कल की सुबह बेहद आम थी. मैं घर से काम पर निकला. सुबह दस बजे की मेट्रो लेता हूँ मैं. मेरे मेट्रो रूट पर उस वक़्त तक भीड़ काफी कम हो जाती है, तो मैं इसी वक्त निकलना भी पसंद करता हूँ. आम तौर पर मैं मेट्रो के सबसे आखिर डब्बे में बैठता हूँ. उस डब्बे में बाकी डब्बों के मुकाबले भीड़ कम होती है. कल जाने किस वजह से मेट्रो में भीड़ काफी कम थी. आखिरी डब्बे में मुश्किल से दस बारह लोग ही मौजूद होंगे. जैसा कि अक्सर होता है, सभी लोग मेट्रो में अपने मोबाइल और हैडफ़ोन में व्यस्त थे.
मैं भी मोबाइल पर अपने ईमेल चेक कर रहा था कि तभी मैंने नोटिस किया कि सामने बैठी एक लड़की मेरी तरफ लगातार देखे जा रही है. मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने तेज़ आवाज़ में कहा, “इक्स्क्यूज़ मी.. वो, वहाँ देखिये.. वो आपके पैर पर चढ़ रहा है..”मैंने हड़बड़ी में अपने पैरों की तरफ देखा, एक बड़ा कीड़ा मेरे जूते पर चढ़ा हुआ था, पैरों के ऊपर चढ़ने का शायद रास्ता तालाश कर रहा होगा.
मैंने तुरंत उस कीड़े को झटक कर दूर फेंक दिया. मैंने शायद कुछ ज्यादा तेज़ी से झटका था कीड़े को, वो सीधे उस लड़की के पैरों के पास जा पहुँचा, लड़की ने घबराहट में अपने पैर ऊपर उठा लिए. लड़की के बगल में एक बुजुर्ग बैठे थे. उन्होंने अपनी चप्पल निकाली और चप्पल से कीड़े को थोड़ी दूर सरका दिया. बुजुर्ग ने लड़की को सांत्वना दी, ‘घबराओ नहीं, ये कीड़ा काटता नहीं है..’
कीड़े के इस एक दो मिनट के इवेंट से सबका ध्यान कीड़े के तरफ आकर्षित हो गया था. कीड़े को उस बुजुर्ग ने एक कोने में जब सरका दिया तो फिर सब अपने मोबाइल पर कंसन्ट्रेट करने लगे. कीड़े को लेकिन आराम नहीं था. उसनें दो बार दो लोगों के पैरों पर चढ़ने की कोशिश की थी लेकिन दोनों बार उसकी कोशिश नाकाम हो गई थी.
अबकी वो कीड़ा फिर से चुपके चुपके सीट के अन्दर से निकला. इस बार उसके पीछे पीछे दो और साथी कीड़े सीट के अन्दर से निकले. मुमकिन है कीड़े ने जाकर अपनी नाकाम कोशिश की बात अपने साथियों को बताई होगी, और दोनों साथी कीड़े अपने दोस्त का साथ देने आए होंगे. तीनों ने इस बार तीन अलग अलग डायरेक्शन में तीन अलग अलग लोगों के पैरों को टारगेट किया.
पहले व्यक्ति ने तो कीड़े को इतने जोर से झटका कि वो मेट्रो के गेट से बाहर प्लेटफोर्म पर चला गया. दुसरे ने कीड़े को अपने पैरों से ऐसा किक मारा कि बगल वाले कम्पार्टमेंट में चला गया वो, तीसरे लड़के ने अपने पैरों को उठाया कि वो कीड़े को अपने पैरों के नीचे कुचल दे, कि तभी उस बुजुर्ग ने उसे टोक दिया, ‘क्यों मारते हो भाई, क्या बिगाड़ा है इसनें तुम्हारा..निश्चिन्त रहो, काटेगा नहीं.’
लड़के ने उस कीड़े को पैर से सीट के किनारे सरका दिया. अब सभी लोग अपना मोबाइल छोड़ अपने पैरों के आसपास देखने लगे थे कि किसी तरफ से कीड़ा फिर से तो नहीं आ रहा उनके पास. बुजुर्ग जो कि मेरे ख्याल से सत्तर साल के होंगे, वो अपने पास बैठे लोगों को कुछ पुरानी बातें बताने लगे कि कैसे पहले बारिश के मौसम में कीड़े, साँप वगैरह एक बड़ी समस्या हो जाते थे घरों के लिए.
वो अपने गाँव में किसी सँपेरे की बात करने लगे जिसे साँप के अलावा तरह तरह के कीड़े को पालने का शौक था. बुजुर्ग की बात सही में दिलचस्प थी. पास बैठे दो तीन लोगों का ध्यान उन बुजुर्ग की बातों की तरफ आकर्षित हो गया था. मैं जो उनके ठीक सामने बैठा था, मेरा भी ध्यान उनकी बातों की तरफ चला गया था.
पुरानी बातों में शायद कोई चुम्बकीय शक्ति होती है जो दूसरे लोगों का ध्यान बड़े आसानी से अपने तरफ आकर्षित कर लेता है. कितने भी अनजान लोग क्यों न हो, लेकिन पुराने दिनों की यादें लगभग सभी लोगों की एक सी होती है, और कोई व्यक्ति ऐसे पुराने दिनों की बातों को छेड़ देता है, तो अनजाने ही उस अजनबी व्यक्ति से और उसकी बातों से हम रिलेट करने लगते हैं.
बुजुर्ग के पास बैठे एक व्यक्ति ने उनसे मजाक करना चाहा, ‘ताऊ कीड़े से आपकी ऐसी हमदर्दी देख कर तो लगता है आपके गाँव के वो सँपेरे आप ही थे क्या?’ सभी लोग उस व्यक्ति के मजाक पर हँसने लगे थे. सामने बैठे वो बुजुर्ग खुद उसकी बातों पर हँसने लगे थे. मेरे बगल में बैठे एक व्यक्ति को भी उस बुजुर्ग की बातों से शायद कुछ याद आया हो, उन्होंने भी अपने गाँव की कुछ ऐसी ही बात शेयर करना शुरू कर दिया.
कुल मिलकर उस कीड़े और बुजुर्ग की बातों ने एक दिलचस्प चर्चा और बातों का सिलसिला शुरू कर दिया था. कोने में जो तीन चार कॉलेज के लड़के लडकियाँ बैठे थे, वो भी मोबाइल में टेक्सटिंग करना छोड़ वहाँ बैठे लोगों की बातों पर अपना ध्यान देने लगे थे.
आमने सामने बैठे हुए लोगों में बातों का ऐसा सिलसिला चल निकला था कि कीड़े और गाँव की बातों से बातों का रुख राजनीति और समाज में हो रहे बदलाव के तरफ मुड़ चुका था. वक़्त कितना बदल चुका है उस बारे में तरह तरह की दिलचस्प चर्चाएँ होने लगी थी.
दिल्ली की तेज़ भागती दौड़ती ज़िन्दगी में मेट्रो में इस तरह की चर्चाएँ भी अनजान लोगों के बीच हो सकती हैं, ये मैंने सोचा नहीं था. पहले बसों में या फिर ट्रेन में ऐसी चर्चाएँ अनजान लोगों के बीच होना एक आम बात थी लेकिन मेट्रो की इस ज़िन्दगी में सभी अपने में सिमटे हुए से रहते हैं, अपने मोबाइल, इअरफ़ोन और किताबों में उलझे रहते हैं, सामने बैठे लोगों के तरफ भी उनका ध्यान नहीं रहता. ऐसे में मुझे आधे घंटे का वो माहौल बड़ा सुखद सा लग रहा था.
अब तक मेट्रो राजीव चौक पहुँच गयी थी. जितने लोग बैठे हुए बातें कर रहे थे, उनमें से तीन चार लोग यहाँ उतर गए, और वे बुजुर्ग व्यक्ति से बाकायदा विदा लेते हुए उतरे. ये भी मुझे बड़ा सुखद आश्चर्य सा लगा कि कुछ देर के लिए ही सही लोगों में ऐसी आत्मीयता तो आ गयी.
राजीव चौक पर दो नए यात्री हमारे मेट्रो के डब्बे में चढ़े. एक कीड़ा जो अब तक सीट के अन्दर दुबका हुआ था वो मौके का फायदा उठा कर फिर से सीट से बाहर आया और अबकी उसने फिर मेरे पैरों पर चढ़ना शुरू कर दिया. किसी ने भी ध्यान नहीं दिया, वो आधा रास्ता पार कर के मेरे घुटनों तक पहुँच गया था. बुजुर्ग का ही ध्यान सबसे पहले उस कीड़े पर गया, वो तेज़ी से उठे और कीड़े को अपने मुट्ठी में दबा कर उसे दूसरी तरफ फिर से फेंक दिया.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन लीला चिटनिस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
बढ़िया
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Nice Article, very helpful information,
thanks for the Share with us
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