- रसोई घर और पखाना – हरिशंकर परसाई का एक तगड़ा कटाक्ष – समाज के झूठे प्रतिष्ठा, ऊँच नीच और भेद भाव को दिखाती एक छोटी सी लघुकथा.
गरीब लड़का है। किसी तरह हाई स्कूल परीक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ना चाहता है। माता-पिता नहीं हैं। ब्राह्मण है।
शहर में उसी के सजातीय सज्जन के यहाँ उसके रहने और खाने का प्रबंध हो गया। मैंने इस मामले में थोड़ी-सी मदद कर दी थी, इसलिए लड़का अक्सर मुझसे मिला करता है। बड़ा ही सरल, सभ्य और सीधा लड़का है। साथ ही कुशाग्रबुद्धि थी।
एक दिन मैंने पूछा, ‘क्यों, तुम्हारा सब काम ठीक जम गया न? कोई तकलीफ तो नहीं है उन सज्जन के यहाँ?’
वह तनिक मुस्कराया, कहने लगा, ‘तकलीफ तो नहीं है, पर वहाँ एक बात बड़ी विचित्र और मनोरंजक है।’
‘क्या बात है?’ मैंने पूछा।
वह बोला, ‘वैसे तो मैं उनके चौके में सबके साथ ही बैठकर खाना खाता हूँ, पर घर में जो एक वृद्धा है, वे मुझसे कहती हैं कि बाहर की टट्टी में पाखाना जाया करो। घर में बड़ी और प्रमुख टट्टी है, जिसमें घर के लोग जाते हैं, एक और है जिसमें नौकर-चाकर जाते हैं। मुझसे वे कहने लगीं कि बाहर वालों के लिए यह बाहर वाली टट्टी है। मुझे चौके में तो प्रवेश मिल गया है, पर टट्टी में प्रवेश नहीं मिला।
अगर तेरी झूठी प्रतिष्ठा भोजन में प्रदर्शित न हो पाएगी तो तू मल-मूत्र में ही प्रदर्शित करके रहेगा। अगर मेरे रसोई घर में ऊँच-नीच कोई नहीं रहेगा तो तू संडास मेँ ऊँचा बनकर दूसरे को नीचा बनाएगा। शाबाश!
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About The Author – Harishankar Parsai
Harishankar Parsai, born on 22 August 1922 in Jamani Village near Itarsi, Madhya Pradesh was a Hindi writer and a noted satirist and humorist of modern hindi literature. Parsai is known for revolutionizing the art of satire writing in Hindi.
हरिशंकर परसाई जिनका जन्म २२ अगस्त, १९२४ को जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ, हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे. वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा.