मेरे चार दोस्त-कुछ पुरानी यादों के नशे में – एक और भाग

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murphy two in one

अभी सुबह जो मैंने ब्लॉग पोस्ट लिखा, उसी को आगे बढ़ाते हुए ये पोस्ट है… कल वाला नशा आज भी दिन भर बरकरार रहा। दिन में दिल किया कुछ वीडियो देखने का तो rajshri पे लॉगिन किया और कुछ पुराने वीडियो देखे। उसी वेबसाइट में कुछ पुराने टी.वी सीरियल के भी लिंक दिखे, वो सीरियल पहले DD Metro पे आते थे। उसके बाद दोपहर में हमारा प्लान बन गया फिल्म “तुम बिन” देखने का, अब इसका मतलब कि कुछ और यादों का नशा करना… दिन तो पूरा आज बेहद ही मजे और नशे में ही रहा। शाम भी आज की बड़ी अच्छी लग रही है…

मैं अपने पुराने साइकिल और टेप-रेकॉर्डर को भी आज बड़ा मिस कर रहा हूँ। बड़ी याद आ रही है उनकी… मुझे अब भी याद है कैसे मैं उस टेप-रेकॉर्डर को बड़ा सहेज के रखता था… आजकल के ज़माने में तो पता भी नहीं चलता कि कौन से फिल्म के गीत अच्छे हैं या कौन से फिल्म के गीत बुरे… वैसे ज्यादातर गीत तो अभी के कुछ खास रहते नहीं… मुझे ये लगता है कि 90’s के दशक के गीत जबरदस्त थे… उस समय हम नया-नया गाना सुनना शुरू किए थे… जो भी फिल्म के गाने आते थे, उन्हें फौरन खरीदना ही हमारा उद्देश्य रहता था… स्कूल में भी ये कॉम्पिटिशन रहती थी कि किसके पास सबसे पहले किस फिल्म की कैसेट है… पहले तो हम ये देखते थे कि फिल्म के सभी गाने अच्छे हैं या फिर कुछ गाने ही सुनने लायक हैं… अगर सभी गाने अच्छे होते थे तो उस फिल्म की सिंगल कैसेट खरीदते थे… या फिर अगर कुछ गाने अच्छे हैं तो फिर डुएट कैसेट, जिसमें दो फिल्म के गाने होते थे। अब के ज़माने में तो गानों को डाउनलोड करो… 1-2 गाने सुनो जो चल रहे हैं और फिर भूल जाओ… उस समय हमें पूरे गाने सुनने पड़ते थे ये जानने के लिए कि कौन गाना अच्छा है, अब के ज़माने के तरह नहीं कि जो गाना सुनना है उसे सेलेक्ट करो और सुन लो… उस समय गानों को फॉरवर्ड, रीवाइंड कर के सुनने में एक अलग ही मजा आता था… अगर कभी पैसे कम पड़ रहे होते थे और हमें फिल्म के गानों का कैसेट चाहिए होता था तो हम गानों को एक ब्लैंक कैसेट में रिकॉर्ड करवा लेते थे…

पहले हमारे पास Murphy का स्टीरियो था… वैसे तो ये ज्यादातर खराब रहता था, इसलिए भी हम बचपन में कभी गाने के प्रति ज्यादा आकर्षित नहीं थे। लेकिन भाई, मैंने उस स्टीरियो पे इतना रिसर्च किया है कि क्या बताऊँ… बस एक पेंचकश लेके बैठ जाता था और फिर क्या था, स्टीरियो के सारे नट-बोल्ट एक तरफ और मैं लग जाता था स्टीरियो ठीक करने में। मुझे तो उस समय इतना कुछ मालूम हो गया था कि क्या बताऊँ… सारे पार्ट-पुर्जे खोल देता था स्टीरियो के और लग जाता था ये जांच करने में कि खराबी है कहां… 😉 उस समय सोचने लगा था कि मैं एक दुकान भी खोल सकता हूँ स्टीरियो ठीक करने की 😛 खैर, वैसे तो हमारा स्टीरियो ज्यादातर खराब रहता था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि चलता नहीं था… अच्छी खासी आवाज़ भी थी… और मुझे इसे ठीक करने में बड़ा मजा भी आता था। मैं जब इसे ठीक कर रहा होता था तो ऐसा लगता था कि मैं अपने दोस्त के साथ खेल रहा हूँ… मन लगा रहता था मेरा… मुझे याद है कि गुलजार के हिट गानों का एक कैसेट था मेरे पास, एक और कैसेट था मधुमती और नया दौर का डुएट कैसेट… वैसे तो और भी कैसेट थे, लेकिन पता नहीं क्यों, जब भी कुछ खराबी हो जाती थी इस स्टीरियो में और मैं कोशिश करता ठीक करने की तो उस समय मैं यही दो कैसेट को रखता आवाज़ चेक करने के लिए… एक और कैसेट था फिल्म आज़ाद का, उसका ये गाना “अपलम चपलम” पता नहीं कैसे बड़ा अच्छा बजता था मेरे उस स्टीरियो पे…

उस स्टीरियो को ठीक कर-कर के सुनना एक आदत हो गई थी, लेकिन मजा भी आता था इसमें… तभी एक बार मैंने एक प्रतियोगिता में नया टेप-रेकॉर्डर जीता, उस समय मेरी खुशी का तो ठिकाना नहीं रहा… एक नया टेप-रेकॉर्डर, जितना मन चाहे उतना गाना सुनो और मधुर आवाज़ भी… ये टेप-रेकॉर्डर से पहले ही दिन मेरी बड़ी अच्छी खासी वाली दोस्ती भी हो गई, दोस्ती भी ऐसी कि इससे कितना कुछ सीखा मैंने… कितने ऐसे ग़ज़ल सुने, गाने सुने जिन्होंने काफी कुछ सिखाया भी… मेरे कितने खराब वक्त में ये मेरा साथी बना, मुझे सहारा दिया… इसके तो इतने अहसान हैं मुझपे कि क्या बताऊँ… हालांकि ये एक छोटा सा ही टेप-रेकॉर्डर था, लेकिन मुझे ये बेहद अजीज था… अब तो ये ऐसा खराब हो गया है कि शायद ठीक भी नहीं हो पाए, लेकिन इसे मैं ठीक जरूर करवाऊँगा… वो Murphy वाला स्टीरियो भी शायद घर के किसी कोने में छुपा होगा ही… उसे भी एक दिन ठीक करवाना है, अब चाहे जितने भी पैसे लगे इसमें…. 😉 वैसे ठीक करवाना अब उन्हें तो बहुत मुश्किल काम है, लेकिन करवाना तो है ही….

कुछ दिनों बाद मुझे शौक चढ़ा कि एक बढ़िया स्टीरियो खरीदा जाए… मैंने मम्मी, पापा को मना भी लिया और एक दिन मुझे पैसे भी मिल गए स्टीरियो खरीदने के लिए… बस अपने करीबी एरिया बोरिंग रोड पहुँच गया मैं, पहले तो पहुँचा सोनी के शोरूम में… वहां देखा तो सभी म्यूजिक सिस्टम के दाम तो मानो आसमान छू रहे हो… मैं तो बेहद उदास हो गया कि शायद कोई अच्छी म्यूजिक सिस्टम मिल नहीं पाए… फिर वहीं बगल में एक शोरूम था वीडियोकॉर्न का, वहां गया तो सुकून आया कि चलो कुछ तो अपने बजट में दाम हैं यहां के… बड़ी सोच-समझ कर एक म्यूजिक सिस्टम खरीदा मैंने… हालांकि जैसा मैंने सोचा था, वैसा तो नहीं लेकिन फिर भी अच्छा म्यूजिक सिस्टम हाथ लग गया 300W का म्यूजिक सिस्टम। दाम भी अपने बजट में ही था, तो उसे ही ले लिया… फिर रिक्शे पे बैठा और चल दिया घर की तरफ… मैं तो बता नहीं सकता कितना खुश महसूस कर रहा था कि एक ब्रांड न्यू म्यूजिक सिस्टम पे अब गाना सुनना होगा और म्यूजिक भी अच्छी बजेगी… घर पहुँचते ही सबसे पहले बजाया गाना फिल्म सरफ़रोश का… वो गाना “जो हाल दिल का” और फिर फिल्म आँखें का वो गाना “कुछ कसमें हैं हसीन” फिर बारी थी फिल्म हम दिल दे चुके सनम के गाने की… जब तसल्ली हो गई कि स्टीरियो का आवाज़ मस्त और बेहद अच्छा है तो बड़ी राहत मिली… उसके बाद क्या था शाम को अपने मित्र प्रभात के घर पहुँच गया ये खबर सुनाने की मैंने एक नया स्टीरियो लिया है… मानो उस समय मैं बड़े गर्व से ये बात अपने दोस्तों को बता रहा था… पिछले स्टीरियो की तरह इसे भी मेरा दोस्त बनते ज्यादा वक्त नहीं लगा…

मैं खुश था कि मेरे दोस्तों के लिस्ट में तीन नाम और जुड़ गए थे… ये तीनों स्टीरियो… 🙂

इनके अलावा भी मेरी साइकिल से मेरी अच्छी खासी दोस्ती थी… वो भी मेरे बेस्ट फ्रेंड के कैटेगरी में आता था… कहीं भी जाना होता था चाहे कोचिंग जाना होता था या फिर कभी नानी के घर या फिर दोस्तों के घर, बस ये साइकिल उठाता और चल पड़ता… मैं अपने साइकिल को भी बड़े प्यार से रखता था… महीने में दो संडे रखता था मैं साइकिल की सफाई करने के लिए… और जब तक ये तसल्ली नहीं हो जाती थी कि साइकिल बिल्कुल नई जैसी चमचम कर रही है तब तक सफाई मेरी जारी रहती थी… नानी का घर मेरे घर से पास ही था इसलिए लगभग हर दूसरे शाम मैं नानी के घर पहुँच जाता था अपनी साइकिल से… मुझे अपने साइकिल से भी बेहद प्यार था… अब भी है, ये अलग बात है कि वो साइकिल मेरे पास नहीं अब लेकिन मेरे दोस्त प्रभात के पास है… हुआ यूं कि जब मैंने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया, उसी साल के शुरुआत में प्रभात की साइकिल हो गई चोरी और उसे बड़ी दिक्कत होती थी तो इसलिए वो साइकिल उसने ही ले लिया… अब भी जब कभी प्रभात के घर जाता हूँ तो मेरे उस साइकिल दोस्त से भी मुलाकात हो जाती है 🙂

  1. तुम्हारी इस पोस्ट ने तो हमको भी अपने मर्फी ट्रांसिस्टर की याद दिला दी…उसके चोरी हो जाने के बाद फिर वैसा मज़ा किसी ट्रांसिस्टर में नहीं आया…:)
    तुमको तो पता ही है न…:)

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