जैसा कि ‘मेरी बातें’ के पाठक जानते हैं, यह ब्लॉग पहले ब्लॉगर पर उपलब्ध था। 2024 दिसंबर से यह ब्लॉग पूर्णतः ‘मेरी बातें’ की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगा। हमने इसे नए और बेहतर रूप में आपके लिए प्रस्तुत किया है। मेरी यादों और बातों को यहाँ से चुनिए।
अब,
सबसे पहले मेरा परिचय, इंटरव्यू में दिए जवाब जैसा 😉 –
मैं अभिषेक कुमार, पटना का रहने वाला हूँ। पटना से मैंने शुरुआती पढ़ाई की, फिर आगे की पढ़ाई के लिए बसवकल्याण और बैंगलोर गया। कुछ दिन हैदराबाद में रहा, बहुत साल बैंगलोर में बिताए और पिछले काफी समय से दिल्ली में हूँ। लेकिन फिलहाल तय किया है कि पटना में ही फाइनल सेटलमेंट करूँगा।
कामकाज का ऐसा है कि स्ट्रगल वाले फेज़ से बाहर आने की कोशिश करता रहता हूँ। कुछ समय के लिए आ भी जाता हूँ, लेकिन ये मुआ स्ट्रगल मेरा पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेता। अब लगता है कि ये मेरे साये की तरह मेरे साथ रहेगा।
करीब छह साल पहले मेरी शादी हुई, और मेरी ‘पार्टनर इन क्राइम,’ मेरी साथी निक्की, पिछले छह सालों से मेरे साथ है। वह हमेशा मेरे सबसे बड़े सपोर्ट के रूप में खड़ी रहती है। मैं नहीं जानता कि अगर वह नहीं होती तो ज़िंदगी बेहतर होती या खराब। लेकिन इतना तय है कि ज़िन्दगी बेहतर तो नहीं होती, बल्कि और ज्यादा ख़राब हो जाती। उसके आने के बाद मेरी बेरंग ज़िंदगी में कई रंग आए और ज़िंदगी को देखने का एक नया नज़रिया भी मिला।
अभी कुछ दिन पहले मेरी बेटी हुई है, और वह एक वजह भी है कि मैं अपने इस ब्लॉग को फिर से नया रूप दे रहा हूँ ताकि उसकी यादों को यहाँ सहेज सकूँ। यही कारण है कि यह पेज आज अपडेट हो रहा है। और ये पैराग्राफ अभी आज अपडेट हुआ है।
मैं कोई बहुत टैलेंटेड व्यक्ति नहीं हूँ, न ही यह कहूँगा कि मुझमें कोई विशिष्ट खूबियाँ हैं। बस मैं एक साधारण सा आदमी हूँ। पिछले कई सालों से मेरी सोच रैशनल हो गई है… सवाल पूछता हूँ और लॉजिक ढूँढता हूँ। इसी वजह से कई बार परेशानियों में भी घिरा हूँ। शायद समाज के बंधनों और अधिकतर नियमों को पूरी तरह से नहीं मानता। थोड़ा-बहुत विरोध भी दिखाता हूँ, लेकिन पूरा विरोध दिखाने में शायद हिचकिचाहट रहती है।
‘एथीस्ट’ शब्द पसंद नहीं, वैसे तो, लेकिन किसी एक सुप्रीम शक्ति में विश्वास नहीं रखता। हाँ, हर किसी की भावनाओं का सम्मान करना ज़रूरी मानता हूँ। निक्की बेहद धार्मिक है, और मैं उसके विचारों और भावनाओं का सम्मान करता हूँ। वह भी मेरे विचारों और भावनाओं का पूरा सम्मान करती है।
मुझे फ़िल्में देखना बहुत पसंद है। हर तरह की फ़िल्में देखता हूँ। किताबें पढ़ता हूँ और लिखने में रुचि है। साहित्य में निर्मल वर्मा मेरे आदर्श हैं, क्योंकि उनकी कहानियों से ही मैंने लिखना सीखा और उनकी कहानियों से बहुत कुछ पाया।
देश से बहुत प्यार है। हमारे देश जैसा सांस्कृतिक रूप से अमीर देश दूसरा कोई नहीं। हाँ, मैं मानता हूँ कि हमारा देश सर्वश्रेष्ठ नहीं है, लेकिन हम सर्वश्रेष्ठ बन सकते हैं। सभी धर्मों का सम्मान करना, सभी के लिए फिक्रमंद रहना, और एक समाज के तौर पर विकसित होना मेरे लिए देशभक्ति है।
मुझे बातें करना बहुत पसंद है। कभी-कभी तो रात भर बातें करता रहता हूँ। पहले मेरे कुछ चुनिंदा दोस्त मेरी इस आदत को झेलते थे, अब निक्की झेल रही है। मेरा मानना है कि जितना आप किसी से बात करेंगे, उतना ही उसे जान पाएंगे और खुद को भी बेहतर समझ पाएंगे।
हाँ, मेरी एक और बीमारी है, बहुत बड़ी बीमारी…! मैं बहुत जल्दी पुराने यादों के गलियारों में चला जाता हूँ, ऐसे ही घूमने को। बड़े देर तक गलियारों में उन यादों के साथ घूमते रहता हूँ। मैं अपने बचपन को बहुत मिस करता हूँ..मुझे बहुत याद आती है बचपन के दिनों के…उस समय हम कितने मासूम थे,ज़माने की आपाधापी से बहुत दूर..सुकून सी जिंदगी। फ़िक्र नाम की चीज़ों से हमें परिचय ही नहीं था…टेंशन बस रहती थी की अगला खेल कौन सा खेलना है, कल स्कूल जाना है या नहीं….वो दिन बेफिक्री के दिन थे जब हम छोटे थे..जब ज़िन्दगी इतनी दुश्वार नहीं थी।
मैं स्कूल में कोई अव्वल छात्र नहीं रहा, लेकिन मेरे घरवालों को मुझसे बहुत उम्मीदें रहती थीं। उन्हें हमेशा मैं बेरहमी से कुचलता रहा। पढ़ाई करता था, मेहनत भी करता था, लेकिन शायद किस्मत अच्छी नहीं थी। वैसे किस्मत को तो मैं मानता नहीं, नियति को शायद मान भी लूँ। लेकिन क्या रहा ये नहीं पता… पढ़ाई पूरी करने के बाद भी जहाँ अधिकतर लोगों को एक अच्छी प्रोफेशनल ज़िंदगी मिल जाती है, वहाँ मेरी झोली में हमेशा स्ट्रगल ही आया।
अब एक लम्बा वक़्त भी हो गया है, इसलिए किसी को लेखा जोखा नहीं देता कि क्या क्या दुश्वारियां रही। कोई यकीन थोड़े करेगा कि किसी की सिंपल सी दिखने वाली ज़िन्दगी इतनी भयंकर जटिल होगी। सब समझते हैं शायद कि मैंने मेहनत से मुहँ फेरा है या सही वक़्त पर सही फैसला नहीं ले पाया। वैसे ना तो मुझे किसी को कुछ समझाने और बताने की शक्ति बची है और न ही मन करता है। लोग को जो समझना है, वो उनकी मर्जी। खुद के नज़रों में लेकिन गुनाहगार नहीं हूँ।
मैं बचपन से एक बहुत ही इन्ट्रोवर्ट व्यक्ति रहा हूँ। अब समझ गया हूँ कि इन्ट्रोवर्ट होना हमेशा फायदेमंद नहीं होता। फिर भी, मैं अपनी इस छवि से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हूँ। हालाँकि, इसे पूरी तरह तोड़ने के लिए अभी और मेहनत करनी होगी। मैं थोड़ा अनुशासित भी रहा हूँ और अब जान गया हूँ कि अनुशासन हमेशा लाभकारी नहीं होता; कभी-कभी यह नुकसानदायक भी हो सकता है।
बहुत लंबे समय तक मैं अकेला रहा। तब लगता था कि समाज और परिवार में सभी अच्छे लोग ही होते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से परिवार के बीच रहने के दौरान कई भावनाओं को टूटते और कुचलते देखा है। मेरी मासूम सोच और विश्वास, जो कभी चट्टानों की तरह मजबूत लगते थे, धीरे-धीरे ढह गए। अब ऐसा लगता है कि हर कोई अपना एजेंडा और मतलब लेकर चलता है। मैं अब भी पूरी तरह से सिनिकल नहीं हुआ हूँ, लेकिन अधिकांश लोगों पर पूरा भरोसा करना अब मुमकिन नहीं लगता।
कुछ बेहद अच्छे दोस्त मिले हैं, जिनका जिक्र किए बिना यह चर्चा अधूरी होगी। मती, प्रभात, मुराद, दिव्या, शिखा, अकरम, आशीष, समित, प्रशांत, निशांत, और सुशील भैया—ये सभी मेरे खास दोस्तों में शामिल हैं। इन दोस्तों ने मुश्किल समय में मेरा हौसला बढ़ाया, समझाया, और बहुत कुछ सिखाया। मती, प्रभात, और शिखा मेरे सबसे करीबी दोस्तों में से हैं। इन्होंने ही मुझे दोस्ती का सही अर्थ समझाया। निशांत बिल्कुल मेरे छोटे भाई जैसा है और मेरे अकेलेपन के समय में हमेशा मेरे साथ रहा। प्रशांत ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है, और वह ऐसा शख्स है जिस पर मैं पूरी तरह भरोसा कर सकता हूँ। अकरम और आशीष मेरे कॉलेज के दोस्त हैं और शायद मेरे बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं। ये दोनों हर मुश्किल घड़ी में मेरे साथ रहे हैं और हमेशा साथ रहेंगे। मुराद, एक ऐसा दोस्त है जिससे वर्षों से मुलाकात नहीं हुई, लेकिन बचपन से कॉलेज तक हमने एक-दूसरे को संभाला। सुशील भैया पिछले दस-बारह सालों से मेरे ऐसे मित्र हैं जिनसे लगातार बातें होती रहती हैं। दिल्ली में हमारा नियम था कि हर शनिवार एक-दूसरे के साथ समय बिताएं और पूरे दिन गप्पें करें।
इनके अलावा, कुछ और बेहद प्यारे दोस्त हैं जो मेरे छोटे भाई-बहनों जैसे हैं—वरुण, प्रभा, रुचिका, तान्या, मोना, अनिल, अती, सायंतन, और शुभ्रा। ये सभी मेरे दिल के बेहद करीब हैं।
परिवार की बात करूँ तो मेरी पत्नी निक्की मेरी सबसे बड़ी साथी है। इसके अलावा, मेरी बहनें ऋचा, दीप्ति, और निमिषा—जिनके बहुत से किस्से यहाँ उपलब्ध हैं—मेरी बहन और दोस्त दोनों हैं। मेरे भाई तन्मय, आर्यन, और अंशु, और बहनें माही, रीती, और अंशिका भी मेरे प्रिय हैं। लेकिन सबसे खास मेरा भांजा अयांश है। और इन सभी से ऊपर शायद नाम आएगा मेरी बेटी का।
मेरे जीवन के बहुत सारे सपने हैं, कई अरमान हैं। मैं सपने बहुत देखता हूँ, क्योंकि अगर हमें आगे बढ़ना है तो सपने देखना ही होगा। मैं इन्हीं सपनों के पीछे भागता रहता हूँ। कब ये पूरे होंगे, यह नहीं कह सकता, लेकिन अब तक वक्त के पहिये ने मेरे कई सपनों को बेदर्दी से कुचला है। अभी भी कुछ सपने कुचलने के कगार पर हैं, फिर भी मैं सपने देखना नहीं छोड़ता।
मैं एक बेहद पॉजिटिव इंसान हूँ। मतलब, इस मायने में कि मुझे पूरी उम्मीद है कि जिंदगी एक दिन जरूर बेहतर बनेगी। सब कुछ तबाह होने पर भी दिल में आस बनी रहती है और बनी रहे आगे, यही तमन्ना भी है।
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है
- मिर्ज़ा ग़ालिब
आप एक अच्छे इंसान है… साधारण या असाधारण मेरे लिए मायने नहीं रखता…
लोगों से मिलने बात करने से इंसान उनको तो जानता ही है, खुद को भी अच्छी तरह समझने लगता है… मेरा कोई परिवार नहीं, पर मेरे दोस्त मेरे लिए परिवार से कम नहीं और मुझे ऐसे ही लोग अच्छे भी लगते हैं जो अपने दोस्तों के लिए दिल में ढेर सारा प्यार रखते हैं.
तुम ऐसी बातें लिख कर भावुक कर देते हो.. दोस्तों से सम्बंधित तुम्हारे हर पोस्ट में अपना नाम देख कर तुम्हे कुछ और करीब पाता हूँ..
तुम जैसे भी हो, अच्छे हो.. मैं सिर्फ एक दफे मिला हूँ तुमसे, मगर लगता है कि बचपन से जानता हूँ.. हाँ, ये बात तो सच है कि तुम बहुत इंट्रोवर्ट हो(इस बात कि गवाही मैं देता हूँ ब्लॉग समाज को :P)..
वैसे आज के जमाने में भी अभी तक साधारण ही हो, यही क्या कम असाधारण बात है? 🙂
अराधना से भी सहमत.. 🙂
मैं कल सुबह ये पोस्ट को फिर से एडिट किया था….और कल सुबह तुम्हारा नाम डालना भूल गया था, ३ घंटे रूम से बाहर रहा, हर मिनट यही सोचता रहा था की जल्दी से रूम जाकर सबसे पहला काम ये करना है की तुम्हारा,स्तुति,रौशनी,प्रिया का नाम पोस्ट में डालना है…बेचनी को नहीं कहूँगा लेकीन वैसी ही कुछ फिलिंग आई जब ये याद आया की तुम चारों का नाम डालना मैं भूल गया हूँ 🙂
@आराधना जी,
हम क्या कहें, आपने बहुत कुछ कह दिया 🙂
abhishek mujhe mera naam dekh ke thoda acha b laga aur surprise bi..
thanks so much. i dont know wat to say..m feeling so gud 🙂
and tumhare baare mein bht kuch pta aur chala yeh padhnen ke baad
भाई सपनो को कुचलो मत, उन्हने इस हद तक देखो की नींद आनी बंद हो जाये….
बस…
सपने हमेशा पूर्ण होते है….. विश्वास मानिए.
मैं कोई ज्यादा टैलेंटेड व्यक्ति नहीं हूँ न ही ये कहूँगा की मेरे अंदर कोई भी विशिष्ट खूबियां हैं.बस मैं एक बहुत ही साधारण सा आदमी हूँ.
aapki is baat se ..ik purani film sujata ka..shayad agar main thik hun..ka jisme Nootan ji hain..ka ik dialog yaad aa gya…"'tumhaari sabse bdii khoobi ye he ke tum me koi khoobi nhi"' aapki saadhrntaa hi aapki khaasiyat he…dialog to mujhe thik se yaad nhi..pr uska magtlab yahii thaa..:)
hmmm.aapne bahut jayada likhaa he..pr jo bhi likhaa he..wo yun lg rhaa tha..ke aap saamne khade hain..aur bol rahen……
jaisaa hain vaise hi rahen..
there's a famous line
Be the way you are because aal othrs are already taken…:)
aapko bhi nye saal ki shubhkaamnaayen
dua he..aapka nya saal khushiyon bhra ho
take care
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आज तीसरी बार ये पढ़ रहा हूँ, सोचा इस बार कमेन्ट कर ही दूं… 😛
मन करता है इस परिचय को बार बार पढता रहूँ…काफी कुछ मेरे जैसा ही है..(कारों को छोड़कर)… 😀
अभी …बहुत साधारण शब्दों मैं..बहुत रोचक परिचय दिया आपने अपना…
बहुत सालो से विदेश मैं हूँ….जब भी देश आती हूँ तो लगता हैं…की शायद हम अप्रवासी भारतीय ज्यादा ही देसी लगते हैं…विदेश तो आजकल भारत मैं हैं…नयी पीडी के रूप मैं…आपने जो लिखा हैं…बहुत सच लिखा हैं….विदेश मैं भी बहुत कुछ अच्छा हैं सीखने के लिए सिवाय फैशन के…और बहुत भ्रांतिया दूर हो गयी हैं मेरी….देश हो या विदेश अपनी संस्कृति न त्यागी जाए…और दूसरी अपनाई जाए…इससे बेहतर क्या होगा…
bahut badiya …. ! 🙂
अच्छा लगा…जाने-पहचाने अभिषेक से दुबारा जानबूझकर मिलना 🙂
असाधारण इंसान से मिल कर बहुत अच्छा लगा…!!
मिलकर को जुड़कर पढ़ें..!!
आपको जानकर अच्छा लगा…
हीरा अपनी कदर खुद नहीं जानता भाई…उसकी कीमत उसे परखने वालों से पूछो…| तुम क्या जानो, तुम क्या हो…:)