आज मेरी बहन निमिषा का जन्मदिन है। सुबह जब ऑफिस जा रहा था, तो फोन करके मैंने निमिषा को जन्मदिन की बधाई दी, और फिर कुछ देर तक हमारी बातें हुईं। बातों-बातों में ही निमिषा ने मुझसे पूछा, “भैया, तुम एक-दो साल पहले तक मुझे कार्ड भेजते थे, अब क्यों नहीं भेजते?” पूरे रास्ते मैं यह सोचता रहा कि सच में अब मेरे ग्रीटिंग कार्ड भेजने की वह आदत कहाँ चली गई।
एक वो दिन थे जब हम नए साल, जन्मदिन, दीवाली, होली जैसे मौकों पर ग्रीटिंग कार्ड खरीदने के लिए घंटों बाजारों में घूमते थे। हर दोस्त, रिश्तेदार, और पड़ोसियों को त्योहारों और खास मौकों पर कार्ड देना एक परंपरा थी। अब ई-मेल और सोशल नेटवर्किंग के इस युग ने वह आदत जैसे छीन ली है।
ग्रीटिंग कार्ड की बात करें तो इसकी सबसे बड़ी यादें एक नए साल और जन्मदिन से जुड़ी हुई हैं। मुझे याद है, नया साल आते ही 10 दिन पहले से ग्रीटिंग कार्ड खरीदने निकल जाते थे। लिस्ट बनती थी कि किन दोस्तों और रिश्तेदारों को कार्ड भेजना है। सभी के लिए उनकी पसंद के अनुसार खास, खूबसूरत कार्ड लेने में दो-तीन दिन लग जाते थे।
जब स्कूल में थे, तब छोटी मौसी के साथ कार्ड खरीदने जाया करते थे। उन दिनों नानी के घर रहते थे। म्यूजिक वाले कार्ड्स उस समय नए आए थे और वे हमारी पहली पसंद बनते थे। कुछ कार्ड तो ऐसे होते थे जिन्हें खोलने पर अंदर ताजमहल जैसी आकृति दिखती थी। हर किसी की पसंद के अनुसार कार्ड चुनना कोई एक दिन का काम नहीं था।
पटना के बोरिंग रोड एरिया में “आर्चीज गैलरी” नाम की एक दुकान थी। वहाँ इतने बार गया कि मेरी दोस्ती दुकान के मालिक से हो गई। वह अक्सर कहता, “आओ भाई, नए स्टॉक आए हैं, देख लो।”
दिसंबर का आखिरी सप्ताह आते ही ग्रीटिंग कार्ड खरीदने की बेचैनी होती थी। कार्ड पर तरह-तरह के स्केच पेन से नाम लिखना, कविता या गाने की पंक्तियाँ जोड़ना, और कार्ड को सजाना हमारी दिनचर्या का हिस्सा था। इन कार्ड्स को पोस्ट करने की प्रक्रिया भी उतनी ही रोमांचक थी।
नए साल पर हमें इंतजार रहता था कि किस-किस से कार्ड आते हैं। पोस्टमैन के आने पर उत्साह से कार्ड खोलकर देखते थे। सादे या डिज़ाइनदार, हर कार्ड हमारे लिए खास होता था। यदि कार्ड के साथ छोटा-सा संदेश या चिट्ठी होती थी, तो वह खुशी दोगुनी कर देती थी।
जन्मदिन पर तो कार्ड्स की धूम मची रहती थी। मुझे याद है, जब भी मुझे कोई बर्थडे कार्ड मिलता, तो उसे 10-15 दिन तक रोज़ देखता। मेरी बहन ने पुराने ग्रीटिंग कार्ड्स को अब भी संभाल कर रखा है। उन्हें देखकर पुराने दिनों की खुशबू आती है।
मेरे पास हमेशा दो-तीन अतिरिक्त कार्ड रहते थे ताकि किसी का जन्मदिन अचानक याद आए, तो तुरंत कार्ड दिया जा सके। बहन को भी जरूरत होती, तो वह मुझसे कार्ड मांगती थी।
लेकिन अब, इन पाँच-छह वर्षों में ग्रीटिंग कार्ड्स का चलन खत्म हो गया है। सब कुछ ऑरकुट, फेसबुक, या इंस्टाग्राम तक सिमट गया है। बर्थडे विश करने का यह तरीका अब औपचारिकता लगने लगा है। पहले जैसे खुशी अब महसूस नहीं होती।
ग्रीटिंग कार्ड्स के साथ-साथ चिट्ठियाँ लिखने की आदत भी समय के साथ खो गई। बचपन में जब छोटे मामा मुंबई में थे, तो हर सप्ताह हम उन्हें चिट्ठी लिखते थे। माँ कहती थीं, “तुम लिख लो, आखिर में हम भी कुछ जोड़ देंगे।” चिट्ठी लिखकर उसे पोस्ट करने और जवाब के इंतजार का अपना ही मजा था।
मुझे याद है, चिट्ठियाँ बार-बार पढ़ने का आनंद अलग था। चिट्ठियों पर की गई मासूम चित्रकारी को देख खुद पर हँसी आती थी। आज के ईमेल और मेसेज में वह बात नहीं है।
इंजीनियरिंग तक दोस्तों और रिश्तेदारों की चिट्ठियाँ आती रहीं। कॉलेज में चिट्ठी आने पर उसे क्लास में ही कई बार पढ़ लेता था। एक बैग में सभी चिट्ठियाँ संभाल कर रखता था। लेकिन जब घर बदला, तो वह बैग कहीं खो गया। हफ्तों तक उस बैग के गुम होने का दुख रहा।
आज के तकनीकी युग में चिट्ठियों और ग्रीटिंग कार्ड्स का चलन लगभग खत्म हो चुका है। लेकिन वह खुशी, वह भावनात्मक जुड़ाव, और उन दिनों की मासूमियत बहुत याद आती है।
काश, फिर कोई ऐसा मिल जाए, जिससे चिट्ठियों का वह सिलसिला दोबारा शुरू हो सके।
आई मिस दोज़ ग्रीटिंग कार्ड्स एंड लेटर्स!
sirji sabse pehle to aapki behen ko badhaiyan janmdin ki…waise usse achcha wo waqt tha jab ham greetings khud banate the….postcard ko faad faad ke uske ticket jama karte the…:)
appki behen ko janmadin ki dher saari shubhkamnayein!
aaakal to hum ecard bhejte hai 🙂
दिलीप जी…
सॉरी मैं वो बात भूल गया बिलकुल…
वो तो सबसे अच्छे पल थे, जब हम ग्रीटिंग्स कार्ड बनाते थे…उससे बेहतर कोई और याद कैसे हो सकती है…
वो लिखना भूल गया मैं 🙂
सही याद किया…अब समय बदल गया है.
बहन निमिषा को जन्म दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएँ.
sahi kaha abhishek
hume b yaad hai jab pahle hum greetings card karidte the.
ab to e-mail aur e-greetings hi hai bas
and hpy bdy to nimisha
मैं भी बहुत miss करती हूँ किसी को greetings भेजना.
सच कहा अभिषेक……..Those wer d golden daiz !!
वो दिन अब नहीं आयेंगे
सचमुच क्या दिन थे वह भी….घंटो समय लगाकर ग्रीटिंग कार्ड खरीदना…उनपर कलात्मक ढंग से सन्देश लिखना…फिर डाक से आने वाले ग्रिनिंग्स कार्ड को खोलने का उत्साह…
आज के बच्चों को ये बातें किस्से -कहानियों जैसी लगती हैं..
निमिषा को जन्म दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएँ
sahi kaha aapne
hum bhi wo din kabhiee nahi bhul saktein
जाने कितनी बातें याद आ गई तुम्हारी पोस्ट्स से…| उनमे से बहुत कुछ तो तुम्हें पता ही है न…:)
nostalgic करने वाली पोस्ट है ये….|
वैसे मुझे अब भी मिलता है ख़त…गाहे-बगाहे…मेरी यादों के खजाने में इजाफा करने के लिए…:) 😀