपको खींच कर वापस ले आती हैं. वैसा ही कुछ उस दिन मेरे साथ था. 

वे तीन घंटे हमनें खूब पुराने किस्से भी याद किये थे और कुछ पुरानी अव्वल दर्जे की बेवकूफी वाली हरकतों को याद करते हुए जोर जोर से ठहाके भी लगाये थे. इतने जोर से कि वहां सुबह के सैर पर आये कुछ लोग हमें देख कर हमें पागल समझ रहे थे. लेकिन हमनें कोई परवाह नहीं की…

जब वहां से निकलने लगे हम तब तक धुप अच्छी निकल आई थी. चलने से पहले दोस्त ने मेरी कुछ तस्वीरें खींच ली यह कह कर कि ‘याद करेगा बे साले तू इस सुबह को…’ अफ़सोस मैंने अपने दोस्त की कोई तस्वीर उस सुबह नहीं खींची.

वापस घर आकर हम दोनों जो अलग अलग वजहों से रात भर जागे थे, पूरे दिन सोते रह गए थे.. शाम को चाय पीने फिर से इसी पार्क के चाय दूकान के पास चले आये थे. तब दोस्त ने मुझसे पूछा था, ‘अबे तु सुबह इतना उदास क्यों था?’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Posts