तीज की कुछ यादें, कुछ अभी की बातें और एक आधुनिक समस्या

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बचपन से ही तीज का पर्व मेरे लिए एक ख़ास पर्व रहा है. सच कहूँ तो उन दिनों इस पर्व का न तो कारण पता था और न महत्त्व या अर्थ, हम बच्चे तो बस तीज पर्व का इंतज़ार इसलिए करते थे कि इस पर्व में खोआ के पेड़किये (गुझिये) खाने को मिलते थे. तीज में हमारे तरफ पेड़किया, ठेकुआ बनना रिवाज है.
उन दिनों आम तौर पर सब के घरों में सूजी के पेड़किये बनते थे, लेकिन बहुत से घरों में सूजी के साथ ही साथ खोआ और नारियल के पेड़किये भी बनाये जाते थे. मेरे घर में खोआ के पेड़किये शुरू से बन रहे हैं, और हम बच्चों को खोआ के पेड़किये फेवरिट थे.पहले खोआ सूजी के मुकाबले महँगा मिलता था(अब भी खोआ महँगा ही मिलता है), तो उसके पेड़कीये कम अनुपात में बनते थे और सूजी के ज्यादा. मुझे याद है स्कूल से लौटते ही मैं माँ का पेड़किया, ठेकुआ बनाने में हाथ बँटाने लगता था, और देखते ही देखते उस समय ही पेड़किया गूंथना बहुत अच्छे से आ गया था मुझे, और मैं अक्सर कोशिश ये करता था, कि खोआ वाले पेड़किये में कोई निशान बना दिया करता था, जिससे पहचान सकूँ कि कौन सूजी का है और कौन से पेड़किये खोआ के बने हैं.तीज पर्व का समापन सुबह के पूजे से होता था. हम भले ही स्कूल जाने के लिए सुबह उठने में आलस करें लेकिन तीज के पर्व के चलते हम सुबह सवेरे एकदम जाग जाते थे और इंतजार करते थे माँ के व्रत के खत्म होने का. जैसे ही तीज का व्रत समाप्त होता था, मैं और मेरी बहन मोना, टूट पड़ते थे खोआ के पेड़किया के ऊपर. दिन भर कम से कम पन्द्रह बीस तो निपटा ही देते थे हम लोग. माँ पीछे से डांटते रहती कि इतना नहीं खाया जाता, तबियत बिगड़ जाएगी, लेकिन जब खोआ के पेड़किये सामने हों तो तबियत की फ़िक्र कौन करता है? खोआ के चक्कर में हमेशा सूजी वाले पेड़किये उपेक्षित एक कोने में पड़े होते थे, उसको हम तब महत्त्व देते थे जब खोआ के पेड़किये खत्म हो जाते थे.
मैं और मेरी बहन अक्सर एक बात के लिए और डांट सुनते थे माँ से. हम खोआ के पेड़किया को पहचानने के लिए उसे हल्का सा तोड़ कर देख लेते थे कि अन्दर क्या भरा हुआ है. हमारे इस करतूत का असर ये होता था कि आधे से ज्यादा पेड़किया टूट जाया करते थे और माँ हमें डांटती थी कि हम एक भी पेड़किया को साबुत नहीं रहने देते थे.

लेकिन ये स्कूल के दिनों की बातें थीं. स्कूल के  के बाद शायद ही कभी तीज त्यौहार में घर पर रहने का मौका मिला. और सच कहूँ तो समय के साथ साथ तीज से जुड़ाव कम होते चला गया. हाँ दो-तीन बार माँ जरूर मेरे साथ दिल्ली में तीज पर रही है, पर यकीन मानिये किसी भी त्यौहार का मज़ा तब तक नहीं आता जब तक आप अपने शहर में और अपने घर में न हो.इस साल का तीज पर्व मेरे लिए थोडा ख़ास था. हर साल माँ के द्वारा तीज पर्व संपन्न होते हुए देखता था, इस बार मेरी पत्नी निक्की अपना पहला तीज का पर्व कर रही थी.

निक्की के द्वारा तीज पर्व किये जाने की ख़ुशी तो थी, लेकिन हलकी सी मेरी चिंता थी कि पता नहीं निक्की तीज का कठिन व्रत बिना किसी परेशानी के पूरा कर पायेगी या नहीं. मैंने कल ऑफिस जाते हुए इसे हिदायत दे रखी थी कि अगर हलकी भी परेशानी लगे तो बिना झिझक पानी पी लेना. लेकिन इसने पूरे दिन का व्रत अच्छे से और बिना किसी परेशानी के संपन्न किया.

सोचा तो था मैंने भी कि पहले के दिनों की तरह इस बार भी घर में रुक कर निक्की की मदद कर दूँगा पेड़किया बनाने में. ये भी पता चल जाएगा इससे कि इतने सालों के अंतराल के बाद मुझे पेड़किया बनाना याद भी है या मैं भूल गया हूँ. बचपन के दिनों में लेकिन बेफिक्री थी, और फुर्सत ही फुर्सत के पल थे. लेकिन अब ऑफिस का काम छोड़कर घर पर बैठना आसन काम नहीं है.

सुबह ऑफिस निकलने के पहले मैंने निक्की को सभी जरूरी हिदायत दे दिए थे, और कहा था कि मैं शाम में जल्दी घर आजाऊँगा, लेकिन किस्मत का फेर देखिये, जो दिल्ली मेट्रो एकदम सही टाइम पर चलती है, वो ऐसी रुक रुक कर चल रही थी कि बीस मिनट के मेट्रो के सफ़र को पूरा करने में करीब एक घंटे लग गए थे.

जल्दी जल्दी भागते दौड़ते घर पर आया, तब तक निक्की पूजा की लगभग सभी तैयारियां कर चुकी थी. उसनें सारे पकवान और प्रसाद भी अकेले घर में बिना किसी मदद के बना लिया था और फिर शाम में तीज पूजा का पाठ भी बहुत अच्छे और नियमबद्ध तरीके से पूरा किया. थोड़ा अच्छा भी लगा की इसनें सब कुछ का इंतजाम अकेले कर लिया, लेकिन साथ ही साथ थोडा अफ़सोस भी हुआ कि पहले ये सभी पर्व त्यौहार लोग मिल जुल कर मनाते थे लेकिन अब ज़िन्दगी इतनी अकेली हो गयी है, कि सभी लोग अलग अलग रह कर अकेले में ये सब पर्व त्यौहार मनाने को मजबूर हैं.

शाम के तरह ही सुबह भी तीज व्रत का पूजा होता है, और वो भी खूब अच्छे से और समय पर समाप्त हो गया. करीब चौबीस घंटे से भी ज्पयादा समय के बाद निक्की ने अपना व्रत तीज के ही प्रसाद से तोड़ा. खूब अच्छे से निक्की का पहला तीज पर्व संपन्न हुआ.

लेकिन आज के युग में सिर्फ पर्व में नियमबद्ध तरीके से पूजा कर लेना या रस्म-रिवाज निभा लेना मायने नहीं रखता. पर्व-त्यौहार का अब एक अभिन्न अंग है फोटोग्राफी, जिसके बिना कोई भी त्यौहार हँसी ख़ुशी निपटता नहीं नज़र आता.

पिछले वाक्य में कहे गए मेरी बातों से ये न समझिएगा कि मैं पर्व-त्योहारों पर तस्वीर लेने वालों के ऊपर कटाक्ष कर रहा हूँ, या कोई कमेन्ट कर रहा हूँ. सच कहूँ तो त्यौहार में फोटोग्राफी करने में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती, बल्कि बहुत अच्छा लगता है. कल से ही सोशल मीडिया पर तीज के रंगारंग तस्वीरों को देखकर मन प्रसन्न हो रहा है. लेकिन त्योहारों में अब तस्वीरें लेने में भी एक समस्या उभर कर सामने आती है, जिसका एहसास आज ही सुबह मुझे अचानक से हुआ और जिसकी वजह से मैंने ये लम्बा सा पोस्ट लिख दिया है.

सुबह निक्की ने तीज व्रत संपन्न किया, और उसनें फिर कुछ तस्वीरें क्लिक करने की ईच्छा जाहिर की. इसमें कोई दिक्कत नहीं थी, मैंने झट से अपना मोबाइल निकाला और दस-पंद्रह अच्छे फोटोज खींच डाले. लेकिन समस्या तब सामने आई, जब निक्की ने कहा कि हम दोनों की साथ की तस्वीर भी होनी चाहिए.

ये एक विकट समस्या थी. हम दोनों के साथ की तस्वीर? कैसे? खींचेगा कौन?

पहले के ज़माने में शायद इस प्रश्न का कोई हल नहीं था. जिन लोगों के पास अपना कैमरा और ट्राइपाड होता था, वो तो टाइमर लगा कर इस समस्या का हल निकाल लेते थे, लेकिन बाकी के लोग बस एक दुसरे की तस्वीर ही खींच कर संतोष करते थे. लेकिन अब ज़माना बदल गया है, अब इस समस्या का समाधान एक छोटे से बच्चे तक को पता है – सेल्फी कैमरा

आधुनिक युग में अगर आप शीर्ष के अविष्कारों का लिस्ट बनायेंगे तो उसमें मोबाइल का सेल्फी कैमरा बहुत ऊपर आएगा. शुरू में मुझे सेल्फी कैमरा बिलकुल पसंद नहीं था और मैं बहुत कम अपने फ़ोन का सेल्फी कैमरा इस्तेमाल करता था. मुझे जाने क्यों सेल्फी और सेल्फिश एक दुसरे के ही पर्यायवाची लगते हैं. थोडा ध्यान दीजिये अगर तो दोनों के अर्थ भी एक से ही हैं.

खैर, समय के साथ साथ मैं भी सेल्फी लेने में कम्फ़र्टेबल हो गया हूँ और सुबह की अपनी समस्या का हल भी मैंने कैमरा से एक सेल्फी फोटो खींच कर कर लिया, लेकिन दस-बारह सेल्फी तस्वीरें लेने के बाद भी मन माफिक तस्वीर नहीं आई. किसी तस्वीर में सिर्फ चेहरा आ रहा था, तो किसी तस्वीर से सर ही गायब था. अपने बाहों को अलग अलग एंगल से स्ट्रेच कर के तस्वीरें लेने के बाद आख़िरकार दो या तीन ऐसी तस्वीरें मिली जो थोड़ी ठीक थीं.

हालाँकि मैं संतुष्ट तो फिर भी नहीं हुआ, लेकिन इस तस्वीर को फेसबुक पर पोस्ट कर के संतोष कर कर लिया. इसके बाद दिल में एक ख्वाहिश हुई, लगा कि काश हम दोनों की कोई तस्वीर पूरी क्लिक हुई होती, जैसे नार्मल तस्वीरें होती हैं, जिन्हें आप अल्बम में लगा सकें या फ्रेम करवा सकें, और जिसमें आप पूरे के पूरे नज़र आये, आधे कटे हुए नहीं, और जिसे आप बाद में चाहे तो अपने ड्राइंग रूम के दीवारों पर सजा सके. ये ख्वाहिश सेल्फी तस्वीर से मुमकिन नहीं है.

दो जोड़े जो अकेले किसी शहर में रह रहे हैं, उन्हें अक्सर ऐसे समस्या का सामना करना पड़ता है. जी हाँ, ये एक समस्या ही है, और इस बात पर मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ. हो सकता है, कि आपको लग रहा हो कि मैं बढ़ा चढ़ा कर बात बाल की खाल निकाल रहा हूँ, लेकिन साहब अकेले रह रहे कपल की ये बड़ी परेशानी है.

वो एक दुसरे की तस्वीरें तो खींच लेते हैं, लेकिन साथ की तस्वीरें नहीं ले पाते और अंततः सेल्फी लेकर काम चला लेते हैं. पर्व-त्योहारों में तो बेचारे मन मसोस कर रह जाते हैं, कि काश दोनों की कोई अच्छी सी, एक परफेक्ट तस्वीर खींच सके. बहुत लोग इस चक्इकर में एक जुगाड़ ढूँढ लेते हैं, एक सेल्फी स्टिक खरीद कर, लेकिन उसमें भी वे आधे कटे हुए ही नज़र आते हैं. एक परफेक्ट कपल तस्वीर की ख्वाहिश उनकी ख्वाहिश ही रह जाती है, जब तक उन दोनों की परफेक्ट कपल तस्वीर खींचने वाला तीसरा कोई व्यक्ति मौजूद न हो.

हो सकता है ये समस्या 99.999555 फीसदी लोगों(मैं भी इसमें शामिल हूँ) के लिए ये बस एक इलाजिकल और बेफुजुल बातें बनाने वाली है, लेकिन हुज़ूर कुछ लोगों के लिए ये एक गंभीर समस्या है.
अब जैसे हर सवाल या समस्या के साथ होता है, कि उसके सामने आते ही हम उसका हल निकालने लग जाते हैं, इसके साथ भी वैसा ही हुआ. ये ख्याल सुबह आते ही मैं सोचने लगा आखिर इसका हल क्या हो सकता है?

बाहुत मंथन(सिरिअस वाला) करने के बाद मैंने इसका एक उपाय निकाल लिया, और उपाय भी ऐसा वैसा नहीं, बल्कि एक बिजनेस आपर्टूनिटी भी दिखा मुझे.

आज जैसे हर कुछ के लिए एप मौजूद हैं. सब्जी-भाजी खरीदनी हो या किराना का सामान या फिर इलेक्ट्रीशियन या प्लम्बर को बुलवाना हो, सब के लिए एप है. तो क्यों न एक एप ऐसा भी बने जिसके जरिये हम कपल फोटो खींचने के लिए लो-कास्ट अफोर्डेबल किसी पेड फोटोग्राफर को बुक कर सके जो बहुत ही सस्ते दामों पर(पचास-सौ रुपये की शुरूआती फीस) हम बुक कर सकें.

ज़रा सोचिये अकेले रह रहे कपल के लिए त्योहारों में ये कितना बड़ा वरदान का काम करेगा. सिर्फ त्योहारों में ही क्यों? रात को मिडनाइट बर्थडे या एनिवर्सरी केक कपल रात को काटते हैं, उस मौके पर हम पेड़ फोटोग्राफर बुक कर सकते हैं, कहीं आउटिंग के लिए जाएँ तब बुक कर सकते हैं…जैसे किसी कैब सर्विस को हायर करते हैं. लेकिन बस शर्त ये है कि कीमत कम होनी चाहिए, और हम जैसे लोगों के लिए डिस्काउंट कूपन की भी व्यवस्था होनी चाहिए, वरना हम जैसे लोग तो इसका फायदा नहीं उठा सकेंगे न.मुझे पता है, आप इस पोस्ट को पढ़ कर हँस रहे होंगे, पोस्ट के कंटेंट की वजह से नहीं, बल्कि मेरे ऊपर, कि क्या बकवास लिख डाला है आज इसनें, लेकिन अकेले रह रहे जोड़े के बारे में एक बार सोच कर देखिये, एक बार दिल पर हाथ रख कर खुद से पूछियेगा, क्या ऐसी समस्या से आप कभी गुजरे नहीं?

अगर हाँ, तो ऐसे किसी एप की माँग जोर शोर से की जानी चाहिए, इस पोस्ट को तब तक हर जगह शेयर करते रहिये जब तक कोई एप डेवलपर या छोटी मोटी कंपनी इस मूद्दे की गंभीरता समझते हुए ऐसा कोई एप बना न दे.

गुस्से में पैर पटकते हुए मेरे ब्लॉग से वापस जाने के पहले इस साल के तीज की एक और प्यारी तस्वीर देखते जाईये, मेरी बहन मोना और भांजे अयांश की.जी हाँ, ये भी एक सेल्फी ही है. समझ रहे हैं न? 🙂

आप सभी को तीज पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं !

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. एप की माँग कर तो रहे , पर लगे हाथ अपनी और निक्की की वो परफेक्ट वाली तस्वीर भी लगा ही देते जो बिना किसी एप की सहायता के भी बहुत प्यारी आई है…💝
    Btw…मोना की तस्वीर भी बहुत प्यारी है…😘
    बढ़िया लिखा है, पर मेरे जैसे लोग कुछ ज़्यादा ही पढ़ना चाहेंगे, इस लिए फटाफट अगला भाग लिख डालो इस पोस्ट का…।

  2. हई शाबास ये हुई न बात ,तुम हमेशा यही ऐसे लिखते रहो एकदम सरल और एकदम खूबसूरत | मुझे बहुत अच्छा लगा पढ़ कर | पर्व त्यौहार में अक्सर अपनों का साथ उन्हें और यादगार बना देता है और न होने पर उनकी कमी बेहद खलती है ये सच है |

    तुम्हें और निक्की को बहुत बहुत बहुत स्नेह

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