एक अच्छी सुबह की पहचान उसकी ताजगी से होती है। वैसी सुबह जब दिल-दिमाग पूरी तरह तनावमुक्त हो और सारी चिंताएं, थकान सुबह की ठंडी हवा के साथ गायब हो जाएं। पहले जब पटना में रहता था तब यहां की लगभग हर सुबह ऐसी ही होती थी। उसकी वजह भी थी। हम अपने छोटे से क्वार्टर में रहते थे जहां सुबह-सुबह की ठंडी हवा और सूरज की पहली किरण हमें अंदर तक तरो-ताजा कर जाती थी। एक छोटा सा बगीचा था जिसमें बेली और गुलाब के बड़े अच्छे फूल उगते थे। नियमित रूप से हर सुबह सारे पौधों में पानी देना होता था और गीली मिट्टी की सौंधी खुशबू सुबह का एक अलग एहसास दे जाती थी। स्कूल या कोचिंग जाना भी हर रोज सुबह-सुबह ही होता था। साइकिल भी मस्त होकर चलाते थे हर सुबह। कभी पापा हमें मॉर्निंग वॉक पे बॉटनिकल गार्डन ले जाते थे, उसमें भी एक अलग मस्ती थी। अपने बेहद अच्छे दोस्त (टू-इन-वन) में हर सुबह मुकेश के गाने सुनना भी एक आदत बन चुकी थी। कुल मिलाकर सुबह बेहद खूबसूरत होती थी।
सात साल हो गए उस पुराने क्वार्टर को छोड़ हम अपने नए और बड़े फ्लैट में शिफ्ट हो गए। मैं पटना से बाहर रहने लगा और उस खूबसूरत सुबह से भी हमेशा के लिए बिछड़ना पड़ा। इन सालों में जब भी पटना आना हुआ तो बेहद कम दिनों के लिए। इतना समय नहीं मिलता कि सुबह का आनंद अच्छे से ले पाता। बड़े लंबे अरसे के बाद इस बार ज्यादा दिनों के लिए पटना में रुका हुआ हूँ। बैंगलोर में जो सुबह के सैर की आदत लगी, वो यहां भी कायम है। पटना की सुबह में लेकिन अब वो बात बिलकुल नहीं है। सुबह की हवा में ताजगी से ज्यादा प्रदूषण और गाड़ियों से निकलता धुंआ भरा होता है। कभी-कभी तो सैर के बावजूद सिर भारी सा लगता है.. मन भी हल्का नहीं हो पाता। रात की थकान सुबह की चाय के बाद भी पूरी तरह निकल नहीं पाती। ऐसे में कल की और आज की सुबह बेहद अलग थी। आज मौसम की पहली सर्द सुबह थी। कोहरा भी छाया हुआ था। बड़ा खुशनुमा मौसम था। घर से बाहर निकलते ही कोहरे और ठंड की वैसी ही खुशबू और ताजगी महसूस हुई जो उन दिनों की फिजाओं में होती थी।
कल की सुबह भी आज की सुबह जैसी ही अच्छी थी लेकिन थोड़ी अलग। कल सुबह सैर पे जाने के बजाय मैंने अपने छत पे जाने का निश्चय किया। पास में कैमरा भी रख लिया था। कैमरा रखने का उद्देश्य दूसरा था। मैंने सोचा था कि घर के पास ही बने नए पार्क की कुछ तस्वीरें लूंगा। लेकिन निकला तो छत के तरफ का रुख कर लिया। छत पे टहलते हुए एक कागज़ पे कुछ लिखा था, जो मुख्यतः खुद के लिए था। उस नोट के कुछ टुकड़े यहां दे रहा हूं:
“बड़े दिनों बाद आया हूं आज इस छत पे। यह छत मेरे लिए बहुत सी पुरानी स्मृतियों को ले आता है। यहां से मुझे दीखता है रोड नंबर पांच की वो तस्वीर जहां एक कोने में शिवशंकर सर का कोचिंग था और उसके पीछे उनका घर। उनके भतीजे और भतीजी (गुड्डू भैया और गुडिया दीदी) के साथ बिताए हुए वो अनमोल पल याद आते हैं। हर शनिवार के शाम सर के तरफ से कोचिंग में एक छोटी पार्टी होती थी और सर हमें मुकेश के कुछ गानों को गाकर सुनाते थे। जब छत से रोड नंबर पांच की तरफ देखता हूं या फिर जब कभी उधर से गुजरता हूं तो अक्सर सोचता हूं उन छोटे बच्चे और बच्चियों के बारे में जो कोचिंग के आसपास खेलते रहते थे और जिनसे मेरी दोस्ती भी थी। वो सारे बच्चे अब बड़े हो गए होंगे और संभवतः कहीं पढ़ाई कर रहे होंगे। मैं उन्हें पहचान नहीं पाऊंगा, लेकिन अगर वो मुझे देखें तो क्या वो पहचान सकेंगे?”
“हलकी ठंड है और सुबह की वही खुशबू जो तब हुआ करती थी जब मैं गांधी मैदान जाया करता था, हर रविवार कोचिंग क्लास के लिए। जाड़े की सुबह गांधी मैदान का नज़ारा देखते ही बनता था। दूर-दूर तक कोहरा और धुंध। स्कूटर चलाते वक्त हाथ बिलकुल बर्फ हो जाता था, फिर भी फुल स्पीड कायम रहती थी। पता नहीं गांधी मैदान आते ही मेरे स्कूटर को क्या हो जाता था, कि वो हमेशा पंचर हो जाया करता था। अगर मैं याद करूं तो महीने में अगर चार दफे गांधी मैदान आता था तो उसमें तीन दफे स्कूटर का पंचर होना तय रहता था। यहां तक कि अप्सरा सिनेमा के पास वाला स्कूटर मेकैनिक भी मुझे पहचान गया था।”
“परवीन शाकिर” की एक कविता जो मैंने कुछ महीनों पहले उनकी एक किताब ‘रहमतों की बारिश’ में पढ़ी थी, वो कविता बार-बार याद आ रही है..”
सुबह ए विसाल की पौ फटती है
चारों ओर
मदमाती भोर की नीली हुई ठंडक फैल रही है
शगुन का पहला परिंदा
मुंडेर पर आकर
अभी-अभी बैठा है
सब्ज़ किवाड़ों के पीछे एक सुर्ख़ कली मुस्काई
पाज़ेबों की गूंज फज़ा में लहराई
कच्चे रंगों की साड़ी में
गीले बाल छुपाए गोरी
घर सा सारा बाजरा आँगन में ले आई
सुबह का ऐसा नज़ारा.. शायरी, सुबह और लेंस आई!! 🙂
आप तो मझे हुये फोटोग्राफर लग रहे हैं।
कमाल के चित्र दिखाए तुम ने अभि बाबु … अपने लेखन से भी और जो चित्र यहाँ लगायें है उनसे भी … जय हो तुम्हारी !
बहुत ही खुबसूरत चित्रों के साथ बेहतरीन पोस्ट….
पुराने दिनों की ताज़गी से भरी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी…। फोटो भी बहुत अच्छे हैं…दिल से खींचे गए हैं, साफ़ जाहिर होता है…।
प्रियंका
bahut he acchi tasveerein hai, waise toh main subah ka zada tar hissa neendh main he guzaarti hu, par haan kabhi jab office main morning shif thote hai toh subah ke nazarien bahut ache lagte hai 🙂
बहुत बढ़िया चित्र …सुबह की सुन्दरता और ताज़गी को बयां करते हुए…….
abhi ji…bahut hee man se khinchi gayi hai ye photo…kavva pehredaar to kamaal hai…suraj ke sang uska chhaya chitr….aap me to lekhak kavi ke saath photographer bhi acche ho..
बेहद सुंदर तसवीरें!
आपकी यादों से झांकते सुबह के दृश्यों से गुज़रना अच्छा लगा!
ये सुबहा सुहानी हो! पहरेदार का चित्र बहुत अच्छा लगा।
Sundar sansmaran aur utnee hee sundar photography!
पहरेदार की फोटो बेहतरीन लगी…शुक्रिया…दुनिया छोटी होती जा रही है ..वे बच्चे जरूर पहचान लेंगे..आपको…
bahut sundar photography .
क्या बात है फोटोग्राफी भी सीख ली 🙂 वैसे लिखा भी कुछ कम नही है .
bahut hee khubsurti se piroyaa hai aapne saalon baad mahakti hui subha ke ahsaason ko…. photos bhi bahut acche hai aur ek baat kahun mera bhi ghar ka naam gudiyaa hee hai aur mere bade bhai ka guddu 🙂
शानदार पोस्ट।
बढिया तस्वीरें….
अभि जी आपकी रचनाएं व चित्र काव्यमय हैं ।
बेहद सुन्दर तस्वीरें हैं….
हालांकि ये पढ़ कर
"पास में कैमरा भी रख लिया था.कैमरा रखने का उद्देश्य दूसरा था"
मुस्कान आ गयी,चेहरे पर कि बच्चा बड़ा हो गया है….पर तस्वीरें देख कर लगा…ज्यादा ही बड़ा हो गया है..:):)
अलसाई सी सुबह है या ताज़ा सूरज … शायरी और बहकते विचारों के बीच कैद किए ये चित्र …. सोच की दिशा बदलने को काफी हैं …
बेहद सुन्दर तस्वीरें हैं….
हालांकि ये पढ़ कर
"पास में कैमरा भी रख लिया था.कैमरा रखने का उद्देश्य दूसरा था"
मुस्कान आ गयी,चेहरे पर कि बच्चा बड़ा हो गया है….पर तस्वीरें देख कर लगा…ज्यादा ही बड़ा हो गया है..:):)
Peharedaar apne tej punj k sath behat shaandaar lag raha h 🙂