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शीशे पर जमी धूल और बदलता चेहरा – बिहार, झूठ और सच

दो दिन पहले की एक घटना के बाद बिहार के बारे में काफी कुछ पढ़ने के बाद खुद भी कुछ लिखने की इच्छा हुई....

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भाभी – इस्मत चुग़ताई

  भाभी ब्याह कर आई थी तो मुश्किल से पंद्रह बरस की होगी। बढवार भी तो पूरी नहीं हुई थी।...

जडें – इस्मत चुग़ताई

  सबके चेहरे उड़े हुए थे। घर में खाना तक न पका था। आज छठा दिन था। बच्चे स्कूल छोड़े,...

चौथी का जोडा – इस्मत चुग़ताई

  सहदरी के चौके पर आज फिर साफ - सुथरी जाजम बिछी थी। टूटी - फूटी खपरैल की झिर्रियों में...

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सवेरे जो कल आँख मेरी खुली – सआदत हसन मंटो

  अज़ब थी बहार और अज़ब सैर थी! यही जी...

मैं ज़िन्दा रहूँगा – विष्णु प्रभाकर

दावत कभी की समाप्त हो चुकी थी, मेहमान चले...