एक साइकिल का दिख जाना और जाने क्या क्या फ़साना माज़ी का याद आना

- Advertisement -
cycle in sunlight

मार्च का महीना है, गर्मी अभी पूरे रंग में आई नहीं है। थोड़ा वसंत का ही माहौल चल रहा है पटना में। ऐसे में एक दिन एक मित्र (हालाँकि उम्र में वो बहुत बड़े हैं, लेकिन रिश्ता मित्र सा ही है) के यहाँ आ गए थे। मकसद तो एक जरूरी काम था, लेकिन वहाँ उनके लॉन में बहुत देर बैठना हो गया। सरकारी क्वार्टर था उनका और जैसा कि होता है, सरकारी क्वार्टर में लॉन बहुत बड़ा रहता है। इतना कि आप उसमें आराम से क्रिकेट खेल सकते हैं।

उनके लॉन को देख कर मुझे अपने पुराने क्वार्टर की याद आ गई जो पापा को ऑफिस की तरफ से मिला था और जहाँ हमारी उम्र का एक बड़ा हिस्सा बीता था। सरकारी क्वार्टर के लॉन बहुत बड़े होते थे। अब तो अधिकतर सरकारी क्वार्टर को तोड़े जा रहे हैं ताकि वहाँ नई बिल्डिंग बन सके। हाँ, पर ऑफिसर्स ग्रेड के जो क्वार्टर हैं, वो अब भी सही सलामत हैं और बेहतर रख-रखाव के साथ हैं।

हमारे मित्र का जो क्वार्टर है, वो भी ऑफिसर्स ग्रेड का क्वार्टर है और मैं पहली बार उनके घर गया था। हम उनके लॉन में ही बैठे थे।

किसी मुद्दे पर लंबी और गंभीर बात चल रही थी। मेरा भी पूरा ध्यान उनकी बातों की ओर था। थोड़ी देर बात जब बातें थोड़ी हल्की हुईं और मैंने उनसे इजाज़त लेना चाहा, तब उन्होंने नाश्ते और चाय का आग्रह किया। मैं मना करता, इससे पहले ही वो अंदर चले गए चाय और नाश्ता लाने।

मैं बाहर लॉन में बैठा उनके पूरे लॉन का जायजा लेने लगा था। जहाँ हम दोनों बैठे थे, उसके ठीक पीछे एक चमकती साइकिल दिखी। वैसे साइकिल तो सामान्य ही थी, बस धूप के कारण वो चमक रही थी।

जब मेरे मित्र चाय और नाश्ते के साथ वापस आए, तो मैंने उत्सुकतावश एक बेवकूफ सा सवाल उनसे पूछ डाला… “यह साइकिल आपकी है?”

अब जाहिर है, घर उनका है तो साइकिल उन्हीं का होगा। खैर।

वो मुस्कुरा दिए मेरी बात पर और कहा – “मेरे बेटे की साइकिल है यह। कुछ महीने पहले उसका इंजीनियरिंग में दाखिला हो गया और वह दिल्ली चला गया। और मैं कभी-कभी इसे यहीं लॉन में चला लिया करता हूँ। थोड़ी कसरत हो जाती है और साइकिल चलने के कंडीशन में भी रहती है।”

मुझे उनकी दो बातों पर हल्का आश्चर्य भी हुआ। एक कि उनका बेटा साइकिल चलाता है। आज के अधिकतर बच्चे बाइक की तरफ रुख कर चुके हैं। और दूसरा यह कि वो कसरत के लिए साइकिल का उपयोग करते हैं, जबकि अधिकतर लोग अब ट्रेडमिल या एक्सरसाइज साइकिल का इस्तेमाल करते हैं।

मेरे इस साइकिल के सवाल से हमारी बातों का रुख साइकिल की तरफ ही मुड़ गया। और चाय के साथ जाने कितनी पुरानी बातें और साइकिल से जुड़े किस्से हम शेयर करने लगे। वह अपने बचपन और गाँव की बातें बताने लगे जहाँ एक साइकिल पूरे घर में थी और सभी उसी का इस्तेमाल करते थे, और कैसे वह साइकिल खुद से ही रिपेयर कर लिया करते थे।

ऐसी नॉस्टैल्जिक बातों में वक्त का पता ही नहीं चलता। कब दोपहर हो गई, ये मालूम भी नहीं चला। जब वहाँ से मैं चलने लगा, तब उन्होंने मुझसे एक प्यारा सा आग्रह कर ही दिया।

कहने लगे… “अभि भाई, आप साइकिल के इतने शौकीन हैं और ज़माने से चलाए नहीं, तो एक-दो राउंड लगा ही लीजिए आप भी…”

हल्की झिझक तो हुई मुझे, लेकिन उनका आग्रह इतना प्यारा था कि मैं मना नहीं कर पाया। अंदर ही अंदर शायद मेरी भी यही इच्छा थी।

बस अगले ही पल मैं उठा और साइकिल से लॉन के तीन-चार चक्कर लगा ही लिया। मन तृप्त हो गया था। ज़माने बाद साइकिल चलाने को जो मिली थी।

मेरे ख्याल से मेरे साथ उम्र वाले अधिकतर लोग साइकिल से एक कनेक्शन महसूस करेंगे। हम जब स्कूल में थे, तो हमें महंगी बाइक नहीं मिलती थी चलाने के लिए। बहुत जिद करने पर हमें साइकिल खरीद दी जाती थी। और हम साइकिल ही ऐसे चलाते थे, उतने ही ठाठ और गर्व से जैसे आज के बच्चे महंगी बाइक और कार सड़क पर दौड़ाते हैं।

साइकिल वैसे अलग-अलग किस्म की थी, मेरे पास उन दिनों थोड़ी स्टाइलिश साइकिल थी, हीरो रेंजर, और मेरे दोस्त के पास एटलस की सामान्य साइकिल। हीरो रेंजर टाइप साइकिल का बड़ा क्रेज था उन दिनों और मैंने भी शायद इसी वजह से वो साइकिल लिया था। लेकिन पारंपरिक बड़ी वाली साइकिल ज्यादा आरामदायक लगती थी चलाने में और ज्यादा तेज़ भागती थी।

अक्सर स्कूल या कोचिंग से घर आते वक्त मैं अपनी साइकिल दोस्त को दे देता था और खुद उसकी साइकिल चला कर घर आता था। कभी-कभी मुझे अफसोस भी होता था कि मुझे बड़ी वाली साइकिल ही खरीदनी चाहिए थी।

साइकिल चलाना भी मैंने बड़ी वाली साइकिल पर ही सीखा था। मामा और भैया ने मुझे साइकिल चलाना सिखाया था। जैसा कि साइकिल चलने की पहली सीढ़ी होती है – हाफ पैडल साइकिल। मुझे भी हाफ पैडल साइकिल चलाना सिखाया गया था। लेकिन मैं कभी इस तरह साइकिल चलाने में आरामदायक महसूस नहीं कर पाया था। मुझसे साइकिल स्थिर रहती ही नहीं थी। मैंने सीधे सीट पर बैठकर ही साइकिल चलाना सीखा था।

royal cycle

अपनी पहली साइकिल जब खरीदने हम शोरूम गए, तो पापा ने एक बार कहा था कि बड़ी वाली साइकिल खरीद लो। शायद अंदर से मेरा मन भी रहा होगा, लेकिन हीरो रेंजर की चमक-दमक और उसके स्टाइलिश हैंडल को देखकर मैंने हीरो रेंजर खरीद लिया था।

क्या शान से शुरू से एक-दो महीने मैंने साइकिल चलाया था। लग रहा था जैसे अपनी मर्सिडीज से निकल रहे हों। और हर दिन तीन बार साइकिल की सफाई जरूर होती थी। एक हर दिन सुबह में डीप क्लीनिंग। एकदम रिम तक चमकाया जाता था, ऐसे कि उसमें शक्ल देख सकें। उसके बाद जब निकलना होता था, तब एक बार झाड़-पोछ और फिर कहीं से वापस आने के बाद एक बार दोबारा झाड़-पोछ।

कई बार घर वालों से कमेंट भी सुन चुके थे कि नई साइकिल है न, तो ये सब हो रहा है, जैसे-जैसे पुरानी होगी, वैसे-वैसे इसको भूलते भी जाओगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। जैसे-जैसे साइकिल पुरानी होती गई, वैसे-वैसे झाड़ने-पोछने की फ्रीक्वेंसी भी कम होती गई।

हर एक चीज़ का कितना ध्यान रखते थे साइकिल के मामले में। मेरे पास लोहे की सिकड़ी थी, जिसे साइकिल को लॉक करने के लिए इस्तेमाल करते थे। फिर उसे बदल कर पी.वी.सी कोटिंग वाली सिकड़ी खरीदी, जो ज्यादा अच्छी दिखती थी। उन दिनों नया-नया नंबर लॉक सिस्टम वाला भी लॉक आया था बाज़ार में, जो महंगा मिलता था। शायद इस वजह से उसे खरीद नहीं पाया।

पटना से जब कॉलेज के लिए दूसरे शहर जाना हुआ, तब साइकिल भी चलाना मेरा छुट सा गया। अब तो कभी-कभी लगता है, कितनी आसान ज़िंदगी थी। एक साइकिल लेकर कहाँ निकल पड़ते थे हम। न पेट्रोल का झंझट और न ही किसी और चीज़ की टेंशन।

लेकिन एक बात जो मुझे लगती है, वो ये है कि उन दिनों साइकिल चलाने का मज़ा इस वजह से भी ज्यादा दोगुना था कि सड़क पर गाड़ियाँ कम चलती थीं। जैसा अब ट्रैफिक है, वैसा ट्रैफिक उन दिनों नहीं था। अब के समय में तो साइकिल चलाना मेरे ख्याल से मुश्किल काम है। ट्रैफिक तो बढ़ गया ही है, और साथ-साथ कुछ लोगों के गाड़ी चलाने का ढंग भी बड़ा बदतमीज़ किस्म का हो गया है।

  1. सच कई यादें ताज़ी करा दी आपने
    वो सायकिल वाले दिन अब यादों में है बस

  2. आज के बच्चे जब हार्ली डेविडसन से नीचे बात नहीं करते वहाँ हीरो रेंजर को याद करना, सचमुच यादों की बारात जैसा है! मैंने हालाँकि बहुत कम साइकिल चलाई है, लेकिन पिता जी की साइकिल और उसके हैंडल पर खुदा हुआ उनका नाम आज भी दिलोदिमाग़ पर अंकित है! वही रवानगी तुम्हारी पोस्ट की और वैसा ही अछूता विषय!बहुत सुन्दर!!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Posts