शादियों का मौसम भी बड़ा अजीब होता है न। घर में हर तरफ चहल-पहल, सारे परिवार-रिश्ते के लोग एक जगह मिल-बैठकर बातें करते हैं। किसी की महफ़िल कहीं सजी है, तो कोई कहीं गप्पे मार रहा है। चाय समय-समय पर चलती रहती है। घर की लड़कियों पर यह जिम्मेदारी रहती है कि चाय बनते रहनी चाहिए हर 1-2 घंटे में। बच्चे उधम मचाए रहते हैं पूरे घर में। पकवानों की सोंधी खुशबू आती रहती है रसोईघर से।
सबसे ज्यादा मजे शादी में कोई लेता है तो वो हैं घर के बच्चे। दिनभर इधर-उधर घर में भागते-दौड़ते रहना, न स्कूल की फिक्र, न पढ़ाई की टेंशन। शादी में जो घर के बाहर टेंट/तंबू लगा रहता था, सारे बच्चे तो उसी टेंट को अपना प्लेग्राउंड बना देते थे। बच्चों से ज्यादा शादियों का मजा तो दूल्हे महराज को भी नसीब नहीं होता।
मेरी भी अपने घर की शादियों की अनमोल यादें हैं। जहाँ तक मुझे याद है, सबसे पहली शादी जो मैंने इंजॉय की थी, वो थी अपनी मौसी की शादी, 1996 में। मैं स्कूल में था उस वक्त। मौसी की शादी अच्छी तरह से याद है मुझे, एक-एक बात। वैसे तो पहले भी बहुत सी शादियों में शामिल हुआ हूँगा, लेकिन ये तो अपने घर की शादी थी। काम-काज, सारी शादी की व्यवस्था में शरीक भी होना था, और इस वक्त तक हम कुछ बड़े भी हो गए थे, तो इस शादी की बातें याद रहना लाजिमी है।
इस शादी में जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई थी, वो थी फोटो खींचने की। शादी में फोटोग्राफी का काम जो मैंने उस समय अपने जिम्मे लिया था, उसे अपने परिवार की हर शादी में बखूबी निभाता आया हूँ। एक बार की बात है, जब मेरे छोटे मामा की शादी थी, 2004 में। उस समय मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। सेमेस्टर एक्जाम की वजह से तिलक में नहीं पहुँच पाया। तिलक के अगले दिन पटना पहुँचा तो देखा कि फोटोग्राफी का काम कोई और कर रहा था।
मैं इस वक्त तक बड़ा हो गया था और इंजीनियरिंग पढ़ रहा था, तो मेरे मामा और पापा ने मुझे कुछ अन्य ज़रूरी कामों में लगा दिया। ध्यान तो फिर भी हर वक्त कैमरे की तरफ ही रहता था। मेरे जिम्मे जो काम था, वो कोई और कर रहा था। मुझे तो ऐसा भी लग रहा था कि मुझे अपनी जिम्मेदारी से बर्खास्त कर दिया गया है। जिस दिन शादी थी, उस दिन सुबह कुछ खास काम नहीं था, तो मैंने मौका देख कैमरा अपने जिम्मे फिर से ले लिया और तय कर लिया कि अबकी बार तो ये कैमरा रिसेप्शन तक मेरे साथ रहेगा। देखता हूँ मेरा काम कौन हथियाता है!
अपने घर की हर शादी मेरे लिए बहुत ही स्पेशल रही है। कितने अनमोल पल हैं उन शादियों के, जो मेरी यादों में कहीं कैद होकर रह गए हैं। एक अजीब-सी मस्ती, अजीब-सा उत्साह रहता था शादी के नाम से। घर में शादी के 6-7 दिन पहले से ही मेहमान, रिश्तेदार आना शुरू हो जाते थे।
घर के पलंग-टेबल हटाकर नीचे ज़मीन पर दरी बिछाई जाती थी। सारे लोग एक साथ बैठकर गप्पें लड़ाते। कोई कुछ कहानी कह रहा है, तो कोई किसी बात पर बहस कर रहा है। हम तो छोटे थे, तो एक कोने में अपने ग्रुप में खेलते रहते थे। शुरू से मेरे ग्रुप में ज्यादातर मेरी बहनें ही शामिल रहती थीं। हमें उस वक्त बड़े-बुजुर्गों की बातें, बहस और किस्से सुनना भी बहुत अच्छा लगता था, चाहे उनकी बात समझ में आए या न आए। जब भी वे लोग किसी मुद्दे पर बात करते, हम कान लगाकर सुनते रहते। कोई किसी की टांग खींच रहा है, तो कोई और मजाक कर रहा है।
शादी के 2-3 दिन पहले से ही घर पर एक हलवाई आ जाता था, अपना सारा सामान/बर्तन लेकर। कहीं एक खाली जगह देखकर या फिर गार्डन के पीछे ही हलवाई का चौकी और तंबू लगवाया जाता था। एक व्यक्ति नियुक्त होता था, जो यह देखभाल करता था कि हलवाई सही से काम कर रहे हैं या नहीं।
हलवाई का काम तो ज्यादातर खाना बनाने का ही रहता था। या फिर सुबह-सुबह जब सबके लिए चाय-नाश्ता बनाना होता था, तब हलवाई का काम बढ़ जाता था। अब घर में इतने लोग हो जाते हैं शादियों में, तो अगर किसी को चाय की तलब हुई, तो उस समय घर के रसोई में मौसी और अन्य महिलाएँ चाय बनाती थीं। यह चाय का सिलसिला पूरे दिन चलता रहता था।
सुबह का नाश्ता हो या फिर दिन का खाना, सब एक साथ इकट्ठे बैठकर खाते थे। पत्तल बिछाए जाते थे। शादियों में पत्तल में खाने का जो मजा आता था, खाने का वैसा स्वाद अब कहीं नहीं मिलता। सारे परिवार के साथ बैठकर सब एक साथ खाना खाते, वो पल कितने अनमोल थे। अब तो सब अपनी-अपनी जिंदगी में इतने व्यस्त हो गए हैं कि सीधा शादी के दिन पहुँचते हैं, और उसी दिन रात में या अगले दिन सुबह वापस अपने-अपने घर, अपने-अपने कामों में फिर से व्यस्त हो जाते हैं।
कुछ दिनों के लिए ही सही, सभी नाते-रिश्तेदार एक साथ वक्त बिताते थे। अब की तो शादियाँ भी जैसे मॉडर्न हो गई हों। सब काम फटाफट होता है। किसी के लिए किसी के पास वक्त है कहाँ आज? सब अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हैं। पर कभी-कभी सोचता हूँ कि पुराने ज़माने के दिन कितने मीठे, कितने अनमोल थे। अब तो बस उनकी यादें ही रह गई हैं ज़हन में।
are chota mama ki shaadi to 2004 min hui thi na ki 2003 mein…
waise kaafi accha likhe ho…..
ओह सॉरी 2004 में हुई थी…टाइपिंग मिस्टेक था 🙂
बिना कट एडिट के माहौल बन गया…बहुत सही वृतांत!!
Shadi attend kiya…maza aa gaya…
Mujhe har-ek ghante par chai banana achha lagta hai….
Shadi ka mahol yaad kara diya aapne.
sundar lekhan !
क्या क्या याद दिला दिया तुमने abhi?? 😡 😀
हद होती है बातों की !!!!
अब मुझे उन शादी की याद आ रही है 🙁
क्या करें बताओ अब 😛 😛
bahut achha like ho………….aaj baht din baad tumhare ish blogg pe aaiyi hun
बहुत कुछ याद दिला दिया…अब तो सबकुछ रेडीमेड है…..पहले पूरी रात जागकर घर के बच्चे ही मंडप सजाया करते थे..कितनी सारी अनमोल यादें हैं…जिन्हें नई पीढ़ी कभी अनुभव नहीं कर पायेगी
आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम
हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!
ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।
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Yaad to bahut kuchh aa gaya..khaas kar apne mauseri bahan ki shadi..mai ke maah me Wadodrame hui,garmi yaad nahi,lekin poora din icecream banti rahti thi aur ham khate rahte the,yah yaad hai!
wow….vidio bht achha lga..hum dekheein pura vidio 🙂
aur post b mst tha.
u know jb mere chote chacha ki shaadi hui thi na in 1998 us tym main 10th mein thi n we enjyd so much tht time.
wo sab baatein ab yaad aa rahi hain