हवाओं में सर्दियीं वाली खुशबु

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cup of coffee

महक बहुत अजीब होती है. नास्टैल्जिया लिए हुए अक्सर. हवाओं में सर्दियीं वाली खुशबु महसूस होने लगी है. घर में हूँ, पटना में… और पुराने अटैची से जाड़ो के कपड़े, रजाई निकाल लिए गए हैं… सूटकेस में बंद जाड़ों के कपड़ों से बड़ी अनोखी महक आती है, बहुत कुछ याद दिलाती है. बशीर बद्र साहब का ये शेर बहुत कुछ बयां कर जाता है…

“गर्म कपड़ों का संदूक मत खोलना वरना यादों की काफूर जैसी महक
खून में आग बन कर उतर जायेगी, सुबह तक ये मकाँ खाक हो जायेगा”

इस बार निक्की भी खुश है कि हम पटना में इतना वक़्त तक रुके हैं. जितना मुझे प्यार है मेरे इस शहर से उससे कहीं ज्यादा निक्की को प्यार है पटना से. उसे इस बात का भी इत्मिनान रहता है कि उसके माता पिता भी इसी शहर में हैं और वो उनसे कभी भी जा कर मिल सकती है. दिल्ली में रहते हुए तो निक्की को थोड़ी दूरी तो महसूस होती ही होगी अपने घर से. शुरू में मुझे भी महसूस होती थी, लेकिन अब मुझे बाहर और घर से दूर रहने की आदत हो गयी है.

आज की सुबह बड़ी अच्छी थी, त्योहारों का समय भी है और हवा में जाड़े की खुशबु भी आ रही है. मैं और निक्की आज पुराने दिनों को बड़े शिद्दत से याद कर रहे थे. हम बालकनी में खड़े थे और बड़ी अच्छी नास्टैल्जिया वाली हवा में खुशबु महसूस हो रही थी. मुझे लगा कि हमें इस पल को तस्वीर में कैद कर लेना चाहिए.

यह तस्वीर लेते वक़्त कोशिश तो की थी बैकग्राउंड में लगे फूल पौधे भी तस्वीर में नज़र आये, लेकिन कैमरा उन्हें फोकस में लाने में असमर्थ रहा. तस्वीर लेते वक़्त किसी बेहद खास कारण से, एक संजोग से सर्वेश्वर की कविता की एक पंक्ति याद आ गयी…

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने छोटे हो गये हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,
हर दिवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।

शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।

Written – 17th November 2020

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