गांधी संग्रहालय पटना में एक दिन – एक रिपोर्ट

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बड़े दिनों से दिल कर  रहा था लेकिन कभी मौका नहीं मिल पा रहा था, इस बार फिर से अपने उसी दोस्त के साथ पटना के गांधी मैदान स्थित गांधी संग्रहालय जाने का मौका मिल गया,जिसके साथ पहली बार गया था वहां. सुदीप गांधी संग्रहालय के लाइब्रेरी में अकसर आता जाता था और उसके साथ ही पहली बार मैं वहां गया था. बहुत दिनों से सोच रहा था गांधी संग्रहालय के बारे में लिखूं, बाकी जगह के लोग की तो बात रहने दीजिये, खुद पटना के लोग भी इस संग्रहालय के बारे में नहीं जानते,  पटना के बीचो बीच गांधी मैदान में स्थित होने के बावजूद  भी ये संग्रहालय वहाँ  एक कोने में उपेक्षित सा रहता है.

पटना के इस गांधी संग्रहालय की कहानी पुरानी है. बताया जाता है कि 1947 में  बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री  डॉक्टर सैयाद महमूद के घर महात्मा गांधी रुके थे. उनके घर को ही अब गांधी संग्रहालय बना दिया गया है. पटना के गांधी मैदान में बांकीपुर गर्ल्स हाई  स्कूल के पास ही है ये गांधी संग्रहालय जहाँ महात्मा गांधी से जुडी चीज़ों को और भारतीय स्वतंत्रता  संग्राम के इतिहास से जुड़े दस्तावेज़ देखे जा सकते हैं.

गांधी संग्रहालय की बिल्डिंग पटना के भीड़भाड़  वाले इलाके गांधी मैदान के एक कोने में एक शांत सी जगह है. जैसे ही आप गांधी संग्रहालय के गेट से अन्दर आते हैं आपकी नज़र  बहुत बड़े से एक स्टैचू पर जाती है, जिसके ऊपर लिखा है “हिन्दुस्तां हमारा” और जो “हिन्दू मुसलिम सिख इसाई, आपस में हैं भाई भाई” का सन्देश देता है. उसी स्टैचू के एक तरफ महात्मा गाँधी की एक प्रतिमा देखी  जा सकती है जो शायद महात्मा गाँधी के “सत्य के प्रयोग(माई इक्स्पेरीमन्ट विद ट्रूथ)” को दर्शाता है. उसके ठीक सामने शीशे में बंद एक कमरे का रेप्लिका आप देख सकते हैं जिसमें महात्मा गांधी के साथ रविन्द्रनाथ टैगोर को चाय पीते हुए दिखाया गया है. ये रेप्लिका या प्रतिमा जो कहिये, इतना जीवंत है कि आप दो मिनट तक खड़े होकर इसे निहारने से खुद को रोक नहीं सकेंगे. गेट के ठीक सामने महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी की एक बड़ी प्रतिमा लगाईं गयी है.

 

संग्रहालय के अन्दर दाखिल होते ही जो सबसे बड़ा हॉल है उसमे महात्मा गांधी के जीवन से जुडी काफी जानकारियां  संग्रहीत की गयी हैं, बहुत सारे दस्तावेज, तस्वीरें, पांडुलिपि, स्कल्प्चर, कोटेशन आदि यहाँ रखे गए हैं. महात्मा गांधी के बचपन की भी काफी तस्वीरें यहाँ आपको देखने को मिलेंगी. बापू के अंतिम समय की भी काफी तस्वीरें मिलेंगी , उनके अंतिम यात्रा की भी कई सारी तस्वीरें यहाँ प्रदर्शित की गयी है. कुल मिलकर महात्मा गांधी के जीवन से जुडी लगभग सभी तस्वीरें यहाँ लगाईं गयी हैं. हॉल के बीचो बीच बापू के कमरे का एक रेप्लिका बनाया गया है.

 

 

संग्रहालय के पहले हॉल के बाद अन्दर एक और बड़ा सा हॉल है जिसमें भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन से जुडी हुई काफी जानकारियां और तस्वीरें लगाईं गयी हैं. ख़ास कर के १८५७ की क्रांति के बारे में  बहुत विस्तार से यहाँ बताया गया है. जो तस्वीरें और उनपर लिखी कहानियां यहाँ लगाई गयी हैं उन्हें आप इतिहास का एक मिनी इन्साइक्लोपीडीआ कह सकते हैं. स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में बिहार का और बिहार के स्वंतत्रता  सेनानियों का कितना अहम् स्थान रहा उसे भी बड़े अच्छे से बताया गया है. छोटे से छोटे विश्लेषण बोर्ड पर लगाये गए हैं, क्रान्ति के क्या प्रभाव हुए और क्रांति के क्या अर्थ थे, कैसे शुरुआत हुई वो सब जानकारियां यहाँ दी गयी हैं.

बिहार से क्रांति के जो प्रमुख योद्धा रहे हैं जैसे बाबु कुंवर सिंह, पीर अली खान, अमर सिंह, वारिस अली, जीवधार सिंह और इनके जैसे ही कई नायकों के बारे में, उनकी वीरता के किस्से यहाँ बताये गए हैं. सबसे ज्यादा विस्तार से  बाबु कुंवर सिंह के बारे में बताया गया है. बाबु कुंवर सिंह के सबसे निकट और सबसे प्रमुख सहयोगी निसान सिंह और पीर अली खान के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. निसान सिंह पर जो मुकदमा चला था उस मुक़दमे में किये गए उनसे सवाल और उनके जवाब भी यहाँ देखने को मिलते हैं.

क्रांति के उन दिनों में लोकगीतों और साहित्य का क्या प्रभाव, क्या महत्व  रहा…उसकी भी चर्चा आप यहाँ देख सकते हैं. लोक गीतों और साहित्य ने किस तरह लोगों को आंदोलित किया ये भी बताया गया है यहां. काफी कुछ यहाँ पढ़ने को मिलता है, उस समय के लोककवि बाकी शिष्ट कवियों की अपेक्षा अधिक निर्भर और क्रांतिकारी थे, उन लोगों ने परंपरा से हटकर लोकगीतों को राष्ट्रीय  मुक्ति संघर्ष का कैसे नया विषय व नाम दिया, ये जानकारी भी आप यहाँ के एक बोर्ड में देख सकते हैं. बाबु कुंवर सिंह, मंगल पाण्डेय व अन्य देशभक्त वीर जो इस क्रांति के नेता थे, ऐसे  वीरों की सराहना में लोगों ने अनेक लोकगीत रचे जिसने आम जनता में  संघर्ष करने की प्रेरणा और क्रांतिकारी  चेतना जागृत की. लोग आज भी जिन गीतों को याद करते हैं वो यहाँ लिखे गए हैं.

बाबू कुंवर सिंह तोहरे राज बिनु अब न रंगईबो केसरिया
इतते अईले घेरी फिरंगी, उत ते कुंवर दुई भाई
गोला बारूद के चले पिचकारी, बिचवा में होत लड़ाई
बाबू कुंवर सिंह तोहरे राज बिनु अब न रंगईबो केसरिया!
बँगला पै उड़ेला अबीर हो लाला बँगला पै उड़ेला अबीर
हो बाबु, अहो बाबु कुंवर सिंह तेगवा बहादुर
बँगला पे उड़ेला अबीरएक जगह बताया गया है भोजपुरी क्षेत्र के लोग बाबु कुंवर सिंह के लिए ये गीत गाकर अपने भाव व्यक्त करते हैं कि अगर लोगों ने बाबु कुंवर सिंह का साथ दिया होता तो अंग्रेजों का राज्य कायम नहीं होने देते वो.ओही दिन संगना उन्ह्कर केहूँ न दिहले
जगदीसपुर पर ना होईत फिरंगिया राज!
….बाबु कुंवर सिंह पच्छिम से जब पायत कईले
पयना में डेरा गिरवले ना!
….

बाबू कुंवर सिंह की के बारे में एक लोकगीत में एक  व्यक्ति अपने बच्चों को बताता है कि वृद्ध कुंवर सिंह ने कैसे,  कब और क्यों युद्ध किया. वह कहता है कि जब धन, धर्म और आबरू पर विपत्ति आई थी, मराठे और सिख जूझ मरे थे, पेशवा गुलाम और बादशाह कंगाल हो गया था, भारत का पौरुष क्षीण हो रहा था, बंदूकों में जंग लगी थी, तलवारे हंसिया बन गयी थी. ऐसे विषम समय में अस्सी वर्ष के कुंवर कुंवर सिंह ने तलवार पकड़ी थी. ऐसे कुंवर सिंह ने जिनका शरीर वृद्धावस्था के कारण काँपता था, जिनके बत्तीसों  दाँत गिर गए थे, फिरंगियों  से घमासान युद्ध किया था –

बबुआ, ओही दिन दादा लेले तरुअरिया हो न!

कुछ और पंक्तियाँ जो मुझे यहाँ पढ़ने को मिली वो देखिये जिसमें कुंवर सिंह के शौर्य का वर्णन किया गया है और ये बताया गया है युद्ध में कैसे कुंवर सिंह का शौर्य देखकर खुद इंद्र भी भाग खड़े हुए –

खापखप छुरी चले, छपछप छुरी कटे
टहकत सोनिया के घारे रे नू
जैसे बहे नदी के घार रे नू
इंद्र दूर से भागिलेल, यमराज दौड़ल,
खप्पड़ लेई डाकिन – नाचे लागिन रे नू
झुमत बाबु कुंवर सिंह बांका रन बीच
जैसे हाथि कई कोपि सिंह डांकी फांदी बैठल रे नू

सिर्फ स्वंतंत्रता की पहली लड़ाई ही नहीं बल्कि उसके बाद के भी सभी अन्य छोटे बड़े आन्दोलन की चर्चा यहाँ आप किसी न किसी तस्वीर में पढ़ सकते हैं. १९४२ के आन्दोलन की कहानी भी यहाँ मुख्य रूप से एक तस्वीर में बताई गयी है. १९४२ की पहली आहुति की कहानी. १९४२ के क्रांति के कुछ नायकों जैसे जय प्रकाश नारायण, राजेंद्र प्रसाद, शालिग्राम सिंह, राममंद मिश्रा, उमाकांत प्रसाद सिन्हा, देवीप्रसाद चौधरी, योगेन्द्र शुक्ला, जगत नारायण लाल, हरिनाथ मिश्रा आदि का जिक्र भी किया गया और उनका क्या योगदान रहा उसे भी बताया गया है. १९४२ की क्रांति की शुरुआत कैसे हुई थी वो वाकया भी यहाँ बताया गया है – 

९ अगस्त की रात जब बम्बई के कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी समेत सभी नेताओं  को गिरफ्तार कर लिया गया था, राजेन्द्र प्रसाद जो बिहार के नेता थे और उस अधिवेशन में तबीयत खराब रहने की वजह से नहीं जा सके थे उन्हें भी पटना के सदाकत आश्रम से गिरफ्तार कर लिया गया था. इस खबर से पूरे पटना में सन्नाटा छा गया. दुकाने, कॉलेज बंद हो गए और स्टूडेंट्स और बाकी लोग सड़कों पर उतर आये थे. पूरे शहर में हड़तालें होने लगी. पटना सचिवालय में जो घटनाएँ घटी उसकी याद दिलाता  है वहां के पूर्वी गेट पर स्थापित शहीद स्मारक , उस की तस्वीर भी एक बोर्ड में देखी जा सकती है.

आज़ादी के कुछ क्रांतिकारियों जैसे खुदीराम बोस, बटुकेश्वर दत्त और प्रफुल्ल चाकी की तस्वीरों  के साथ उनके वीरता के किस्से भी पढ़ने को मिलते हैं यहाँ.

१९५२ के भूदान आन्दोलन के बारे में भी काफी विस्तार  से बताया गया  है. विनोबा जी के मूवमेंट से प्रेरित होकर बिहार के कुछ नेता जैसे लक्ष्मी नारायण, धीरेन्द्र मजुमदार, डॉक्टर श्याम सुन्दर प्रसाद और उनके बाकी मित्रों ने मिलकर इसकी शुरुआत बिहार में की थी. ये भी बताया गया है कि भूदान आन्दोलन में सबसे ज्यादा ज़मीन बिहार के तरफ से ही दान की गयी थी, उनकी  एक लिस्ट भी लगाई  गई  है यहाँ. उस आन्दोलन के साथ ही एक दूसरे फ्रेम में वर्तमान बिहार के नायकों की तस्वीरें भी आप देख सकते हैं. उन महान नायकों के जो डाक टिकट जारी किये गए थे, उनकी भी एक प्रदर्शनी यहाँ लगाईं गयी है.

सिर्फ इतिहास ही नहीं बल्कि पटना में घूमने लायक कौन कौन सी  जगह हैं उसके बारे में भी एक बोर्ड पर बताया गया है. पटना सचिवालय, राज भवन, म्युजियम, रिजवान कैसल, ओल्ड मरियम मंजिल, सदाकत आश्रम, गोल घर, पत्थर की मस्जिद, किला हाउस, खुदा बक्श लाइब्रेरी, अंजुमन इस्लामिया हॉल जैसे जगहों की तस्वीरें यहाँ देखने को मिलती हैं. तस्वीरों के साथ उन जगहों के बारे में एकं छोटा विवरण भी आप पढ़ सकते हैं.

भारतीय संविधान की एक कॉपी यहाँ रखी गयी है. अब ये मूल कॉपी है या क्या, ये कहना मुश्किल है, लेकिन अच्छा लगा भारतीय संविधान की कॉपी यहाँ देखकर. खादी के कपडे जो उन दिनों चलन में थे उन्हें भी यहाँ प्रदर्शित किया गया है. बिहार के प्रमुख अनाज जो अब लुप्त होते जा रहे हैं उनके बारे में भी यहाँ बताया गया है.

पटना के गांधी संग्रहालय में एक लाइब्ररी भी है जहाँ कुछ स्टूडेंट्स पढने आते हैं, यहाँ के एकांत औए शांत वातावरण में उन्हें पढ़ना अच्छा लगता है..,साथं ही साथ गांधी जी के बारे में भी पुस्तकें मिल जाती हैं लोगों को. विद्यार्थी यहाँ कम्पटीशन  की तैयारी  करने भी  आते हैं. स्टूडेंट्स को यहाँ पढने के लिए अखबार और  पत्रिकाएं भी मिल जाती हैं .  संग्रहालय के ही कैम्पस में एक दुकान भी है जहाँ से आप गांधी जी से जुडी काफी किताबें खरीद सकते हैं.

इस संग्रहालय में काफी अमूल्य जानकारियां मिलती हैं, काफी इन्स्प्यार करती हैं हमें. चाहे वो महात्मा गांधी की जीवन से जुडी घटनाएं हों या १८५७ का विद्रोह या चंपारण सत्याग्रह या क्रांतिकारियों के बलिदान और वीरता की कहानी, हर कुछ आप यहाँ पढ़ सकते हैं. आज के ज़माने में जहाँ इतिहास लुप्त होता जा रहा है, बच्चों को भी अपने देश के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं, अपने देश के नायकों के बारे में उन्हें पता नहीं ऐसे में ऐसी संस्थानों  और संग्रहालयों की अहमियत काफी बढ़ जाती है. लोगों को चाहिए कि वो अपने बच्चों को लेकर यहाँ आयें ताकि वो भी जान समझ सके अपने देश के इतिहास के बारे में और कैसे कैसे वीर इस देश में जन्म लिए उनके बारे में. लेकिन सबसे बड़ी अफसोस की बात तो यही है कि खुद पटना के लोगों को इस संग्रहालय के बारे में पता नहीं है, जिन्हें पता भी है वो यहाँ आना नहीं चाहते. मैं करीब डेढ़ घंटे संग्रहालय में था, उस दौरान वहां कोई दूसरा व्यक्ति नहीं दिखा मुझे. जब विजिटर्स बुक पर दस्तखत  कर रहा था, तो मैंने गौर किया कि मेरे पहले जिसने दस्तखत किया है वो तीन चार दिन पहले आया था . वहां खड़े गार्ड से मैंने पूछा, क्यों भैया, तीन दिनों से यहाँ कोई आया नहीं? उसने कहा ऐसी जगहें कौन आता है साहब, वैसे कुछ-कुछ  लोग आते हैं…दिन में एक दो लोग यहाँ आपको नज़र आ जायेंगे, हाँ लाइब्रेरी में पाँच- दस लोग आपको हर दिन मिल जायेंगे जो यहाँ की लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए आते रहते  हैं.

संग्रहालय से बाहर आकर कुछ देर मैं थोड़ा अस्थिर रहा. आज हमने विदेशी चीजों, आदतों, रहन-सहन की सैकड़ों बातों को अपनी जीवन-शैली में अपना लिया है, पर सिर्फ एक बेहद ज़रूरी बात अपनाना ही भूल गए…अपनी विरासत को सम्हाल कर रखना…अपने इतिहास को अपने दिल में बसाना…

अपने भविष्य की परिकल्पना करते समय आज का सभ्य  इंसान शायद यह समझना ही नहीं चाहता  कि बिना अपना इतिहास जाने हर देश का भविष्य उसके लिए अनिश्चित ही रहेगा और बहुत हद तक शायद अबूझा भी…

Meri Baatein
Meri Baateinhttps://meribaatein.in
Meribatein is a personal blog. Read nostalgic stories and memoir of 90's decade. Articles, stories, Book Review and Cinema Reviews and Cinema Facts.
  1. "…अपनी विरासत को सम्हाल कर रखना…"

    That's the essence!

    Very well written…
    आभार!

  2. Patna janm bhoomi hote hue bhi kabhi nahi gaye Gandhi Sanghrahlay.. lekin Gandhi ji mein koi interest bhi nahi hai. Bhagat singh, Bose etyaadi ka hota to jaate… Gandhi's and Nehru's are way too hyped!

  3. लोक गीत और चित्रों ने खूब समां बांधा है। अच्छी लगी पोस्ट।

  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद राजगुरु जी की १०७ वीं जयंती – ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !

  5. अरे वाह , कितना कुछ सहेज रखा है । बढ़िया जानकारी मिली ।

  6. हमें आदत ही नहीं अपनी विरासत संभालने की. किसी और देश में होता तो कम से कम कुछ टिकट होती इनमें जाने की.
    बहुत अच्छा लग रहा संघ्रालय तो, और कुछ नहीं तो स्कूल के बच्चों की ही नियमित ट्रिप करा देनी चाहिए यहाँ.

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