आज शिक्षक दिवस है, यह दिन भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती 5 सितंबर को, उनके याद में मनाया जाता है. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के प्रख्यात शिक्षाविद और महान दार्शनिक थे. एक बार की बात है, सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कुछ मित्र और दोस्तों ने कहा था कि वो उनका जन्मदिन सेलिब्रेट करना चाहते हैं, तब उन्होंने जवाब दिया – “मेरा जन्मदिन अलग से मनाने के बजाए अगर मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व महसूस होगा.”
भारतरत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरुस्कार के लिए नामित किया गया था. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे और उनमें आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे, उनके याद में शिक्षक दिवस मानना हम सब के लिए एक गर्व की बात है.
आज के दिन उनके कुछ विचार यहाँ रखने का दिल कर रहा है –
शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें.
शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए.
किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है.
पुस्तकें वह माध्यम हैं, जिनके जरिये विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है.
ज्ञान के माध्यम से हमें शक्ति मिलती है. प्रेम के जरिये हमें परिपूर्णता मिलती है.
शिक्षक दिवस, शिक्षा और शिक्षक की बातें हों और ऐसे में हमें संत कबीर ने जो अपने दोहे के माध्यम से सीख दिया है, उन्हें न याद करें तो कुछ अधुरा सा लगता है. व्यग्तिगत तौर पर मुझे कबीर के दोहे ने बहुत प्रेरित किया है और एक अलग ही अनुभूति होती है उनके दोहे को पढ़ कर या सुन कर.
कबीर ने गुरु-महिमा में खूब दोहे कहे हैं, सभी को यहाँ लिख पाना संभव नहीं था, फिर भी मैंने अपने पसंद के कुछ दोहे इधर लिखे हैं, शायद आपको भी पसंद आये –
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥
बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥
गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥
गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।
जनम – जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं॥
गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर।
आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥
गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं।
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं॥
ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास।
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास॥
पंडित यदि पढि गुनि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परमान॥
कहै कबीर तजि भरत को, नन्हा है कर पीव।
तजि अहं गुरु चरण गहु, जमसों बाचै जीव॥
करै दूरी अज्ञानता, अंजन ज्ञान सुदये।
बलिहारी वे गुरु की हँस उबारि जु लेय॥
मनहिं दिया निज सब दिया, मन से संग शरीर।
अब देवे को क्या रहा, यो कथि कहहिं कबीर॥
जाका गुरु है आँधरा, चेला खरा निरंध।
अन्धे को अन्धा मिला, पड़ा काल के फन्द॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
सीस दिये जो गुर मिलै, तो भी सस्ता जान ॥
– संत कबीर
मास्टरजी की आ गयी चिट्ठी
कबीर और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बातें थोड़ी गंभीर हो गयीं, अब थोड़ा बाल मन से गुलज़ार साहबके लिखे इस गीत को सुन लीजिये, ये गीत फील्म किताब से है. बच्चों पर बनी एक उत्कृष्ट फिल्म है किताब, अगर आपने नहीं देखी है, तो फ़ौरन देख डालिए. इसी फिल्म का एक गीत मास्टरजी की आ गयी चिट्ठी यहाँ आपको सुना रहा हूँ –
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टरजी की आ गयी चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकली बिल्ली
बिल्ली खाये जर्दा पान
काला चश्मा पीले कान
कान में झुमका, नाक में बत्ती
हाथ में जलती अगरबत्ती
अरे नहीं यार मगरबत्ती
अरे बोला ना अगरबत्ती
मगरबत्ती, अगरबत्ती, मगरबत्ती, अगरबत्ती, मगरबत्ती
अगर मगर बत्ती
अगरबत्ती कछुआ छाप
आग पे बैठा पानी ताप
ताप चढ़े तो कंबल तान
VIP अंडरवेर बनियान
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टरजी की आ गयी चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकला मच्छर
मच्छर की दो लंबी मूँछे
मूँछ पे बाँधे दो दो पत्थर
पत्थर पे एक आम का झाड़
मूँछ पे लेकर चले पहाड़
पहाड़ पे बैठा बूढ़ा जोगी
जोगी की एक जोगन होगी
गठारी में लागा चोर मुसाफिर
देख चाँद की ओर
पहाड़ पे बैठा बूढ़ा जोगी
जोगी की एक जोगन होगी
जोगन कूटे कच्चा धान
VIP अंडरवेर बनियान
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टरजी की आ गयी चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकला छींटा
थोड़ा काला थोड़ा पीला
छींटा निकला है शर्मीला
अरे वाह वाह, चाल देखो
घूँघट डाल के चलता है
माँग में सिन्दूर भरता है
माथे रोज़ लगाये बिंदी
इंग्लीश बोले मतलब हिन्दी
IF अगर IS है BUT पर WHAT मतलब क्या
माथे रोज़ लगाये बिंदी
इंग्लीश बोले मतलब हिन्दी
हिन्दी में अलज़ेबरा छान
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की पाठशाला खुला दो महाराज
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने भी एक कविता लिखी थी, पाठशाला पर, सोचा आप सब के साथ वो भी साझा कर दूँ, ये भी हलके फुल्के अंदाज़ में कही गयी एक बेहतरीन कविता है –
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!
आम का पेड़ ये
ठूंठे का ठूंठा
काला हो गया
हमरा अंगूठा
यह कालिख हटा दो महाराज
मोर जिया लिखने को चाहे
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!
’ज’ से जमींदार
’क’ से कारिन्दा
दोनों खा रहे
हमको जिन्दा
कोई राह दिखा दो महाराज
मोर जिया बढ़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!
अगुनी भी यहाँ
ज्ञान बघारे
पोथी बांचे
मन्तर उचारे
उनसे पिण्ड छुड़ा दो महाराज
मोर जिया उड़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे!
काका हाथरसी का तंज
जितनी पढ़ाई की बातें की जाती हैं, बहुत से कवि पढाई के बाद की समस्या जैसे शिक्षा-पद्धति, बेरोजगारी और नौकरी मिलने के संघर्ष पर भी कवितायेँ लिखी हैं. काका हाथरसी ने भी एक कटाक्ष किया है इस कविता में, वैसे वो इसे आज के दिन इधर रखने का कोई ख़ास अर्थ नहीं था, लेकिन ये कविता की ये तस्वीर आज भी दिखती है हमारे आसपास –
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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