सम इंट्रेस्टिंग ट्रेन जर्नीज़

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बड़े दिनों से ब्लॉग पर कुछ भी नहीं लिख पा रहा था.. बहुत से आधे-अधूरे पोस्ट युहीं ड्राफ्ट में पड़े हुए होंगे, सोच रहे होंगे कि जाने कब हमें पब्लिश किया जाएगा। आज शाम मौसम और मिजाज़ दोनों बहुत अच्छे हैं, तो सोचा कि कुछ पुराने पड़े ड्राफ्ट को ही मुकम्मल कर यहाँ पोस्ट कर दूँ। कुछ महीने पहले कुछ इरिटेटिंग ट्रेन यात्राओं पर मैंने एक पोस्ट लिखा था “सम मोस्ट इरिटेटिंग जर्नीज़”। मेरी इस पोस्ट पर प्रवीण भैया ने बड़ा गूढ़ रहस्य वाला कमेन्ट किया था, जिसका मर्म तब समझ में आया जब उन्होंने मेरे पोस्ट के जवाब में एक कविता लिख डाली। मैंने जब वो कविता पढ़ी और कविता के नीचे लिखा डिस्क्लेमर पढ़ा, तो उसी वक़्त तय कर लिया था कि उनके उस कविता के जवाब में कुछ न कुछ तो लिखूंगा ही ताकि भैया को मालूम चले कि हमारी ट्रेन यात्राएँ हमेशा इरिटेटिंग नहीं, इंट्रेस्टिंग भी होती हैं.. उसी समय मैंने एक पोस्ट लिखना शुरू भी कर दिया था लेकिन कुछ कारणवश वो अधूरा ही रह गया। आज बस उसी पोस्ट को पूरा कर यहाँ आप सबके सामने प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ।

ये मेरे ट्रेन यात्राओं के अनुभव हैं, बहुत ज्यादा रोचक ना भी हों, तो भी मेरे लिए तो ख़ास हैं ही, जिन्हें आज बस सहेजने की कोशिश कर रहा हूँ। वैसे तो किस्से बहुत से हैं मेरी ट्रेन यात्राओं के.. एक पोस्ट दो साल पहले भी लिखी थी, अपने कॉलेज के दिनों की ट्रेन यात्राओं पर। सच कहूँ तो दिलचस्प यात्राएँ तभी होती थीं जब दोस्त साथ सफ़र करते थे। लेकिन कॉलेज के बाद भी कई ऐसी यात्राएँ हुई हैं जो याद रह जाएँगी, और कई ऐसे सहयात्री भी मिले हैं जिनके नाम याद रहें न रहें, उनके साथ बिताया वक़्त जरूर याद रह जाएगा। तो सुनिए ऐसे ही कुछ यात्राओं के किस्से:

सीन: १ नई दिल्ली से पटना, मगध एक्सप्रेस
अगस्त 2010

इस सफ़र का अनुभव कुछ-कुछ वैसा ही था, जैसा कि प्रवीण भैया की उस कविता में पता चलता है। अगस्त का महीना था, और रक्षाबंधन के अवसर पर मैं घर जा रहा था। उन दिनों मैं बैंगलोर में रहता था और दिल्ली कुछ काम से आया हुआ था। रात को आठ बजे मेरी ट्रेन थी, मगध एक्सप्रेस जो कि बारह घंटे लेट हो जाने की वजह से दिल्ली से सुबह नौ बजे खुलने वाली थी। और शायद इस देरी की वजह से पटना जाने वाले बहुत से लोग रात को दूसरी गाड़ी से चले गए थे। ट्रेन में भीड़ बिलकुल भी नहीं थी, और मेरे कम्पार्टमेंट में सिर्फ चार लोग थे। जिसमें से एक मैं और बाकी तीन लड़कियाँ थीं। उन तीन लड़कियों में से एक लड़की बिलकुल खामोश सी बैठी हुई थी, और उसे देख मुझे लगातार अपनी एक दोस्त की याद आ रही थी। तीनों लड़कियाँ दोस्त थीं और बाकी दो लड़कियाँ इस चुपचाप रहने वाली लड़की को सता रहीं थीं। तीनों की नोक-झोंक पूरे सफ़र में चलती रही। मेरी नज़र जब न तब उस लड़की की ओर चली जाती, और ठीक उसी वक़्त वो भी मुझे देखने लगती। मैं थोड़ा घबरा कर अपनी नज़रें दूसरी तरफ मोड़ लेता, वो भी थोड़ी सकपका सी जाती। शाम हुई तो उनमें से एक लड़की, जो कि सबसे शरारती थी, वो मेरे से बात करने लगी.. मैंने निदा फाजली साहब की किताब “आदमी की तरफ” पढ़ रहा था। उसने बड़े उत्साहित होकर पूछा मुझसे..”आप शायरी की किताब पढ़ रहे हैं.. अगर बुरा ना माने आप तो कुछ शायरी इनमें से हमें भी सुनाइये”… कुछ शायरी मैंने सुनाई भी उसे, लेकिन वो शायद बोर होने लगी। कहने लगी “इसमें तो सब हाई-फंडा सी बातें हैं, रोमांटिक शायरी नहीं है इस किताब में”। उस लड़की की बात सुनकर उसकी वो चुपचाप सी रहने वाली सहेली खिलखिलाकर हंसने लगी.. और तब मुझे लगा कि इसकी शक्ल के साथ-साथ इसकी हंसी भी मुझे किसी की याद दिलाती है। शाम गहराई तो बाहर बारिश होने लगी। मौसम में एकाएक ठंडक आ गयी थी। मेरे आई-पॉड पर कुछ गाने (ख़ासकर के अलका याग्निक का गाया हुआ गाना ‘तुम याद आये’) रिपीट मोड में चल रहे थे और मन के अंदर और मन के बाहर का वातावरण पता नहीं क्यों बिलकुल रूमानी सा हो गया था। बाकी प्रवीण भैया की वो कविता सेल्फ-इक्स्प्लैनटोरी तो है हीं। 🙂

सीन: २ बैंगलोर से पटना, संघमित्रा एक्सप्रेस
जनवरी 2011

यह सफ़र सही मायने में एक यादगार सफ़र था। मैं अपनी बहन की शादी में पटना जा रहा था। संघमित्रा एक्सप्रेस से मेरी रिज़र्वेशन थी। ट्रेन भी अपने समय से खुली। मेरे ठीक सामने वाले बर्थ पर एक सज्जन बैठे थे, जिनसे थोड़ी ही देर में अच्छी मित्रता भी हो गयी। बातचीत के दौरान मालूम हुआ कि ब्लॉग से उनका भी सम्बन्ध है, और वो मुख्य रूप से अंग्रेजी में ब्लॉग लिखते हैं। लेकिन वो नियमित ब्लॉग लेखक न होकर नियमित ब्लॉग पाठक के श्रेणी में आते हैं और अंग्रेजी ब्लॉग एग्रीग्रेटर और हिंदी ब्लॉग एग्रीग्रेटर (चिट्ठाजगत) के माध्यम से नियमित ब्लॉग पढ़ते भी हैं। मजे की बात ये थी कि उन्होंने जितने भी अपने पसंद के हिंदी ब्लॉगर्स के नाम बताए, मैं लगभग सभी से परिचित था। ब्लॉग से हटकर बातों का रुख धीरे-धीरे हिंदी साहित्य की तरफ मुड़ा। हमारे कम्पार्टमेंट में एक बुजुर्ग दम्पति भी सफ़र कर रहे थे, वो भी हमारी बातों में ख़ासा दिलचस्पी लेने लगे, वे दोनों अंकल-आंटी हिंदी के प्रोफ़ेसर रह चुके थे, जो अपने बेटों से मिलने बैंगलोर आए हुए थे और वापस पटना जा रहे थे। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट के सभी आठ लोग बातचीत का हिस्सा बन गए, और थोड़े ही वक़्त में सभी से जान पहचान भी हो गयी।

आठ यात्री में एक मैं था, एक वो सज्जन जो किसी सरकारी पद पर कार्यरत थे, एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट, एक डॉक्टर भाईसाहब, एक सॉफ्टवेर इंजिनियर, एक लड़की जो किसी फर्म में एच.आर थी और वो अंकल-आंटी जो हिंदी के प्रोफ़ेसर रह चुके थे। सभी यात्री एक दुसरे से अच्छे से परिचित हो गए थे, एक पारिवारिक माहौल सा बन गया था उस कम्पार्टमेंट में। रात हुई तो आंटी जी हम सब को अपने पुराने दिनों की कहानियाँ सुनाने लगीं। अपनी पुरानी यादें हम सब के साथ बांटने लगीं। ब्लॉगर भाईसाहब ने सबको ये बता दिया कि मैं ब्लॉग पर कभी-कभी कविताएँ भी लिखता हूँ, तो सबने कुछ कविताएँ सुनाने की मांग की। मेरे लाख मना करने पर भी सबने मुझसे मेरी एक-दो कविताएँ सुन ही लीं। दो दिन का सफ़र था और दोनों दिन हम सभी आठ यात्री नॉन-स्टॉप बातें करते आए। ठण्ड और कोहरे की वजह से हमारी ट्रेन लगभग चार घंटे लेट हो गयी थी, लेकिन किसी को भी इस बात की परवाह नहीं थी। दूसरे दिन सुबह ट्रेन किसी अनजान से प्लेटफार्म पर रुकी। एक लड़का जो हमारे ही कम्पार्टमेंट में था, उसने सबको बताया कि ट्रैक में खराबी आने की वजह से ट्रेन यहाँ आधा-एक घंटा रुकेगी। उसने साथ में ये भी बताया कि बाहर बहुत घना कोहरा है। अब हमारे कम्पार्टमेंट में सभी लोग बैंगलोर में रहने वाले… कोहरा नसीब भी कभी नहीं होता। बाहर कोहरे की बात सुनकर सभी नीचे उतर गए और कोहरे का मजा लेने लगे। वहीं एक चाय के स्टाल पर डॉक्टर साहब ने हम सबको चाय पिलाई। कड़कड़ाती ठण्ड और कोहरे में नए अनजान दोस्तों के साथ चाय पीने का मजा ही अलग है। तीसरे दिन ट्रेन सात घंटे लेट पटना पहुंची। पटना प्लेटफार्म पर सबसे विदा लेते समय दिल तो बहुत किया कि सबका अता-पता या कोंटेक्ट नंबर ले लूँ, पर ब्लॉगर भाईसाहब के अलावा किसी का भी कोंटेक्ट नंबर नहीं ले सका।

सीन : ३
सिकंदराबाद से हावड़ा, फलकनुमा एक्सप्रेस
नवंबर 2009

दिवाली की छुट्टियों में हमें (मुझे और मेरी बहन को) बैंगलोर से पटना जाना था। तीन दिनों से तत्काल टिकट लेने की नाकाम कोशिशों के बाद आखिरकार हमें पटना जाने का टिकट मिला। लेकिन इसमें भी परेशानी थी। हमें ब्रेक जर्नी करके पटना जाना था। पहले बैंगलोर से हैदराबाद, फिर वहां से हावड़ा और फिर वहां से पटना। बैंगलोर-हैदराबाद और हावड़ा-पटना का टिकट तो हमें कन्फर्म मिल गया, लेकिन हैदराबाद से हावड़ा जाने का टिकट हमें वेटिंग में मिला। टिकट क्लर्क ने बड़े भरोसे से कहा था कि अभी पांच दिन हैं (उन दिनों तत्काल टिकट की बुकिंग पांच दिन पहले होती थी), आपका टिकट कन्फर्म हो जाएगा। मुझे भी भरोसा था कि टिकट कन्फर्म हो ही जाएगा। जिस दिन ट्रेन थी, उस दिन सुबह हम हैदराबाद पहुंचे। टिकट का स्टेटस चेक किया तो मालूम चला कि वेटिंग लिस्ट चार और पांच है। ट्रेन शाम में थी और हम बड़े खुश हो गए कि शाम तक तो टिकट का कन्फर्म होना तय ही है। लेकिन शाम को जब फाइनल चार्ट हमने चेक किया तो पता लगा कि हमारे टिकट का स्टेटस वेटिंग लिस्ट तीन और चार पर आकर अटक गया है। अब हमारी चिंता बढ़ गई। चौबीस घंटे लगते हैं हैदराबाद से हावड़ा जाने में। पहले तो ये तय किया कि ट्रेन में टी.टी से बात करके कम से कम एक बर्थ ले ली जाएगी, और अगर बर्थ का प्रबंध नहीं हुआ तो रात भर हमें किसी तरह जागकर काटना होगा। अगली सुबह ट्रेन जब भुवनेश्वर पहुंचेगी, तो भीड़ काफी कम हो जाएगी, और हमें कोई न कोई बर्थ मिल ही जाएगा। टी.टी से बात बनी नहीं और हम चुपचाप एक जगह बैठ गए, इस भरोसे के साथ कि सुबह हमें सीट मिल ही जाएगी।

जिस कम्पार्टमेंट में हम बैठे थे, वहां बैठे कुछ लोग हमें बड़े अजीब नज़रों से देख रहे थे, जैसे हम उनके रिज़र्व्ड बर्थ पर बैठकर कोई गुनाह कर रहे हों। लेकिन सामने कुछ अच्छे लोग भी थे, जिन्होंने हमें इत्मिनान से बैठने को कहा। उन भले लोगों की बातचीत से साफ़ मालूम हो रहा था कि ये सब मेरे ऐंसेस्ट्रल प्लेस बेगुसराय से हैं। थोड़ी देर बाद मेरी भी उन लोगों से बातचीत होने लगी। बातों-बातों में मैंने बताया कि बेगुसराय से मेरा भी संबंध है। वैसे तो वे भले लोग थे ही, लेकिन शायद मेरे मुँह से बेगुसराय का जिक्र सुनकर हमारे प्रति उनके दिल में एक सॉफ्ट-कोर्नर सा हो गया। वे चार लोग थे, और तीन बर्थ उनकी कन्फर्म थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना एक बर्थ हमें दे दिया। वे चार लोग थे, जिनमें से एक की तबियत शायद ख़राब थी और वो ऊपर वाले बर्थ पर पूरे रास्ते सोये रहे, एक बर्थ पर मैं और मेरी बहन थे, और बाकी बचे एक बर्थ पर तीन लोग बैठे हुए थे। पूरी रात वे तीनों जागे रहे। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था कि हमारी वजह से वे खुद ऐसे तकलीफ में सफ़र कर रहे हैं और हम उनके बर्थ पर आराम से सोये हुए हैं। मैं भी जाग गया और उनसे बातें करने लगा। बहुत रात तक हम बातचीत करते रहे, वे तीनों अपने गाँव के बड़े अनोखे, रोमांचक और दिलचस्प किस्से सुना रहे थे। अगले दिन सुबह जब ट्रेन भुवनेश्वर पहुंची, तो ट्रेन की भीड़ काफी कम हो गई थी और हमें जगह भी अच्छे से मिल गई थी। लेकिन फिर भी मैं पूरे रास्ते सोचता आया कि आज भी कैसे अच्छे इंसानों से यूं ही मुलाकातें हो जाया करती हैं।

Meri Baatein
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  1. दुसरे किस्से में तो बता दिया की किस किस का नंबर नहीं ले पाए और किसका लिए, पहले किस्से में ऐसा बयान क्यों नहीं आया? हम तो जानते हैं बेटा तुमको, तुम किसी भी हालत में ये मौका हाथ से नहीं जाने दे सकता है. सच सच बोल दो, नहीं तो कल रात वाला पोल खोल देंगे. 🙂

  2. हमेशा की तरह फिर भूल गए लिंक भेजना…पर हम भी कम खोजी नहीं…|
    बहुत अच्छा लगा तुम्हारा यादों का सफ़र…सबके साथ ऐसा होता है जब कोई अनजाना जीवन भर याद रह जाता है…|

  3. कभी करेंगे जरूर तुम्हारे साथ दिल्ली से पटना तक का सफ़र. फिर देखेंगे कितना सच लिखा है तुमने :):).
    बढ़िया लिखा वैसे.

  4. चलो सुहाना सफर और मौसम हसीं टाइप की जर्नी रही सारी!! लेकिन मेरे लिए तुम्हारी बेस्ट पोस्ट वो होगी जब तुम बिना 'लडकी', 'मेरी दोस्त' और 'पुराना समय' का ज़िक्र किये बगैर कोई पोस्ट लिखोगे.. शर्त ये होगी कि वो पोस्ट भी उतनी ही रोमांटिक होनी चाहिए जितनी इन सबके ज़िक्र के साथ होती है!!
    है न मुश्किल टास्क!! लेकिन वत्स.. तुम्हारे चचा, आई मीन बिग बॉस चाहते हैं कि आप ऐसी एक पोस्ट लिखिए!! और तब चचा आपको बेस्ट ब्लॉगर ऑफ ड ईयर का अवार्ड देंगे!! और वत्स वो अवार्ड तुम्हारे लिए ओस्कर से कम नहीं होगा!! झूठ कहा मैंने??????

    • समझा ना? ऐसे ही हम तुमको नहीं कहते हैं! जब देखो लड़की लड़की चिल्लाता रहता है. 😛

    • तो अगली पोस्ट -बिना ‘लड़की’,‘मेरी दोस्त’और ‘पुराना समय’ …के ‘अभि’….

  5. आपके नसीब में इतनी यादें हैं, यह देख कर तो ईर्ष्या हुयी जा रही है।

  6. भैया आपकी बातें हमेशा शानदार ही होती है..शुक्रिया

  7. बहुत कुछ याद दिला जाती हैं आपकी कुछ खास पोस्टें … 🙂 मुझे तो बड़ा मज़ा आता है भारतीय रेल से यात्रा करने में इसलिए मैं जब भी इंडिया आती हूँ तो दिल्ली के बाद फ्लाइट न लेकर ट्रेन से चलना ही पसंद करती हूँ।

  8. जिन्दगी के सफ़र में कुछ साथ , कुछ यादें यूँ ही जेहन में बस जाती है और दूसरों को जलाती भी है .

  9. आपका पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

  10. अच्छे यात्रा संस्मरण हैं। वैसे ये पीडी कौन सी बात का खुलासा करने की बात कह रहे हैं? जबाब अभिषेक और पीडी में से कोई भी दे सकता है।

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