हम बच्ची नहीं हम ग्रैजूऐट हैं

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पिछले कुछ दिनों से मेरा ये घर लोगों से भरा हुआ था। मामा और मेरी दो बहनें, सोना और निमिषा, दिल्ली आई हुई थीं। मैं इतने अरसे से बाहर रहता आया हूँ, कभी बैंगलोर तो कभी दिल्ली, लेकिन यह पहला मौका था जब परिवार से कोई आकर कुछ दिन मेरे पास रुका हो। यह एहसास कितना अच्छा होता है कि किसी दूसरे शहर में, जहाँ आप परिवार से अलग रह रहे हों, वहाँ आपके पास आपके परिवार का सदस्य आकर ठहरा हो। यह मेरे जैसे बाहर रहने वाले लड़के बहुत ही अच्छे से समझते होंगे।

मैं यहाँ अकेले ही रहता हूँ। कम लोगों का आना-जाना होता है मेरे घर, तो ऐसे में मुझे अच्छा लग रहा था जब मेरा मकान मालिक और आसपास के लोग बड़े उत्सुकता से यह देखते और सोचते होंगे कि यह कौन लोग हैं जो इस लड़के के घर इसके साथ ठहरे हुए हैं। यह लड़का, जो चुपचाप घर में अकेले रहता है, कैसे अचानक से इतना व्यस्त हो गया कि दिन में तीन-चार बार बाज़ार जा रहा है, हर वक्त मुस्कुरा रहा है, और इतना खुश कैसे दिख रहा है? जिस घर से सिर्फ गाने और फिल्मों की आवाज़ें बाहर आती थीं, वहाँ से इन दिनों इतनी खूबसूरत और मीठी आवाज़ें सुनाई दे रही हैं—मीठी नोक-झोंक की आवाज़ें, शरारतों और बदमाशियों से भरी आवाज़ें। यह बात ज़रूर आसपास रहने वाले लोग इन चार दिनों में सोचते होंगे।

कोई और सोचे न सोचे, मेरे बाजू में रहने वाला जो परिवार है, वह ज़रूर यह सोचता होगा। तभी तो जब कल शाम मैं घर वापस आ रहा था, मेरा मकान मालिक और बाजू वाले साहब दोनों बाहर ही खड़े थे। उन्होंने मुझसे पूछा, “आपके परिवार वाले आए थे क्या? खूब चहल-पहल रही इन दिनों।” मैं मुस्कुराकर अपने घर में आ गया।

पिछले कुछ दिनों से निमिषा, सोना और मामा यहाँ रुके हुए थे। उनके साथ वक़्त कैसे निकल रहा था, पता भी नहीं चलता था। निमिषा की मीठी शरारतें, बदमाशी और इलॉजिकल बातों में वक़्त बीतता रहा। निमिषा की बातें हमेशा इतनी प्यारी और अलग होती हैं कि बस मन करता है उनकी बातों को कहीं सहेजकर रख लूँ। शायद इसी वजह से मैं उसके बारे में ब्लॉग या फेसबुक पर लिखता रहता हूँ।

निमिषा के साथ-साथ अपनी सभी बहनों (निमिषा, सोना, मोना, प्रियंका दीदी) के बारे में भी मैंने खूब लिखा है। यह शायद इसलिए कि इन बहनों के अलावा मुझे बहुत कम लोग समझ पाए हैं, और ये सभी मुझसे बेहद करीब हैं। निमिषा की बात करूँ तो वह बहुत खुश हो जाती है जब भी उसके बारे में मैं लिखता हूँ। मुझे याद है, जब पिछले साल “नई दुनिया” अखबार में राखी पर मेरी कुछ यादें छपी थीं, निमिषा बहुत खुश हो गई थी। वह अपने सभी दोस्तों को यह खबर खुशी-खुशी सुना रही थी।

आजकल निमिषा बहुत खुश है। उसने ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी कर ली है और हर किसी के सामने इस बात को जताने से नहीं चूक रही कि वह अब बड़ी हो गई है। वह अब ग्रैजुएट बन गई है। उसकी हमेशा से हम तीनों भाई-बहनों (मैं, मोना और सोना) से एक ही शिकायत रहती है, “मुझे तुम सब अब बच्ची बोलना बंद करो। हम अब बड़ी हो गए हैं।” अपने ग्रैजुएशन के बाद वह इस बात को और जोर देकर कहने लगी, “देखो भैया, अब हम मास्टर्स कोर्स में एडमिशन लेने वाले हैं। हम अब बच्ची नहीं हैं, हम ग्रैजुएट हैं।”

मैंने इस बार भी उसकी इस बात को ये कहकर खारिज कर दिया, “जब तुम बड़ी हो जाओगी, तब हम सब तुम्हें बच्ची बोलना बंद कर देंगे।” वह थोड़ा चिढ़ जाती और मुंह बिचकाकर जाने कितने लॉजिक देने लगती कि वह अब बड़ी हो गई है। मैं बस उसकी बातें मुस्कुराते हुए सुनता रहता। सच कहूँ तो उस वक्त निमिषा के लिए मन से सिर्फ एक ही दुआ निकलती थी, कि वह हमेशा ऐसे ही बचपना करती रहे। हमेशा यूं ही उसकी मासूमियत और बदमाशियां बरकरार रहें।

इन दिनों जब निमिषा मेरे पास थी, तो हमने बहुत सारी बातें कीं, लेकिन हम तीनों का (सोना, निमिषा और मेरा) सबसे मज़ेदार डिस्कशन वह था, जब निमिषा के मास्टर्स कोर्स में एडमिशन की बात हो रही थी। मैंने और सोना ने निमिषा को सुझाव दिया कि वह क्यों इतना सर खपा रही है मास्टर्स कोर्स में एडमिशन के लिए? “तुम खुद के लिए एक नया कॉलेज ही खोल लो। वहाँ खुद भी पढ़ना और दूसरे बच्चों को भी पढ़ाना।”

सोना ने निमिषा को चिढ़ाने के लिए कहा, “सोचो वह मोमेंट कैसा होगा, जब टीचर्स, जिन्हें तुम नियुक्त करोगी, आकर तुमसे कहेंगे—’निमिषा मैम, चलिए, आपके क्लास का वक्त हो गया है।’ ‘निमिषा मैडम, आपने अपना असाइनमेंट किया या नहीं?'”

खैर, मैंने सोना को तुरंत डांट दिया, “निमिषा को परेशान मत करो।” निमिषा बड़े ध्यान से हमारी बातें सुन रही थी। फिर कहने लगी, “तुम तो ऐसे बोल रहे हो भैया, कॉलेज खोल लो, जैसे वह कॉलेज न हुआ, कोई ताला हो गया। जाओ चाबी लगाकर खोल लो। बस, बात में फंसाओ मेरे को। चलो, टॉपिक चेंज करो।” लेकिन अगले ही पल उसे लगा कि शायद इस कॉलेज खोलने वाली बात में थोड़ा दम है।

वह फिर कहने लगी, “हाँ भैया, हम तो कॉलेज खोलकर प्रिंसिपल बन सकते हैं। बच्चों को भी पढ़ा सकते हैं। तुम जानते हो? हम पढ़ाते हैं और अच्छा पढ़ा लेते हैं। लेकिन अपने कॉलेज में हम थोड़े न पढ़ाएँगे। वह तो टीचर्स पढ़ाएँगे न। हम कॉलेज जाएँगे… और लेट कॉलेज जाएँगे। अपने एसी केबिन में कुर्सी पर बैठकर कोल्डड्रिंक पिएंगे और आइसक्रीम खाएंगे। बच्चों को… टीचर्स को डाँटेंगे। और जब मन करेगा, कॉलेज बंद करके घर आ जाएँगे। बच्चों को भी छुट्टी दे देंगे।”

मैंने निमिषा से पूछा, “तुम बच्चों को डांटोगी? तुम्हें डांटना आता है? दिखाओ तो डांटकर।” वह कहने लगी, “तुम बच्चे हो क्या जो हम डांटेंगे? चलो जल्दी से बच्चे बन जाओ, तब डांटकर दिखाएँ।”

निमिषा के अजीबोगरीब लॉजिक
निमिषा के लॉजिक बड़े मजेदार होते हैं। जैसे, ट्रेन को लेकर उसकी बातें हमेशा दिलचस्प होती हैं। सोना पटना से आ रही थी, और उसकी ट्रेन बहुत देरी से चल रही थी। निमिषा ने कहा, “दीदी की ट्रेन चलते-चलते थक जाती होगी, इसलिए वह सुस्ताने के लिए रुक जाती होगी। उसे ग्लूकोज पिलाओ, तब तो वह चलेगी।”

कोहरे की वजह से जब ट्रेन लेट हो जाती है, निमिषा बड़े मासूमियत से कहती, “कोहरे में ट्रेन को कैसे दिखता होगा? तो वह रुककर इधर-उधर देखती होगी और धीरे-धीरे चलती होगी न।”

कल जब उसके जाने का वक्त आया, तो अचानक बारिश होने लगी। वह एकदम चिंतित हो गई कि अब वह पटना कैसे जाएगी। ट्रेन बारिश में कैसे चलेगी? उसे यह भी चिंता थी कि रेलवे स्टेशन बारिश में भीग गया तो? ट्रेन भीग गई तो? रेलवे स्टेशन पर बाढ़ आ गई तो? जबकि उस वक्त सिर्फ हल्की फुहारें हो रही थीं। फिर भी निमिषा खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई और बादलों को उँगली दिखाकर डराने लगी, “ऐ बादल हटो… ऐ बारिश भागो-भागो… चल हट… मुझे जाना है। ट्रेन को भी जाना है मेरे साथ। मत रोको… हट-हट बारिश।”

कमाल की बात यह थी कि जब बादलों को निमिषा डरा रही थी, ठीक उसी वक्त बारिश रुक गई। वह मेरी तरफ मुड़कर बोली, “देखो, बारिश रुक गई न।”

स्टेशन पर जब निमिषा को विदा करने गया, तो मैंने उसे उसके बचपन की कुछ बातें याद दिलाईं। पहले तो वह बड़े ध्यान से सब सुन रही थी। फिर अचानक खुश होकर बोली, “भैया, हम कितने पागल थे न बचपन में।” मैं और सोना दोनों यह सुनकर एक साथ बोल उठे, “बचपन में? अब नहीं हो?” वह इरिटेट हो गई, “चुप रहो तुम दोनों। हाँ, हम बचपन में ऐसे पागलपन करते थे, तब हम बच्ची थे। अब तो बड़ी हो गए हैं।” हम दोनों फिर हंसने लगे, और वह चिढ़ गई।

निमिषा, मामा और सोना के चले जाने के बाद, जब कल रात घर लौटा, तो घर अचानक से बड़ा सुनसान लगने लगा। तीन-चार दिनों से सबकी आवाज़ों से भरा हुआ घर बिलकुल चुप था। सब चीजें अपनी जगह पर व्यवस्थित थीं।

सोना ने जाते-जाते मेरे लिए खाना बनाकर रख दिया था। मैं खाना खाकर सो गया। बड़ा अजीब लग रहा था, इतने दिनों के बाद अकेले रात का डिनर करते हुए।

निमिषा जाते-जाते कह गई, “भैया, अगर मेरा मास्टर्स कोर्स में एडमिशन दिल्ली में हो गया, तो हम तुम्हारे साथ ही रहेंगे। फिर हम दोनों खूब घूमेंगे और मस्ती करेंगे।”

मैं सच में दिल से दुआ करता हूँ कि उसका सेलेक्शन दिल्ली के किसी कॉलेज में हो जाए। यह पोस्ट भी मैंने आज निमिषा के लिए ही लिखी है—सिर्फ इन चार दिनों की कुछ यादों को सहेजने के लिए।

  1. और नहीं तो क्या …. ? बड़े भाई तो हमेशा बच्ची ही समझते हैं छोटी बहनों को 🙂

    बहुत प्यारी पोस्ट है इस पावन रिश्ते की नोकझोंक और मिठास लिए …..

  2. और नहीं तो क्या …. ? बड़े भाई तो हमेशा बच्ची ही समझते हैं छोटी बहनों को 🙂

    बहुत प्यारी पोस्ट है इस पावन रिश्ते की नोकझोंक और मिठास लिए …..

  3. और नहीं तो क्या …. ? बड़े भाई तो हमेशा बच्ची ही समझते हैं छोटी बहनों को 🙂

    बहुत प्यारी पोस्ट है इस पावन रिश्ते की नोकझोंक और मिठास लिए …..

  4. जब से ये पोस्ट पढ़े थे, सोच रहे थे इसके जैसा ही कोई खूबसूरत…प्यारा सा कमेंट लिखे यहाँ…| पर निमिषा जैसी भोली-भाली और निश्छल लडकी की प्यारी सी बातों के सामने तो कोई टक्कर का कमेन्ट सूझा ही नहीं…| जाने कितनी बातें तो तुमसे यूँ ही जानते रहते ही हैं न…उस पर मेरा रिएक्शन भी तुमको इंस्टेंट ही मिलता है न…:) 🙂
    उसके और तुम्हारे लिए बहुत सारा प्यार और दुआएँ…तुम्हारे जैसा भाई है तो बहने तो हमेशा बच्ची बनी ही रहेंगी…|
    है न…??? <3 <3 <3

  5. बहुत मासूम से लम्हे ….. चश्मेबद्दूर !

  6. निमिषा बहुत प्यारी है और कोई बच्चा भी तभी बना रह सकता है जब उसका बचपना झलने वाले मौजूद हों…उसका ये बचपना और तुम सबका प्यार-दुलार ऐसे ही बना रहे .

  7. हाँ.. ये बात तो पक्की है की तुम्हारे दोस्त उसे पहचान जायेंगे. जैसे एक दिन मैं पहचान गया था.. इस बात में उसका बचपना नहीं है, सयानो जैसी बात की थी उसने. उसे बता देना. 🙂

  8. अपनी छोटी प्यारी बहिन के लिये आपका प्यार देख एक ही विचार आता है कि हर लडकी को ऐसा ही भाई मिले । निमिषा ऐसी क्यों न हो जबकि उसका अभिषेक जैसा भाई है ।

  9. अब हम का लिखें.. कुछ कहेंगे त तुम्हारा दोस्त लोग बोलेगा कि ई चचवा बहुत इस्मार्ट बनता है!! मगर एगो बात कह देते हैं कि तुममें अऊर हममें एक्के बात कॉमन है.. हम दुन्नो रिस्ता निभाना जानते हैं अऊर कभी रिस्ता थोपना नहीं सीखे हैं.. निमिषा का नाम हमको एतना पसन्द है कि का बताएँ… अब हम बोलेंगे त लोग कहेगा कि अपना नॉलेज झाड़ता है… उपेन्द्र नाथ अस्क जी का एगो नॉवेल था "निमिषा"… बस ई नाम एतना अच्छा लगा था हमको कि सोचे थे अपन घर में कोनो का नाम रखबे करेंगे!! हुआ नहीं.. आज देखो भगवान भी कमाल का घुमाकर नाक धरिन हैं!!
    हमारा आसीर्बाद देना अऊर कहना कि बस ऐसने बनल रहे!! पोस्ट ग्रेजुएट हो अऊर डॉक्टरेट करे!!

  10. Bahut pyaari post hai abhishek ji, hum samaj sakte hai aapki khushi ko.. bahar rehte hue koi apna mil jaye toh bahut acha lagta hai 🙂

    Kal hum yahan ek kashmiri restaurant mila, hum toh wahan khana kha kar he bahut khush hue.

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