इससे भी बेहतर सुबह राखी की क्या होगी? कल रात तक ये अफ़सोस रहा कि इस साल किसी का राखी पहुँच नहीं सका मेरे पास. मैं भी इस साल बहुत अरसे के बाद राखी के दिन अकेला हूँ. कल शाम में ही खुद बाज़ार जाकर सभी बहनों के नाम से खुद के लिए राखी खरीद ली थी मैंने. लेकिन आज सुबह हुई और सभी राखियाँ एक साथ मिली सुबह. दिल खुश हो गया. ये राखी के सुबह की एकदम परफेक्ट शुरुआत थी. राखी जिसके मिलने की आस एकदम छोड़ दी थी मैंने, वो मिलते ही मन किया ख़ुशी से उछल जाऊं. सबसे खूबसूरत सरप्राइज था मोना की राखी में. मोना ने राखी को एक ग्रीटिंग्स कार्ड में एम्बेड कर दिया था. वो ग्रीटिंग्स कार्ड मोना ने खुद से बनाया था. मेरी ये बहन टैलेंटेड तो है लेकिन इतनी टैलेंटेड की इतना सुन्दर ग्रीटिंग्स कार्ड बना दे, ये पता चला आज सुबह ही. स्कूल में तो इसके द्रविंग्स और आर्ट एंड क्राफ्ट के अधिकतर प्रोजेक्ट मैं ही बनता था. मोना तुम इसे पढ़ रही हो अगर तो मुकरना मत. पापा और माँ गवाह हैं इस बात के. वैसे मोना इस तरह के सरप्राईज दो साल से दे रही है. पिछले साल मोना ने राखी के साथ एक बड़ी प्यारी चिट्ठी भेजी थी और इस साल हाथ से बना हुआ ये कार्ड.
मोना का राखी मिलना और उसका बनाया हुआ ग्रीटिंग्स कार्ड को हाथ में लेकर जाने बचपन की कितनी यादें याद आ गयी. हर नए साल पल, किसी ख़ास के जन्मदिन पर और अकसर त्योहारों पर भी हम बचपन में ग्रीटिंग्स कार्ड बनाते थे. मोना और मैं, दोनों मिलकर बनाते थे ग्रीटिंग्स कार्ड. ज़माने हो गए अब ग्रीटिंग्स कार्ड बनाये हुए किसी के लिए. बचपन की बहुत सी यादें मोना की राखी लेते आई आज सुबह. छोटी छोटी बातें याद आने लगी. मोना के साथ अपने बरामदे में कितकित खेलना(हँसना मना है दोस्तों, लड़के भी खेलते हैं कितकित), क्रिकेट खेलना मोना के साथ और कभी कभी बैडमिंटन खेलना. गर्मियों की छुट्टियों में हमारे कई तरह के एक्सपेरिमेंट होते थे. अधिकतर एक्सपेरिमेंट हम दोनों के होते थे अपने पूराने मर्फी के टू इन वन पर. वो ख़राब होता था और हम उसे चलाने की जिद पर अड़े रहते थे. थोड़े दिन चलता सही से और फिर बैठ जाता था. अब हम स्कूल के बच्चों को उस समय टेक्नीकल जानकारी नहीं थी फिर भी टू इन वन के कैबिनेट को खोलकर हम डिफेक्ट तलाश करते और यकीन मानिए बहुत बार तो हम उस टू इन वन को चला भी लेते थे. बदमाशियां भी थोड़ी हम कर लेते. दोपहर में कभी चोकलेट खाने का दिल करता तो हम अपने गुल्लक में जिसमें पैसे जमा करते, उससे पैसे निकाल लेते थे. बड़ा ट्रिक वाला काम होता था गुल्लक से पैसे निकालने का, जिन लोगों के पास गुल्लक होगा और जो ऐसी बदमाशियां करते होंगे वो बड़े अच्छे से समझ रहे होंगे पैसे कैसे निकलते थे. मोना के साथ तो जाने कितनी ऐसी यादें हैं, असल में मैं और मोना भाई बहन के साथ एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त भी थे, कोई भी खेल होता हम आपस में ही खेलते थे. ये मेरे से दो साल छोटी है लेकिन बचपन में भी मेरे पे इसका हुक्म बहुत चलता था. मेरी हर नयी चीज़ ये हरपने के ताक में रहती थी. मेरी हमराज़ भी होती थी मोना. शायद ही ऐसी कोई बात होगी जो इसे पता न हो. मुझे भी ये विश्वास रहता कि ये वो बात अपने तक ही रखेगी. माँ कितनी बार तो मोना से पूछते हुए थक जाती, लेकिन मोना एकदम चुप रहती, हाँ ये बदमाश लड़की अकसर मुझे ब्लैकमेल जरूर कर लिया करती थी – “भैया मेरे लिए फलाना करो, मेरे को ये चाहिए मुझे दो..वरना माँ को बता दूंगी..” और मैं घबराकर अकसर मोना की वो ख्वाहिश पूरी कर देता था. याद करने बैठूं मोना की बातों को तो पता नहीं कितनी बातें याद आएँगी. लेकिन मेरी एक बहन नहीं है, बहुत सारी प्यारी बहनें हैं, और सब के बारे में आज के इस पोस्ट में समेटना है कुछ न कुछ. तो मोना, तुम्हारी और बदमाशियों का कच्चा चिटठा अगली बार.. आज के लिए बस इतना ही.
मोना के बाद जिसने मुझे बहुत ज्यादा ब्लैकमेल किया है वो है प्रियंका दीदी. वैसे तो ये ब्लैकमेल में थोड़ा अंतर है, क्योंकि ये मेरे भले के लिए मुझे ब्लैकमेल करती है फिर भी करती तो है. तीन लोगों को ये शक रहता है मेरे बारे में, कि मैं यहाँ दिल्ली में अकेले रहता हूँ तो खाना वगैरह समय पे नहीं खाता. सबसे बड़ा शक तो माँ को रहता है, उसके बाद मोना को और प्रियंका दीदी को. माँ तो ब्लैकमेल नहीं करती, बस डांट देती है, मोना को तो ये कन्विंस करना मुश्किल होता है कि मैंने खाना खा लिया है, और ये प्रियंका दीदी, ये तो मोना और माँ से भी दो कदम आगे है. अकसर कहती है, तुम नास्ता करो, तभी मैं भी करुँगी. कितनी बार तो ये सबूत के लिए व्हाट्सएप पर खाने की तस्वीर भेजने को कहती है, ये कहकर की यकीन तो दिलाओ मुझे तुम सही में खाए हो. इसका ब्लैकमेल सिर्फ इसी बात तक सिमित नहीं रहता न, ये यहाँ तक कह देती है, देखो तुम ठीक से खाना नहीं खाए तो मैं तुरंत आंटी को फोन लगा दूंगी. बड़ी बहन है न तो इसकी ऐसी बहिनगिरी चलती रहती है मेरे पर.
लेकिन मोना और प्रियंका दीदी, ये दोनों बहने मेरी बहुत बड़ी सपोर्ट सिस्टम है. हमेशा मेरे लिए स्टैंड लिया है इन दो बहनों ने. मेरी हर कमजोरियों में मेरी हर नाकामयाबियों में ये दोनों मेरे साथ हर पल रही हैं. हमेशा बहुत हौसला बढ़ाया है दोनों ने मेरा. मेरी हर परेशानियाँ बस उसी समय तक रहती हैं जब तक मैं इन दोनों में से किसी एक से बात न कर लूँ. कितनी बार तो ऐसा भी होता है, मन में कई सारी उलझनें रहती हैं, मैं उस समय उन उलझनों को कहना नहीं चाहता दोनों से, ऐसे में बस दोनों में से किसी से भी सिर्फ बातें कर लेना ही काफी होता है मेरे लिए. मन एकदम स्थिर हो जाता है.
जहाँ ये दो बहनें हैं जिनके पास मेरे मन के हर उलझन का समाधान है वहीँ मेरी बाकी दो फेवरिट बहनें निमिषा और सोना भी हैं, सोना से भी मन की बहुत सी बातें कह लेता हूँ. वो समझदार है, कुछ कुछ मेरे जैसी है वो लेकिन निमिषा तो बच्ची है बिलकुल. वैसे पोस्ट ग्रेज्युट है निमिषा लेकिन फिर भी मेरे लिए वो बच्ची ही है. हरकतें भी उसकी ऐसी ही होती है, बच्चों वाली. मेरे ब्लॉग को पढ़ने वाले दोस्तों के लिए निमिषा का नाम नया नहीं होगा, उन्होंने जाने कितनी कहानियां इस ब्लॉग पर पढ़ी होंगी निमिषा के. सोना और निमिषा दोनों की राखी भी आज ही सुबह मिली है मुझे. और दोनों ने राखी के साथ एक बड़ा सा कैडबरी सिल्क चोकलेट भेजा है. निमिषा कल शाम में बहुत उदास हो गयी थी, कि मुझे राखी नहीं मिल पायी. लेकिन सुबह सुबह ये लड़की मेरे से भी जायदा खुश हो गयी जब मैंने इसे राखी मिल जाने की बात सुनाई फ़ोन पे तो.
मेरी सिर्फ यही चार बहनें नहीं हैं, जैसा की कहा पहले ही मैंने, बहुत सी प्यारी बहनों से मैं घिरा हुआ हूँ. तीन प्यारी दीदियाँ..सीमा दीदी, नीतू दीदी और डॉली दीदी हैं वहीँ तीन और बदमाश छोटी बहनें हैं, माही, अंशिका और रीति. इनके अलावा भी रिश्तों में मेरे बहनों की संख्या अधिक है. पहले के दिनों में तो लगभग सभी बहनों के राखी मिलते थें रक्षाबंधन के दिन. मेरे हाथ में पंद्रह बीस राखियाँ हो जाती थी. लेकिन समय के साथ साथ राखियों का आना कमता गया. उसकी मुख्य वजह रही, मेरा अलग अलग शहरों में रहना और लगातार पता बदलते रहना. लेकिन अब भी हर साल मैं कहीं भी रहूँ, मुझे प्रियंका दीदी, मोना, सोना, निमिषा, माही और अंशिका की राखी मिलती ही है. वैसे तो हर साल लगभग राखी के दिन मैं घर पे रहता ही था, इस साल बहुत अरसे के बाद अकेला हूँ दिल्ली में.
राखी के दिन यूँ अकेला रहना अच्छा तो बिलकुल नहीं लग रहा, शाम थोड़ा नॉस्टैल्जिक सा कर रहा है मुझे, शायद इसलिए ये पोस्ट भी लिख रहा हूँ. लेकिन उदास नहीं हूँ मैं, बहनों ने प्यार भेजा है मेरे पास आज, मोना का ग्रीटिंग्स मेरे पास है, सोना निमिषा का भेजा कैडबरी सिल्क और प्रियंका दीदी का दिया हुआ काजू के बर्फी हैं मेरे पास. लेकिन फिर भी तुम सब बहुत याद आ रही हो बदमाश लड़कियों !
और अब आखिर में एक कविता गोपाल सिंह नेपाली की, जो मुझे बेहद पसंद है –
तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ,
तू बन जा हहराती गँगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूँ लाल बनूँ,
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ,
यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,
…तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला ।
बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी,
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी,
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी,
भाई की गति, मति भगिनी की दोनों मंगल-मोद बनी
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना ।
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना ।
भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है,
संगम है, गँगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है,
यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,
पागल घडी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है ।
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है ।
Perfect beginning of the day…
and a perfect post!
एक बात तो अच्छे से समझ लो भैय्यू…ये बहनगिरी तो हमेशा यूँ ही चलती रहेगी, चाहे कुछ हो जाए…और तुमको ऐसे ही झेलनी भी पड़ेगी । वैसे हम लोग की बदमाशी तो तुम लिख दिए रे…पर खाने के मामले में तुम कितने बड़े बदमाश हो, कहो तो बता दें…? क्या कहते हो…? 😛
वैसे तुम्हारी ये पोस्ट पढ़ के सारी थकान छूमंतर…लव यू भैय्यू…<3
बहुत अच्छी सच्ची बातें…राखियां मिल गयी सारा प्यार मिल गया…गुल्लक से पैसे निकालने की ट्रिक की अच्छी याद दिलाई 🙂
बहुत अच्छी सच्ची बातें…राखियां मिल गयी सारा प्यार मिल गया…गुल्लक से पैसे निकालने की ट्रिक की अच्छी याद दिलाई 🙂
एक बात तो अच्छे से समझ लो भैय्यू…ये बहनगिरी तो हमेशा यूँ ही चलती रहेगी, चाहे कुछ हो जाए…और तुमको ऐसे ही झेलनी भी पड़ेगी । वैसे हम लोग की बदमाशी तो तुम लिख दिए रे…पर खाने के मामले में तुम कितने बड़े बदमाश हो, कहो तो बता दें…? क्या कहते हो…? 😛
वैसे तुम्हारी ये पोस्ट पढ़ के सारी थकान छूमंतर…लव यू भैय्यू…<3
Beautiful Post….. aur han , unhen kaise bhoola ja sakta hai 🙂 we to yaad aayengen hi.
यहाँ सचमुच ही बहनें भाई का ध्रुवतारा हैं . ऐसा प्यार कहाँ . मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं और स्नेह अनुपम भाई और उसकी बहनों को . ऐसे ही बने रहो .
बहना के हाथ का बना ग्रीटिंग कार्ड बहुत यादें ताजा कर गयी। . यही तो है भाई बहन का प्यार। . सभी बहनों को यूँ ही सदा प्यार करते रहना। .
बहुत अच्छी प्रस्तुति
अच्छी प्रस्तुति यादें ताजा कर गयी अभी भाई
pyari behano ke pyare bhaiya 🙂
very nicely written!