इंजीनियरिंग के एक्जाम का आखिरी दिन था। हम लोगों का सी.आई.पी (CIP) का पेपर था। वैसे तो सारे बड़े और मुख्य विषयों के पेपर पहले ही हो चुके थे, बस यह एक बचा था। यह CIP हमारे इंजीनियरिंग से दूर-दूर तक का कोई वास्ता नहीं रखता था। असल में CIP मतलब Indian Constitution का पेपर था। इस पेपर के मार्क्स कोई मायने नहीं रखते थे, लेकिन पास होना अनिवार्य था। यह CIP का पेपर इलेक्ट्रॉनिक्स वालों को सातवें सेमेस्टर में ही पढ़ना था, तो उनके सारे एक्जाम पहले ही खत्म हो चुके थे।
हम सबने मिलकर तय किया कि जिस दिन एक्जाम खत्म होंगे, उस दिन सारे लड़के कैंपस में जुटेंगे और एक धमाकेदार माहौल तैयार करेंगे। इस सब आयोजन के मामलों में हमारे सौरभ बाबू उर्फ नेता बाबू और बाकी साथी-संगी बहुत माहिर थे। पटाखों की भी व्यवस्था हो गई थी। हम लोगों का CIP का एक्जाम चल ही रहा था कि अचानक खिड़की से देखा मैंने कि सारी फौज कैंपस में जमा हो गई है। अब सबको बाहर देख के दिल में एक अलग उत्सुकता जाग गई बाहर जाने की। अलग उत्साह सा था। जल्दी-जल्दी पेपर पूरे किए और बस कैंपस की ओर निकल गया।
मुझे क्लास से बाहर आते देख नेता बाबू अपने फेमस अंदाज में जोर से चिल्लाए, “अभिषेक जी जय हो… अभिषेक जी!” और फिर हम दोनों गले मिले। उसके बाद तो सब एक के बाद एक एक्जाम हॉल से निकल रहे थे। चिल्लम-चिल्ला चल रहा था। सब अपना गला फाड़ कर चिल्ला रहे थे। पता नहीं क्या-क्या बोल रहे थे, बस सबके चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं। कैंपस में एक जश्न जैसा माहौल हो गया था। सब लोग हंगामा कर रहे थे। वह कॉलेज का उस समय का माहौल इतना ज्यादा मस्ती से भरा और नशीला था कि वैसा समां फिर हमें देखने को नहीं मिला।
फिर कॉलेज से हम वापस आए अपनी फेमस युसूफ चाय दुकान पर। सब लोगों की मंडली वहां जमा हुई। यह चाय दुकान हम लोगों का एक घर जैसा बन गया था। आमतौर पर दिन भर के 4-5 घंटे तो यहां बीतते ही थे, कभी-कभी इससे ज्यादा। सब लोग मस्ती-मजाक कर रहे थे। लेकिन उस शाम मैं कुछ चुपचाप सा था। शायद यह सोच रहा था कि इन सब दोस्तों से अब बिछड़ने का वक्त आ गया है। पता नहीं कल को कौन कहां रहे। फिर कभी मिल भी पाएं या नहीं। सैकड़ों सवाल दिल में उमड़ रहे थे। मैं सबके चेहरे देख रहा था, सबकी बातें सुनकर थोड़ा मुस्कुरा रहा था। उस पल को कैद करने की कोशिश कर रहा था।
कुछ 1-2 घंटे बैठने के बाद एक-एक कर के सब अपने-अपने रूम को जाने लगे। मैं और मेरा दोस्त आशीष, हम दोनों वहीं बैठे रहे। ऐसे ही फालतू मजाक, फालतू बकवास, फालतू गप्पें कर रहे थे। सुबह-सुबह ही मुझे घर के लिए निकलना था, तो मैं चाह रहा था जितनी देर हो सके, साथ बैठें हम। सारे सामान तो पहले ही पैक हो गए थे, बस कंप्यूटर बचा था पैक करने के लिए। हमारे कुछ जूनियर्स ने हमारे लिए एक छोटी सी पार्टी रखी थी। उनके यहां भी जाना था।
खैर, हम उस चाय दुकान से चल दिए और पहुंचे जूनियर्स की पार्टी में। दिल से दी हुई कोई भी पार्टी से बेहतर कोई पार्टी नहीं होती। उस दिन मुझे सच में लगा कि वे जूनियर्स मुझे कितना प्यार करते हैं।
पार्टी अच्छी रही। रात के करीब 11 बज रहे थे। सोचा एक ट्राई मार के देखूं, कहीं युसूफ चाय दुकान खुली हो तो एक-एक कप चाय फिर से हो जाएगी। यही सोच मैं, आशीष, बिपिन, और देव बाबू चल दिए चाय दुकान की तरफ। जैसे ही मेन रोड पहुंचा, युसूफ चाय दुकान की वह गुमटी देख कर आंखें चमक उठीं। वहां पहुंचा तो देखा कि आशीष भारती और 2-3 दोस्त पहले से बैठे हुए हैं (दो आशीष हैं हमारे दोस्तों में)।
दुकान पर पहुंचते ही मैंने युसूफ से बोला, “चल युसूफ, एक आखिरी कप चाय पिला दे। फिर पता नहीं कब वापस आऊं और तेरी चाय पियूं।” जब रात के 12 बजे, तो युसूफ कहने लगा, “अभिषेक भाई, अब दुकाना बंद करने का टाइम होता… अभी नहीं बंद, सो पुलिस आके फोड़ती अपने को। तुम सुबह आओ… 5 बजे दुकाना फिर से खोलता भाई।”
मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब 12 बज गए। वहां से उठने का दिल नहीं कर रहा था। खैर, हम टूटे दिल से वापस रूम आ गए, यह बोलकर कि सुबह ठीक पांच बजे आ रहा हूं, और दुकान खुली रहनी चाहिए। 😉
रूम पहुंचने के बाद कुछ देर तक ऑरकुट पर एक-दो स्क्रैप का रिप्लाई किया और फिर कुछ वीडियो सॉन्ग सुने। (वीडियो सॉन्ग सुनने का जो मजा इंजीनियरिंग के दिनों में आता था, वैसा मजा फिर कभी नहीं आया। कारण क्या रहा, यह बाद के किसी पोस्ट में बताऊंगा।) रात के 2 बज चले थे और ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी का आज सोने का मूड नहीं बन रहा। मेरा कंप्यूटर भी थोड़ा उदास दिख रहा था, शायद वह भी मेरे साथ यहां से वापस जाने को तैयार नहीं था।
खैर, उदास मन से मैंने कंप्यूटर पैक किया। कुछ देर बाद हम और आशीष छत पर चले गए, ऐसे ही गप्पें मारने। छत पर टहलते हुए और बातें करते हुए कुछ देर बाद देव बाबू भी आ गए। गप्पें मारते-मारते और टहलते-टहलते घड़ी पर नजर गई तो देखा कि 3 बज गए हैं। मैंने कहा, “चलो, अब 3 बज ही रहे हैं, 2 घंटे में युसूफ भी दुकान खोलेगा। सुबह-सुबह चाय पीकर वापस रूम आएंगे, फिर यहां से निकलेंगे।”
हम लोग ऐसे ही एक-दूसरे को चिढ़ाते रहे, बकवास करते रहे। कभी आशीष मेरी टांग खींच रहा था, तो कभी मैं उसकी। देव बाबू भी बीच-बीच में अपना बहुमूल्य योगदान देते जा रहे थे।
सुबह चाय पीने जब रूम से निकला, तो सोचा कि युसूफ ने कहा था कि सुबह 5 से पहले दुकान खोल देगा। वैसे तो आमतौर पर दुकान 5:30 के आसपास खुलती थी। मैंने सोचा कि अभी खोल दी होगी या कुछ देर बाद जाऊं। खैर, हमने सोचा चलो, चलकर देखते हैं।
पहुंचा तो देखा युसूफ दुकान खोलकर बैठा है। हमारे पहुंचते ही युसूफ बोला, “आप अभी आ रहे! 20 मिनटआ हो गए दुकाना खोले। 3-4 लोगां चाय पिये सो।” मैंने हंसते हुए कहा, “अरे यार, मैं सोच रहा था कि तू खोलेगा कि नहीं, इसलिए लेट से आया। अच्छा चल, अब पानी पिला, वो वाला एक बिस्कुट ला, उसके बाद चाय देना।”
कुछ देर बाद जब देखा कि वक्त हो चला है मुझे वापस घर जाने का, तो वहां से वापस रूम आ गया। सारा सामान रूम से निकालकर जब बाहर रखा, तो एकाएक उस कोने पर नजर गई, जहां मेरा कंप्यूटर टेबल हुआ करता था। वह कोना मुझे वीरान सा लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि मेरे जाने से कमरे का वह कोना खुश नहीं है, थोड़ा उदास है।
खुशी तो मुझे भी थी घर वापस जाने की और सफलतापूर्वक इंजीनियरिंग खत्म करने की, लेकिन थोड़ा दुःख भी था। हमें पटना के लिए ट्रेन हैदराबाद से लेनी पड़ती थी, तो हमें हैदराबाद तक बस में जाना था।
जब मैं बस स्टैंड पहुंचा, तो वहां का माहौल देखकर दंग रह गया। कम से कम 30-35 लड़के बस स्टैंड पर पहले से थे, जो हमें सी-ऑफ करने आए थे। सब गले मिल रहे थे, यात्रा की शुभकामनाएं दे रहे थे। सब कितने खुश थे। खुशी-खुशी हमें विदा करने पहुंचे थे। कुछ जूनियर्स भी थे, कुछ अपने सहपाठी, जिनकी रिजर्वेशन कुछ दिन बाद की थी। कुछ ऐसे मित्र भी थे, जिनकी इंजीनियरिंग दुर्भाग्यवश एक साल और खिंच गई थी।
सब लोग वहां मौजूद थे। कोई अपना घर का नंबर दे रहा था, तो कोई मुझसे मेरे घर का नंबर ले रहा था। तभी उधर से एक बस आती दिखाई दी। सब लड़के ऐसा हंगामा मचाए कि बस वाला घबराकर बस रोक दिया। अब इतने लड़कों का हुजूम देखकर कोई भी बस वाला बस रोक ही देगा। 😉
बस के गेट के पास से सबको बाय-बाय कर रहे थे। बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। शायद एक-दो आंसू भी टपक गए आंखों से।
(नोट): कुछ हमारे प्रिय मित्र हैं, जिन्हें ब्सवकल्याण, जहां से हमने इंजीनियरिंग की, वह जगह पसंद नहीं है। खैर, सबकी अपनी-अपनी सोच होती है, अपनी-अपनी राय होती है किसी चीज के प्रति। मैं उनकी उस सोच का विरोध नहीं कर रहा। बस यह एक निवेदन है उन सब मित्रों से कि आप अगर यह पोस्ट पढ़ें, तो कुछ नेगेटिव प्रतिक्रियाएं न दें। मेरे लिए यह जगह बहुत मायने रखती है, और यह पोस्ट मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि सही मायने में अभी मैं ब्सवकल्याण को बहुत मिस कर रहा हूं।
Pdhte hue,hame bhi college aur hostel ka aakhari din yaad aa gaya!Chahe any sab din bhool jayen,aakhari din nahi bhoolta!
Am nostalgic… Nice post .
wowww !!!!! mastt !! photozz kitte purane hain? kaise lagte the tum pahle cap mein :d
भाई, मैंने सुना है कि होस्टल छोड़ते समय लोग खूब रोते हैं.. खास करके UG के स्टूडेंट्स.. मैंने अपने भैया को देखा भी है..
अपनी बात अलग थी यार, PG वाले लोग थोडा दुनियादारी अधिक सीख जाते हैं, इमोशनल होने के जगह प्रोफेशनल हो जाते हैं.. फिर भी आँखें भींगा दिया था वो होस्टल..
हम जब अपने स्कूल को छोड़ रहे थे हमेशा के लिए तो हम भी काफी रोये थे 🙁
और तुम चाय काफी पीते हो इसका कारन अब पता चला हमें 🙂
mai abhi colg to nhi gai par school chod kar hi ye ehsaas ho gaya ki frnds se door jaane par kitna bura lagta hai… mai bhi apne school and frnds ko bahut miss karti hoon…aap ki tarah…aapki post bahut achchhi lagi…..video wali post ka intzaar rahega…
यादों को संजो कर रखिये ।
good memory to cherish. the past is always very memorable
hey nice post yaar 🙂
उस समय मैं Delhi में थी और मुझे याद है तुम मुझे फोन पे कितना पकाया करते थे..कितने किस्से सुनाये हो तुम फोन पे 😛 :))
हॉस्टल की यादें ऐसी ही होती हैं…जूनियर्स का प्यार आँखों में पानी ला देता है.
बहुत अच्छा लिखा है…बहुतों को अपने हॉस्टल के दिन याद आ जाएंगे…। युसुफ़ चायवाले को तो आपने आजीवन के लिए अमर कर दिया…।
बधाई…।
ऐसे ही यादों के सफ़र पर निकल जाया करिए…।
टोपी में तो लगा दिए फोटू…एक ठो गॉगल्स में भी लगा देते भाई…:P
तुम्हारी ये पोस्ट हमको हर बार nostalgic कर देती है रे…कारण तो तुमको पता ही है न भैय्यू…D
Loved it…again…💝