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मन एक रहस्मय लोक है – मुक्तिबोध के ‘सतह से उठता आदमी’ से कुछ अंश

मुझे लगता है की मन एक रहस्मय लोक है, उसमे अँधेरा है, अँधेरे में सीढियां हैं..सीढियां गीली हैं.सबसे नीचली सीढ़ी पानी में डूबी हुई...

मीना कुमारी, एक अदाकारा, एक शायरा – एक एहसास

मीना जी चली गईं..कहती थीं -  राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा ...और जाते हुए सचमुच सारे जहान को तन्हा कर गईं; एक...

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भाभी – इस्मत चुग़ताई

  भाभी ब्याह कर आई थी तो मुश्किल से पंद्रह बरस की होगी। बढवार भी तो पूरी नहीं हुई थी।...

जडें – इस्मत चुग़ताई

  सबके चेहरे उड़े हुए थे। घर में खाना तक न पका था। आज छठा दिन था। बच्चे स्कूल छोड़े,...

चौथी का जोडा – इस्मत चुग़ताई

  सहदरी के चौके पर आज फिर साफ - सुथरी जाजम बिछी थी। टूटी - फूटी खपरैल की झिर्रियों में...

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याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके – बिस्मिल और अशफ़ाक़ की शायरी

अक्सर हम अब अपनी ज़िन्दगी में और बेवजह के...

तक़सीम – गुलज़ार

जिन्दगी कभी-कभी जख्मी चीते की तरह छलाँग लगाती दौड़ती...