वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है

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picture of a morning road drive

आज महीनों बाद ब्लॉग पर वापस आना हुआ है। आखिरी पोस्ट इस ब्लॉग पर मार्च की थी, और तब से लेकर अब तक इस ब्लॉग को लगभग भूल चुका था मैं। ये लॉकडाउन और कोरोना ने ऐसा कहर बरपा रखा है सबकी ज़िन्दगी में कि आगे आने वाले पल में क्या होगा ये कोई नहीं कह सकता।

पिछले दो साल से दरअसल ज़िन्दगी इस कदर अनप्रीडिक्टेबल हो गई है कि क्या कहें। बीते एक साल में ही कुछ बेहद अजीब लोग छोड़ कर जा चुके हैं, जिनमें से एक मेरी नानी भी थी जो अगस्त महीने में हमें छोड़ कर चली गई। बचपन से नानी को सामने देखते आए थे, जब से होश संभाला तब से नानी को देख रहे थे… शायद सोच बैठे थे कि नानी तो है ही और रहेगी हमेशा, ये भूल बैठे थे कि उसकी भी उम्र हो रही है और व्यावहारिक ढंग से देखा जाए तो एक उम्र के बाद इंसान के ज़िन्दगी का वैसा भरोसा नहीं रहता। लेकिन फिर भी नानी का जाना बेहद अचानक हुआ और बिना किसी बीमारी के, तो हम सब शॉक में तो थे ही। सत्तासी साल की उम्र में भी नानी को कोई बीमारी नहीं थी, मेरी याद में मैंने नानी को आज तक कभी बीमार नहीं देखा, और ना तो किसी पे कोई चीज़ के लिए निर्भर होते देखा। हाँ, बस आखिरी कुछ समय में, अपने आखिरी एक महीने में नानी बेहद कष्ट से गुज़री थी। नानी को गए वैसे तो अब चार महीने हो गए हैं, लेकिन अब भी जैसे लगता है नानी मेरे आसपास ही है, कहीं से बैठ कर चुपके से देख रही है हमें।

वैसे नानी की बातें तो अनगिनत हैं, सोचा है इसी ब्लॉग पर कभी नानी के किस्से लिखूंगा। सभी की नानी एक सी ही होती है, और नानी के किस्से ऐसे होते हैं जो हर कोई खुद से रिलेट कर सकता है।

तकरीबन ये साल मार्च के बाद से इस दिवाली तक, अजीब माहौल था। हर तरफ से निराश और हताश करने वाली ख़बरें आ रही थी। मई-जून का महीना तो ऐसा था कि हर दूसरे दिन किसी न किसी परिचित के जाने की ख़बरें मिल रही थी। ऐसा लगता था जैसे ये दुनिया बस अब खत्म ही होने वाली है।

दिवाली तक का तो वक्त ऐसा था कि कुछ भी पता नहीं चलता था, अजीब सी ज़िन्दगी हो गई थी। इधर दो महीने से थोड़ी संभली है ज़िन्दगी। कुछ कामकाज ध्यान में आया और अब जब ये साल बीतने को आया है तो सोचा इस ब्लॉग की तरफ रुख किया जाए।

अजीब हो गई है ज़िन्दगी हमारी। हर साल के आखिर में आने वाले साल के लिए कुछ न कुछ प्लान तो बनाते ही हैं। ये तो बचपन से करते आए हैं – नए साल के रिज़ोल्यूशन बनाना। वो रिज़ोल्यूशन चाहे पूरा हो या न हो, लेकिन हर साल बनते जरूर हैं।

पिछले साल, यानी 2020 के दिसम्बर में लगा था ऐसा कि आने वाला साल, यानी ये 2021 बहुत खुशनुमा साल होगा। बहुत कुछ प्लान किया था, बहुत से काम इस साल के लिए रखे थे, लेकिन सब वैसे के वैसे ही धरे रह गए। कुछ भी सोचा हुआ हो नहीं पाया और ये साल हमें कुछ देने के बजाए बहुत कुछ हमसे छीन कर ले गया। वो कतील शिफाई का एक मशहूर शेर है न, जो उन्होंने ग़ालिब के शेर के जवाब में लिखा था, वो भी याद आता है –

जिस ब्रह्मन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
उस को दफ़नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में

अब फिर से हम दिसम्बर के आखिरी हफ्ते पे खड़े हैं, इस साल लेकिन सोचा है कि ना तो कोई रिज़ोल्यूशन बनाना है और ना ही इस आने वाले साल के लिए कुछ भी सोचना है, अच्छा हो बुरा हो जैसा भी हो, ये साल और आने वाला वक्त तो वैसा ही बीतना है, जैसा की पहले से लिखा हुआ है। वो कहते हैं न – Nothing can be re-written, everything is pre-written! इस बात से कम से कम मैं तो पूर्ण रूप से इत्तेफाक रखता हूँ।

लेकिन आज ग़ालिब का दिन है, उनका जन्मदिन है आज और हम हैं उनके चाहने वाले। और कायदा भी यही कहता है कि चाहे जो भी माहौल हो, हमें हमेशा बेहतर के लिए सोचना है और पॉजिटिव रखना है खुद को, तो ग़ालिब का ही ये शेर हर साल की तरह इस साल भी दुहरा रहे हैं –

देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक ब्रह्मन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

यहाँ उश्शाक़ का मतलब हम लोगों से है और बुतों का मतलब आने वाले साल यानी 2022 से है। 🙂

चलते चलते, ग़ालिब का एक और शेर, जिसने जाने कितनी बार मुझे हिम्मत दिया है और इधर पिछले दो साल में जो कामकाज प्रभावित हुआ है, ज़िन्दगी पर इस कोरोना के कहर ने जो असर डाला है और जितने लोग के बिछड़ने का दर्द है उन सब से भी उबरने में शायद ये शेर हिम्मत देता है मुझे –

घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है

जन्मदिन मुबारक हो मिर्ज़ा ग़ालिब!

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

  1. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

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