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वो कमरा याद आता है.. – मेरा पुराना कमरा और एक कविता

जावेद साहब की एक कविता है "वो कमरा याद आता है".उस कविता को जब कभी पढ़ता हूँ, एक टीस सी उठती है मन में.दो...

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भाभी – इस्मत चुग़ताई

  भाभी ब्याह कर आई थी तो मुश्किल से पंद्रह बरस की होगी। बढवार भी तो पूरी नहीं हुई थी।...

जडें – इस्मत चुग़ताई

  सबके चेहरे उड़े हुए थे। घर में खाना तक न पका था। आज छठा दिन था। बच्चे स्कूल छोड़े,...

चौथी का जोडा – इस्मत चुग़ताई

  सहदरी के चौके पर आज फिर साफ - सुथरी जाजम बिछी थी। टूटी - फूटी खपरैल की झिर्रियों में...

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गली कासिम जां और मिर्ज़ा साहब से एक मुलाकत

पूछते हैं वो के ग़ालिब कौन है? कोई बतलाओ के...

स्वर्ग के खंडहर में – जयशंकर प्रसाद

  वन्य कुसुमों की झालरें सुख शीतल पवन से विकम्पित...