नया साल आ गया है, लेकिन यह नया साल मेरे लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए ख़ास सा है.. पिछला साल जितना बेदर्द रहा, जितना तकलीफदेह रहा, सब उस साल से पीछा छुड़ाने की कामना कर रहे थे.
व्यग्तिगत तौर पर मेरे लिए भी बीता साल बहुत से बुरे ख़बरों को साथ लेकर आया था. एक तो काम काज लगभग आधे साल चौपट सा रहा, उसपर कितने अपनों से बिछड़ने का भी साल रहा ये.
जब साल शुरू हुआ था, यानी 2020 जनवरी, हम सब कितने खुश थे कि हम नए दशक में प्रवेश कर रहे हैं लेकिन किसी को इसकी भनक भी नहीं थी कि साल क्या लेकर आने वाला है.
मेरे लिए ये साल तीन हिस्सों में बंटा हुआ है. सिर्फ मेरे लिए ही नहीं बल्कि लगभग सभी लोगों के लिए. पहला हिस्सा जनवरी से मार्च तक का, दूसरा मार्च से सितम्बर तक का और तीसरा अक्टूबर से दिसम्बर तक का.
पहला हिस्सा जहाँ पुरे उत्साह वाला था और खूब सपने दिखाने वाला. काम भी एक नयी गति पकड़ रहा था और हर तरफ से पॉजिटिव ख़बरें आ रही थी. दिल्ली में थे तो हम और निक्की घूमें भी खूब. जाड़ों की गुनगुनी धूप में घूमना वैसे भी किसे नहीं पसंद है.
पापा और माँ भी दिल्ली आये थे और हम दिल्ली में खूब घुमे थे. अयांश के जन्मदिन में पहली बार हम सबकी उपस्थिति थी. हम बहुत से वजह से खुश थे और लग रहा था जैसे यह साल कई सारी खुशियों को साथ लेकर आया है. पहला दो महिना तो इस साल का सच में कमाल बीता था.
हमनें साल में दो ट्रेवलिंग के भी प्लान बनाये थे. लेकिन बने हुए प्लान और देखे हुए सपने अक्सर धोखा दे जाते हैं.
मुझे दिन भी याद है, पांच मार्च को हम दिल्ली से पटना के लिए निकले थे और उस वक़्त ये ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि वापस दिल्ली आने में हमें छः महीने लग जायेंगे और पूरे देश में लॉकडाउन लग जाएगा.
इस साल जब लॉकडाउन शुरू हुआ, तब मन में ये ठानी थी मैंने कि चलो इसी बहाने ब्लॉग्गिंग को फिर से शुरू करना है, कुछ कहानियां लिख डालनी है, ज़माने से अधूरी अटकी कई कहानियों के ड्राफ्ट हैं जिसे पूरा करना है. सोचा था कि समय तो भरपूर मिलेगा, सारे शौक जो भाग दौड़ की ज़िन्दगी में नहीं पूरे कर पा रहे थे वो सभी पूरे कर लेंगे.
लेकिन आधा समय लॉकडाउन तो काम की चिंता और फ्रस्ट्रेसन में गुज़र रहा था. शुरू के कुछ समय यानी मार्च से लेकर अप्रैल और कुछ मई का हिस्सा तक अच्छे से बीता..घर में तरह तरह के पकवान भी बने और कुछ क्रिएटिव काम भी हुए लेकिन उसके बाद तो जैसे जैसे वक्त बीतता गया, बोझिल सा होता गया सब कुछ.
यहाँ तक कि मेरा सबसे प्रिय काम जो था संगीत का, वो भी छुटा सा रहा. शायद कुछ करने की ख़ास ईच्छा ही नहीं हो रही थी.
जून के बाद से बहुत सी बुरी ख़बरें भी मिलने लगी.. दोस्तों और परिवारों के तरफ से कितने ऐसी बुरी ख़बरें आ रही थी, कहीं से कोई हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चला गया था तो किसी की नौकरी चली गयी थी..तो किसी को पैसे की दिक्कत आ रही थी. इन सब ख़बरों से भी ज़्यादातर मन ख़राब ही रहा. परिवार के बीच हँसना बोलना खाना पीना सब चलता रहा लेकिन समय और माहौल ने अलग सा डर और मायूसी बना रखा था मन में. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कि एक कविता याद आती रही अक्सर… किसी से कहा नहीं, लेकिन आज यहाँ लिख रहा हूँ –
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
इस साल बुरी ख़बरों से मेरे परिवार का भी पीछा नहीं छुटा और कुछ अपनों के जाने के दुःख को हमनें भी सहा. सबसे बड़ा और गहरा दुःख था मेरी बड़ी मम्मी के साथ छोड़ कर चले जाने का दुःख जो कि अभी भी बहुत समय तक खलता रहेगा.
अक्टूबर तक का वक़्त ऐसे ही उथल पुथल में बीता.. यहाँ तक कि त्योहारों के समय भी बुरी ख़बरों ने पीछा नहीं छोड़ा और बस त्यौहार बस रस्म निभाने तक ही सीमीत सा होकर रह गया. ऐसा फीका त्योहारों का मौसम भी मैंने पहली बार ही देखा था.
Every Cloud However Dark It May Be Has A Silver Lining
बेशक बहुत बुरा सा बीता साल, लेकिन फिर भी कुछ चीज़ों ने थोड़ी सान्तवना दी. जैसे परिवार के साथ वक़्होत बीताने का सुख. पटना में रहने का सुख. जैसा की पहले मैंने बताया है कि एक ज़माने बाद इतने वक़्त तक मैं पटना में रह पाया हूँ, यह भी सिर्फ इसी साल मुमकिन हुआ. मेरे जैसे न जाने कितने लोग ऐसे हैं जो एक अरसे के बाद अपनों के साथ वक़्त बीता पाए हैं.
यह साल बहुत भयावह भी रहा, लेकिन मैं कभी कभी इस साल को एक भयावह टीचर के रूप में देखता हूँ जिससे सभी बच्चे नफरत करते हैं और जिसे हर कोई जी भर कोसता है. लेकिन वह टीचर कुछ न कुछ अच्छा सीखा कर ही जाता है.
इस साल ने यह तो बता ही दिया कि जेट स्पीड सी दौड़ती इस दुनिया को एक ही पल में रोक दिया जा सकता है. सारे विश्व के काम धंधे, इंसान सब एक जगह बंधे रह सकते हैं. बेफिक्री से जीने के आदि थे हम सब. पैसे पानी के जैसे बहाए जा रहे थे. इस साल ने यह भी सिखाया कि हम कैसे इन सब चीज़ों की कद्र कर सकते हैं.
बहुत से लोग हमारे आसपास हमारे समाज में एक दुसरे की मदद भी कर रहे थे. जहाँ जीवन खतरे में था, वहीँ बहुत से ऐसे उदाहरण भी मिले जिससे इंसानियत पर दोबारा भरोसा करने को जी चाहने लगता है. बहुत से लोग जो आर्थिक/व्यावसायिक मुसीबतों से घिरे थे उन्हें कहीं न कहीं से मदद मिलती गयी.
बेसब्र थे हम सब. किसी चीज़ में सब्र नहीं था. यह साल कहीं न कहीं हम सब को थोड़ा सब्र से रहना, सीमित संसाधनों में रहना सिखा कर गया है. हमारे आसपास एसेंशियल वर्कर्स जो मौजूद रहते हैं, उन सब की इज्जत करना भी साल ने सिखाया.
देखने का नजरिया तो अपना अपना होता है, कुछ लोगों के लिए बीता साल बहुत शानदार और अच्छा रहा तो कुछ लोगों के लिए बेहद क्रूर. लेकिन इतना तो है एक कम्युनिटी की तरह सोचे तो यह साल बेदर्द सा ही रहा है जिससे हर कोई किसी न किसी रूप से परेशान रहा है. फ़िलहाल तो सब की तरह मैं भी चाहता हूँ बीते साल को भूल जाना. जो सीखाना था इसे, वो इसने सिखा दिया अब बस कभी शक्ल न दिखे ऐसे साल की, यही उम्मीद करता हूँ…
बाकी कहानियां बहुत सी हैं बीते साल की, कुछ यहाँ नज़र आती रहेंगी.
एक कहानी लिख गया है हर किसी के लिए बीता साल
पूरी दुनिया को दुःख दे गया बीता साल,
नया वर्ष नया लाये जीवन में सबके यही, यही शुभकामना है, प्रार्थना है
नव वर्ष मंगलमय हो